भारत की परंपरागत धरती पोषण की नीति को अपनाकर गोबर, गोमूत्र और पत्ते की पौष्टिक खाद का प्रयोग हो। हम भूलें नहीं कि भारत की लंबी संस्कृति जो लाखों साल की जानी-मानी है धरती की उपजाऊ शक्ति कभी कम नहीं हुई जब तक कि पिछले कुछ हीं दशकों में रासायनिक खाद का प्रचार-प्रसार किया गया और इसका आयात अंधाधुंध ढंग से हुआ। गोबर इत्यादि की खाद से किसान युगों-युगों से अपनी धरती की उपज बढ़ा रहे हैं। इसका व्यापक असर तब हो अगर सरकार हानिकारक रासायनिक खाद का आयात बंद कर दे और किसानों को देसी खाद से खेती करने को प्रोत्साहित करे। जैविक खेती करने के लिए किसान को गायों का पालन करना होगा ताकि गोबर और गोमूत्र की उपलब्धि हो सके जिससे वह जैविक खाद बनाएं
(राजीव दिक्षित) —
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....दुनिया में 90 % सोयाबीन की खेती जानवरो को खिलाने के लिए की जाती है, सोयाबीन में पाया जाने वाला विटामिन E उल्टा प्रकार का होता है, जो मानव उपाच्च में शामिल नही होता। यह सच है की सोयाबीन में प्रोटीन की मात्रा 35-40% है किन्तु सोयाबीन से प्राप्त प्रोटीन ग्लाय्सिन जटिल होता है जिसे जानवर आसानी से पचा सकते है, किन्तु मानव शारीर की संरचना उसे पचा पाने में असमर्थ होती है। सोयाबीन में ट्रिप्सिन और दुसरे विकास अवरोधक तथा हिमाएग्लुतिनिंस आदि विषैले तत्त्व भी पाए जाते है; जो 15 पाउंड दबाव पर 30 मिनिट तक बंध पात्र में गरम करने पर ही नष्ट किये जा सकते है। सोयाबीन इन्सानो के लिए हितकारी नही है इसलिए सोयाबीन तेल आदि से दूर ही रहे
पूरी दुनिया के वैज्ञानिक कहते अगर किसी खेत में 10 साल सोयाबीन उगाओ तो 11 वे साल आप वहां कुछ नहीं उगा सकते —
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मिटटी के कुल्हड़::
- मिटटी के इन छोटे छोटे गिलासों को कुल्हड़ कहते है .
- कभी सफ़र पर जाते समय रास्ते में रुक कर हरे भरे खेतों के बीच किसी ढाबे से मिटटी के कुल्हड़ में चाय पीने का मज़ा ही कुछ और है .
- चाय पी कर इन्हें फेंक दो , न धोने का झंझट और ना ही पर्यावरण दूषित होने का डर .
- मिटटी के कुल्हड़ में रबडी , मसाला दूध , लस्सी , छाछ आदि भी पीया जा सकता है .
- मिटटी की सौंधी खुशबु से दूध का स्वाद दुगना हो जाता है .
- मिटटी में मौजूद सूक्ष्म पोषक तत्व हमें मिल जाते है और मिटटी की शुद्ध करने की शक्ति से शुद्ध और पोषक पेय पीने से तरावट आ जाती है .
- इनसे कुम्हारों को रोज़गार भी मिलता है . स्वदेशी कुम्हारों के फ़ोकट के मार्केटिंग एजेंट है !
- इसलिए डिस्पोजेबल प्लास्टिक के और हानिकारक केमिकल्स से बने ग्लासेज़ को कहे बाय और अपनाये मिटटी के कुल्हड़ .
(राजीव दिक्षित) —
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....दुनिया में 90 % सोयाबीन की खेती जानवरो को खिलाने के लिए की जाती है, सोयाबीन में पाया जाने वाला विटामिन E उल्टा प्रकार का होता है, जो मानव उपाच्च में शामिल नही होता। यह सच है की सोयाबीन में प्रोटीन की मात्रा 35-40% है किन्तु सोयाबीन से प्राप्त प्रोटीन ग्लाय्सिन जटिल होता है जिसे जानवर आसानी से पचा सकते है, किन्तु मानव शारीर की संरचना उसे पचा पाने में असमर्थ होती है। सोयाबीन में ट्रिप्सिन और दुसरे विकास अवरोधक तथा हिमाएग्लुतिनिंस आदि विषैले तत्त्व भी पाए जाते है; जो 15 पाउंड दबाव पर 30 मिनिट तक बंध पात्र में गरम करने पर ही नष्ट किये जा सकते है। सोयाबीन इन्सानो के लिए हितकारी नही है इसलिए सोयाबीन तेल आदि से दूर ही रहे
पूरी दुनिया के वैज्ञानिक कहते अगर किसी खेत में 10 साल सोयाबीन उगाओ तो 11 वे साल आप वहां कुछ नहीं उगा सकते —
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Right To Recall के सम्बन्ध में पूछे जाने पर श्री राजीव दीक्षित बताते है के Right To Recall होना चाहिए लेकिन वो existing system में सम्भव नही है इसके लिए सिस्टम change करना पड़ेगा | हमारा जो इलेक्शन सिस्टम है , पोलिटिकल पार्टियों का जो सिस्टम है ये बदलना पड़ेगा | पार्टियों को dismantle करके Right To Recall हो सकता है जब individual लोग चुनाब लड़ेंगे तब आप Right To Recall कर सकते है | भारत में पहले संबिधान का change करके पार्टियों को dismantle करके Right To Recall हो सकता है |
व्यवस्था परिवर्तन का क्या पद्धति होना चाहिए ये पूछे जाने पर श्री राजीव भाई ने बताया के सबसे आसान पद्धति होती है law change करना किउंकि व्यवस्था जो चलती है वो law पे based होती है तोह कानून change करने से ही व्यवस्था परिवर्तन हो जायेगा जैसे इन्काम टैक्स का law है उसने एक सिस्टम तैयार किया है , आप इन्काम टैक्स repeal कर दो सिस्टम change हो जायेगा | और law बदलने के लिए संसद हमने बना रखी है तोह संसद में अगर ऐसे लोग चले जायेंगे जो law बदल देंगे तोह सिस्टम change हो जायेगा | सिस्टम बदलने में कोई बड़ी problem नही है |
http://www.youtube.com/watch?v=46q9O0iFwZI
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गुड़ स्वास्थ्य के लिए अमृत है।
चीनी को सफेद ज़हर कहा जाता है। जबकि गुड़ स्वास्थ्य के लिए अमृत है। क्योंकि गुड़ खाने के बाद वह शरीर में क्षार पैदा करता है जो हमारे पाचन को अच्छा बनाता है (इसलिए बागभट्टजी ने खाना खाने के बाद थोड़ा सा गुड़ खाने की सलाह दी है)। जबकि चीनी अम्ल (Acid) पैदा करती है जो शरीर के लिए हानिकारक है। गुड़ को पचाने में शरीर को यदि 100 केलोरी उर्जा लगती है तो चीनी को पचाने में 500 केलोरी खर्च होती है। गुड़ में कैल्शियम के साथ-साथ फोस्फोरस भी होता है। जो शरीर के लिए बहुत अच्छा माना जाता है और हड्डियों को बनाने में सहायक होता है। जबकि चीनी को बनाने की पक्रिया में इतना अधिक तापमान होता है कि फोस्फोरस जल जाता है इसलिए अच्छी सेहत के लिए गुड़ का उपयोग करें।
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व्यवस्था परिवर्तन का क्या पद्धति होना चाहिए ये पूछे जाने पर श्री राजीव भाई ने बताया के सबसे आसान पद्धति होती है law change करना किउंकि व्यवस्था जो चलती है वो law पे based होती है तोह कानून change करने से ही व्यवस्था परिवर्तन हो जायेगा जैसे इन्काम टैक्स का law है उसने एक सिस्टम तैयार किया है , आप इन्काम टैक्स repeal कर दो सिस्टम change हो जायेगा | और law बदलने के लिए संसद हमने बना रखी है तोह संसद में अगर ऐसे लोग चले जायेंगे जो law बदल देंगे तोह सिस्टम change हो जायेगा | सिस्टम बदलने में कोई बड़ी problem नही है |
http://www.youtube.com/watch?v=46q9O0iFwZI
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गुड़ स्वास्थ्य के लिए अमृत है।
चीनी को सफेद ज़हर कहा जाता है। जबकि गुड़ स्वास्थ्य के लिए अमृत है। क्योंकि गुड़ खाने के बाद वह शरीर में क्षार पैदा करता है जो हमारे पाचन को अच्छा बनाता है (इसलिए बागभट्टजी ने खाना खाने के बाद थोड़ा सा गुड़ खाने की सलाह दी है)। जबकि चीनी अम्ल (Acid) पैदा करती है जो शरीर के लिए हानिकारक है। गुड़ को पचाने में शरीर को यदि 100 केलोरी उर्जा लगती है तो चीनी को पचाने में 500 केलोरी खर्च होती है। गुड़ में कैल्शियम के साथ-साथ फोस्फोरस भी होता है। जो शरीर के लिए बहुत अच्छा माना जाता है और हड्डियों को बनाने में सहायक होता है। जबकि चीनी को बनाने की पक्रिया में इतना अधिक तापमान होता है कि फोस्फोरस जल जाता है इसलिए अच्छी सेहत के लिए गुड़ का उपयोग करें।
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- मिटटी के इन छोटे छोटे गिलासों को कुल्हड़ कहते है .
- कभी सफ़र पर जाते समय रास्ते में रुक कर हरे भरे खेतों के बीच किसी ढाबे से मिटटी के कुल्हड़ में चाय पीने का मज़ा ही कुछ और है .
- चाय पी कर इन्हें फेंक दो , न धोने का झंझट और ना ही पर्यावरण दूषित होने का डर .
- मिटटी के कुल्हड़ में रबडी , मसाला दूध , लस्सी , छाछ आदि भी पीया जा सकता है .
- मिटटी की सौंधी खुशबु से दूध का स्वाद दुगना हो जाता है .
- मिटटी में मौजूद सूक्ष्म पोषक तत्व हमें मिल जाते है और मिटटी की शुद्ध करने की शक्ति से शुद्ध और पोषक पेय पीने से तरावट आ जाती है .
- इनसे कुम्हारों को रोज़गार भी मिलता है . स्वदेशी कुम्हारों के फ़ोकट के मार्केटिंग एजेंट है !
- इसलिए डिस्पोजेबल प्लास्टिक के और हानिकारक केमिकल्स से बने ग्लासेज़ को कहे बाय और अपनाये मिटटी के कुल्हड़ .
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