Friday, 14 February 2014

महर्षि मनु की आदर्श दंड व्यवस्था

महर्षि मनु की आदर्श दंड व्यवस्था
आज कल हवा में एक शब्द उछल दिया गया है-"मनुवाद" किन्तु इसका अर्थ नहीं बताया गया है | इसका प्रयोग भी उतना ही अस्पष्ट और लचीला है, जितना राजनीतिक शब्दों का प्रयोग |मनुस्मृति के निष्कर्ष के अनुसार मनुवाद का सही अर्थ है-"गुण-कर्म-योग्यता के श्रेष्ठ मूल्यों के महत्व पर आधारित विचारधारा, और तब, अगुन-अकर्म-अयोग्यता के अश्रेष्ठ मूल्यों पर आधारित विचारधारा को कहा जायेंगा- "गैर मनुवाद" | अंग्रेज-आलोचक से लेकर आज तक के मनुविरोधी भारतीय लेखकों ने मनु और मनुस्मृति का जो चित्र प्रस्तुत किया है, वह एकांगी, विकृत, भयावह और पूर्वाग्रहयुक्त है | उन्होंने सुन्दर पक्ष सर्वथा उपेक्षा करके असुंदर पक्ष को ही उजागर किया है | इससे न केवल मनु की छवि को आघात पहुचता है, अपितु भारतीय धर्म, संस्कृति,सभ्यता,इतिहास,विशेषता धर्मशास्त्र का विकृत चित्र प्रस्तुत होता है, उससे देश-विदेश में उनके प्रति भ्रांत धारणाये बनती है | धर्मं शस्त्रों का वृथा अपमान होता है | हमारे गौरव का हास होता है | पुस्तक मनु का विरोध क्यों से । इसे इस लिंक से डाऊनलोड करें। http://vedickranti.in/books-details.php?action=view&book_id=196
आज की निकम्मी दंड व्यवस्था का हाल देखे - अपराधी साबित हो चुके संजय दत्त को बार बार पेरोल पर छोड़ना और निरपराध साध्वी प्रज्ञा जी को 5 साल तक इना किसी अपराध के अमानवीय यातनाए देना।

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