एक और क्रांतिकारी था | नाम था रामरक्खा | ब्राम्हण था | पंजाब का रहने वाला था |इसने चीन जापान अदि देशों के प्रवासकाल में क्रांतिकारी दल की
सदस्यता ग्रहण की | पश्चात् स्याम और रंगून में क्रांति फ़ैलाने के आरोप में गिरफ्तार हुआ| आजन्म कालेपानी का पुरस्कार मिला | रामरक्खा जब अंडमान की जेल में आया तो उसने देखा कि यहाँ ब्राम्हण के गले से जनेऊ निकाल दिया जाता है | यह बात उसको खटकी |
वह देश-विदेश घूम चुका था, विचार विकसित हो चुके थे | रूढ़ीवाद या अंधश्रद्धा के कारण नही बल्कि विचारपूर्वक ही उसे अंग्रेजों का यह अन्याय सहन नही हुआ | उसने इस बात का विरोध किया कि किसी के इच्छा के विरुद्ध उसके जनेऊ अदि धर्म –चिन्ह छीने जाएँ | अतः जब उसका जनेऊ उतारा जाने लगा तो वह बिगड़ उठा और जनेऊ उतारने नही दिया |अफसरों ने जिद पकड़ ली और रामरक्खा का यज्ञोपवीत जबरजस्ती छिन्न भिन्न कर दिया | उसने कसम खायी कि नया जनेऊ मिलने तक रोटी नही लेगा |जल भी नही लेगा | रामरक्खा को अनसन किये जब पंद्रह दिन गुजर गए ; तब उसे नाक में नली डाल कर कुछ खाद्य द्रव रूप में पहुँचाया जाता रहा |रामरक्खा कमजोर हो गया किन्तु वह डिगा नही | उसकी छाती में भयंकर पीड़ा होने लगी |डॉक्टरों ने परीक्षा की | कहा कि इसे तो यक्ष्मा ने ग्रस लिया है | यह जानकर सभी साथी चिंतित हुए और रामरख्खा को अनसन तोड़ने का आग्रह भी किया | वह इनकार करता रहा |मुझे लगा कि शायद उसने मृत्यु के द्वार पर ही आसन जमा लिया है | आखिर उसे मैंने ही एक परचा भेजकर अनसन तोड़ने का आग्रह किया | बहुत कुछ समझाया गया तब कहीं उसने मेरी बात मानी और अनसन तोडा |किन्तु वह मृत्यु के द्वार से लौटता दिखाई नही दिया |
रोग बढ़ता गया | दो महीने तक उसने भयंकर यातनाएं भोगी और अंततः वह क्रांतिकारी ब्राम्हण बलिवेदी की भेंट चढ़ गया | चला गया रामरक्खा | किन्तु यह सनसनीखेज शोक-संवाद भारतीय अख़बारों तक पहुँच गया | बात दबाई नही जा सकी और अंततः सरकार को यह आदेश जरी करना पड़ा कि अंडमान के ब्राम्हणों के जनेऊ नही उतारे जायेंगे | यही नहीं, सभी धर्मों के अनुयाइयों को अपने धर्म चिन्ह जेल में अपने पास रखने की अनुमति मिल गइ.
एक दिन मुझे भी यक्षमा के अस्पताल में भर्ती किया गया | मेरा मन मुझसे कहने लगा कि शायद मुझे भी इसी रास्ते जाना पड़ेगा | रामरक्खा सरीखे उदार और शूरवीर देशभक्तों को जब मृत्यु के मुख में जाते देखता तो ह्रदय अशांत हो जाता !
-मेरा अजन्म कारावास
सदस्यता ग्रहण की | पश्चात् स्याम और रंगून में क्रांति फ़ैलाने के आरोप में गिरफ्तार हुआ| आजन्म कालेपानी का पुरस्कार मिला | रामरक्खा जब अंडमान की जेल में आया तो उसने देखा कि यहाँ ब्राम्हण के गले से जनेऊ निकाल दिया जाता है | यह बात उसको खटकी |
वह देश-विदेश घूम चुका था, विचार विकसित हो चुके थे | रूढ़ीवाद या अंधश्रद्धा के कारण नही बल्कि विचारपूर्वक ही उसे अंग्रेजों का यह अन्याय सहन नही हुआ | उसने इस बात का विरोध किया कि किसी के इच्छा के विरुद्ध उसके जनेऊ अदि धर्म –चिन्ह छीने जाएँ | अतः जब उसका जनेऊ उतारा जाने लगा तो वह बिगड़ उठा और जनेऊ उतारने नही दिया |अफसरों ने जिद पकड़ ली और रामरक्खा का यज्ञोपवीत जबरजस्ती छिन्न भिन्न कर दिया | उसने कसम खायी कि नया जनेऊ मिलने तक रोटी नही लेगा |जल भी नही लेगा | रामरक्खा को अनसन किये जब पंद्रह दिन गुजर गए ; तब उसे नाक में नली डाल कर कुछ खाद्य द्रव रूप में पहुँचाया जाता रहा |रामरक्खा कमजोर हो गया किन्तु वह डिगा नही | उसकी छाती में भयंकर पीड़ा होने लगी |डॉक्टरों ने परीक्षा की | कहा कि इसे तो यक्ष्मा ने ग्रस लिया है | यह जानकर सभी साथी चिंतित हुए और रामरख्खा को अनसन तोड़ने का आग्रह भी किया | वह इनकार करता रहा |मुझे लगा कि शायद उसने मृत्यु के द्वार पर ही आसन जमा लिया है | आखिर उसे मैंने ही एक परचा भेजकर अनसन तोड़ने का आग्रह किया | बहुत कुछ समझाया गया तब कहीं उसने मेरी बात मानी और अनसन तोडा |किन्तु वह मृत्यु के द्वार से लौटता दिखाई नही दिया |
रोग बढ़ता गया | दो महीने तक उसने भयंकर यातनाएं भोगी और अंततः वह क्रांतिकारी ब्राम्हण बलिवेदी की भेंट चढ़ गया | चला गया रामरक्खा | किन्तु यह सनसनीखेज शोक-संवाद भारतीय अख़बारों तक पहुँच गया | बात दबाई नही जा सकी और अंततः सरकार को यह आदेश जरी करना पड़ा कि अंडमान के ब्राम्हणों के जनेऊ नही उतारे जायेंगे | यही नहीं, सभी धर्मों के अनुयाइयों को अपने धर्म चिन्ह जेल में अपने पास रखने की अनुमति मिल गइ.
एक दिन मुझे भी यक्षमा के अस्पताल में भर्ती किया गया | मेरा मन मुझसे कहने लगा कि शायद मुझे भी इसी रास्ते जाना पड़ेगा | रामरक्खा सरीखे उदार और शूरवीर देशभक्तों को जब मृत्यु के मुख में जाते देखता तो ह्रदय अशांत हो जाता !
-मेरा अजन्म कारावास
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