बीजापुर स्थित ""सात कबर"" और उनका क्या रहस्य है...
जलन, असुरक्षा और अविश्वास...... से इस्लामी शासनकाल के पन्ने रंगे पड़े हैं..... जहाँ भाई-भाई, और पिता-पुत्र में सत्ता के लिये खूनी रंजिशें की गईं....! क्या आप ये सोच भी सकते हैं कि..... कोई शासक अपनी 63 पत्नियों को सिर्फ़ इसलिये मार डाले कि....... कहीं उसके मरने के बाद वे दोबारा शादी न कर लें… ?है ना ये .....एक बेहद आश्चर्यजनक और चौंकाने वाली बात.यूँ तो कर्नाटक के बीजापुर में ........गोल गुम्बज और इब्राहीम रोज़ा जैसी कई ऐतिहासिक इमारतें और दर्शनीय स्थल हैं....... लेकिन, एक स्थान ऐसा भी है ......जहाँ पर्यटकों को ले जाकर इस्लामी आक्रांताओं के कई काले कारनामों में से एक के दर्शन करवाये जा सकते हैं....।
बीजापुर-अठानी रोड पर लगभग 5 किलोमीटर दूर एक उजाड़ स्थल पर पाँच एकड़ में फ़ैली यह ऐतिहासिक कत्लगाह ...... “सात कबर” (साठ कब्र का अपभ्रंश) एक ऐसी ही एक जगह है..। इस स्थान पर आदिलशाही सल्तनत के एक सेनापति .... अफ़ज़ल खान द्वारा अपनी 63 पत्नियों की हत्या के बाद बनाई गई कब्रें हैं....।इस खण्डहर में काले पत्थर के चबूतरे पर 63 कब्रें बनाई गई हैं... और, आज की तारीख में इतना समय गुज़र जाने के बाद भी जीर्ण-शीर्ण खण्डहर अवस्था में यह बावड़ी और कब्रें काफ़ी ठीक-ठाक हालत में हैं....। पहली दो लाइनों में 7-7 कब्रें, तीसरी लाइन में 5 कब्रें तथा आखिरी की चारों लाइनों में 11 कब्रें बनी हुई दिखाई देती हैं...... और , वहीं एक बड़ी "आर्च(Arch) (मेहराब) भी बनाई गई है...!
.अफ़ज़ल खान ने खुद अपने लिये भी एक कब्र यहीं पहले से बनवाकर रखी थी..... परन्तु , उसके शव को यहाँ तक नहीं लाया जा सका और मौत के बाद प्रतापगढ़ के किले में ही उसे दफना दिया गया था.. महान मराठा योद्धा शिवाजी ने अफ़ज़ल खान का वध .....प्रतापगढ़ के किले में 1659 में कर ही दिया ...।
दिक्कत ये है कि.....वामपंथियों और कांग्रेसियों ने .....हमारे इतिहास में मुगल बादशाहों के अच्छे-अच्छे, नर्म-नर्म, मुलायम-मुलायम किस्से-कहानी ही भर रखे हैं, जिनके द्वारा उन्हें सतत महान, सदभावनापूर्ण और दयालु(?) बताया है, लेकिन इस प्रकार 63 पत्नियों की हत्या वाली बातें जानबूझकर छुपाकर रखी गई हैं.....।यही कारण है कि.....आज बीजापुर में इस स्थान तक पहुँचने के लिये ऊबड़-खाबड़ सड़कों से होकर जाना पड़ता है..... और, वहाँ अधिकतर लोगों को इसके बारे में विस्तार से कुछ पता नहीं है (साठ कब्र का नाम भी... अपभ्रंश होते-होते "सात-कबर" हो गया),अब इस दयालु मुगल शासक वाले वामपंथी मिथक को तोड़ना बहुत ज़रूरी है.. और, बच्चों को उनके व्यक्तित्व के उचित विकास के लिये सही इतिहास बताना ही चाहिये… वरना उन्हें 63 पत्नियों के हत्यारे के बारे में कैसे पता चलेगा ...?
बड़े शहरों की कूल डूड हिन्दू युवतियाँ किसी भी मुस्लिम से दोस्ती अथवा प्यार की पींगें बढ़ने से पहले हजार बार जरुर सोच लें कि.... बाबर और चंगेज खां के वंशजों से निकटता बढ़ाने के क्या परिणाम हो सकते हैं....?
जलन, असुरक्षा और अविश्वास...... से इस्लामी शासनकाल के पन्ने रंगे पड़े हैं..... जहाँ भाई-भाई, और पिता-पुत्र में सत्ता के लिये खूनी रंजिशें की गईं....! क्या आप ये सोच भी सकते हैं कि..... कोई शासक अपनी 63 पत्नियों को सिर्फ़ इसलिये मार डाले कि....... कहीं उसके मरने के बाद वे दोबारा शादी न कर लें… ?है ना ये .....एक बेहद आश्चर्यजनक और चौंकाने वाली बात.यूँ तो कर्नाटक के बीजापुर में ........गोल गुम्बज और इब्राहीम रोज़ा जैसी कई ऐतिहासिक इमारतें और दर्शनीय स्थल हैं....... लेकिन, एक स्थान ऐसा भी है ......जहाँ पर्यटकों को ले जाकर इस्लामी आक्रांताओं के कई काले कारनामों में से एक के दर्शन करवाये जा सकते हैं....।
बीजापुर-अठानी रोड पर लगभग 5 किलोमीटर दूर एक उजाड़ स्थल पर पाँच एकड़ में फ़ैली यह ऐतिहासिक कत्लगाह ...... “सात कबर” (साठ कब्र का अपभ्रंश) एक ऐसी ही एक जगह है..। इस स्थान पर आदिलशाही सल्तनत के एक सेनापति .... अफ़ज़ल खान द्वारा अपनी 63 पत्नियों की हत्या के बाद बनाई गई कब्रें हैं....।इस खण्डहर में काले पत्थर के चबूतरे पर 63 कब्रें बनाई गई हैं... और, आज की तारीख में इतना समय गुज़र जाने के बाद भी जीर्ण-शीर्ण खण्डहर अवस्था में यह बावड़ी और कब्रें काफ़ी ठीक-ठाक हालत में हैं....। पहली दो लाइनों में 7-7 कब्रें, तीसरी लाइन में 5 कब्रें तथा आखिरी की चारों लाइनों में 11 कब्रें बनी हुई दिखाई देती हैं...... और , वहीं एक बड़ी "आर्च(Arch) (मेहराब) भी बनाई गई है...!
.अफ़ज़ल खान ने खुद अपने लिये भी एक कब्र यहीं पहले से बनवाकर रखी थी..... परन्तु , उसके शव को यहाँ तक नहीं लाया जा सका और मौत के बाद प्रतापगढ़ के किले में ही उसे दफना दिया गया था.. महान मराठा योद्धा शिवाजी ने अफ़ज़ल खान का वध .....प्रतापगढ़ के किले में 1659 में कर ही दिया ...।
दिक्कत ये है कि.....वामपंथियों और कांग्रेसियों ने .....हमारे इतिहास में मुगल बादशाहों के अच्छे-अच्छे, नर्म-नर्म, मुलायम-मुलायम किस्से-कहानी ही भर रखे हैं, जिनके द्वारा उन्हें सतत महान, सदभावनापूर्ण और दयालु(?) बताया है, लेकिन इस प्रकार 63 पत्नियों की हत्या वाली बातें जानबूझकर छुपाकर रखी गई हैं.....।यही कारण है कि.....आज बीजापुर में इस स्थान तक पहुँचने के लिये ऊबड़-खाबड़ सड़कों से होकर जाना पड़ता है..... और, वहाँ अधिकतर लोगों को इसके बारे में विस्तार से कुछ पता नहीं है (साठ कब्र का नाम भी... अपभ्रंश होते-होते "सात-कबर" हो गया),अब इस दयालु मुगल शासक वाले वामपंथी मिथक को तोड़ना बहुत ज़रूरी है.. और, बच्चों को उनके व्यक्तित्व के उचित विकास के लिये सही इतिहास बताना ही चाहिये… वरना उन्हें 63 पत्नियों के हत्यारे के बारे में कैसे पता चलेगा ...?
बड़े शहरों की कूल डूड हिन्दू युवतियाँ किसी भी मुस्लिम से दोस्ती अथवा प्यार की पींगें बढ़ने से पहले हजार बार जरुर सोच लें कि.... बाबर और चंगेज खां के वंशजों से निकटता बढ़ाने के क्या परिणाम हो सकते हैं....?
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