Saturday 7 May 2016

"सही अर्थों में एक सजग, शिक्षित और संगठित समाज ही राष्ट्र के रूप में परम वैभव को प्राप्त करने का अधिकार रखता है ;
सजग समाज वह होता है जिसे सही और गलत के बीच का अंतर स्पष्ट हो एवं जो हो रहा है, जो होना चाहिए और जो होने की आवश्यकता है उसका भी ज्ञान हो; शिक्षित समाज का तात्पर्य समाज में शिक्षा की औपचारिकता मात्र से नहीं, ऐसा समाज जहाँ शिक्षा का उद्देश्य सीखना नहीं बल्कि जीविकोपार्जन सुनिश्चित करना होता है वहां आश्चर्य नहीं अगर शिक्षा भी व्यवसाईकरण का शिकार हो जाए और तब न केवल शिक्षा का ज्ञान बल्कि छात्रों का प्रयास भी समझ की सीमितता के कारन भ्रमित होता है;
सामाजिक संगठन सामाजिक प्रयास को केंद्रित करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है;
कहने को तो आज हम शिक्षित भी हैं, स्वयं को सजग भी मानते हैं समाज को संगठित करने के प्रति भी दशकों से प्रयासरत हैं, पर अगर अब भी हम एक राष्ट्र के रूप में परम वैभव को प्राप्त कर पाने से वंचित हैं तो आखिर इसका कोई तो कारन होगा ; त्रुटियां कहाँ है हमारे प्रयास में, प्रयास की दिशा में या हमारे प्रयास के प्रति दृष्टिकोण में ! इस सन्दर्भ में सामाजिक नेतृत्व भी अपने उत्तरदायित्व से नहीं मुकर सकता !
आपको भी अगर समय मिले तो इस विषय में सोचियेगा, शायद समस्या ही नहीं हम समाधान भी प्राप्त कर लें, कहीं न कहीं से कभी न कभी तो सुधर की शुरुआत करनी ही पड़ेगी तो क्यों न हम समाज के रूप में आत्म चिंतन से शुरू करें !"

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