Thursday 21 September 2017

*अन्न के स्थूल भाग से रक्त मज़्ज़ा और शारीरिक कोष बनते हैं, अन्न की ऊर्जा से प्राणमय कोष बनते हैं और अन्न के संस्कार से मनोमय कोष बनता है।* आहार चयन में विशेष सावधानी बरते, कृषि द्वारा प्राप्त अन्न जिसे दुबारा बोने पर पुनः पौधे निकल सकें, ऐसे सात्विक अन्न को बलिवैश्व में भोग लगा के संस्कारित करके खाने से स्वस्थ शरीर के साथ, श्रेष्ठ प्राण ऊर्जा और श्रेष्ठ मन बनता है जो मानव मात्र के लिए उत्तम है।
पशु जिनमें सम्वेदना व्यक्त करने की क्षमता हो, दर्द पर छटपटाहट हो, ऐसे जीव को मारकर खाने पर मॉस में पशु का श्राप होता है। स्थूल शरीर हेतु तो कुछ लाभ मिल भी सकता है मांस भक्षण से लेकिन, मर्मान्तक हत्या द्वार प्राप्त माँस से प्राण ऊर्जा नहीं मिलती और दूषित मन का निर्माण होता है।
अन्न के संस्कार के आधार पर ही- इसे सात्विक, तामसिक और राजसिक भागों में बाँटा गया है।
ऐसा जीव जो स्वतः मरा हो, उसका भक्षण करने पर उतना मन पर बुरा असर नहीं पड़ता, जितना जबरन स्वाद हेतु हत्या कर, तड़फ़ाकर हलाले माँस को खाने पर पड़ता है। कुत्सित कुंठित असंवेदनशील निर्दयी मन का निर्माण करती है, जो मानवमात्र के लिए घातक होता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाईन इण्डिया यूथ एसोसिएशन

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