हिंदू संस्कृति किसी अंधविश्वास पर नहीं बल्कि विज्ञान की ठोस धरातल पर बनी है, जिस पर लाखों लोग विश्वास करते हैं और आगे भी करते रहेंगे। इस संस्कृति में सांस लेने, खाने, बैठने और खड़े होने जैसी सामान्य बातों समेत जीवन का हर पहलू एक आध्यात्मिक प्रक्रिया के तौर पर विकसित हुआ।
हम लोग यह हमेशा से ही सुनते आ रहें हैं कि बहती नदी में सिक्के डालने से हमे सौभाग्य प्राप्त होगा। लेकिन इसका एक वैज्ञानिक कारण है, पहले जब सिक्के बनाये जाते थे तो वे तांबे के होते थे जो कि हमारे शरीर के लिए एक बहुत उपयोगी धातु मनी जाती है। लेकिन आज के समय में यह सिक्के तांबे के नहीं स्टेनलेस स्टील के बनते हैं, जिसे पानी में डालने से पानी में कोई फरक नहीं पड़ता है। इसके उलट तांबे के सिक्के पानी में जाने से पानी पीने लायक बनता था।
अब समस्या यहाँ ये है कि पहले जिस भी बर्तन में पानी रखा जाता था उसमे वो सिक्के डाले जाते थे पर अब लोग नदी में डालते हैं जिसका कोई फायदा नहीं मिलता पर लोगों ने अब इसे श्रद्धास्वरूप धन चढाने की परंपरा अगर बना भी ली है तो भी बुराई नहीं है क्योंकि इससे कम से कम दूसरे धर्मों की तरह कोई खून तो नहीं बहा ?
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