Wednesday 2 May 2018

#बलात्कार का जन्म
Ashwini Upadhyay जी की शानदार पोस्ट
आखिर भारत जैसे देश में, जहां कन्यापूजन किया जाता है, बलात्कार की गन्दी मानसिकता कहाँ से आयी?
आखिर रामायण, महाभारत जैसे हिन्दू धर्म ग्रंथों में बलात्कार का जिक्र क्यों नहीं है?
भगवान राम ने लंका पर विजय प्राप्त किया लेकिन उनकी सेना ने लंका की स्त्रियों को हाथ नहीं लगाया!
महाभारत में पांडवों की जीत हुयी लेकिन उनकी सेना ने कौरव सेना की विधवा स्त्रियों को हाथ नहीं लगाया!
अब आते हैं ईसापूर्व इतिहास में~
220-175 ईसापूर्व में यूनान के शासक "डेमेट्रियस प्रथम" ने भारत पर आक्रमण किया ! 183 ईसापूर्व उसने पंजाब को जीतकर साकल को अपनी राजधानी बनाया और पंजाब-सिन्ध पर राज किया। लेकिन उसके शासन काल में बलात्कार का कोई जिक्र नहीं।
इसके बाद "युक्रेटीदस" ने भी भारत के कुछ भागों को जीतकर "तक्षशिला" को अपनी राजधानी बनाया लेकिन बलात्कार का कोई जिक्र नहीं।
"डेमेट्रियस" के वंश के मीनेंडर (ईपू 160-120) ने नौवें बौद्ध शासक "वृहद्रथ" को पराजित कर सिन्धु के पार पंजाब और स्वात घाटी से लेकर मथुरा तक राज किया लेकिन उसके शासनकाल में भी बलात्कार का कोई उल्लेख नहीं मिलता।
"सिकंदर" ने भारत पर लगभग 326-327 ई .पू आक्रमण किया जिसमें हजारों सैनिक मारे गए । युद्ध जीतने के बाद भी राजा "पुरु" की बहादुरी से प्रभावित होकर सिकंदर ने जीता हुआ राज्य पुरु को वापस दे दिया और "बेबिलोन" वापस चला गया! विजेता होने के बाद भी उसकी सेना ने किसी भी महिला के साथ बलात्कार नहीं किया और न ही "धर्म परिवर्तन" करवाया ।
इसके बाद "शकों" ने भारत पर आक्रमण किया (जिन्होंने ई.78 से शक संवत शुरू किया था)। "सिन्ध" नदी के तट पर स्थित "मीननगर" को उन्होंने अपनी राजधानी बनाकर गुजरात क्षेत्र के सौराष्ट्र , अवंतिका, उज्जयिनी, गंधार, सिन्ध, मथुरा समेत महाराष्ट्र के बहुत बड़े भू भाग पर 130 ईस्वी से 188 ईस्वी तक शासन किया। परन्तु इनके राज्य में भी बलात्कार का कोई उल्लेख नहीं मिलता है!
इसके बाद तिब्बत के "युइशि" (यूची) कबीले की लड़ाकू प्रजाति "कुषाणों" ने "काबुल" और "कंधार" को जीत लिया। जिसमें "कनिष्क प्रथम" (127-140ई.) नाम का सबसे शक्तिशाली सम्राट हुआ। जिसका राज्य "कश्मीर से उत्तरी सिन्ध" तथा "पेशावर से सारनाथ" तक फैला था। कुषाणों ने भी भारत पर लम्बे समय तक विभिन्न क्षेत्रों में शासन किया। परन्तु इतिहास में कहीं नहीं लिखा कि इन्होंने भारतीय स्त्रियों का बलात्कार किया ।
इसके बाद "अफगानिस्तान" से होते हुए भारत तक आये "हूणों" ने 520 AD में भारत पर अधिसंख्य आक्रमण किए और यहाँ पर राज भी किया। ये हमारी सेना के लिये क्रूर थे लेकिन महिलाओं का सम्मान करते थे!
इसके अतिरिक्त हजारों साल के इतिहास में और भी कई आक्रमणकारी आये जिन्होंने भारत में बहुत मार-काट मचाया जैसे "नेपालवंशी" "शक्य" आदि। लेकिन किसी ने भी महिलाओं की इज्जत नहीं लूटा!
अब आते हैं मध्यकालीन भारत में और यहीं से शुरू होता है भारत में बलात्कार का प्रचलन ।
सबसे पहले 711 ईस्वी में "मुहम्मद बिन कासिम" ने सिंध पर हमला करके राजा "दाहिर" को हराने के बाद उनकी दोनों "बेटियों" को "यौनदासी" के रूप में "खलीफा" को तोहफा दे दिया। तब शायद भारत की स्त्रियों का पहली बार बलात्कार जैसे कुकर्म से सामना हुआ जिसमें "हारे हुए राजा की बेटियों" और "साधारण भारतीय स्त्रियों" का "जीती हुयी इस्लामी सेना" द्वारा बुरी तरह से बलात्कार और अपहरण किया गया ।
फिर आया 1001 इस्वी में "गजनवी"। इसने "इस्लाम फ़ैलाने" के उद्देश्य से ही आक्रमण किया था। "सोमनाथ मंदिर" को तोड़ने के बाद इसकी सेना ने हजारों "हिंदू औरतों" का बलात्कार किया और उन्हें अफगानिस्तान ले जाकर बाजारों में जानवरों की तरह नीलाम कर दिया ।
फिर "गौरी" ने 1192 में "पृथ्वीराज चौहान" को हराने के बाद भारत में "इस्लाम का प्रकाश" फैलाने के लिए "हजारों हिंदुओ" को मौत के घाट उतर दिया और उसकी "फौज" ने "अनगिनत हिन्दू स्त्रियों" के साथ बलात्कार कर उनका "धर्म-परिवर्तन" करवाया।
मुहम्मद बिन कासिम, बख्तियार खिलजी, जूना खाँ उर्फ अलाउद्दीन खिलजी, फिरोजशाह, तैमूरलंग, आरामशाह, इल्तुतमिश, रुकुनुद्दीन फिरोजशाह, मुइजुद्दीन बहरामशाह, अलाउद्दीन मसूद, नसीरुद्दीन महमूद, गयासुद्दीन बलबन, जलालुद्दीन खिलजी, शिहाबुद्दीन उमर खिलजी, कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी, नसरत शाह तुगलक, महमूद तुगलक, खिज्र खां, मुबारक शाह, मुहम्मद शाह, अलाउद्दीन आलम शाह, बहलोल लोदी, सिकंदर शाह लोदी, बाबर, नूरुद्दीन सलीम जहांगीर ! ये सब अपने साथ औरतों को लेकर नहीं आए थे।
अपने हरम में "8000 रखैल रखने वाला शाहजहाँ"।
इसके आगे अपने ही दरबारियों और कमजोर मुसलमानों की औरतों से अय्याशी करने के लिए "मीना बाजार" लगवाने वाला "जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर"।
मुहम्मद से लेकर औरंगजेब तक, बलात्कारियों की ये सूची बहुत लम्बी है। जिनकी फौजों ने हारे हुए राज्य की लाखों "महिलाओं" का बेरहमी से बलात्कार किया और "जेहाद के इनाम" के तौर पर कभी "सिपहसालारों" में बांटा तो कभी बाजारों में "जानवरों की तरह उनकी कीमत लगायी" गई।
ये असहाय और बेबस महिलाएं "हरमों" से लेकर "वेश्यालयों" तक में पहुँची। इनकी संतानें भी हुईं पर वो अपने मूलधर्म में कभी वापस नहीं पहुँच पायीं।
एकबार फिर से बता दूँ कि मुस्लिम "आक्रमणकारी" अपने साथ "औरतों" को लेकर नहीं आए थे।
वास्तव में मध्यकालीन भारत में मुगलों द्वारा "पराजित स्त्रियों का बलात्कार" करना एक आम बात थी क्योंकि वे इसे "अपनी जीत" या "जिहाद का इनाम" (माल-ए-गनीमत) मानते थे।
इन अत्याचारों और असंख्य बलात्कारों को वामपंथी इतिहासकार भी जानते हैं लेकिन लिखते नहीं हैं! जबकि खुद उन सुल्तानों के साथ रहने वाले लेखकों ने बड़े ही शान से अपनी कलम चलायीं और बड़े घमण्ड से अपने मालिकों द्वारा काफिरों को सबक सिखाने का विस्तृत वर्णन किया।
इनके सैकड़ों वर्षों के खूनी शासनकाल में भारत की हिन्दू जनता अपनी महिलाओं का सम्मान बचाने के लिए देश के एक कोने से दूसरे कोने तक भागती और बसती रहीं।
इन मुस्लिम बलात्कारियों से सम्मान-रक्षा के लिए हजारों की संख्या में हिन्दू महिलाओं ने स्वयं को जौहर की ज्वाला में जलाकर भस्म कर लिया।
ठीक इसी काल में मुस्लिम सैनिकों की दृष्टि से बचाने के लिए बाल-विवाह रात्रि-विवाह और पर्दा-प्रथा की शुरूआत हुई। अंग्रेजों ने भी भारत को खूब लूटा लेकिन वे महिलाओं की आबरू नहीं लूटते थे!
1946 में मुहम्मद अली जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन प्लान और 1947 विभाजन के दंगों से लेकर 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम तक तो लाखों हिंदू महिलाओं का बलात्कार हुआ और फिर उनका अपहरण हो गया।
इस दौरान स्थिती ऐसी हो गयी थी कि "पाकिस्तान समर्थित मुस्लिम बहुल इलाकों" से "बलात्कार" किये बिना एक भी "हिंदू स्त्री" वहां से वापस नहीं आ सकती थी।
विभाजन के समय पाकिस्तान के कई स्थानों में सड़कों पर हिंदू स्त्रियों की नग्न यात्राएं निकाली गयीं और बाज़ार सजाकर उनकी बोलियाँ लगायी गयीं और 10 लाख महिलाओं को खरीदा बेचा गया। 20 लाख से ज्यादा महिलाओं को जबरन मुस्लिम बना कर अपने घरों में रखा गया। (इसका कुछ वर्णन फिल्म पिंजर में भी है)
भारत विभाजन के दौर में हिन्दुओं को मारने वाले सबके सब विदेशी नहीं थे। इन्हें मारने वाले स्थानीय मुस्लिम भी थे। समूहों में कत्ल से पहले हिन्दुओं के अंग-भंग करना, आंखें निकालना, नाखुन खींचना, बाल नोचना, जिंदा जलाना, चमड़ी खींचना खासकर महिलाओं का बलात्कार करने के बाद उनके "स्तनों को काटकर" तड़पा-तड़पा कर मारना आम बात थी।
अंत में कश्मीर की बात~19 जनवरी 1990~
कश्मीरी हिंदुओं के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया गया - "या तो मुस्लिम बन जाओ या मरने के लिए तैयार हो जाओ या फिर कश्मीर छोड़कर भाग जाओ लेकिन अपनी औरतों को यहीं छोड़कर " लखनऊ में विस्थापित जीवन जी रहे कश्मीरी हिंदू संजयजी उस मंजर को याद करते हुए आज भी सिहर जाते हैं। वह कहते हैं कि "मस्जिदों के लाउडस्पीकर" से लगातार तीन दिन तक एक ही आवाज आ रही थी - "यहां क्या चलेगा, निजाम-ए-मुस्तफा", "आजादी का मतलब क्या - ला इलाहा इलल्लाह", "कश्मीर में अगर रहना है तो अल्लाह-ओ-अकबर" कहना है और 'असि गच्ची पाकिस्तान, बताओ "रोअस ते बतानेव सान" जिसका मतलब था कि हमें यहां अपना पाकिस्तान बनाना है, कश्मीरी पंडितों के बिना लेकिन कश्मीरी पंडित महिलाओं के साथ।
सदियों का भाईचारा कुछ ही समय में समाप्त हो गया जहाँ पंडितों से ही तालीम हासिल किए लोग उनकी ही महिलाओं की अस्मत लूटने को तैयार हो गए थे। सारे कश्मीर की मस्जिदों में एक टेप चलाया गया। जिसमें मुस्लिमों को कहा गया की वो हिन्दुओं को कश्मीर से निकाल बाहर करें। उसके बाद कश्मीरी मुस्लिम सड़कों पर उतर आये।
मुस्लिमों ने हिंदुओ के घरों को जला दिया, महिलाओ का बलात्कार करके, फिर उनकी हत्या करके उनके "नग्न शरीर को पेड़ पर लटका दिया गया"। कुछ महिलाओं को बलात्कार कर जिन्दा जला दिया गया और कुछ को लोहे के गरम सलाखों से मार दिया गया।
कश्मीरी पंडित नर्स, जो श्रीनगर के सौर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में काम करती थी, का सामूहिक बलात्कार किया गया और मार मार कर उसकी हत्या कर दी गयी!बच्चों को उनकी माँ के सामने ही स्टील के तार से गला घोंटकर मार दिया गया।
आप जिस धरती के जन्नत का मजे लेने जाते हैं उसी हसीन वादियों में हजारों हिन्दू बहू-बेटियों की बेबस कराहें गूंजती हैं, जिन्हें केवल हिंदू होने की सजा मिली। घर, बाजार, मैदान से लेकर उन खूबसूरत वादियों में न जाने कितनी जुल्मों की दास्तानें दफन हैं जो आज तक अनकही हैं। विस्थापित हिंदू के घर और बगीचों पर वहां के मुसलमानों ने कब्जा कर लिया और सबसे बड़ी बात तो यह है कि वे बलात्कारी और हत्यारे खुलेआम सड़कों पर मौज मस्ती कर रहे हैं! झेलम का बहता हुआ पानी उन रातों की वहशियत के गवाह हैं जिसने कभी न खत्म होने वाले दाग इंसानियत के दिल पर दिए।
लखनऊ में विस्थापित रविन्द्रजी के चेहरे पर अविश्वास की सैकड़ों लकीरें पीड़ा की शक्ल में उभरती हुईं बयान करती हैं कि यदि आतंक के उन दिनों में घाटी की मुस्लिम आबादी ने उनका साथ दिया होता, जब उन्हें वहां से खदेड़ा जा रहा था, उनके साथ कत्लेआम हो रहा था तो किसी भी आतंकवादी में ये हिम्मत नहीं होती कि वह किसी कश्मीरी हिंदू को चोट पहुंचाने की सोच पाता लेकिन तब उन्होंने हमारा साथ देने के बजाय कट्टरपंथियों के सामने घुटने टेक दिए और उनके ही लश्कर में शामिल हो गए थे।
अभी हाल में ही आपलोगों ने टीवी पर "अबू बकर अल बगदादी" के जेहादियों को काफिर "यजीदी महिलाओं" को रस्सियों से बाँधकर कौड़ियों के भाव बेचते देखा होगा। पाकिस्तान में खुलेआम हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर सार्वजनिक रूप से मौलवियों द्वारा धर्मपरिवर्तन कर निकाह कराते देखा होगा।
बांग्लादेश से भारत भागकर आये हिन्दुओं के मुँह से महिलाओं के बलात्कार की मार्मिक घटनाएँ सुनी होंगी!यहाँ तक कि म्यांमार में भी बौद्ध महिलाओं के बलात्कार और हत्या के बाद शुरू हुई हिंसा के भीषण दौर को देखा होगा।
केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनियाँ में इस सोच ने मोरक्को से ले कर हिन्दुस्तान तक सभी देशों पर आक्रमण कर वहाँ के निवासियों को धर्मान्तरित किया, संपत्तियों को लूटा तथा इन देशों में पहले से फल फूल रही हजारों वर्ष पुरानी सभ्यता का विनाश कर दिया।
परन्तु पूरी दुनियाँ में इसकी सबसे ज्यादा सजा महिलाओं को ही भुगतनी पड़ी और वह भी बलात्कार के रूप में!आज सैकड़ों साल की गुलामी के बाद समय बीतने के साथ धीरे-धीरे ये बलात्कार करने की मानसिक बीमारी भारत के पुरुषों में भी फैलने लगी।
जिस देश में कभी नारी जाति शासन करती थीं, सार्वजनिक रूप से शास्त्रार्थ करती थीं, स्वयंवर द्वारा स्वयं अपना वर चुनती थीं, जिन्हें देवियों के रूप में श्रद्धा से पूजा जाता था, आज उसी देश में छोटी-छोटी बच्चियों का बलात्कार होने लगा, इससे स्पस्ट है कि हिंदुस्तान में भी हिंदू सभ्यता लगातार कमजोर हो रही है!

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