- पहले लोग गेहूं के साथ मोटा अनाज ((जौ, चना, बाजरा)) भी खाते थे, इसलिए मोटे अनाज से उन्हें पौष्टिक तत्व मिलते थे और वो तंदुरूस्त रहते थे।
- आजकल लोगों ने मोटा अनाज खाना छोड़कर केवल गेहूं का उपयोग करना शुरू कर दिया है। इससे उन्हें पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक तत्व नहीं मिल पाते हैं।
- ज्वार, बाजरा, रागी तथा अन्य मोटे अनाज उदाहरण के लिए मक्का, जौ, जई आदि पोषण स्तर के मामले में वे गेहूं और चावल से बीस ही साबित होते हैं।
- कई मोटे अनाजों में प्रोटीन का स्तर गेहूं के नजदीक ठहरता है, वे विटामिन (खासतौर पर विटामिन बी), लौह, फॉस्फोरस तथा अन्य कई पोषक तत्त्वों के मामले में उससे बेहतर हैं।
- ये अनाज धीरे धीरे खाद्य श्रृंखला से बाहर होते गए क्योंकि सरकार ने बेहद रियायती दरों पर गेहूं और चावल की आपूर्ति शुरू कर दी। साथ ही सब्सिडी की कमी के चलते मोटे अनाज के उपयोग में कमी जरूर आई लेकिन पशुओं तथा पक्षियों के भोजन तथा औद्योगिक इस्तेमाल बढऩे के कारण इनका अस्तित्व बचा रहा। इनका औद्योगिक इस्तेमाल स्टार्च और शराब आदि बनाने में होता है।
- इन फसलों की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि उन्हें चावल तथा गेहूं की तुलना में बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है। इसके अलावा इन्हें कमजोर पोषण वाली मिट्टी में तथा उष्णकटिबंधीय इलाकों में भी सफलतापूर्वक पैदा किया जा सकता है।
- बाजरे की विशेषता है सूखा प्रभावित क्षेत्र में भी उग जाना ,तथा ऊँचा तापक्रम झेल जाना। यह अम्लीयता को भी झेल जाता है। यही कारण है कि यह उन क्षेत्रों में उगाया जाता है जहां मक्का या गेहूँ नही उगाये जा सकते ।
- बाजरे में प्रोटीन व् आयरन प्रचुर मात्रा में होता है.
- इसमे कैंसर कारक टाक्सिन नही बनते है ,जो की मक्का तथाज्वार में बन जाते है ।
- बाजरे की प्रकृति गरम होती है। अत: बाजरा खाने वालों को अर्थ्राइटिस, गठिया, बाव व दमा आदि नहीं होता।
- बाजरा खाने से मांसपेशियां मजबूत होती है।
- बाजरे में उर्जा अधिक होती है जिससे बाजरा खाने वाले अधिक शक्तिशाली व् स्फूर्तिवान होते हैं।
- बाजरे से आयरन की कमी नही होती उसे अनीमिया नही होता, हिमोग्लोबिन तथा प्लेटलेट्स ऊँचे रहते हैं।
- बाजरा हमेशा देसी वाला (तीन माही ) ही खाएं. संकर बाजरे(साठी )की गुणवता अच्छी नही होती। अत: खेती करे तो हमेशा देसी बाजरा ही बोए और उसे देसी खाद व् कीटनाशक के साथ तैयार करे न की रसायनिक खाद यूरिया, डी ए पी व पेस्टिसाइड का उपयोग करके।
- हालाँकि देशी बाजरे की उपज कुछ कम होती है परन्तु इसकी पौष्टिकता, नैरोग्यता व् गुणवता कई गुना अच्छी होती है। रसायनों के उपयोग करने से शुगर व अर्थराइटिस से लेकर कैसर तक की बिमारिया आती है।
- इसके अलावा बाजरा लीवर से संबंधित रोगों को भी कम करता है।
- गेहूं और चावल के मुकाबले बाजरे में ऊर्जा कई गुना है। डाक्टरों का कहना है कि बाजरे की रोटी खाना सेहत के लिए बहुत लाभदायक है।
- बाजरे में भरपूर कैल्शियम होता है जो हड्डियों के लिए रामबाण औषधि है।
- आयरन भी बाजरे में इतना अधिक होता है कि खून की कमी से होने वाले रोग नहीं हो सकते।
- खासतौर पर गर्भवती महिलाओं को कैल्शियम की गोलियां खाने के स्थान पर रोज बाजरे की दो रोटी खाने की सलाह चिकित्सकों ने एकमत होकर दी है।
- इलाहाबाद में वरिष्ठ चिकित्साधिकारी मेजर डा. बी.पी. सिंह के मुताबिक सेना में उनकी सिक्किम में तैनाती के दौरान जब गर्भवती महिलाओं को कैल्शियम और आयरन की जगह बाजरे की रोटी और खिचड़ी दी जाती थी। इससे उनके बच्चों को जन्म से लेकर पांच साल की उम्र तक कैल्शियम और आयरन की कमी से होने वाले रोग नहीं होते थे।
- बाजरे का सेवन करने वाली महिलाओं में प्रसव में असामान्य पीड़ा के मामले भी न के बराबर पाए गए।
- डाक्टर तो बाजरे के गुणों से इतने प्रभावित है कि इसे अनाजों में वज्र की उपाधि देने में जुट गए हैं। उनके मुताबिक बाजरे का किसी भी रूप में सेवन लाभकारी है।
- बाजरे की खिचड़ी, चाट, बाजरा राब, बाजरे की पूरी, बाजरा-मोठ घूघरी, पकौड़े, कटलेट, बड़ा, सूप, कटोरी चाट, मुठिया, चीला, ढोकला, बाटी, मठरी, खम्मन ढोकला, हलवा, लड्डू, बर्फी, मीठी पूरी, गुलगुले, खीर, मीठा दलिया, मालपुआ, चूरमा, बिस्कुट, केक, बाजरे फूले के लड्डू, शक्कर पारे आदि कई व्यंजन बनाये जाते है.
- बाजरे की रोटी को हमेशा गाय के घी के साथ ही खाते हैं जिससे वह पौष्टिकता व ताकत देती है। बाजरे की ठंडी रोटी को छाछ, दही या राबड़ी के साथ भी बड़े चाव के साथ खायी जाती है।
- बाजरे की रोटी खाने वाले को हड्डियों में कैल्शियम की कमी से पैदा होने वाला रोग आस्टियोपोरोसिस और खून की कमी यानी एनीमिया नहीं सता सकता।
- बाजरे के खिचडे को कुकर में न बनाए। खिचडे का बर्तन थोड़ा खुला (अधकड़) रखे ताकि खिचडे को ओक्सिजन व धूप के विटामिन डी मिलते रहे। खिचडे को गाय के देसी घी के साथ परोसे।
चूरमा भी कई तरह का होता है , बेसन का चूरमा , गेहू का चूरमा , बाजरे का चूरमा , और रवे का चूरमा. चूरमा में जितना घी होगा उतना ही स्वादिस्ट बनता है. परन्तु समुचित मात्र में मीठा भी होना चाहिए.
मिले जुले मोटे अनाज जैसे बाजरा , मक्का और गेंहू का रवेदार आटा ले कर उसमे थोड़ा देशी घी दाल कर आटा गूंथ ले. अब उसकी मोती मोती रोटियाँ सेक ले. इस रोटी का चूरमा बना कर उसमे तदा घी और शकर दाल कर लड्डू बाँध ले. ये बहुत ही पौष्टिक और साथ ही स्वादिष्ट भी होते है.
चूरमे में पिसे तिल या पिसे दाने , सूखे मेवे आदि मिलाये जा सकते है.
— - आजकल लोगों ने मोटा अनाज खाना छोड़कर केवल गेहूं का उपयोग करना शुरू कर दिया है। इससे उन्हें पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक तत्व नहीं मिल पाते हैं।
- ज्वार, बाजरा, रागी तथा अन्य मोटे अनाज उदाहरण के लिए मक्का, जौ, जई आदि पोषण स्तर के मामले में वे गेहूं और चावल से बीस ही साबित होते हैं।
- कई मोटे अनाजों में प्रोटीन का स्तर गेहूं के नजदीक ठहरता है, वे विटामिन (खासतौर पर विटामिन बी), लौह, फॉस्फोरस तथा अन्य कई पोषक तत्त्वों के मामले में उससे बेहतर हैं।
- ये अनाज धीरे धीरे खाद्य श्रृंखला से बाहर होते गए क्योंकि सरकार ने बेहद रियायती दरों पर गेहूं और चावल की आपूर्ति शुरू कर दी। साथ ही सब्सिडी की कमी के चलते मोटे अनाज के उपयोग में कमी जरूर आई लेकिन पशुओं तथा पक्षियों के भोजन तथा औद्योगिक इस्तेमाल बढऩे के कारण इनका अस्तित्व बचा रहा। इनका औद्योगिक इस्तेमाल स्टार्च और शराब आदि बनाने में होता है।
- इन फसलों की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि उन्हें चावल तथा गेहूं की तुलना में बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है। इसके अलावा इन्हें कमजोर पोषण वाली मिट्टी में तथा उष्णकटिबंधीय इलाकों में भी सफलतापूर्वक पैदा किया जा सकता है।
- बाजरे की विशेषता है सूखा प्रभावित क्षेत्र में भी उग जाना ,तथा ऊँचा तापक्रम झेल जाना। यह अम्लीयता को भी झेल जाता है। यही कारण है कि यह उन क्षेत्रों में उगाया जाता है जहां मक्का या गेहूँ नही उगाये जा सकते ।
- बाजरे में प्रोटीन व् आयरन प्रचुर मात्रा में होता है.
- इसमे कैंसर कारक टाक्सिन नही बनते है ,जो की मक्का तथाज्वार में बन जाते है ।
- बाजरे की प्रकृति गरम होती है। अत: बाजरा खाने वालों को अर्थ्राइटिस, गठिया, बाव व दमा आदि नहीं होता।
- बाजरा खाने से मांसपेशियां मजबूत होती है।
- बाजरे में उर्जा अधिक होती है जिससे बाजरा खाने वाले अधिक शक्तिशाली व् स्फूर्तिवान होते हैं।
- बाजरे से आयरन की कमी नही होती उसे अनीमिया नही होता, हिमोग्लोबिन तथा प्लेटलेट्स ऊँचे रहते हैं।
- बाजरा हमेशा देसी वाला (तीन माही ) ही खाएं. संकर बाजरे(साठी )की गुणवता अच्छी नही होती। अत: खेती करे तो हमेशा देसी बाजरा ही बोए और उसे देसी खाद व् कीटनाशक के साथ तैयार करे न की रसायनिक खाद यूरिया, डी ए पी व पेस्टिसाइड का उपयोग करके।
- हालाँकि देशी बाजरे की उपज कुछ कम होती है परन्तु इसकी पौष्टिकता, नैरोग्यता व् गुणवता कई गुना अच्छी होती है। रसायनों के उपयोग करने से शुगर व अर्थराइटिस से लेकर कैसर तक की बिमारिया आती है।
- इसके अलावा बाजरा लीवर से संबंधित रोगों को भी कम करता है।
- गेहूं और चावल के मुकाबले बाजरे में ऊर्जा कई गुना है। डाक्टरों का कहना है कि बाजरे की रोटी खाना सेहत के लिए बहुत लाभदायक है।
- बाजरे में भरपूर कैल्शियम होता है जो हड्डियों के लिए रामबाण औषधि है।
- आयरन भी बाजरे में इतना अधिक होता है कि खून की कमी से होने वाले रोग नहीं हो सकते।
- खासतौर पर गर्भवती महिलाओं को कैल्शियम की गोलियां खाने के स्थान पर रोज बाजरे की दो रोटी खाने की सलाह चिकित्सकों ने एकमत होकर दी है।
- इलाहाबाद में वरिष्ठ चिकित्साधिकारी मेजर डा. बी.पी. सिंह के मुताबिक सेना में उनकी सिक्किम में तैनाती के दौरान जब गर्भवती महिलाओं को कैल्शियम और आयरन की जगह बाजरे की रोटी और खिचड़ी दी जाती थी। इससे उनके बच्चों को जन्म से लेकर पांच साल की उम्र तक कैल्शियम और आयरन की कमी से होने वाले रोग नहीं होते थे।
- बाजरे का सेवन करने वाली महिलाओं में प्रसव में असामान्य पीड़ा के मामले भी न के बराबर पाए गए।
- डाक्टर तो बाजरे के गुणों से इतने प्रभावित है कि इसे अनाजों में वज्र की उपाधि देने में जुट गए हैं। उनके मुताबिक बाजरे का किसी भी रूप में सेवन लाभकारी है।
- बाजरे की खिचड़ी, चाट, बाजरा राब, बाजरे की पूरी, बाजरा-मोठ घूघरी, पकौड़े, कटलेट, बड़ा, सूप, कटोरी चाट, मुठिया, चीला, ढोकला, बाटी, मठरी, खम्मन ढोकला, हलवा, लड्डू, बर्फी, मीठी पूरी, गुलगुले, खीर, मीठा दलिया, मालपुआ, चूरमा, बिस्कुट, केक, बाजरे फूले के लड्डू, शक्कर पारे आदि कई व्यंजन बनाये जाते है.
- बाजरे की रोटी को हमेशा गाय के घी के साथ ही खाते हैं जिससे वह पौष्टिकता व ताकत देती है। बाजरे की ठंडी रोटी को छाछ, दही या राबड़ी के साथ भी बड़े चाव के साथ खायी जाती है।
- बाजरे की रोटी खाने वाले को हड्डियों में कैल्शियम की कमी से पैदा होने वाला रोग आस्टियोपोरोसिस और खून की कमी यानी एनीमिया नहीं सता सकता।
- बाजरे के खिचडे को कुकर में न बनाए। खिचडे का बर्तन थोड़ा खुला (अधकड़) रखे ताकि खिचडे को ओक्सिजन व धूप के विटामिन डी मिलते रहे। खिचडे को गाय के देसी घी के साथ परोसे।
चूरमा भी कई तरह का होता है , बेसन का चूरमा , गेहू का चूरमा , बाजरे का चूरमा , और रवे का चूरमा. चूरमा में जितना घी होगा उतना ही स्वादिस्ट बनता है. परन्तु समुचित मात्र में मीठा भी होना चाहिए.
मिले जुले मोटे अनाज जैसे बाजरा , मक्का और गेंहू का रवेदार आटा ले कर उसमे थोड़ा देशी घी दाल कर आटा गूंथ ले. अब उसकी मोती मोती रोटियाँ सेक ले. इस रोटी का चूरमा बना कर उसमे तदा घी और शकर दाल कर लड्डू बाँध ले. ये बहुत ही पौष्टिक और साथ ही स्वादिष्ट भी होते है.
चूरमे में पिसे तिल या पिसे दाने , सूखे मेवे आदि मिलाये जा सकते है.
No comments:
Post a Comment