Thursday 26 May 2016

 दैनिक जागरण में छपा ये लेख तुफैल अहमद द्वारा लिखा गया है जो मिडिल ईस्ट मीडिया रिसर्च इंस्टीट्यूट, वाशिंगटन से संबद्ध हैं.. जिसकी चर्चा सोशल मीडिया पर काफी जोरों से है अपने पाठकों के लिए उस इस लेख को हम अपने वेब स्थल पर प्रकाशित कर रहे है..

       गत 23 जून को पाकिस्तानी पुलिस ने एक लड़के की तब हत्या कर दी जब वह फैसलाबाद में खिलौने वाली एक बंदूक के साथ सेल्फी ले रहा था, लेकिन पाकिस्तानी जनता ने इसका विरोध नहीं किया।
         अगर इजरायली पुलिस की गोली से एक फलस्तीनी बच्चा घायल हो जाए तो दुनिया भर के वामपंथी प्रदर्शन करेंगे और पत्रकार रिपोर्ट करेंगे। जब अमेरिका ने इराक में हमला किया तो युद्ध विरोधी कार्यकर्ताओं ने दुनिया भर में प्रदर्शन किया। हाल में जब सऊदी अरब ने यमन पर हवाई हमले किए तो युद्ध विरोधी कार्यकर्ता सोने चले गए। पाकिस्तानी सेना बलूचिस्तान में नियमित रूप से लोगों की हत्या करती है, लेकिन पाकिस्तानी इसके खिलाफ खड़े नहीं होते। भारत में मानवाधिकारों की चिंता का दावा करने वाले सेक्युलर पत्रकारों को तब गुस्सा नहीं आता जब पीडि़त हिंदू होते हैं।
        भारतीय सेक्युलरवाद की आंखों पर एक खास किस्म का चश्मा चढ़ा हुआ है। इखलाक की हत्या से गुस्साए सेक्युलर पत्रकारों ने कई हत्याओं पर चुप्पी साध ली। पिछले अगस्त में सेना के जवान वेदमित्र चौधरी की मेरठ के पास हरदेवनगर में भीड़ ने पीटकर हत्या कर दी। मार्च में एक मुस्लिम लड़की के साथ शादी करने पर बिहार के हाजीपुर में एक हिंदू की हत्या कर दी गई। पिछले जून में आंध्र में इलुरू के पास एक व्यक्ति को भीड़ ने मार डाला। जून में ही मुंबई के पश्चिम भांडुप इलाके में भीड़ ने एक व्यक्ति की हत्या कर दी। सेक्युलर पत्रकारों के चश्मे इन हत्याओं को देखने से रोकते हैं। भारतीय सेक्युलरवाद को मुस्लिम खून का स्वाद लग गया है।
        भारतीय सेक्युलरवाद पर एक खास रंग का चश्मा ही नहीं चढ़ा, वह आधा पाकिस्तानी भी है। सेक्युलर अखिलेश यादव ने लखनऊ में गुलाम अली की आवभगत की। अरविंद केजरीवाल ने भी गुलाम अली से बात कर दिल्ली में उनका कार्यक्रम तय किया, लेकिन केजरीवाल और अखिलेश ने ऑस्कर पुरस्कार विजेता संगीतकार एआर रहमान को तब आमंत्रित नहीं किया जब बरेलवी संगठन रजा अकादमी के फतवे के कारण 13 सितंबर को दिल्ली में उनका संगीत कार्यक्रम रद कर दिया गया। सेक्युलरवाद भारतीय मुस्लिम गायकों को पसंद नहीं करता। यह सलमान रश्दी जैसे भारतीय लेखकों को भी पसंद नहीं करता। 
      एक अन्य सेक्युलर नेता ममता बनर्जी ने भी गुलाम अली का यह कहते हुए समर्थन किया कि संगीत की कोई अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं होती, लेकिन वे बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन का समर्थन नहीं करेंगी।
         भारतीय सेक्युलरवाद सचमुच पाकिस्तानी है, एक चौथाई बांग्लादेशी भी नहीं। भारतीय सेक्युलरवाद राष्ट्रवाद के प्रतिकूल भी है। सेक्युलर वकील आतंकी याकूब मेमन का जीवन बचाने आधी रात को उच्चतम न्यायालय पहुंच गए, लेकिन आम भारतीयों के मृत्युदंड पर वे चुप बैठे रहते हैं।
        निखिल वागले ने लिखा: ‘सेक्युलरवाद के बिना भारत हिंदू पाकिस्तान है।’ भारतीय सेक्युलरवाद भारतीय तक नहीं है। यह गोमांस खाए बिना अधूरा है। यह गोमांस खाना पसंद करता है, क्योंकि पाकिस्तानी गोमांस खाते हैं। यह मूलत: पाकिस्तानी है। 1947 में हमारे लोगों ने सोचा कि वे भारतीय इलाके का एक टुकड़ा छोड़कर स्थायी शांति पा सकते हैं। मनमोहन की सेक्युलर सरकार कारगिल में आधुनिक समय का सबसे बड़ा जिहाद खड़ा करने वाले मुशर्रफ के साथ बातचीत में कश्मीर के एक हिस्से को पाकिस्तान को सौंपने के काफी करीब पहुंच गई थी।
अपनी ऐतिहासिक किताब ‘ऑन वार’ में जर्मन सैन्य रणनीतिकार कार्ल नॉव क्लॉसविज ने लिखा है: 
     ‘युद्ध दूसरे तरीकों से राजनीति को जारी रखना है।’ भारतीय पाकिस्तानी गायकों को यहां नहीं चाहते, क्योंकि पाकिस्तान भारत के खिलाफ एक तरह से युद्ध ही लड़ रहा है। टीवी और सोशल मीडिया के जरिये भारतीय दूसरे तरीकों से जारी पाकिस्तान के युद्ध को समझते हैं। पाकिस्तान ने औपचारिक तरीके से युद्ध की घोषणा नहीं की है, लेकिन भारतीय इस तथ्य से परिचित हैं कि वे युद्ध की स्थिति में हैं।
       आमिर खान की फिल्म सरफरोश ने हमें दिखाया कि पाकिस्तान गजल गायकों के वेश में हथियार तस्करों को भेजता है। भारतीय सेक्युलरवाद इस्लामी भी है। 2012 में सेक्युलर कांग्रेस सरकार ने जयपुर में सलमान रश्दी को बोलने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि सेक्युलरवाद का इस्लामियों के साथ निकट का रिश्ता है। ममता बनर्जी तसलीमा नसरीन का समर्थन नहीं करती हैं, क्योंकि वे अपने राज्य में इस्लामियों के साथ खुले गठबंधन में हैं।
      2013 में केजरीवाल ने मुस्लिम मतों के लिए इस्लामी धार्मिक नेता तौकीर रजा खान से भेंट करने के लिए बरेली की यात्रा की। 
    1986 में शाहबानो मुकदमे में राजीव गांधी के सेक्युलरवाद ने इस्लामी धार्मिक नेताओं के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। भारतीय सेक्युलरवाद इस्लामियों के समर्थन के बिना अधूरा है। एक अक्टूबर को सेक्युलर लेखिका शोभा डे ने ट्वीट किया: ‘मैंने गोमांस खाया। आओ और मुझे मार डालो।’ सवाल है कि क्या वे गेट वे ऑफ इंडिया पर मुहम्मद साहब का कार्टून भी बनाएंगी? 
     चार अक्टूबर को एक सेक्युलर पत्रकार ने भारतीयों से ट्विटर पर इस हैशटैग के साथ ट्वीट करने का अनुरोध किया कि ‘मैं गोमांस खाता हूं।’ सवाल है कि क्या सेक्युलर पत्रकार जामा मस्जिद के सामने कार्टून बनाएंगे? गुस्सा गोमांस या कार्टून को लेकर नहीं है। 
       भारतीय युवक सेक्युलरवाद के दोहरे मापदंड को लेकर चिंतित हैं। अगर आप अपने किचेन से कार्टून बनाने को इच्छुक हैं तो वे आपके गोमांस खाने के अधिकार का समर्थन करेंगे। एक दूरसंचार कंपनी के साथ मिलकर एक सेक्युलर टीवी चैनल ने बाघ बचाओ अभियान शुरू किया। आखिर गाय बचाओ अभियान क्यों नहीं?
भारत की वास्तविकता यह है:
 आमिर खान ने पीके फिल्म बनाई जिसमें बाथरूम में बंद भगवान शिव धमकाए जाते हैं, लेकिन वे मुहम्मद साहब पर फिल्म नहीं बना सकते। हमारे राष्ट्रीय विमर्श में यही असंतुलन है।
 इसे पत्रकार भी प्रोत्साहित कर रहे हैं। भारत तमाम समाचार कक्षों से फासीवादी उभार को झेल रहा है। भारतीय पत्रकार अपने दोहरे रवैये के कारण कभी न्यूयार्क या दादरी में भारतीयों द्वारा ही पीटे जाते हैं। सोशल मीडिया पर उन्हें दलाल, प्रेस्टिच्यूट या बाजारू मीडिया कहा जाता है, क्योंकि वे एक बंगले या अन्य किसी लाभ के लिए अपनी आत्माएं बेच रहे हैं। 
यह सेक्युलर फासीवादी प्रवृत्ति हमें बांटकर जीतती है। इस सबके बीच यह ज्यादा जरूरी है कि पुलिस कानून अपने हाथ में लेने वालों से सख्ती से निबटना सीखे।


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