Thursday 27 February 2014

विज्ञानं के क्षेत्र में भारत और India का अंतर:

भारत में : किसीको वैज्ञानिक बनने से पहले उसका ऋषि होना आवशक होता था।
इंडिया में: वैज्ञानिक बनने के लिए पुस्तकों का ज्ञान और कुछ जड़ का प्रयोग करने की क्षमता काफी है।
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भारत में: भारतीय वैज्ञानिक जानते थे की मनुष्य प्राकृतिक वातावरण में ही स्वस्थ रहता है उन्नति करता है इसलिए यहाँ प्रकृति को पुष्ट कर उससे अधिक से अधिक लाभ उठाने का विज्ञानं विकसित हुआ, भारत का विज्ञानं समृद्धि का विज्ञानं था।
इंडिया में: इंडिया ने प्रकृति को उजड़ा लोगोंको प्रकृति से दूर कर दिया, इससे जो अभाव और विकृतिया पैदा हुई उसकी पूर्ति करने के लिए विज्ञानं का विकास किया, इसलिए इंडिया का विज्ञानं अभाव एवं दुर्गति का विज्ञानं है।
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भारत में: प्रकृति से जुड़े होने के कारन भारत में स्वस्य्थ जीवन का विज्ञानं विकसित हुआ।
इंडिया में: प्रकृति विरोधी होने के कारन रोग बड़े तो इंडिया ने पश्चिम की चिकित्सा पद्धति अपनाया।
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भारत में: यही विज्ञानं का विकास हुआ सभी बड़े आविष्कार यहाँ हुए।
इंडिया में: हमारे वैज्ञानिक सिद्धांतो के आधार पर आविष्कार करने वाले अंग्रेजो को ही मूल आविष्कार मानना, पश्चिम के इसी विज्ञानं की नक़ल और उसपर आधारित तकनीक का विकास हो रहा हैं।
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भारत में: भारत के हर गाँव और शहर बहुत ही समृद्ध थे, गाँव में ही रोजगार उपलब्ध थे, बेरोजगारी नामक शब्द तक नही था समाज में, कभी व्यापारी, तीर्थयात्री, विद्यान दूर दूर तक आते थे, यात्रियों को कोई कष्ट न हो इसलिए अतिथि सत्कार की परंपरा विकसित हुई, भारत निर्यात में बहुत आगे था, इसलिए यहाँ नौका विज्ञानं अति समृद्ध था, वास्कोडिगामा ने भारत की खोंज नही की थी वह अफ्रीका के नाविकों और व्यापारियों के साथ यहाँ पहुंचा था।
इंडिया में: शहरों को बसने के लिए गाँव को उजाड़ा। गाँव से शहर, शहर से महानगर, दूरियों के कारन यातायात के लिए नेशनल हाईवे, ट्रक, रेल, विमान इसी तरह शहरों में भीड़ बड़ी तो शहरों में ऊँची इमारतों आदि मजबूरी का विज्ञानं विकसित हो रहा हैं। 5 लाख से अधिक जनसँख्या होने के बाद शहर विकृत होने लगते हैं, उस विकृति को दूर करने के लिए जिस विज्ञानं की आवश्यकता होती हैं वह प्रकृति के विरुद्ध होने से विकृति का विज्ञानं हैं।
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भारत में: प्रकृति से जुडाव होने के कारण हर व्यक्ति की सोच वैज्ञानिक थी।
इंडिया में: प्रकृति से कटा व्यक्ति भेद चाल चल रहा है, सुनामी यहाँ एक भी वनवासी या खुला पशु नही मरा, पड़े लिखे समाज के लाखों लोग मरे। होटलों, आधुनिक अनुष्ठानो का अधिक से अधिक क्षति हुआ। पशु जितना सामान्य ज्ञान न होने के बाद भी यह अहंकार की हम वैज्ञानिक युग में जी रहें है, व्यक्ति को प्रकृति से जोड़ने की वजाय, आपदा की सुचना के लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों पर अरबों खरबों खर्च किया जाता हैं।
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भारत में: समाज की प्रगति के लिए विज्ञानं की तकनीकों का विकास होता था।
इंडिया में: तकनिकी प्रगति के अनुरूप समाज को ढलने का प्रयत्न किया जाता हैं।
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भारत में: भारत के ऋषि जानते थे की शक्ति का आधार आहार नही है उसमे निहित प्राण हैं। अतः प्राण विज्ञानं आधारित बैल से कृषि का विकास हुआ।
इंडिया में: इंडिया का वैज्ञानिक जानते ही नही के क्या है प्राण। सारा आहार प्राणहीन ही नही प्राणनाशक होता जा रहा हैं।
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भारत में: गेहूं पिसने की घट्टी, तेल निकलने की घाणी, घी निकालने की बिलोना पद्धति, रोटी बनाने वाली आदि तकनीकों का विकास प्राण विज्ञानं के आधार पर हुआ, विज्ञानं में पिछड़ेपन का कारण नही।
इंडिया में: आता चक्की, तेल मिल, डेयरी घी यह अज्ञान की दें हैं विज्ञानं की नही, ब्रेड बनाने में गेहूं के 23 पौष्टिक गुण नष्ट हो जाते हैं फिर उसमे 8 कृत्तिम और सुगन्धित गुण डालकर कंपनी कहती है 'एनरिच्ड ब्रेड' 'हमारा आटा बिना मिलावट वाला' और पड़ी लिखी महिलाये उसे खरीद कर गौरान्वित होती हैं।
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भारत में: प्रकृति आधारित आयुर्वेद के मानदंडो पर खरा उतरने पर ही किसी विद्या को स्वस्थ विज्ञानं का प्रमाण पत्र मिलता हैं।
इंडिया में: अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति के मानदंडो पर खरा उतरने पर ही किसी विद्या को स्वस्थ विज्ञानं का प्रमाण मिलता हैं।
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भारत में: स्वस्थ अर्थात स्व में स्थित।
इंडिया में: स्वस्थ अर्थात रोग मुक्त।
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भारत में: वैज्ञानिक भाषा संस्कृत का विकास हुआ।
इंडिया में: सभी भाषाएँ अवैज्ञानिक भाषा अंग्रेजी के अधीन हैं।
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अंग्रेजो ने एक ऐसा इंडिया का निर्माण किया जो भारत से घृणा करता है - जिसके लिए भारत की हर बात अंधविश्वास, अवैज्ञानिकता, दकियानूसी सोच और पिछड़ेपन का प्रतिक है, जो इतनी अधिक हिन भावना से ग्रस्त है की उसके लिए अमेरिका, यूरोप स्वर्ग है, वहाँ की हर सोच प्रगति की निशानी वहाँ के औरतों के नंगेपन में उसे नारी स्वतंत्रता का दर्शन होता है, वहाँ की अवैज्ञानिक भाषा उसे विश्वभाषा दिखाई देती है, वहाँ का अज्ञान उसकी दृष्टि में विज्ञान है, उनकी क्रूरता में उसके साहस और उसकी कायरता में अहिंसा का दर्शन होता है, लूट से एकत्रित संपत्ति की और न देख वह उसे एक विकसित राष्ट्र कहता है।

अंग्रेज जाते जाते एक संधि के अनुसार यहाँ के गाँधी-नेहरु को सत्ता सौंप गए लेकिन विभाजन से पीड़ित हमलोगोंको का ध्यान इस ओंर नही गया अंग्रेजो के जाने को ही हमने आजादी मान ली। 15 अगस्त 1947 से पहले भारत अंग्रेजो का गुलाम था और आज इंडिया का गुलाम है। व्यक्ति हो या देश जब अपनि प्रकृति का विरोध करने लगता है, बीमार हो जाता है और जबतक वह अपनी प्रकृति को नहीं समझता स्वस्थ नही हो सकता।

भारत ऋषि प्रधान राष्ट्र था; ऋषि अर्थात जिन्होंने जड़ से ऊपर एक चेतन तत्त्व का साक्षातकार किया था उनका उद्देश्य शरीर की सीमा में अपने आपको बांधने की प्रबृत्ति से मनुष्य को मुक्त करना रहा। भोग में डूबा व्यक्ति शरीर की सीमा से मुक्त नही हो सकता, इसलिए ऋषियों ने त्याग को महत्व दिया और भोग की निःसारता को समझ उसे त्यागना ही उचित समझा। भौगोलिक दृष्टि से भारत का सम्बंध जितने भी देश से रहा हो लेकिन भारत की संस्कृति का प्रभाव पूरी दुनिया पर था। भारत पर अंग्रेजों, मुघलों का आक्रमण केबल एक देश का दुसरे देश पर आक्रमण ही नही था अपितु यह असुरों का ऋषि संस्कृति पर आक्रमण था। असुर अर्थात शरीर को ही सबकुछ मानने वाले।

शरीर को ही सबकुछ मानने से शरीर को भोगों से तृप्त करने के लिए अधिक से अधिक भोग जुटाना ही एक मात्र उद्देश्य रह जाता है, इसके लिए अधिक से अधिक लोगों के अधिकार छीनना अधिकाधिक को अपने वश में करना बहुत बड़ा गुण मन जाता है यह अत्यन्त स्वाभाविक है की जहाँ त्याग की प्रबृत्ति वाले अधिक हो वहाँ भोग की सामग्री प्रचुर मात्रा में ही होगी इसलिए भारत पर हमेशा से असुरों का आक्रमण होता रहा और कई बार असुरों का राज्य स्थापित हो गया। इंडिया असुरों को आदर्श मानने वालों का देश हैं। रामायण का युद्ध सरल था क्योंकि उसमे एक पक्ष में धर्म था और एक पक्ष में अधर्म था जबकि महाभारत का युद्ध जटिल था उसमे दोनों पक्ष में अपने ही प्रियजन थे। आज भी यही स्थिति हमारी है, आज भारत का युद्ध इंडिया से है इसलिए यह युद्ध बहुत ही जटिल है। ब्रेनवाश होने और मेकौले की शिक्षा गले में उतरने से बहुत से युवा उस अंग्रेजो के बनाये इंडिया के खेमे में है।
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..1966.. के पाकिस्तान के भारत पर होने वाले हमले से पूर्व चीन ने भारत पर हमला किया था 1962 ने !
और ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हमला था ! इसको इसलिए दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है कि उस समय vk krishna menon जैसा नेता भारत का रक्षा मंत्री था !!

दुर्भाग्यपूर्ण वाली बात ये है कि VK krishan menon थे तो भारत के रक्षा मंत्री लेकिन हमेशा विदेश घूमते रहते थे ! उनको हिदुस्तान रहना अच्छा ही नहीं लगता था आमेरिका अच्छा लगता था !फ्रांस अच्छा लगता था !ब्रिटेन अच्छा लगता था ! नुयोर्क उनको हमेशा अच्छा लगता था ! उनकी तो मजबूरी थी कि भारत मे पैदा हो गए थे ! लेकिन हमेशा उनको विदेश रहना और वहाँ घूमना ही अच्छा लगता था ! और जो काम उनको रक्षा मंत्री का सौंपा गया था उसको छोड़ वो बाकी सब काम करते थे ! विदेश मे घूमते रहना !कभी किसी देश कभी किसी देश मे जाकर कूट नीति ब्यान दे देना ! !

और ये किस तरह के अजीब किसम के आदमी थे !आप इस बात से अंदाजा लगा सकते है ! 1960 -61 मे एक बार संसद मे बहस हो रही थी तो वीके कृशन ने खड़े होकर अपनी तरफ से एक प्रस्ताव रखा !

प्रस्ताव क्या रखा ??

उन्होने कहा देखो जी पाकिस्तान ने तो 1948 मे हमसे समझोता कर लिया कि वह आगे से कभी हम पर हमला नहीं करेगा ! और दुनिया के आजू-बाजू मे और कोई हमारा दुश्मन है नहीं ! तो हमे बार्डर पर सेना रखने कि क्या जरूरत है सेना हटा देनी चाहिए ! ऐसे उल्टी बुद्धि के आदमी थे vk krishan menon ! और ये बात वो कहीं साधारण सी बैठक मे नहीं लोकसभा मे खड़े होकर बोल रहे थे ! कि ये सेना हमको हटा देनी चाहिए ! इसकी जरूरत नहीं है !!

तो कुछ सांसदो मे सवाल किया कि अगर भविष्य मे किसी देश ने हमला कर दिया तो कया करेंगे ???? अभी तो आप बोल रहे है कि सेना हटा लो ! पर अमरजनसी जरूरत पड़ गई तो कया करेंगे ???
तो उन्होने ने कहा इसके लिए पुलिस काफी है ! उसी से काम चला लेगे ! ऐसा जवाब vk krishann manon ने दिया !!

ऐसी ही एक बार कैबनेट कि मीटिंग थी प्रधान मंत्री और बाकी कुछ मंत्री माजूद थे ! vk kirshan ने एक प्रस्ताव फिर लाया और कहा ! देखो जी हमने सीमा से सेना तो हटा ली है ! अगर सेना नहीं रखनी तो पैसे खर्च करने कि क्या जरूरत है ! तो बजट मे से सेना का खर्च भी कम कर दिया !

और तो और एक और मूर्खता वाला काम किया ! उन्होने कहा अगर सेना ही नहीं है तो ये बंब,बंदुके
बनाने की क्या जरूरत है ! तो गोला बारूद बनाने वाले कारखानो मे उत्पादन पर रोक लगा दी और वहाँ काफी बनाने के प्याले चाय बनाने के प्याले आदि का काम शुरू करवा दिया !!

और उनको जो इस तरह के बयान आते थे तो चीन को लगा कि ये तो बहुत मूर्ख आदमी है ! कहता है सेना को हटा लो ! सेना का खर्चा कम कर दो ! गोला बारूद बनाना बंद कर दो ! और खुद दुनिया भर मे घूमता रहता है ! कभी सेना के लोगो के पास न जाना ! सेना के साथ को meeting न करना ! इस तरह के काम करते रहते थे !

तो चीन को मौका मिल गया ! और चीन एक मौका ये भी मिल गया !चीन को लगा की vk kirashan तो प्रधानमंत्री (नेहरू ) के आदमी है !! तो शायद नेहरू की भी यही मान्यता होगी ! क्यूंकि vk krishan नेहरू का खास दोस्त था तो नेहरू ने उसको रक्षा मंत्री बना दिया था ! वरना vk krishan कोई बड़ा नेता नहीं था देशा का ! जनता मे कोई उनका प्रभाव नहीं था ! बस नेहरू की दोस्ती ने उनको रक्षा मंत्री बना दिया !!

और वो हमेशा जो भाषण देते थे !लंबा भाषण देते थे 3 घंटे 4 घंटे ! लेकिन आप उनके भाषण का सिर पैर नहीं निकाल सकते थे कि उन्होने बोला क्या ! ऐसे मूर्ख व्यक्ति थे vk krishan menon !

तो ये सब मूर्खता देख कर चीन ने भारत पर हमला किया और भारत का एक इलाका था aksai chin !
वहाँ चीन ने पूरी ताकत से हमला किया ! और हालात क्या थे आप जानते है ! सेना को वापिस बुला लिया था पहले ही !! सेना का बजट कम था ! गोला बारूद के कारखाने बंद थे !! तो चीनी सैनिको ने बहुत मनमानी कि उस askai chin के क्षेत्र मे !!

और जो सबसे बुरा काम किया ! चीनी सैनिको ने सैंकड़ों महिलाओ के साथ जमकर बलत्कार किए !! वहाँ हजारो युवको कि ह्त्या करी ! askai chin का जो इलाका है वहाँ सुविधाए कुछ ऐसे है कि लोग वैसे ही अपना जीवन मुश्किल से जी पाते है ! रोज का जीवन चलाना ही उनको लिए किसी युद्ध से कम नहीं होता ऊपर से चीन का हमला !!

तो वहाँ के लोगो ने उस समय बहुत बहुत दुख झेला ! और वहाँ हमारी सेना नहीं थी ! तो वहाँ लोगो के मन हमारी सरकार के विरुद्ध एक विद्रोह की भावना उतपन हुई ! और वो आज भी झलकती है ! आज भी आप वहाँ जाये तो वहाँ लोग ये सवाल करते है कि जब चीन ने हमला किया था तो आपकी सेना कहाँ थी ! और सच है हम लोगो के पास इसका कोई जवाब नहीं ! तो उनमे एक अलगाव कि भावना उतपन हुई जो अलग क्षेत्र की मांग करने लगे !!!

तो हमले मे चीन ने हमारी 72 हजार वर्ग मील जमीन पर कब्जा कर लिया ! और हमारा तीर्थ स्थान कैलाश मानसरोवर भी चीन के कब्जे मे चला गया ! और बहुत शर्म कि बात है आज हमे अपने तीर्थ स्थान पर जाने के लिए चीन से आज्ञा लेनी पड़ती है ! और इसके जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ नेहरू और vk krishan menon जैसे घटिया और मूर्ख किसम के नेता थे !!!
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तो युद्ध के बाद एक बार संसद मे भारत-चीन युद्ध पर चर्चा हुई ! सभी सांसदो के मुह से जो एक स्वर सुनाई दे रहा था ! वो यही था !कि किसी भी तरह चीन के पास गई 72 हजार वर्ग मील जमीन और हमारा तीर्थ स्थान कैलाश मानसरोवर वापिस आना चाहिए !

महावीर त्यागी जी जो उस समय के बहुत महान नेता थे !उन्होने ने सीधा नेहरू को कहा कि आप ही थे जिनहोने सेना हटाई ! सेना का बजट कम किया ! गोला बारूद बनाने के कारखाने बंद करवाये! आप ही के लोग विदेशो मे घूमा करते थे ! और आपकी इन गलितयो ने चीन को मौका मिला और उसमे हमला किया और हमारी 72 हजार वर्ग मील जमीन पर कब्जा कर लिया !!

अब आप ही बताए कि आप ये 72 हजार वर्ग मील जमीन को कब वापिस ला रहे है ?????!

तो इस हरामखोर नेहरू का जवाब सुनिए ! नेहरू ने कहा फिर क्या हुआ अगर वो जमीन चली गई ! चली गई तो चली गई ! वैसे भी बंजर जमीन थी घास का टुकड़ा नहीं उगता था ! ऐसी जमीन के लिए क्या चिंता करना !!

तो त्यागी जी ने बहुत ही बढ़िया जवाब दिया ! त्यागी जी ने कहा नेहरू जी उगता तो आपके सिर पर भी कुछ नहीं ! तो इसको भी काट कर चीन को देदो ! और इत्फ़ाक से नेहरू उस समय पूरी तरह गंजा हो चुका था !! 

तो दोस्तो इस नेहरू ने धरती माँ को एक जमीन का टुकड़ा मान लिया ! और अपनी गलती मानने के बजाय ! उल्टा ब्यान दे रहा है जमीन चली गई तो चली गई !

इससे ज्यादा घटिया बात कुछ और नहीं हो सकती ! !

और लानत है भारत की जनता पर आज चीन युद्ध के 50 साल बाद भी नेहरू परिवार के वंशज देश चला रहे हैं !! हमे दिन रात लूट रहे हैं !हमे मूर्ख बना रेह हैं !

1962 का युद्ध सारी घटना यहाँ देखे !!
must click here !!

http://www.youtube.com/watch?v=S4390QXdYF4




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