स्त्री की सुंदरता में तब चार चांद लग जाते हैं, जब वह श्रृंगार करने के साथ ही माथे पर बिंदी भी लगाती है। बिंदी को श्रृंगार का एक आवश्यक अंग माना गया है। इसी वजह से महिलाएं और लड़कियां बिंदी लगाती हैं।
आमतौर पर बिंदी को लेकर यही मान्यता है कि यह स्त्रियों के सुहाग की निशानी है। वृद्धजन और विद्वान अक्सर कहते हैं कि बिंदी के बिना स्त्रियों का माथा शोभा नहीं देता है। इन्हीं मान्यताओं के चलते बिंदी लगाने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है।
स्त्री के सोलह श्रृंगार बताए गए हैं। इनमें बिंदी का महत्वपूर्ण स्थान है। विवाह से पूर्व लड़कियां बिंदी केवल सौंदर्य में वृद्धि के लिए लगाती हैं, लेकिन विवाह के बाद बिंदी सुहाग की निशानी बन जाती है।
इस परंपरा को योग विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो बिंदी का संबंध हमारे मन से जुड़ा हुआ है। मस्तक पर जहां बिंदी लगाई जाती है, वहीं हमारा आज्ञा चक्र स्थित होता है। यह चक्र हमारे मन को नियंत्रित करता है। जब भी हम ध्यान लगाते हैं, तब हमारा ध्यान यहीं केंद्रित होता है।
जब भी मन को एकाग्र किया जाता है तो आज्ञा चक्र पर ही दबाव दिया जाता है। इसी आज्ञा चक्र पर स्त्रियां बिंदी लगाती हैं, ताकि उनका मन एकाग्र रहे।
महिलाओं का मन अति चंचल होता है। उनका मन बदलने में पलभर का भी समय नहीं लगता। वे एक समय में एक साथ कई विषयों पर चिंतन करती रहती हैं। अत: उनके मन को नियंत्रित और स्थिर रखने के लिए बिंदी लगाना बहुत कारगर उपाय है। इससे मन शांत और एकाग्र बना रहता है। शायद इन्हीं फायदों को देखते हुए प्राचीन ऋषि-मुनिया द्वारा बिंदी लगाने की अनिवार्य परंपरा प्रारंभ की गई है।
बिंदी लगाने के हैं ये 3 खास फायदे-
- बिंदी लगाने से सौंदर्य में वृद्धि होती है।
- विवाहित स्त्री के सुहाग का प्रतीक है।
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