Tuesday 24 April 2018

अरुंधति महान तपस्वीनी थी। अरुंधति ऋषि वसिष्ठ की पत्नी थी। आज भी अरुंधति सप्तर्षि मंडल में स्थित वसिष्ठ के पास ही दिखाई देती हैं।
अरुंधति भारत की महान महिलाओं में से एक है। भारत में नवविवाहित लड़कियां आकाश में अरुंधति को देखकर उनकी तरह आदर्श पत्नी बनने की कामना करती हैं। आकाश में एक तारा है जिसका हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों ने नाम अरुंधति रखा गया है।
अरुंधति की कथा :
एक बार सप्तर्षि, कश्यप, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदाग्नि और वसिष्ठ, हिमालय पर्वत पर बारह वर्ष के लिए तपस्या करने चले गए। वे अरुंधति को जंगल में बने आश्रम में अकेला छोड़ गए। कहते हैं कि इस बीच जंगल में भयंकर अकाल पड़ा जो बारह साल तक चला।
आश्रम में अरुंधति के लिए खाने को कुछ भी नहीं था। इस कठित समय में उन्होंने भूखे रहकर ही भगवान शिव की तपस्या करनी शुरू कर दी। शिवजी उनकी परीक्षा लेने के लिए एक बूढ़े ब्राह्मण का वेश धारण करके आ गए।
आश्रम में आकर उन्होंने कहा कि हे माता मुझे भूख लगी है। मुझे कुछ खाने को दो। अरुंधति ने कहा कि हे ब्राह्मण देव, घर में खाने के लिए कुछ नहीं है, बस थोड़े बदरी के बीज हैं इन्हीं को खा लीजिए।
भगवान शिव ने कहा, 'क्या तुम इन बीजों को पका सकती हो?'
अरुंधति अग्नि में बीजों को पकाने लगी। बीज पकाते हुए उसने धर्म-कर्म की बातें शुरू कर दी। अरुंधति बारह वर्षो तक धर्म की व्याख्या करती रही। प्रभु की माया के चलते समय कब और कैसे बीत गया उन्हें पता ही नहीं चला। बारह साल के अंत में अकाल समाप्त हो गया और सप्तर्षि भी हिमालय से लौट आए।
भगवान शिव अरुंधति की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्होंने अपना असली रूप दिखाया। उन्होंने ऋषियों से कहा कि अरुंधति की तपस्या आपके द्वारा हिमालय पर की गई तपस्या से अधिक उत्तम थी। फिर भोले शंकर ने अरुंधति के रहने के स्थान को पवित्र किया और चले गए।

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