Sunday, 29 March 2015

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भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए हम सबको काम करना होगा।
 भारत की गौरवशाली परंपरा रही है। इसलिए विश्व में भारत को बड़ा और शक्तिशाली होने की जरूरत है।  सबका सपना भारत को परम वैभव पर ले जाना है। यह तब पूरा होगा, जब हम सबसे पहले अपने भारत को जानें। केवल भौगोलिक स्थिति ही नहीं, अपितु उसकी अस्मिता के मूल स्रोत और उसकी वैज्ञानिक दृष्टि, सांस्कृतिक मूल्य और उज्ज्वल परंपरा को जानना होगा। इसी परंपरा में हमारा हर काम सत्यं, शिवम् सुंदरम् होना चाहिए।
 हमारी सांस्कृतिक धरोहर के कारण ही हम अनेक कालचक्रों का सामना करते हुए टिके रहे, इसका कारण हमारी महान सांस्कृतिक परंपरा है | हमने कभी किसी संस्कृति को नहीं नकारा | हमारी समन्वयवादी परंपरा रही है | इसीलिए सभी क्षेत्रों में अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं | ज्ञान-विज्ञान का प्रारंभ करने का श्रेय भारत को जाता है | खेती हो, विज्ञान हो या आध्यात्म, हम हर क्षेत्र में आगे रहे हैं | चाहे बात लौह स्तंभ की हो या स्टेनलेस स्टील बनाने की, हमारे वनवासी बंधुओं द्वारा बनाया जाने वाला स्टेनलेस स्टील उच्चकोटि का है, जिसका लोहा बड़ी-बड़ी कंपनियां भी मानती हैं | हमने विश्व को ज्ञान दिया | इतना ही नहीं ज्ञान को विश्व में हर किसी तक पहुंचाने के लिए बलिदान देने से भी भारत के लोग पीछे नहीं रहे |

 जब चीनी यात्री नालंदा विश्वविद्यालय से पुस्तकें लेकर चीन लौट रहा था तो नाव द्वारा नदी पार करते समय तूफान आने पर नाविक ने कहा कि तूफान में डटे रहने के लिये नाव से कुछ भार कम करना पड़ेगा | तब चीनी यात्री चिंतित हो गया, कि अब भार कम करने के लिये पुस्तकें फैंकनी पड़ेंगी या किसी को नदीं में कूदना होगा. ज्ञान की धारा को चीन तक पहुंचाने के लिये उनके साथ जा रहे तीन भारतीयों ने चीनी यात्री की चिंता को कम किया, और तीनों भारतीयों ने जान की परवाह किए बिना बारी-बारी से नदी में छलांग लगा दी ताकि ज्ञान की धारा चीन तक पहुंच सके |
तरुणोदय शिविर में हम सब इसलिए एकत्र हुए हैं, क्योंकि हम सबके मन में भारत को परम वैभव पर ले जाने का सपना है | यह सपना तब पूरा होगा, जब हम सबसे पहले अपने भारत को जानें | संघ के स्वयंसेवकों के सामने अनेक बाधाएं और उतार-चढ़ाव आएंगे | झोंकों और बाधाओं के कारण हम अपनी राह नहीं छोड़ेंगे, हमें देश के लिए काम करना है और भारत को विश्वगुरु बनाना है |
उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति का परिचय कराने के लिए यहां पर 15 सेकेंड लगे हैं | भारत में 125 करोड़ जन हैं, इस हिसाब से भारत माता का परिचय कराने के लिये कितना समय लगेगा, यह जानना जरूरी है | भारत को जाने बिना इसके लिए काम कैसे होगा | इसलिए यह आवश्यक है कि देश के लिये कार्य करने से पहले भारत को जानें | जाति व्यवस्था व महिलाओं का गौण स्थान भारत की परंपरा नहीं है | महिलाओ का उच्च स्थान व जाति विहीन समाज की संरचना भारत में सदियों से रही है | अर्थशास्त्र न मुनाफा कमाने का तंत्र है और न ही उपभोग को बढ़ावा देने का, बल्कि सभी का भरण पोषण हो, इसके लिए है | उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक रूप से हम सब एकसूत्र में बंधे हुए हैं, जिसमें जाति का कहीं कोई स्थान नहीं है |
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दुनिया की सभी भाषाओं का विकास मानव, पशु-पक्षियों द्वारा शुरुआत में बोले गए ध्वनि संकेतों के आधार पर हुआ अर्थात लोगों ने भाषाओं का विकास किया और उसे अपने देश और धर्म की भाषा बनाया। लेकिन संस्कृत किसी देश या धर्म की भाषा नहीं यह अपौरूष भाषा है, क्योंकि इसकी उत्पत्ति और विकास ब्रह्मांड की ध्वनियों को सुन-जानकर हुआ। यह आम लोगों द्वारा बोली गई ध्वनियां नहीं हैं।धरती और ब्रह्मांड में गति सर्वत्र है। चाहे वस्तु स्थिर हो या गतिमान। गति होगी तो ध्वनि निकलेगी। ध्वनि होगी तो शब्द निकलेगा। देवों और ऋषियों ने उक्त ध्वनियों और शब्दों को पकड़कर उसे लिपि में बांधा और उसके महत्व और प्रभाव को समझा।संस्कृत विद्वानों के अनुसार सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियां निकलती हैं और ये चारों ओर से अलग-अलग निकलती हैं। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गईं। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने। इस तरह सूर्य की जब 9 रश्मियां पृथ्वी पर आती हैं तो उनकी पृथ्वी के 8 वसुओं से टक्कर होती है। सूर्य की 9 रश्मियां और पृथ्वी के 8 वसुओं के आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुईं, वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गईं। इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियां पर संस्कृत की वर्ण माला आधारित हैं।
ब्रह्मांड की ध्वनियों के रहस्य के बारे में वेदों से ही जानकारी मिलती है। इन ध्वनियों को अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के संगठन नासा और इसरो ने भी माना है।
पशु पक्षियों की भाषा कैसे सीखे?रामायण मे वर्णन है श्रीराम जी पशु पक्षियों की बोली जानते थे।क्या हम उस विद्या को जानते है??
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ऋग्वेद हमे बाटकर खाने को कहता है !
हम जो अनाज खेतो मे पैदा करते है उसका बटवारा तो देखीए !
1, जमीन से चार अंगूल भूमी का,
2, गहू के बाली के नीचे का पशूओ का,
3, पहले पेड़ की पहली बाली अग्नी का,
4, बाली से गहू अलग करने पर मूठ्ठी भर दाना पंछीयो का,
5, गहू का आटा बनाने पर मूठ्ठी भर आटा चीटीयो का फीर आटा गूथने के बात
6, चुटकी भर गूथा आटा मछलीयो का,
7, फिर उस आटे की पहली रोटी गौमाता की और
8, पहली थाली घर के बूजूर्गो की और फिर हमारी और
9, आखरी रोटी कूत्ते की ये हमे सीखाता है हमारा धर्म और मूझे गर्व है कि इस धर्म का पालन करने वाला मै हिंदू हुँ।
और यही मानवता का एकमात्र धर्म है

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Saturday, 28 March 2015

sanskar----------

बच्चों को योग सिखाने के लाभ---
- इससे बच्चें शांत होते है.
- आज के दौर में बच्चें भी बहुत तनाव में होते है. योग से उनका तनाव दूर होता है.
- योग बच्चों की एकाग्रता और संतुलन को बढाता है.
- योग करने से बच्चें सक्रीय और बेहतर जीवन शैली की ओर कदम बढाते है.
- योग करने से बच्चों की नींद और अच्छी होती है.
- योग करने से बच्चों की कार्य प्रवीणता यानी मोटर स्किल में वृद्धि होती है. वे बारीक से बारीक और भारी से भारी काम ज़्यादा अच्छे से करते है.
- योग करने से बच्चों का पाचन अच्छा होता है . इससे उनके मुंह का स्वाद और भूख खुलने से वे सब कुछ खाना पसंद करते है. वे जंक फ़ूड से दूर रह पाते है.
- योग से बच्चों में लचीलापन और शक्ति बढती है.
- योग से बच्चें बेहतर तरीके से अपने विचार लिख-बोल पाते है. उनका आत्मविश्वास बढ़ता है.
- योग से बच्चें अपने शरीर , मन , विचार और बुद्धि के प्रति जागरूक होते है.
- योग करने से बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास होता है.
- इससे बच्चों में रोग प्रतिकारक शक्ति का विकास होता है. बार बार सर्दी खांसी , अस्थमा और पेट की गड़बड़ी नहीं होती.
- बच्चों में किसी प्रकार की एलर्जी नहीं होती.
- बचपन में शरीर हल्का और लचीला होता है. कई आसन बचपन से ही करना चाहिए जैसे शिर्षासन. इससे बड़े हो कर भी वे अच्छे से सभी आसन कर पाते है.
- योग भारत का गौरव है इसे हर भारतीय को करते आना चाहिए. इससे देश के प्रति अभिमान में वृद्धि होती है.
- योग सीख लेने पर एक शैली में बच्चा निपुण हो जाता है. यह उसे अपने आगे के जीवन में बहुत काम आयेगा.
- योग से प्राप्त लचीलापन , शारीरिक और मानसिक क्षमता अन्य खेल और कला सीखने में काम आएँगी.
- स्वामी रामदेवजी ने बच्चों के लिए बहुत मनोरंजक शैली में योग कार्यक्रम बनाए है. इस लिंक पर जाकर बच्चों के साथ इन कार्यक्रमों को देखें -दिखाए. इससे बच्चें योग की ओर आकर्षित होंगे.

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000   अमित के पिता वीरेंद्र प्रसाद खेती कर किसी तरह अपना और अपने तीन बच्चों का पेट भरते है। तमाम मुश्किलों के बीच अपनी मेहनत के दम पर अमित ने 2014 में सफलता हासिल की। आज वह IIT गुवाहाटी का स्टूडेंट है। अब उसका मकसद बेहद बीमार दादी का इलाज और IAS बनना है।
युवा देश अमित के होशले को सलाम करता है।
 भगवान श्री राम जी के वंश के बारे में
ब्रह्मा जी की उन्चालिसवी पीढ़ी में भगवाम श्री राम का जन्म हुआ था |
हिंदू धर्म में श्री राम को श्री हरि विष्णु का सातवाँ अवतार माना जाता है |
वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे - इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त,करुष, महाबली, शर्याति और पृषध |
श्री राम का जन्म इक्ष्वाकु के कुल में हुआ था और जैन धर्म के तीर्थंकर निमि भी इसी कुल के थे |
मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु से विकुक्षि, निमि और दण्डक पुत्र उत्पन्न हुए |
इस तरह से यह वंश परम्परा चलते-चलते हरिश्चन्द्र, रोहित, वृष, बाहु और सगरतक पहुँची | इक्ष्वाकु प्राचीन कौशल देश के राजा थे और इनकी राजधानी अयोध्या थी |
रामायण के बालकांड में गुरु वशिष्ठ जी द्वारा राम के कुल का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है :-
1 - ब्रह्मा जी से मरीचि हुए,
2 - मरीचि के पुत्र कश्यप हुए,
3 - कश्यप के पुत्र विवस्वान थे,
4 - विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए.वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था,
5 - वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था, इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना की |
6 - इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए,
7 - कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था,
8 - विकुक्षि के पुत्र बाण हुए,
9 - बाण के पुत्र अनरण्य हुए,
10- अनरण्य से पृथु हुए,
11- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ,
12- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए,
13- धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था,
14- युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए,
15- मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ,
16- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित,
17- ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए,
18- भरत के पुत्र असित हुए,
19- असित के पुत्र सगर हुए,
20- सगर के पुत्र का नाम असमंज था,
21- असमंज के पुत्र अंशुमान हुए,
22- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए,
23- दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए, भागीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था.भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे |
24- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए, रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया, तब से श्री राम के कुल को रघु कुल भी कहा जाता है |
25- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए,
26- प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे,
27- शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए,
28- सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था,
29- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए,
30- शीघ्रग के पुत्र मरु हुए,
31- मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे,
32- प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए,
33- अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था,
34- नहुष के पुत्र ययाति हुए,
35- ययाति के पुत्र नाभाग हुए,
36- नाभाग के पुत्र का नाम अज था,
37- अज के पुत्र दशरथ हुए,
38- दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए |
इस प्रकार ब्रह्मा की उन्चालिसवी (39) पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ |
नोट : -अपने बच्चों को बार बार पढ़वाये और उन्हे हिन्दू धर्म की महता के बारे में समझायें |
बोलिये सियावर रामचन्द्र की जय

Friday, 27 March 2015

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http://www.aryamantavya.in/2014/hindi-articles/why-i-left-islam/

काबा में आज भी चलता है वेदो का कानून

काबा में आज भी चलता है वेदो का कानून
काबा जो बैलुल्लाह यानी अल्लाह का घर माना जाता है, उसका अति प्राचीन नाम मक्ख-मेदिनी है और मक्ख-मेदिनी का मतलब होता है यज्ञभूमि। मक्का का काबा मंदिर वास्तव में काव्य शुक्र का मंदिर है। काबा काव्य का ही अपभ्रंश है। शुक्र का अर्थ जुम्मा अर्थात् बड़ा होता है और गुरु शुक्राचार्य बड़े ही माने जाते हैं।
यज्ञ करने वाला अपनी सांसारिक इच्छाओ और वासनाओ को छोड देता है और यज्ञ में पाक एवं बिना सिले सफेद वस्त्र पहनने की परम्परा वैदिक काल में रही है और यही सब हज के दौरान भी होता है, हाजी एहराम पहनते हैं यानी दो बिना सिले सफेद कपडे के टुकडे होते हैं।
यज्ञ हिंसा से रहित होता है और हज भी हिंसा से रहित होती है। मक्का का पाक क्षेत्र पूरी तरह सम्मानित है, ये लोग वेदो को तो भूल गए, लेकिन यहां पर फिर भी अल्लाह की सबसे पहली किताब वेदो के ही कानून का पूरी तरह पालन किया जाता है, वेद में किसी भी प्रकार की हिंसा या बलि का विधान नहीं और मक्का में यही वेदो का कानून आज भी चलता है, इस पाक क्षेत्र में कोई भी हाजी किसी भी जानवर, यहां तक की मक्खी और इससे भी आगे बढकर किसी प्रकृति यानी किसी पौधे को तनिक भी हानि नहीं पहुंचा जा सकते। हज यात्री का पूरा अस्तित्व अल्लाह को समर्पित हो जाता है। यदि अल्लाह को कुर्बानी पंसद होती तो काबा जो बैलुल्लाह यानी अल्लाह का घर माना जाता है, फिर यहां पर सबसे अधिक बकरे काटने के लिए हाजी साथ लेकर जाते? लेकिन यह क्षेत्र तो हिंसा से रहित है, क्योंकि यहां वेदो का कानून चलता है। पांच वक्त की नमाज का बहुत महत्व है। नमाज खुद संस्कृत का शब्द है यानी पंच और यज्ञ। और पांच का महत्व वेदो में ही है, जैसे पंचाग्नि, पंचपात्र, पंचगव्य, पंचांग आदि।
पांच दिन के हज के दौरान पूरी दुनिया के हाजी मक्का में एकत्र होते हैं और एक साथ इबादत करते हैं और एक साथ लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं। हज शब्द ही संस्कृत के व्रज का अपभंश है, वज्र का अर्थ एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना है।
सफेद वस्त्रधारी हाजी काबा की सात परिक्रमाएं करते हैं, सात परिक्रमा का विधान पूरी तरह वेदो का है। सप्तपदी मंदिरो में होती है, सप्तपदी विवाह संस्कार में होती है यज्ञ के सामने। John Lewis Burckhardt लिखते हैं कि मुसलमानों में हज की यात्रा इस्लाम पूर्व की है। उसी प्रकार Suzafa और Merana भी इस्लाम पूर्व के पाक क्षेत्र हं और क्योंकि यहा Motem और Nabyk नाम के देवताओ के बुत होते थे। अराफात की यात्रा कर लेने पर यात्री प्रकार Motem और Nabyk की यात्रा करते हैं। N. J. Dawood ने कुरान के अंग्रेजी संस्करण की भूमिका में लिखा है कि कुरान का प्रत्येक शब्द स्वर्ग में लिखे हुए शिलालेख से अल्लाह ने देवूदत ग्रेबियल द्वारा मोहम्मद को जैसा सुनाया, वैसा लिखा गया। बाइबिल कहती है और स्वर्ग में ईश्वर का मंदिर खोला और उसके नियम का संदूक उसके मंदिर में दिखाई दिया। ईश्वर का ज्ञान चार संदूको में है। अब सच यह है कि सृष्टि के आरम्भ में ही अल्लाह ने चार मौलाओ यानी ऋषियों को अपना ज्ञान दिया, इसलिए अल्लाह का कानून वेद हैं। वेदो में ज्ञान और विज्ञान है, लेकिन कुरान में ज्ञान-विज्ञान की बाते कम और इतिहास अधिक है। लेकिन इतिहास लिखने का कार्य अल्लाह का नहीं हो सकता, इतिहासकारो का होता है। अल्लाह तो ज्ञान और विज्ञान की बाते ही बता सकते हैं।
हिन्दुओ से चोरी किये गये इस्लामिक कुछ रिवाज और नियम ...
मनु ने पञ्च यज्ञ बताये उसी आधार पर इस्लाम में पांच वक्त की नमाज (नम शब्द से )
हिन्दुओ में आचमन अंगस्पर्शन उसी आधार पर मुस्लिमो में वुजू ,मश्ह ..
हिन्दुओ में स्नान मुस्लिमो में गुसल ,,
हिन्दुओ का शोच मुस्लिमो का तय्युम (शौच में मिटटी लगाने के बाद पानी से धोते है मतलब शुधि करते है जबकि वहा तय्यम के बाद पानी से धोने के बारे में नियम नही है मिटटी लपटने के बाद बिना पानी धोये भी नमाज पढ़ सकते है )
हिन्दुओ में जप माला फिरना ,,,मुस्लिमो में तस्बीह ,तहलील करना ...
हिन्दुओ का पाठ करना मुस्लिमो का तिलावत
हिन्दुओ का उपवास मुस्लिमो का रोजे
हिन्दुओ में दान पुन्य मुस्लिमो के खैरात व जकात
हिन्दुओ में बलिदान मुस्लिमो में सदक:
हिन्दुओ की तीर्थ यात्रा मुस्लिमो की हज्ज
हिन्दुओ की प्रदक्षिणा मुस्लिमो की तवाफ़ ..
हिन्दुओ का प्रायश्चित मुस्लिमो का कफार
हिन्दुओ का श्राद मुस्लिमो का फातिह:
हिन्दुओ का स्वर्ग मुस्लिमो की बहिश्त ...हिन्दुओ का नर्क मुस्लिमो की दोजख ..
हिन्दुओ का अक्षयवट मुस्लिमो का तूबा ..
हिन्दुओ की अप्सरा ,धर्मराज ,गण मुस्लिमो की हुरे , रिज्वान ,मलाइक
हिन्दुओ का चित्रगुप्त मुसलमानों का करामन
हिन्दुओ का यमराज मुस्लिमो का इज्राईल
हिन्दुओ का वेतरणी मुस्लिमो का पुले सिरात
हिन्दुओ का कल्पवृक्ष मुस्लिमो का सद्रह
हिन्दुओ की वारुणी मुसलमानों का शराबे तहुर
हिन्दुओ का ध्यान मुस्लिमो का मुराब्क
हिन्दुओ का कैलाश मुस्लिमो का अर्शे अजीम
इस तरह अनेक चीज़े मुस्लिमो ने हिन्दुओ से नकल की ....

Thursday, 26 March 2015

आगरा का लाल किला किसने बनवाया था-- मुगल बादशाह अकबर ने, अकबर महान ने....... यही पढ़ते आ रहे थे ना आप अभी तक, यही पढ़ाया गया, रटाया गया और यही आपके लिखने-पढ़ने के लिए किताबों में काले मोतियों में सजाया गया था अब तक कि आगरे का लाल किला मुगलों की देन है, अकबर का बनाया हुआ है......
आजादी के बाद लम्बे समय से सर गोपीनाथ शर्मा, सर यजुनाथ सरकार जैसे राष्ट्रवादी इतिहासकारों का एक धड़ा इस बात का विरोध करता चला आ रहा था कि ताजमहल से लेकर कुतुब मीनार जैसी एतिहासिक इमारतें तुर्की, फारसियों या मुगलों की बनायी नहीं बल्कि हिन्दू राजाओं के द्वारा बनावाई गयी हैं, लेकिन JNU की अगुवाई में वामपंथी इतिहासकारों ने जो किताबें लिखीं उनके हिसाब से अरबी-फारसियों और मुगलों के शासन में भारतीय स्थापत्य कला बुलन्दियों का आसमान छूने लगी, मुस्लिम राजाओं ने ही आपको अढ़ाई दिन का झोंपड़ा, कुतुब मीनार, लालकिला, ताज महल जैसी नेमतें बनवाकर सौंपी वरना आप लोग तो घोर अंधकार युग में सभ्यता से कोसों दूर अज्ञानता में जी रहे थे.......
इसलिए अरबी, फारसियों, तुर्क और मुगलों के धार्मिक अत्याचार और लूट-खसोट से भरे-पूरे शासन को महिमा मंडित करने के उद्देश्य से असली इतिहास से छैड़छाड़ कर ऐसी-ऐसी झूठी बातें गढ़ी गयीं जो आपके अन्दर सेक्युलरिजम का भाव पैदा करे ताकि भारत के विभाजन जैसी बड़ी कीमत चुकाने के बाद भी जिन्हे लात मारकर पाकिस्तान भगाना था उन्हे आपकी छाती पर मूंग दलने के लिए प्रेम-मनुहार से रोक रख छौड़ा गया है वे जब आपकी छाती पर मूंग दलें तो आप दर्द से कराहते हुए भी कौमी एकता जिन्दाबाद के नारे लगाते रहें........ सो भइया आपके घोंटने के लिए अलग ही इतिहास लिख छौड़ा गया है.......
दद्दे अब आते हैं मुद्दे की बात पर....... जैसा कि मैंने बताया कि इतिहासकारों का एक धड़ा ऐसे झूठे एवं तथ्यहीन इतिहास को झूठा साबित करने में जुटा था उसकी राह में पहली सफलता थी कि अजमेर का अढ़ाई दिन का झोंपड़ा, जिसे कुतुबुद्दीन एबक ने नहीं बल्कि अजमेर के चौहान शासक विग्रहराज चतुर्थ ने एक संस्कृत पाठशाला के रूप में खड़ा करवाया था, जिसकी एबक ने मात्र छत गिरवाकर उस पर फारसी शैली के बस गुम्बद बनवा दिये थे बाकि उसकी नींव, खम्भे, दरवाजे और बेल-बूटों की अलंकृत सजावट, भित्ति चित्र आदि हिन्दू शैली मे ही थे, वरना ऐसा, इतना बड़ा भवन अढ़ाई दिन में कैसे बन गया........ ऐसे शासक जो मजहब पर शासन करते थे और जिनका मजहब चित्रकारी और सजावट को निषिद्ध मानता हो, भवनों में तड़क-भड़क, अलंकरण व सजावट से रोकता हो वह भला कैसे चित्रकारी, पच्चीकारी, भित्तीचित्रण व बेल-बूटों के अलंकरण की इजाजत देता होगा जबकि अरब में न तो ऐसी भव्य इमारतें कभी बनी मिलीं और नहि वहाँ फारसी शैली में बनी भवन इतनी सुन्दर व आलीशान मिलीं.......
राष्ट्रवादी इतिहासकारों के अकाट्य साक्ष्य व तथ्य काटे नहीं जा सके जिन्हे भारतीय राष्ट्रीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद से मान्यता मिली और अन्तत: अढ़ाई दिन का झोंपड़ा विग्रहराज यानि हिन्दू शासकों की इमारत साबित हुई।
इसके बाद महरौली की कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद, राय पिथौरा दुर्ग अनेक मस्जिद-मजारें (जो पहले मन्दिर थीं) हिन्दू इमारतें ही साबित हुयीं। अब अगली सबसे बड़ी सफलता देखिए, आगरा का लाल किला अकबर ने नहीं बनवाया था, यह सिकरवार राजपूतों के द्वारा आगरा में 9 वीं शताब्दी में बनवाया गया था.......
दरअसल 1000 ई. से 1027 ई. के मध्य हुए महमूद गजनी के आक्रमण का आंखों देखा हाल उसके इतिहासकार उतबी ने किताब ए यामिनी में लिखा था जिसमें कई जगह आगरा शहर और वहाँ बने सिकरवारों के लाल किले का उल्लेख मिलता है, लाल किले पर गजनी के आक्रमण का भी उल्लेख इस किताब में मिलता है, जिससे साबित हुआ कि अव्वल तो आगरा शहर सिकन्दर लोदी का बसाया शहर नहीं था, उसके शासन से करीब 500 साल पहले आगरा शहर स्थापित था, दूसरी बात कि आगरे का लाल किला किसी अकबर का बनाया नहीं बल्कि लाल किला अकबर से 600 साल पहले से ही सिकरवार हिन्दुओं का बनाया था जिसका उल्लेख उतबी ने हू-ब-हू आज के जैसे ही अपने ग्रन्थ यामिनी में किया.........
इतिहास की कोख में अनदेखे अछूते तथ्य को जब सबके सामने रखा गया तो यह भी अकाट्य सिद्ध हुआ इसलिए ही NCERT द्वारा तैयार कक्षा 7 की सामाजिक विज्ञान की किताब में उल्लेखित किया गया है कि आगरे का लाल किला सिकरवार राजपूतों के द्वारा बनवाया गया था (चित्र में रेखांकित लाइन देखें).......
यानि आने वाली पीढ़ियों को इतिहास के वास्तविक तथ्य पढ़ाने की शुरूवात हो चुकी हैं जिसके लिए राष्ट्रवादी इतिहासकार साधुवाद के पात्र हैं जिनके लम्बे व अथक परिश्रम से हम वास्तविक इतिहास से परिचित हो रहे हैं........
और हाँ ये याद रहे कि ये किताबें UPA-2 सरकार ने (छाती पर बहुत बड़ा पत्थर रखकर) 2012 में छपवायीं थीं जिन्हे जुलाई 2013 से विद्यालयों में बांटा जा चुका है, झूठे इतिहास के पर्दाफाश के पीछे मोदी सरकार का कोई हाथ या पांव नहीं है। यह तो राष्ट्रवादी इतिहासकारों की कारिस्तानी है जी जो पोंगे वामपंथियों के द्वारा लिखे गये झूठे, तथ्यहीन व भ्रामक इतिहास को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कटिबद्ध हैं और लम्बे समय से संघर्षरत हैं.........
बहुत ही रोचक तथ्य!
ईसाई धर्म ….एक ईसा मसीह, एक बाईबिल नामक धार्मिक ग्रन्थ…
लेकिन लैटिन कैथोलिक सीरियन कैथोलिक चर्च में प्रवेश नहीं करेगा।
ये दोनो मर्थोमा चर्च में प्रवेश नहीं करेगें।
ये तीनों पेंटेकोस्ट चर्च में प्रवेश नहीं करेगें।
ये चारों साल्वेशन आर्मी चर्च में प्रवेश नहीं करेगें।
ये पाँचों सातवें एडवेंटिस्ट चर्च में प्रवेश नही करेंगें।
ये छह आर्थोडाॅक्स चर्च में प्रवेश नहीं करेगें।
ये सातों जैकोबाइट चर्च में प्रवेश नहीं करेंगें।
इसी तरह केरल में ईसाई धर्म की 146 जातियाँ अलग थलग पडी हुईं हैं,
इनमे से प्रत्येक ईसाई जाति दुसरी ईसाई जाति के चर्चों का हिस्सा कभी नहीं बनेगी!
कितना शर्मनाक है..! एक ईसा मसीह, एक बाइबिल, एक ईसाई देवता ???


अब मुस्लिम ..! एक अल्लाह, एक कुरान, एक मुस्लिम ईष्ट ....! महान एकता?
सभी मुस्लिम देशों में शिया और सुन्नी मुसलमानों मे मारकाट मची हुई है।
लगभग सभी मुस्लिम देशों में इन दोनो संप्रदायों के बीच निरंतर धार्मिक दंगा हो रहा है।
शिया मुसलमान सुन्नी मस्जिद मे कभी नही जायेगा।
ये दोनो कभी अहमदिया मस्जिद मे नहीं जायेंगे।
ये तीनो कभी सूफी मस्जिद मे नहीं जायेंगे।
ये चारों कभी भी मुजाहिद्दीन मस्जिद मे नहीं जायेंगे।
इसी प्रकार से मुसलमानों में 13 जातियाँ हैं जो अपने से नीची मुस्लिम जाति की मस्जिद मे कभी नही जाते।
हत्या / बमबारी / विजय / नरसंहार / ... ये सब एक दूसरे के विरुद्ध निरंतर चलता रहता है मुस्लिम जातियों मे !
इराक पर अमेरिकी हमला पूरी तरह से इराक के आसपास के सभी मुस्लिम देशों के समर्थन से किया गया था।
एक अल्लाह, एक कुरान, एक मुस्लिम ईष्ट ....????
हिन्दु -
हिन्दु धर्म मे लगभग 1,280 धार्मिक पुस्तकें, 10,000 धार्मिक व्याख्यात्मक,और एक लाख से अधिक उप-व्याख्यात्मक है जो कि हिन्दु धर्म का आधार है,इनमे एक एक भगवान की अनगिनत प्रस्तुतियाँ , आचार्यों की विविधता, हजारो ऋषि, सैकडो भाषाऐं हैं।
फिर भी सभी हिन्दु ,सभी प्रकार के मंदिरों मे जाते हैं और वे शांतिपूर्ण और सहिष्णु हैं
और जो भी पूजा पाठ मे आमंत्रित करते हैं उनके साथ एक भाव के साथ शांतिपूर्वक प्रार्थना करते हैं फिर चाहे भगवान कोई भी हों।
पिछले दस हजार सालों मे हिन्दु कभी भी धर्म के नाम पर नही झगडे..

Wednesday, 25 March 2015

जिसे भी शक हो वो ये लिंक जरूर देखें:-

जिसे भी शक हो वो ये लिंक जरूर देखें:-
wikiislam.net/wiki/72_Virgins
आज मैं आपको इस्लाम के सबसे महत्वपूर्ण पहलु "जन्नत" से रूबरू कराऊंगा की जन्नत क्या है ?
1. जन्नत वह जगह है जहाँ हर मुस्लमान मरने के बाद जाना चाहता है.
इस्लाम को ज़िन्दगी भर मानने का मकसद किसी भी तरह इस जन्नत मैं प्रवेश करना है.
प्रमाण:- Sunan Ibn Majah, Zuhd,39
2. जन्नत मैं 72 लड़कियां यानि हुरी है जो हमेशा के लिए सेक्स करती रहेंगी,
सेक्स होने केबाद भी वह "वर्जिन यानि कुवारी" रहेगी जैसे उनके साथ कभी सेक्स न हुआ हो।
प्रमाण:- Qur'an 56:36, Qur'an 55:56, Sunan Ibn Majah, Zuhd39
3. हुरिओं के स्तन गोल एंवम सुदोल होंगे जो की लटकेंगे नहीं।
प्रमाण: Al-Tirmidhi, Sunan al-Tirmidhi, Vol. 2
4. जो मुसलमान जन्नत मैं होगा उसका लिंग हमेशा तना हुआ रहेगा यहाँ तक की सेक्स करने के बाद भी।
प्रमाण: Al-Suyuti, Al-Itqan fi Ulum al-Qur'an, P. 351
5. हुरिओं की योनी बड़ी सुख देने वाली और मज़ेदार होगी.
प्रमाण: Al-Suyuti, Al-Itqan fi Ulum al-Qur'an, p. 351
6. हुरियों सिर्फ गोरी चमड़ी की होंगी,
उनके शारीर पे फालतू के बाल नहीं होंगे.
हुरियों को कभी पेशाब नहीं आयेगा यहाँ तक की वे मासिक धर्म से भी मुक्त होंगी,
हुरियों का कभी बच्चे नहीं होंगे.
हुरियां कभी सेक्स करते हुए थकेंगी नहीं.
प्रमाण: Al-Tirmidhi, Sunan al-Tirmidhi, Vol. 2,"Ihya Uloom Ed-Din (The Revival of the Religious Sciences) Vol. 4
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अब आप ही बताइए इस तरह की घटिया जगह कौन अच्छा इन्सान जाना चाहेगा ?
मुझे तो ये लिखते मैं भी बुरा लग रहा है की औरतों को किस तरह एक बदचलन के रूप मैंदिखाया गया है.
हर साल हजारों मुसलमान खुद की और दुसरे लोगों की हत्या इस जन्नत मैं जाने के लिए करते हैं.
(नोट:- पोस्ट की गरिमा बनाये रखने के लिए भाषा का ध्यान रखा गया है क्योकि दिए हुए प्रमाण में दी हुई भाषा को यहाँ लिखना सहज नहीं था।)
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(१०० % तथ्यों पे आधारित)
और जैसा कि मैं आपको पहले भी बता चुका हुँ मेरे जिस भाई को यह पोस्ट बुरा लगे तो लगे अपनी M@@ Chu@@
चर्चों के गोरखधंधों का पर्दाफाश करती है फादर लोमियो की ये पुस्तक
मदर टैरेसा पर उठा विवाद अभी थमा भी नही है कि एक ईसाई संगठन से जुड़े कैथोलिक विश्वासी पी.बी.लोमियों की हालही में आई पुस्तक ‘‘ ऊँटेश्वरी माता का महंत” ने ईसाई समाज के अंदर चर्च की कार्यशैली पर कई गंभीर सवाल उठा दिये है।
“ऊँटेश्वरी माता का महंत” र्शीषक से लिखी गई 300 रु. की यह पुस्तक एक येसु समाजी (सोसाइटी ऑफ जीजस) कैथोलिक पादरी (फादर एंथोनी फर्नांडेज) जिन्होंने अपने जीवन के 38 वर्ष कैथोलिक चर्च की भेड़शलाओं का विस्तार करने में लगा दिए, चर्च की धर्मांतरण संबधी नीतियों का परत दर परत खुलासा करती है और साथ ही चर्च नेतृत्व का फरमान न मानने वाले पादरियों और ननों की दुर्दशा को बड़ी ही बेबाकी से उजागर करती है।
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Tuesday, 24 March 2015

आज जिन्‍हें आप 'चमार' जाति से संबोधित करते हैं, उनके साथ छूआछूत का व्‍यवहार करते हैं, दरअसल वह वीर चंवरवंश के क्षत्रिए हैं। 'हिंदू चर्ममारी जाति: एक स्‍वर्णिम गौरवशाली राजवंशीय इतिहास' पुस्‍तक के लेखक डॉ विजय सोनकर शास्‍त्री लिखते हैं, '' विदेशी विद्वान कर्नल टाड ने अपनी पुस्‍तक ' राजस्‍थान का इतिहास' में चंवरवंश के बारे में विस्‍तार से लिखा है। महाभारत के अनुशासन पर्व में भी इस राजवंश का उल्‍लेख है। तुर्क आक्रांतों के काल में इस राजवंश का शासन भारत के पश्चिमी भाग में था और इसके प्रतापी राजा चंवरसेन थे। इस क्षत्रिय वंश के राज परिवार का वैवाहिक संबंध बाप्‍पा रावल वंश के साथ था। राणा सांगा व उनकी पत्‍नी झाली रानी ने चंवर वंश से संबंध रखने वाले संत रैदासजी को अपना गुरु बनाकर उनको अपने मेवाड़ के राजगुरु की उपाधि दी थी और उनसे चित्‍तौड के किले में रहने की प्रार्थना की थी।
वर्तमान हिंदू समाज में जिनको चमार कहा जाता है, उनका किसी भी रूप में प्राचीन भारत के साहित्‍य में उल्‍लेख नहीं मिलता है। डॉ विजय सोनकर शास्‍त्री के अनुसार, प्राचीनकाल में न तो यह शब्‍द था और न ही इस नाम की कोई जाति ही थी। ऋग्‍वेद के दूसरे अध्‍याय में में बुनाई तकनीक का उल्‍लेख जरूर मिलता है, लेकिन उन बुनकरों को 'तुतुवाय' नाम प्राप्‍त था, चमार नहीं।
'अर्वनाइजेशन' की लेखिका डॉ हमीदा खातून लिखती हैं, मध्‍यकालीन इस्‍लामी शासन से पूर्व भारत में चर्म एवं सफाई कर्म का एक भी उदाहरण नहीं मिलता है। हिंदू चमड़े को निषिद्ध व हेय समझते थे, लेकिन भारत में मुसलिम शासकों ने इसके उत्‍पादन के भारी प्रयास किए थे।
डॉ विजय सोनकर शास्‍त्री के अनुसार,मुस्लिम आक्रांताओं के धार्मिक उत्‍पीड़न का अहिंसक तरीके से सर्वप्रथम जवाब देने की कोशिश संत शिरोमणी रैदास ने की थी, जिनको सिकंदर लोदी ने बलपूर्वक चर्म कर्म में नियोजित करते हुए 'चमार' शब्‍द से संबोधित किया और अपमानित किया था। 'चमार शब्‍द का प्रचलन वहीं से आरंभ हुआ।
डॉ विजय सोनकर शास्‍त्री के मुताबिक, संत रैदास ने सार्वजनिक मंच पर शास्‍त्रार्थ कर मुल्‍ला सदना फकीर को परास्‍त किया। परास्‍त होने के बाद मुल्‍ला सदना फकीर सनातन धर्म के प्रति नतमस्‍तक होकर हिंदू बन गया। इससे सिकंदर लोदी आगबबूला हो गया और उसने संत रैदास को पकड कर जेल में डाल दिया था। इसके प्रतिउत्‍तर में चंवर वंश के क्षत्रियों ने दिल्‍ली को घेर लिया था। इससे भयभीत हो सिकलंदर लोदी को संत रैदास को छोड़ना पड़ा था।
संत रैदास का यह दोहा देखिए, '' बादशाह ने वचन उचारा । मत प्‍यारा इसलाम हमारा ।।
खंडन करै उसे रविदासा । उसे करौ प्राण कौ नाशा ।। 
.......
जब तक राम नाम रट लावे । दाना पानी यह नहीं पावे ।।
जब इसलाम धर्म स्‍वीकारे । मुख से कलमा आपा उचारै ।।
पढे नमाज जभी चितलाई । दाना पानी तब यह पाई ।।
समस्‍या तो यह है कि आपने और हमने संत रविदास के दोहों को ही नहीं पढा, जिसमें उस समय के समाज का चित्रण है। बादशाह सिकंदर लोदी के अत्‍याचार, इस्‍लाम में जबरदस्‍ती धर्मांतरण और इसका विरोध करने वाले हिंदू ब्राहमणों व क्षत्रिए को निम्‍न कर्म में धकेलने की ओर संकेत है। समस्‍या हिंदू समाज के अंदर है, जिन्‍हें अंग्रेजों और वामपंथियों के लिखे पर इतना भरोसा हो गया कि उन्‍होंने खुद ही अपना स्‍वाभिमान कुचल लिया और अपने ही भाईयों को अछूत बना डाला।
आज भी पढे लिखे और उच्‍च वर्ण के हिंदू जातिवादी बने हुए हैु, लेकिन वह नहीं जानते कि यदि आज यदि वह बचे हुए हैं तो अपने ऐसे ही भईयों के कारण जिन्‍होंने नीच कर्म करना तो स्‍वीकार किया, लेकिन इस्‍लाम को नहीं अपनाया। जो इस्‍लामी आक्रांतों से डर गए वह मुसलमार बन गए और जिन्‍होंने उसका प्रतिरोध किया या तो वह मारा गया या फिर निम्‍न कर्म को बाध्‍य किया गया। जो उच्‍च वर्गीय हिंदू आज हैं, उनमें से अधिकांश ने मुस्लिम बादशाहों के साथ समझौता किया, उनके मनसब बने, जागीरदार बने और अपनी व अपनी प्रजा की धर्मांतरण से रक्षा की।
प्‍लीज अपना वास्‍तविक इतिहास पढिए, अन्‍यथा कहीं आपके बच्‍चे भी कल को किसी नए निम्‍न कर्म में न ढकेल दिए जाएं और मार्क्‍स, मसीह, मोहम्‍मद के अनुयायी कहें यह तो हिंदू समाज का दोष है। वैसे कुछ मसीह के अनुयायियों ने सच भी लिखा है। जैसे- प्रोफेसर शेरिंग ने अपनी पुस्‍तक ' हिंदू कास्‍ट एंड टाईव्‍स' में स्‍पष्‍ट रूप से लिखा है कि '' भारत के निम्‍न जाति के लोग कोई और नहीं, बल्कि ब्राहमण और क्षत्रिय ही हैं।''
अब तो भरोसा कीजिए, क्‍योंकि आपको तो उसी पर भरोसा होता है, जिसका प्रमाण पत्र यूरोप और अमेरिका देता है। आप विवेकानंद को कहां स्‍वीकार कर रहे थे। वो तो धन्‍य है अमेरिका कि उसे विवेकानंद में प्रज्ञा दिखी और पीछे पीछे आपमें भी विवेकानंद में प्रज्ञा दिखनी शुरू हो गई। अपनी अज्ञानता समाप्‍त कीजिए, प्‍लीज....
ये 20 चीजें खाने से बिना पसीना बहाए ही पेट अंदर हो जाता है
1) दालचीनी ( CINNAMON ) मसाले के रूप में काम मे ली जाती है। यह पेट रोग, इंफ्यूएंजा, टाइफाइड, टीबी और कैंसर जैसे रोगों में उपयोगी है। दालचीनी का तेल बनता है। दालचीनी,साबुन, दांतों के मंजन, पेस्ट, चाकलेट, सुगंध व उत्तेजक के रूप में काम में आती है।
-चाय, कॉफी में दालचीनी डालकर पीने से स्वादिष्ट हो जाती है। वजन कम करने वाले हर्ब में दालचीनी सबसे कारगर है। यह बॉडी के शुगर लेवल को कंट्रोल करती है। साथ ही, इसके सेवन से भूख लगना कम हो जाती है और फैट तेजी से मेटाबॉलाइज हो जाता है।
2) साधारण सा दिखने वाला अदरक ( GINGER) वाकई गुणों की खान है। आयुर्वेद में भी अदरक का खूब जिक्र है। अब तक आपने महज सर्दी-जुकाम में अदरक के कारगर होने की बात सुनी होगी, लेकिन नए वैज्ञानिक शोध के मुताबिक अदरक डायबिटीज की समस्या में भी कारगर साबित होता है। अदरक पेट साफ करने के लिए काफी अच्छा होता है। यह पाचन तंत्र में फंसे भोजन को हटाता है, जिससे फैट कम जमा होता है और वजन भी नहीं बढ़ता है।
3) इलाइची ( CARDAMOM )का लैटिन नाम इलेट्टेरिया कार्डियोमम है। इलाइची में टर्पिन, टर्पिनीनोल, सिनिओल, टर्पिनिल एसिटेट नमक रासायनिक तत्त्व पाए जाते हैं। यह शरीर के मेटाबॉलिज्म और फैट बर्न करने की क्षमता को बढ़ाता है।
4) हल्दी ( TURMERIC , CURCUMA LONGA )अपने औषधीय और सौंदर्यवर्धक गुणों के कारण रसोई की शान है। इसके पीले रंग के कारण भारतीय केसर के नाम से भी प्रसिद्ध हल्दी पौष्टिक गुणों से भरपूर होती है। हल्दी में वजन कम करने के गुण भी पाए जाते हैं। यह फैट टिशू के निर्माण को कम करता है। इससे शरीर में फैट कम बनता है, जिससे वजन बढ़ने की समस्या नहीं होती है।
5) एकाइ बेरी ( ACAI BERRY ..no hindi name ) शोध से पता चलता है कि एकाइ बेरी का जूस या सूखा पाउडर वजन कम करने में काफी असरदार होता है। यह शरीर में फैट बनने से रोकता है। इसमें कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट गुण भी पाए जाते हैं।
6) नेटल ( khokali / khokla / kuppu / khokli / bichu patta - Hindi Names ) की पत्तियां कई तरह के गुणों से भरपूर होती हैंं। इसमें विटामिन सी व विटामिन ए के अलावा एंटीऑक्सीडेंट भी पाए जाते हैं। इन पत्तियों के सेवन से खून साफ होने के साथ ही फैट भी बर्न होता है।
7) शोधों और आयुर्वेद के अनुसार, लाल मिर्च ( Cayenne pepper )में सक्सीनिक एसिड, शिकिमिक एसिड, आक्जेलिक एसिड, क्युनिक एसिड, अमीनो एसिड, एस्कार्बिक एसिड, फोलिक एसिड, सिट्रीक एसिड, मैलिक एसिड, मैलोनिक एसिड, आल्फा-एमिरिन, कैप्सीडीना, कैप्सी-कोसीन, कैरोटीन्स , क्रिप्तोकैप्सीन, बाई-फ्लेवोनाईड्स, कैप्सेंथीन, कैप्सोरूबीन डाईएस्टर, आदि तत्व उपस्थित होते हैं। लाल मिर्च में कैप्साइसिन नामक यौगिक भी पाया जाता है, जो मोटापा कम करने के साथ ही भूख के एहसास को भी कम करता है। एक शोध से यह बात सामने आई कि लाल मिर्च मेटाबॉलिज्म को बढ़ाती है, जिससे ज्यादा से ज्यादा कैलोरी बर्न होती है।
8) जीरा ( Cumin ) वैसे तो रसोई में काम आने वाला एक साधारण सा मसाला है, लेकिन यह औषधीय गुणों से भी भरपूर होता है। अपच ,पेट फूलना ,भोजन में अरुचि में जीरे का सेवन लाभदायक होता है। बवासीर में जीरे को मिश्री के साथ खाने से कुछ आराम मिलता है। जीरा हमारे पाचन तंत्र को बेहतर बनाकर हमें ऊर्जावान रखता है। साथ ही, यह हमारे इम्यून सिस्टम को भी मजबूत बनाता है। इसके नियमित रूप से सेवन से वजन नियंत्रण में रहता है।
9) गुआराना ( paullinia cupana - Guarana) में डाइयूरेटिक गुण पाया जाता है, जो वजन कम करने में मददगार होता है। साथ ही यह नर्वस सिस्टम को भी बेहतर बनाता है। इससे आप तनावमुक्त रहते हैं और खाने पर भी आपका नियंत्रण रहता है।
10) जिनसेंग ( GINSENG ) एनर्जी लेवल को बढ़ाता है। साथ ही, मेटाबॉलिज्म की गति को भी बेहतर बनाता है।
11) ग्वार गम ( cluster bean ) यानी ग्वार बीज डायबिटीज के रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद होता है और वजन कम करने में भी मददगार होता है। साथ ही, यह आपके पाचन तंत्र को भी बेहतर बनाता है।
12) सरसो ( Mustard ) मेटाबोलिक एक्टिविटी को तेज करता है, जिससे वजन कम करने में मदद मिलती है।
13) फ्लैक्स सीड { Flax seed , Hindi name - अलसी , तीसी - Alsi (Gujrati, Hindi Punjabi), Jawas (Marathi), Tishi (Bengali), Agasi (Kannada) } बल्किंग एजेंट का काम करता है और इसे खाने के बाद पेट भरा-भरा लगने लगता है। इससे आप ज्यादा खाने से बचेंगे, जिससे आपका वजन नहीं बढ़ेगा।
14) नारियल तेल ( Coconut oil ) भी मेटाबॉलिज्म को बढ़ाता है। इससे ऊर्जा बाहर निकलती है और वजन भी कम होता है।
15) सौंफ ( Fennel ) खाने से पाचन तंत्र में सुधार होता है और भूख भी नियंत्रित रहती है। इसके अलावा लीवर की सफाई भी होतीहै।
16) रोज रात को सोने से पहले ईसबगोल ( Isbgol) लेना वजन कम करने का एक सुरक्षित रास्ता है। इससे शरीर ऊर्जावान बना रहता है। साथ ही, शरीर की कार्र्बोहाइड्रेट सोखने की दर भी कम हो जाती है।
17) . काली मिर्च ( Black pepper ) आमतौर पर हर घर में इस्तेमाल होने वाली काली मिर्च में पाइपरीन नामक यौगिक पाया जाता है। यह यौगिक हमारे मेटाबॉलिज्म को बढ़ाता है। काली मिर्च हमारे पाचन तंत्र को बेहतर बनाने के साथ-साथ फैट बर्न की गति को भी बढ़ाती है।
18) कुकरौंधा ( Blumea lacera ) यह फूल हमारे पेट को साफ करने के साथ-साथ पाचन तंत्र को धीमा करता है। इसमें बड़ी मात्रा में पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं और यह आपको लंबे समय तक ऊर्जावान बनाए रखता है। आपके वजन कम करने में यह भी काफी कारगर साबित होगा।
19) गारसिनिया ( Garcinia Cambogia found in Kerala ) इस फल को खाने से भूख कम लगती है और शरीर में फैट का उत्पादन और जमाव भी कम होता है।
20) गुढ़ल ( China Rose, Chinese hibiscus ) के फूल में क्रोमियम, एसकॉर्बिक एसिड और हाइड्रॉक्सीसिटरिक एसिड सहित मोटापे से लड़ने वाले कई सारे एजेंट पाए जाते हैं।

यदि डालर 10 रुपये हो जाये

जब से अमेरिका यूरोप में यह संकेत गया है की मोदी के सत्ता में आने से सरकारी तौर से भी “भारत निर्मित स्वदेशी” वस्तुओ के उत्पादन और उपयोग पर भारत की जनता द्वारा जोर दिया जायेगा, ये देश मोदी का रास्ता रोकने के लिए मोदी विरोधी शक्तिओ को खूब प्रोत्साहन दे रहे हैं.
यदि सिर्फ १ साल तक जमकर विदेशी उत्पादों का बहिष्कार कर दिया जाये तो यूरोप और अमेरिका की मुद्राए रुपये के मुकाबले बहुत निचे आ जायेगे. सिर्फ यही नहीं, यूरोप दुबारा मंदी की जकड में चला जायेगा और अमेरिका यूरोप दोनों जगहों पर बेरोजगारी में बेतहाशा वृद्धि होगी क्योकि तब
भारत में सामान का उत्पादन होने से रोजगार भारत वालो को मिलेगा. आज के दिन भारत का सारा रोजगार चीन, अमेरिका और यूरोप चला गया है क्योकि हम सब लोग बाहर देशो में बना सामान खरीद रहे हैं.
गुजरात दंगे का प्रचार तो सिर्फ भारत की जनता को मुर्ख बनाने के लिए बार बार किया जाता है,
विदेशियों द्वारा मोदी का विरोध का सिर्फ आर्थिक कारन है. भारत में स्विट्जरलैंड के 156 गुना लोग रहते हैं और 121 करोड़ लोग दुनिया में सबसे बड़े ग्राहक है
घटिया विदेशी उत्पादों के. आज भारत में 5000 विदेशी कंपनिया 27 लाख करोड़ का बिजिनेस करके हर साल 17 लाख करोड़ रुपये को डालर में बदलकर अपने देश ले जाती है जिससे रुपये निचे जा रहा है. अर्थक्रान्ति प्रस्ताव के लागू हूने की भनक भी अमेरिका को लग चुकी है जो भारत के लिए
अमेरिका की कीमत कम कर देगा. मोदी और डॉ.स्वामी ने बीजेपी सरकार आने पर डालर का भाव
5 साल में 21 रुपये और 10 साल में 10/- रुपये तक लाने की सोच रहे हैं. यदि डालर 10 रुपये हो जाये तो भारत का 46 लाख करोड़ का कर्जा सिर्फ 7 लाख करोड़ ही रह जायेगा जिसे हम एक झटके में दे सकते हैं. 2013 के बजट 17 लाख करोड़ के बजट में से 5.35 लाख करोड़ सिर्फ कर्ज की किश्त देने में ही चला गया जो पुरे बजट का करीब एक तिहाई है सोचो भारत विकास कैसे करेगा.
अमेरिका मोदी को किसी भी हालत में PM बनता नहीं देखना चाहता है क्योकि मोदी के पीछे सभी राष्ट्रवादी खड़े हैं. आने वाले समय में मिडिया मोदी को और भी अनदेखी करेगा और कजरी गिरोह
को फोकस करके मोदी की राह रोकने की योजना पर काम करेगा.
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कोरबा जिले में नदी में तैरता मिला राम लिखा पत्थर, लोग उमड़े -

कोरबा (निप्र)। हसदेव नदी में राम नाम लिखे अद्भुत शिला के मिलने से आस्थावान श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। पंप हाउस के एक बच्चे ने इस पत्थर को हसदेव नदी किनारे रेत में दबे देखा। लगभग 5 किलो वजनी इस पत्थर में राम नाम लिखा हुआ था।
कौतूहलवश पत्थर को जब पानी में फेंका गया, तो वह नदी के पानी में तैरने लगा। बच्चों ने इस पत्थर को लेकर शिव मंदिर के समीप पहुंचे और नहर में डाला। वहां भी पत्थर तैरने लगा। पानी में पत्थर के तैरने की जानकारी मिलते ही लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। लोग इसे नवरात्र पर्व में राम नाम की महिमा मानते हुए पूजा अर्चना में लग गए।
राम कृपा से नर तो क्या पत्थर भी तर जाते हैं। रामचरित मानस की यह अवधारणा सहज ही सामने आने से लोगों की आस्था तैरते पत्थर को देखने उमड़ पड़ी। पंप हाउस झोपड़ी पारा निवासी बसंत खैरवार का 14 वर्ष्ाीय पुत्र चंद्रशेखर खैरवार जो कक्षा दसवीं में अध्ययनरत है, वह रविवार की सुबह अपने एक अन्य मित्र विश्वनाथ के साथ हसदेव नदी किनारे खेल रहा था।
इसी दौरान नदी के रेत में उसने रामनाम लिखे इस पत्थर को देखा। चंद्रशेखर ने बताया कि पत्थर को जब उसने नदी के पानी में फेंका तो वह तैरने लगा। इस पर उसे आश्चर्य हुआ। पानी में बार-बार धक्का देकर डुबाने से भी वह सतह पर आ रहा था। पत्थर की इस विशेषता को देखते हुए वह उसे खेलने के लिए बस्ती किनारे बहने वाली नहर में ले आया।
नहर के पानी में भी पत्थर को डुबाने का प्रयास दोनों बच्चे व अन्य लोगों ने किया, लेकिन पत्थर डूबने की बजाय पानी के ऊपरी सतह पर आ जाता था। इसकी जानकारी मिलते ही आसपास के लोग उमड़ पड़े। पत्थर की पूजा आराधना शुरू हो गई। रामशिला के इस अद्भुत पत्थर को नहर किनारे स्थित शिवमंदिर में रखा गया है। दुर्लभ पत्थर मान कर लोग उसे प्रणाम कर रहे हैं।
लंका में चढ़ाई के दौरान भगवान राम की सेना में शामिल नल व नील ने वानरों के साथ मिल कर समुद्र में सेतु का निर्माण किया था। राम सेतु के अस्तित्व को आज भी इस तरह का पत्थर दर्शाते हैं। बहरहाल इस शिला को मोहल्लेवासियों ने नहर किनारे स्थित शिव मंदिर में रखा है। उनका कहना है कि वे इसे मंदिर में रख कर इसकी पूजा आराधना करेंगे।
सीतामढ़ी व कुदुरमाल में भी है रामशिला
यह पहली बार नहीं जब हसदेव नदी में राम शिला पाया गया हो। सीतामढ़ी गुफा मंदिर के अलावा कुदुरमाल हनुमान मंदिर में भी रामशिला रखा हुआ है। इससे यह स्पष्ट होता है कि शिला की अवधारणा किसी न किसी दृष्टि में हसदेव नदी से जुड़ी हुई है, जहां से इस तरह के विशिष्ट चट्टान के पत्थर पाए गए हैं।
पुरातत्व विभाग ने नहीं ली सुध
एतिहासिक व सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रतिमा व पत्थर प्राप्त होते रहते हैं, किंतु महत्व के वस्तुओं को सहेजने में पुरातत्व विभाग की सुध नहीं होने के कारण कारण आज भी प्राचीन धरोहर असुरक्षित हैं। बहरहाल रामशिला के बारे में पुरातत्व संग्रहालय के मार्गदर्शक को दी गई, किंतु अन्यत्र होने के कारण वे मौके पर उपस्थित नहीं हो सके।
- See more at: http://naidunia.jagran.com/chhattisgarh/korba-ram-wrote-in-korba-district-found-floating-in-the-river-stones-people-descended-331982#sthash.EbO1ZL5v.dpuf

sanskar---------



इस गांव में सब्ज़ी खरीदिए संस्कृत में


भारत में केंद्रीय विद्यालयों में संस्कृत या जर्मन पढ़ाए जाने की बहस से कर्नाटक का मत्तूरु गाँव लगभग अछूता है।
कर्नाटक की राजधानी बैंगलुरु से ३०० किलोमीटर दूर स्थित मत्तूरु गाँव के इस बहस से दूर होने की वजह थोड़ी अलग है ।
 यह एक ऐसा गाँव है जहाँ संस्कृत रोज़मर्रा की ज़बान है।
इस गाँव में यह बदलाव ३२ साल पहले स्वीकार की गई चुनौती के कारण आया। १९८१-८२ तक इस गाँव में राज्य की
 कन्नड़ भाषा ही बोली जाती थी।
कई लोग तमिल भी बोलते थे, क्योंकि पड़ोसी तमिलनाडु राज्य से बहुत सारे मज़दूर क़रीब १०० साल पहले यहाँ काम के
 सिलसिले में आकर बस गए थे।
इस गाँव के निवासी और स्थानीय शिमोगा कॉलेज में वाणिज्य विषय पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर एमबी श्रीनिधि ने बीबीसी हिन्दी को बताया,
 “दरअसल यह अपनी जड़ों की ओर लौटने जैसा एक आंदोलन था, जो संस्कृत-विरोधी आंदोलन के ख़िलाफ़ शुरू हुआ था। संस्कृत को
 ब्राह्मणों की भाषा कहकर आलोचना की जाती थी। इसे अचानक ही नीचे करके इसकी जगह कन्नड़ को दे दी गई। “
प्रोफ़ेसर श्रीनिधि कहते हैं, “इसके बाद पेजावर मठ के स्वामी ने इसे संस्कृत भाषी गाँव बनाने का आह्वान किया । हम सबने संस्कृत
में बातचीत का निर्णय करके एक नकारात्मक प्रचार को सकारात्मक मोड़ दे दिया । मात्र १० दिनों तक रोज़ दो घंटे के अभ्यास से पूरा 
गाँव संस्कृत में बातचीत करने लगा।”
तब से ३,५०० जनसंख्या वाले इस गाँव के न केवल संकेथी ब्राह्मण ही नहीं बल्कि दूसरे समुदायों को लोग भी संस्कृत में बात करते हैं।
इनमें सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित तबका भी शामिल है।
संकेथी ब्राह्मण एक छोटा सा ब्राह्मण समुदाय है जो सदियों पहले दक्षिणी केरल से आकर यहाँ बस गया था।
पूरे देश में क़रीब ३५,००० संकेथी ब्राह्मण हैं और जो कन्नड़, तमिल, मलयालम और थोड़ी-मोड़ी तेलुगु से बनी संकेथी भाषा बोलते हैं। 
लेकिन इस भाषा की कोई अपनी लिपि नहीं है।


स्थानीय स्कूल में स्थित सरस्वती देवी की मूर्ति

स्थानीय श्री शारदा विलास स्कूल के ४०० में से १५० छात्र राज्य शिक्षा बोर्ड के निर्देशों के अनुरूप कक्षा छह से आठ तक पहली भाषा के
 रूप में संस्कृत पढ़ते हैं।
कर्नाटक के स्कूलों में त्रिभाषा सूत्र के तहत दूसरी भाषा अंग्रेज़ी और तीसरी भाषा कन्नड़ या तमिल या कोई अन्य क्षेत्रीय भाषा पढ़ाई
 जाती है।
स्कूल के संस्कृत अध्यापक अनंतकृष्णन सातवीं कक्षा के सबसे होनहार छात्र इमरान से संस्कृत में एक सवाल पूछते हैं, जिसका वो
फ़ौरन जवाब देता है।


स्थानीय स्कूल में पढ़ाई करने वाली बच्चियाँ

इमरान कहते हैं, “इससे मुझे कन्नड़ को ज़्यादा बेहतर समझने में मदद मिली।”
उत्तरी कर्नाटक के सिरसी ज़िले के रहने वाले अनंतकृष्णन कहते हैं, “इमरान की संस्कृत में रुचि देखने लायक है।”
अनंतकृष्णन कहते हैं, “यहाँ के लोग अलग हैं। किंवदंती है कि यहाँ के लोगों ने विजयनगर के राजा से भूमि दान लेने से मना कर दिया
 था। क्या आपको पता है कि इस गाँव में कोई भूमि विवाद नहीं हुआ है?”
संस्कृत के विद्वान अश्वतनारायण अवधानी कहते हैं, “संस्कृत ऐसी भाषा है जिससे आप पुरानी परंपराएँ और मान्यताएँ सीखते हैं। 
ह्रदय की भाषा है और यह कभी नहीं मर सकती।”
संस्कृत भाषा ने इस गाँव के नौजवानों को इंजीनियरिंग या मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए गाँव से बाहर जाने से रोका नहीं है।


स्थानीय स्कूल में स्थित विवेकानंद की मूर्ति

क्या संस्कृत सीखने से दूसरी भाषाएँ, ख़ासकर कम्प्यूटर विज्ञान की भाषाओं को सीखने में कोई मदद मिलती है?
बैंगलुरु की एक आईटी सॉल्यूशन कंपनी चलाने वाले शशांक कहते हैं, “अगर आप संस्कृत भाषा में गहरे उतर जाएं तो यह मदद 
करती है। मैंने थोड़ी वैदिक गणित सीखी है जिससे मुझे मदद मिली। दूसरे लोग कैलकुलेटर का प्रयोग करते हैं जबकि मुझे उसकी 
नहीं पड़ती।”
हालांकि वैदिक स्कूल से जुड़े हुए अरुणा अवधानी कहते हैं, “जीविका की चिंता की वज़ह से वेद पढ़ने में लोगों की रुचि कम हो
 गई है। स्थानीय स्कूल में बस कुछ दर्जन ही छात्र हैं।”
मत्तूरु में संस्कृत का प्रभाव काफ़ी गहरा है। गाँव की गृहिणी लक्ष्मी केशव आमतौर पर तो संकेथी बोलती हैं, लेकिन अपने बेटे या 
परिवार के किसी और सदस्य से ग़ुस्सा होने पर संस्कृत बोलने लगती हैं।
कर्नाटक के मत्तूरु गाँव में सुपारी की सफ़ाई का काम करती महिलाएँ
मज़दूर के रूप में सुपारी साफ़ करने वाले संयत्र में काम करने वाली तमिल भाषी चित्रा के लिए भी स्थिति ज़्यादा अलग नहीं है।
वो कहती हैं, “हम संस्कृत समझ लेते हैं। हालांकि हम में से कुछ इसे बोल नहीं पाते, लेकिन हमारे बच्चे बोल लेते हैं।”
प्रोफ़ेसर श्रीनिधि कहते हैं, “यह विवाद फ़जूल है। जिस तरह यूरोप की भाषाएँ यूरोप में बोली जाती हैं उसी तरह हमें संस्कृत बोलने
की ज़रूरत है। संस्कृत सीखने का ख़ास फ़ायदा यह है कि इससे न केवल आपको भारतीय भाषाओं को बल्कि जर्मन और फ़्रेंच जैसी
 भाषाओं को भी सीखने में मदद मिलती है ।”
स्त्रोत : बी बी सी हिंदी
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महाभारत के युद्ध में कौरवों और पांडवों द्वारा रचित व्यूह रचनाएँ....
१. वज्र व्यूह .. महाभारत युद्ध के प्रथम दिन अर्जुन ने अपनी सेना को इस व्यूह के आकार में सजाया था... इसका आकार देखने में इन्द्रदेव के वज्र जैसा होता था अतः इस प्रकार के व्यूह को "वज्र व्यूह" कहते हैं!
२. चक्रशकट व्यूह ... अभिमन्यु की हत्या के पश्चात जब अर्जुन, जयद्रथ के प्राण लेने को उद्धत हुए, तब गुरु द्रोणाचार्य ने जयद्रथ की रक्षा के लिए युद्ध के चौदहवें दिन इस व्यूह की रचना की थी!
३. मंडल व्यूह ... भीष्म पितामह ने युद्ध के सांतवे दिन कौरव सेना को इसी मंडल व्यूह द्वारा सजाया था... इसका गठन परिपत्र रूप में होता था... ये बेहद कठिन व्यूहों में से एक था... पर फिर भी पांडवों ने इसे वज्र व्यूह द्वारा भेद दिया था... इसके प्रत्युत्तर में भीष्म ने "औरमी व्यूह" की रचना की थी... इसका तात्पर्य होता है समुद्र... ये समुद्र की लहरों के समान प्रतीत होता था... फिर इसके प्रत्युत्तर में अर्जुन ने "श्रीन्गातका व्यूह" की रचना की थी... ये व्यूह एक भवन के समान दिखता था...
४. क्रौंच व्यूह ... क्रौंच एक पक्षी होता है... जिसे आधुनिक भाषा में Demoiselle Crane कहते हैं... ये सारस की एक प्रजाति है...इस व्यूह का आकार इसी पक्षी की तरह होता है... युद्ध के दूसरे दिन युधिष्ठिर ने पांचाल पुत्र को इसी क्रौंच व्यूह से पांडव सेना सजाने का सुझाव दिया था... राजा द्रुपद इस पक्षी के सर की तरफ थे, तथा कुन्तीभोज इसकी आँखों के स्थान पर थे... आर्य सात्यकि की सेना इसकी गर्दन के स्थान पर थे... भीम तथा पांचाल पुत्र इसके पंखो (Wings) के स्थान पर थे... द्रोपदी के पांचो पुत्र तथा आर्य सात्यकि इसके पंखो की सुरक्षा में तैनात थे...इस तरह से हम देख सकते है की, ये व्यूह बहुत ताकतवर एवं असरदार था... पितामह भीष्म ने स्वयं इस व्यूह से अपनी कौरव सेना सजाई थी... भूरिश्रवा तथा शल्य इसके पंखो की सुरक्षा कर रहे थे... सोमदत्त, अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा इस पक्षी के विभिन्न अंगों का दायित्व संभाल रहे थे...
५. प्रसिद्ध चक्रव्यूह ... इसके बारे में सभी ने सुना है... इसकी रचना गुरु द्रोणाचार्य ने युद्ध के तेरहवें दिन की थी... दुर्योधन इस चक्रव्यूह के बिलकुल मध्य (Centre) में था... बाकि सात महारथी इस व्यूह की विभिन्न परतों (layers) में थे... इस व्यूह के द्वार पर जयद्रथ था... सिर्फ अभिमन्यु ही इस व्यूह को भेदने में सफल हो पाया... पर वो अंतिम द्वार को पार नहीं कर सका... तथा बाद में ७ महारथियों द्वारा उसकी हत्या कर दी गयी...इसके व्यूह के बारे में ज्यादा चर्चा की आवश्यकता नहीं है... इस व्यूह का संपूर्ण विवरण आपको हर कही मिल जाएगा...
६. अर्धचन्द्र व्यूह ... इसकी रचना अर्जुन ने कौरवों के गरुड़ व्यूह के प्रत्युत्तर में की थी... पांचाल पुत्र ने इस व्यूह को बनाने में अर्जुन की सहायता की थी ... इसके दाहिने तरफ भीम थे... इसकी उर्ध्व दिशा में द्रुपद तथा विराट नरेश की सेनाएं थी... उनके ठीक आगे पांचाल पुत्र, नील, धृष्टकेतु, और शिखंडी थे... युधिष्ठिर इसके मध्य में थे... सात्यकि, द्रौपदी के पांच पुत्र, अभिमन्यु, घटोत्कच, कोकय बंधु इस व्यूह के बायीं ओर थे... तथा इसके अग्र भाग पर अर्जुन स्वयं सच्चिदानंद स्वरुप भगवन श्रीकृष्ण के साथ थे!
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होनहार बिरवान के होत चिकने पात. जी हां अगर किसी  में प्रतिभा हो, तो वह उसकी शख्सियत में बचपन से ही नजर आता है. इसकी उदाहरण बनी हैं आंध्र प्रदेश की तीन वर्षीय तीरंदाज डॉली शिवानी. शिवानी ने आंध्रप्रदेश में आयोजित तीरदांजी प्रतियोगिता में 388 अंक प्राप्त किये और एक नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड कायम किया. 

पांच मीटर और सात मीटर की दूरी से तीरंदाजी करके शिवानी ने 200 अंक हासिल किये और सबसे कम उम्र की भारतीय बन गयी हैं.डॉली शिवानी का जन्म सरोगेसी तकनीक के जरिये हुआ है. शिवानी का बड़ा भाई अंतरराष्ट्रीय स्तर का तीरंदाज था, उसकी मृत्यु सड़क दुर्घटना में हो गयी थी और उसकी बड़ी बहन का देहांत 2004 में हो गया था. शिवानी के पिता सत्यनारायण चेरूकुरी एक तीरंदाजी अकादमी चलाते हैं उन्होंने बताया कि शिवानी के जन्म से पहले ही उन्होंने उसे तीरंदाज बनाने का सोच लिया था.