Saturday, 30 September 2017

VSK Chhattisgarh, प्रशांत पोल
हां. आज से दो हजार – तीन हजार वर्ष पहले, हिन्दू संगठित थे, समरस थे. और इसीलिए अत्यधिक सामर्थ्यशाली थे.
इसका उदहारण मिलता हैं, ग्रीक (यूनानी) सम्राट सिकंदर के आक्रमण के समय. पारसिक राष्ट्र के, अर्थात आज के ईरान के, शासकों का ग्रीक साम्राज्य से परंपरागत बैर था. विशाल पारसिक साम्राज्य के सामने, छोटे छोटे से यूनानी राजा कही न ठहरते थे. किन्तु सिकंदर के पिता, फिलिप ने, इन छोटे राज्यों को संगठित कर, यूनानियों का एक राज्य बनाया. ईसा पूर्व ३२९ में, फिलिप की मृत्यु के पश्चात, सिकंदर इस संगठित यूनानी राज्य की ताकत लेकर पारसिक साम्राज्य से भिड़ गया. और पहले ही झटके में उसने इस साम्राज्य को ध्वस्त किया. खुद को पारसिक का सम्राट घोषित कर वह आगे बढ़ा. रास्ते में बाबिलोनी साम्राज्य को भी उसने परास्त किया. वर्तमान के सीरिया, मिस्र, गाझा, तुर्की, ताजिकिस्तान को कुचलते हुए वह भारत की सीमा तक पहुंचा. अन्य राष्ट्रों को उसने जैसा जीता, उसी आसानी से भारत को जितने की उसकी कल्पना थी. भारत के अत्यंत समृध्द ‘मगध साम्राज्य’ को उसे जितना था.
लेकिन उसकी कल्पना और अपेक्षा के विपरीत, भारत में उसे कड़े विरोध का सामना करना पड़ा. आज के हमारे पंजाब प्रान्त को तो उसने जीत लिया, पर एक एक इंच भूमि उसे जी जान से लड़कर जीतनी पड़ी. मानो काले कभिन्न चट्टानों पर उसकी सेना सर फोड़ रही हो..! मगध के दर्शन भी न करते हुए, रक्तरंजित अवस्था में, विकल और विकट परिस्थिति में उसे वापस लौटना पड़ा.
विश्वविजयी कहलाने वाले, ‘सिकंदर महान’ की भारत में ऐसी दुर्गत क्यूँ हुई..?
उन दिनों भारत की उत्तर – पश्चिमी सीमा पर, सिन्धु नदी के दोनों तटों पर सौभूती, कठ, मालव, क्षुद्रक, अग्रश्रेणी, पट्टनप्रस्थ ऐसे अनेक छोटे छोटे गणराज्य थे. तक्षशिला जैसा राज्य भी था. सिकंदर के विशाल सेनासागर के सामने वह टिक न सके. किन्तु सिकंदर को प्रत्येक विजय की भरपूर कीमत चुकानी पड़ी. उसके सैनिक इतने परेशान हो गए, डर गए और थक गए कि व्यास (बियास) नदी के उस पार, ‘यौधेय गणों की बड़ी मजबूत सेना खड़ी हैं’, यह सुनकर ही उनके छक्के छुट गए. सिकंदर ने फिर भी आगे बढ़ने का निर्णय लिया तो मानो सेना में भूचाल आ गया. उसके सैनिक रोने लगे और उसे आगे जाने से रोकने लगे. यूनानी इतिहासकार प्लूटार्क लिखता हैं – ‘पोरस से युध्द करने के बाद सिकंदर की सेना का मनोबल पूरी तरह से टूट गया था. और इसीलिए सिकंदर को व्यास के उत्तर तट से ही वापस लौटना पड़ा.’ यूनानी सेनानी और इतिहासकार डीयोडोरस ने भी भारतीय सैनिकों के वीरता एवम् एकजूटता के अनेक किस्से बयान किये हैं.
मालव और क्षुद्रक ये दो छोटे गणराज्य सिन्धु नदी के तट पर थे. दोनों में परंपरागत खानदानी दुश्मनी थी. लेकिन सिकंदर से युध्द करने के लिए उन्होंने अपना पिढीजात बैर भुला दिया. अब दोनों राज्यों के नागरिक इस बैर को कैसा भूलेंगे..? इसलिए दोनों गणराज्यों ने आपस में कन्यादान कर, दस हजार विवाह संपन्न किये. हिन्दुओं की एकजूटता का यह अनुपम उदहारण हैं...!
भारत से लौटते समय, सिकंदर की इतनी ज्यादा हानि हुई थी की दो वर्ष में ही, ईसा पूर्व ३२३ में उसकी मृत्यु हुई. सिकंदर के मरने के बाद, उसने जीता हुआ सारा पंजाब, पुनः स्वतंत्र हो गया. इस कालखंड में हिन्दू सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य का उदय यह भारतवर्ष को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण घटना थी. विदेशी आक्रान्ताओं का सशक्त प्रतिकार करने का यह क्रम अगले हजार – बारह सौ वर्ष निरंतर चलता रहा. भारतवर्ष का यह स्वर्णिम कालखंड था.
इस बीच दो तीन सौ वर्षों के बाद, सम्राट अशोक के अहिंसा तत्व के प्रचार – प्रसार के बाद, जब भारत की लड़ने की धार कुछ कम हुई तो डेमित्रीयस नामका सेनानी बेक्ट्रिया से जो निकला तो सीधे भारत के अयोध्या तक पहुचा. लेकिन कलिंग (उड़ीसा) के महाप्रतापी राजा खारवेल ने उसे इरान की सीमा तक खदेड़ दिया..!
शक और कुशाणों का आक्रमण तो यूनानियों से भी महाभयंकर था. ये लोग मतलब क्रूर कबाईली टोलियाँ थी. मारना, लूटना, तबाह करना इसी में इनको आनंद आता था. लेकिन भारतीय सेनानियों ने इस पाशविक आक्रमण को भी समाप्त किया. जब उत्तर के राजा निष्प्रभ होते थे, तब दक्षिण के राजा, भारतवर्ष को आक्रांताओं से बचाने सामने आते थे. सातवाहन साम्राज्य के गौतमीपुत्र सातकर्णी ने शकों से जबरदस्त युध्द कर उनके राजा नहमान को मार कर उनको खदेड़ दिया था. कुशाणों के आक्रमण के समय, उनका कडा मुकाबला हम नहीं कर सके. लेकिन सांस्कृतिक धरातल पर हम इतने मजबूत थे, की सारे कुशाण हिन्दू हो गए. वैदिक आचरण करने लगे. संस्कृत बोलने – लिखने लगे. उनके राजा कनिष्क ने बौध्द धर्म का स्वीकार किया.
जो हाल शक, कुशाणों का, वही हाल किया हूणों का भी. मध्य आशिया के ये सारे असंस्कृत, क्रूर कबाईली लोग. इनसे डरकर चीन ने अपनी ऐतिहासिक दीवार खड़ी की. लेकिन भारत के सेनानियों ने उनका भी निःपात किया. मालवा के राजा यशोवर्मा ने अन्य हिन्दू राजाओं को संगठित कर हूणों को परास्त किया.
यह पूरा विजय का इतिहास हैं. संगठित हिन्दू शक्ति के यशस्वी प्रकटीकरण का इतिहास हैं. यह हिन्दुओं की विजिगीषु वृत्ति का इतिहास हैं.

khas khabaren ...

. लद्दाख क्षेत्र में बिजली ट्रांसमिसन बिछाने का काम हेलीकाप्टरों से पूरा हो रहा है ...

ऐसा तो पहले नही होता था जो अब हो रहा है...
हुआ यह है कि चीन से सटे सीमावर्ती लद्दाख क्षेत्र में बिजली पहुचाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी जी के 2 साल पूर्व उनके अमेरिकी दौरे में USA की Burns & McDonnell & a Kansas-based engineering, architecture and consulting firm के साथ समझौता संपन्न हुआ था जिसमे इस प्रकार के कई हेलीकाप्टरों का प्रयोग जिन्हें हेली क्रेन कहा जाता है के द्वारा बिजली की ट्रांसमिसन लाइन डालने का काम हो रहा है। अब इस क्षेत्र की सैनिक चौकियों को भी बिजली मिलने लगी है और जैसे जैसे काम पूरा होगा वैसे वैसे इस क्षेत्र में लगभग हर जगह बिजली मिलने लगेगी।
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BBC डॉट कॉम पर छपी इस खबर को पढ़कर रवीश कुमार को अपने उस सवाल का जवाब मिल गया होगा जब उन्होंने पूछा था कि क्या पहाड़ टूट जाएगा अगर भारत में मुसलमान बहुमत में हो जाएंगे मलेशिया में मुस्लिम 70% तक हो गए हैं और अब मलेशिया में तमाम ओनली मुस्लिम दुकानें खुल गयी...
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short story

जोसफ स्टालिन एक बार अपने साथ क्रेमलिन ( रूसी संसद ) में एक #मुर्गा लेकर आये,
और सबके सामने उसका एक-एक पंख #नोचने लगे,
मुर्गा दर्द से #बिलबिलाता रहा मगर,
एक-एक करके स्टालिन ने सारे पंख नोच दिये,
फिर मुर्गे को फर्श पर #फेंक दिया,
फिर जेब से कुछ #दाने निकालकर मुर्गे की तरफ फेंक दिए और चलने लगे ,
तो मुर्गा दाना खाता हुआ स्टालिन के #पीछे चलने लगा,
स्टालिन बराबर दाना फेंकते गये और मुर्गा बराबर दाना मु्ँह में डालता हुआ उनके पीछे चलता रहा।
आखिरकार वो मुर्गा स्टालिन के #पैरों में आ खड़ा हुआ।
स्टालिन ने अपने पीछे चल स्पीकर की तरफ देखा और एक तारीख़ी जुमला बोला,

"लोकतांत्रिक देशों की जनता इस मुर्गे की तरह होती है, उनके हुकुमरान जनता का पहले सब कुछ #लूट कर उन्हें अपाहिजकर देते हैं,
और बाद में उन्हें थोड़ी सी #खुराक देकर उनका #मसीहा बन जाते हैं।"
साभार
डा.प्रवीण कुमार सिंह
जानिए वेद की आज्ञाओं के उलंघन का कितना भयंकर परिणाम हो सकता है ?* भारत की दुर्गति के पीछे वेद की आज्ञाओं का उलंघन ही था ।
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🔶 *पहली आज्ञा 
🔸 अक्षैर्मा दिव्य: (ऋ 10/34/13)
🔹 अर्थात् "जुआ मत खेलो ।" इस आज्ञा का उलंघन हुआ । इस आज्ञा का उलंघन धर्मराज कहे जाने वाले युधिष्टर ने किया ।
🔷 परिणाम : एक स्त्री का भरी सभा में अपमान । महाभारत जैसा भयंकर युद्ध जिसमें लाखों, करोड़ों योद्धा और हज़ारों विद्वान मारे गए । आर्यवर्त पतन की ओर अग्रसर हुआ ।
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🔶 *दूसरी आज्ञा 
🔸 मा नो निद्रा ईशत मोत जल्पिः (ऋ 8/48/14)
🔹 अर्थात् "आलस्य, प्रमाद और बकवास हम पर शासन न करें ।" लेकिन इस आज्ञा का भी उलंघन हुआ । महाभारत के कुछ समय बाद भारत के राजा आलस्य प्रमाद में डूब गये ।
🔷 परिणाम : विदेशियों के आक्रमण ।धर्म के नाम पर अंधविश्वास का पाखण्ङ फैल जाना।
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🔶 *तीसरी आज्ञा 
🔸 सं गच्छध्वं सं वद्ध्वम (ऋ 10/191/2)
🔹 अर्थात् "मिलकर चलो और मिलकर बोलो ।" वेद की इस आज्ञा का भी उलंघन हुआ । जब विदेशियों के आक्रमण हुए तो देश के राजा मिलकर नहीं चले । बल्कि कुछ ने आक्रमणकारियों का ही सहयोग किया ।
🔷 परिणाम : लाखों लोगों का कत्ल, लाखों स्त्रियों के साथ दुराचार, अपार धन-धान्य की लूटपाट, गुलामी ।
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🔶 *चौथी आज्ञा 
🔸 कृतं मे दक्षिणे हस्ते जयो में सव्य आहितः (अथर्व 7/50/8)
🔹 अर्थात् "मेरे दाएं हाथ में कर्म है और बाएं हाथ में विजय ।" वेद की इस आज्ञा का उलंघन हुआ । लोगों ने कर्म को छोड़कर ग्रहों फलित ज्योतिष आदि पर आश्रय पाया ।
🔷 परिणाम : कर्महीनता, भाग्य के भरोसे रहकर आक्रान्ताओं को मुँहतोड़ जवाब न देना । धन-धान्य का अपव्यय, मनोबल की कमी और मानसिक दरिद्रता ।
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🔶 *पाँचवीं आज्ञा 
🔸 उतिष्ठत सं नह्यध्वमुदारा: केतुभिः सह ।
सर्पा इतरजना रक्षांस्य मित्राननु धावत ।।
(अथर्व 11/10/1)
🔹 अर्थात् "हे वीर योद्धाओ ! आप अपने झण्डे को लेकर उठ खड़े हो और कमर कसकर तैयार हो जाओ । हे सर्प के समान क्रुद्ध रक्षाकारी विशिष्ट पुरुषो ! अपने शत्रुओं पर धावा बोल दो ।" वेद की इस आज्ञा का भी उलंघन हुआ । जब लोगों के बीच बुद्ध ओर जैन मत के मिथ्या अहिंसावाद का प्रचार हुआ । लोग आक्रमणकारियों को मुँहतोड़ जवाब देने की बजाय मिथ्या अहिंसावाद को मुख्य मानने लगे ।
🔷 परिणाम : अशोक जैसे महान योद्धा का युद्ध न लड़ना । विदेशियों के द्वारा इसका फायदा उठाकर भारत पर आक्रमण ।
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🔶 *छठी आज्ञा 
🔸 मिथो विघ्राना उप यन्तु मृत्युम (अथर्व 6/32/3)
🔹 अर्थात् "परस्पर लड़ने वाले मृत्यु का ग्रास बनते हैं और नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं ।" वेद की इस आज्ञा का उलंघन हुआ ।
🔷 परिणाम : भारत के योद्धा आपस में ही लड़-लड़कर मर गये और विदेशियों ने इसका फायदा उठाया ।
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🔶 *सातवीं आज्ञा 
🔸 न तस्य प्रतिमा अस्ति
(यजुर्वेद 32/3)
🔹 अर्थात् "ईश्वर का कोई प्रतिमा नहीं है ।" लेकिन इस आज्ञा का भी उलंघन हुआ और लोगों ने ईश्वर को एकदेशी मुर्ति तक समेट दिया।
🔷 परिणाम : ईश्वर के सत्य स्वरुप को छोड़कर भिन्न स्वरुप की उपासना और सत्य धर्म को भूला देना। मंदिर मे ढेर सारा धन आदि जमा हो जाना जो न धर्म रक्षा मे लगता है न अभाव गरीबी दुर करने मे।
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 तो आइये, फिर से वेदों की ओर लौट चलें . . .
और एक सशक्त राष्ट्र और चरित्रवान विश्व का निर्माण करे
*कृण्वन्तो विश्वमार्यम्*