Monday 20 May 2013

तुम्हारा भगवान बार-बार आता है

एक बार अकबर ने बीरबल से पूछाः "तुम्हारे भगवान और हमारे खुदा में बहुत फर्क है। हमारा खुदा तो अपना पैगम्बर भेजता है जबकि तुम्हारा भगवान बार-बार आता है। यह 
क्या बात है ?"
बीरबलः "जहाँपनाह ! इस बात का कभी व्यवहारिक तौर पर अनुभव करवा दूँगा। आप जरा थोड़े दिनों की मोहलत दीजिए।"
चार-पाँच दिन बीत गये। बीरबल ने एक आयोजन किया। अकबर को यमुनाजी में नौकाविहार कराने ले गये। कुछ नावों की व्यवस्था पहलेसे ही करवा दी थी। उस समय यमुनाजी छिछली न थीं। उनमेंअथाह जल था। बीरबल ने एक युक्ति की कि जिस नाव में अकबर बैठा था, उसी नाव में एक दासी को अकबर के नवजात शिशु के साथ बैठा दिया गया।सचमुच में वह नवजात शिशु नहीं था। मोम का बालक पुतलाबनाकर उसे राजसी वस्त्र पहनाये गये थे ताकि वह अकबरका बेटा लगे। दासी को सब कुछ सिखा दिया गया था।
नाव जब बीच मझधार में पहुँची और हिलने लगी तब 'अरे.... रे... रे.... ओ.... ओ.....' कहकर दासी ने स्त्री चरित्रकरके बच्चे को पानी में गिरा दिया और रोने बिलखने लगी। अपने बालक को बचाने-खोजने के लिए अकबर धड़ाम सेयमुना में कूद पड़ा। खूब इधर-उधर गोते मारकर, बड़ी मुश्किल से उसने बच्चे को पानी में से निकाला। वह बच्चा तो क्या था मोम का पुतला था।
अकबर कहने लगाः "बीरबल ! यह सारी शरारत तुम्हारी है। तुमने मेरी बेइज्जती करवाने के लिए ही ऐसा किया।"
बीरबलः "जहाँपनाह ! आपकी बेइज्जती के लिए नहीं, बल्कि आपके प्रश्न का उत्तरदेने के लिए ऐसा ही किया गया था। आप इसे अपना शिशु समझकर नदी में कूद पड़े। उससमय आपको पता तो था ही इन सबनावों में कई तैराक बैठे थे, नाविक भी बैठे थे और हम भी तो थे ! आपने हमको आदेश क्यों नहीं दिया ? हम कूदकरआपके बेटे की रक्षा करते !"
अकबरः "बीरबल ! यदि अपना बेटा डूबता हो तो अपने मंत्रियों को या तैराकों कोकहने की फुरसत कहाँ रहती है? खुद ही कूदा जाता है।"
बीरबलः "जैसे अपने बेटे की रक्षा के लिए आप खुद कूद पड़े, ऐसे ही हमारे भगवान जब अपने बालकों को संसार एवं संसार की मुसीबतों में डूबता हुआ देखते हैं तो वे पैगम्बर-वैगम्बर को नहींभेजते, वरन् खुद ही प्रगट होते हैं। वे अपने बेटों कीरक्षा के लिए आप ही अवतार ग्रहण करते है और संसार को आनंद तथा प्रेम के प्रसाद से धन्य करते हैं। आपके उस दिन के सवाल का यही जवाब है.


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एक बार एक क्लास में मास्टर जी ने सोचा की आज बच्चो की इम्तिहान लिया जाए
की वो राष्ट्रवादी तथ्यों को कितना जानते व समझते हैं इसलिए उन्होंने पहली बेंच से सवाल का आरम्भ किया
पहले लड़के से पूछा : भारत की एक समस्या बताओ ?
लड़के ने कहा : गरीबी ....
दुसरे लड़के से भी वही सवाल : भारत की एक समस्या बताओ ?
दुसरे लड़के ने कहा : आतंकवाद
तीसरे लड़के से पूछा : भारत की एक समस्या बताओ? तीसरे ने कहा : भ्रष्टाचार
इस तरह वो हर एक लड़के से सवाल पूछते गए सबने ने अलग अलग जवाब दिए कोई
कहता पकिस्तान ...कोई अशिक्षा ...कोई कहता कन्या भ्रूण हत्या ..कोई कहता बेरोजगारी ....कोई
कहता जातिवाद, इस तरह से क्रम आगे बढ़ता गया
कक्षा में कुल 101 विध्यार्थी थे....अब तक मास्टर जी कुल 100 से त्याही सवाल पूछ चुके थे
और सभी 100 छात्रों ने अलग अलग समस्या बताई किसी ने बड़ी बड़ी समस्याबताई तो किसी ने छोटी
लेकिन सब ने अलग अलग समस्या बताई
अब बारी थी छात्र नम्बर 101 की ......वो हमेशा कक्षा में अव्वल आता था
मास्टर जी ने पासा पलटा
मास्टर जी ने उस लड़के की बुद्धिमता जांचने केलिए सवाल बदला और कहा : यहाँ जितनो ने
जितनी भी समस्या बताई है सब का निदान बताओ ? इन सभी समस्यों को समाधान बताओ?
वो बालक तनिक भी नहीं घबराया ..उसने उलटे मास्टर जी से पूछा
मास्टर जी 100 समस्या का एक हल बताऊ या 100 समस्या के 100 हल बताऊ
अब मास्टर जी चौक पड़े ....वो सोचने लगे इतनी साड़ी समस्या का एक हल कैसे हो सकता हैं
उनकी उतेजना बढती जा रही थी
मास्टर जी ने कहा : 100 समस्या का एक हल संभव हैं क्या ? बालक ने कहा : बिलकुल हैं ...
मास्टर जी : बताओ ज़रा .............
आपको पता है बालक ने क्या कहा
बालक ने कहा : मास्टर जी .इन सब समस्या का एक ही हल हैं और वो हैं...
"" नरेन्द्र मोदी "" 

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