Tuesday 10 May 2016

वो हर रोज़ स्कूल पहुंचने के लिए एक नदी तैर कर पार करते हैं

कहते हैं एक आदर्श अध्यापक अच्छे और श्रेष्ठ गुणों से परिपूर्ण होता है। अध्यापक अपने संयम, सदाचार, आचरण, विवेक, सहनशीलता से बच्चों को महान बनाते हैं। सच पूछिए तो अध्यापक ही बच्चो का मार्गदर्शक होता है। इसी लिए गुरु को ईश्वर का दूसरा रूप माना गया है। तो आइए आज मिलते हैं एक ऐसे अध्यापक से जो प्रेरणास्रोत तो है हीं, साथ में उन्होने उदारता की मिसाल पेश की है।

अब्दुल मलिक केरल के मलप्पुरम जिले के एक मुस्लिम लोवर पब्लिक स्कूल के 

अध्यापक हैं। वो हर रोज़ स्कूल पहुंचने के लिए एक नदी तैर कर पार करते हैं।

लेकिन मलिक ऐसा क्यों करते हैं? इसकी वजह जान कर आपके दिल में भी ज़रूर उनके लिए इज़्ज़त बढ़ जाएगी।

मलिक ऐसा सिर्फ़ इसलिए करते हैं ताकि वह समय पर स्कूल पहुँच सके। दरअसल

 स्कूल पहुंचने के लिए उचित संसाधन मौजूद ना होने की वजह से उन्हे 3 घंटे से भी 

अधिक का समय लगता था। 2 बसे बदलने और करीब 2 किलोमीटर पैदल चलने के

 बाद भी अक्सर वो स्कूल के लिए लेट हो जाया करते थे। मलिक कहते हैं:

“अगर मैं बस से जाता हूँ तो मुझे 12 किलोमीटर की दूरी तय करने में करीब तीन घंटे लग जाते हैं लेकिन नदी को तैर कर पार करना आसान है और मैं समय पर स्कूल पहुंच जाता हूँ। “

मलिक बताते हैं कि नदी को तैर कर पार करने की वजह से उनका लगभग 2 घंटे 

का समय बचता है, साथ  में 30 रुपये प्रति दिन बचा लेते हैं। उनके घर से कडालुंदी

 नदी मात्र 10 मिनट की दूरी पर है। नदी को पार करने के लिए उन्हे सिर्फ़ तीन मिनट 

लगते हैं।

कडालुंदी नदी के आसपास रहने वालों के लिए यह वाक़्या अब आम हो चुका है। किनारों पर पहुँच कर मलिक अपने कपड़ों और अन्य वस्तूओं को एक प्लास्टिक के बैग में डाल देते हैं। फिर एक ट्यूब के सहारे बड़ी सहजता से हाथ में पकड़े अन्य समान के साथ नदी को तैर कर पार कर लेते हैं।
दूसरे छोर पर पहुँच कर सूखे कपड़े बदल कर जब उनका स्वागत करते मुस्कुराते बच्चे उनसे मिलते हैं, तो उनका इन बच्चों के लिए यह समर्पण और भी मिठास से भर जाता है। यही नही वह स्कूल में वर्कशॉप लगा कर बच्चों को तैराकी के हुनर भी सिखाते हैं।
मैं मलिक जैसे शिक्षकों को नमन करता हूँ जो अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।

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