Thursday 4 September 2014

मुसलमान और जातिबाद , छुआछुत:

मुसलमान अक्सर अपनी बढ़ती जनसंख्या की डींगें मारते रहते है .और घमंड से कहते हैं कि आज तो हमारे 53 देश हैं और सब एक की गिलास में पानी पीते है कोई जातिबाद नहीं है सब सामान है .आगे चलकर इनकी संख्या और बढ़ेगी .इस्लाम दुनिया भर में फ़ैल जायेगा .विश्व ने जितने भी धर्म स्थापक हुए हैं ,सभी ने अपने मत के बढ़ने की कामना की है .लेकिन मुहम्मद एकमात्र व्यक्ति था जिसने इस्लाम के विभाजन ,तुकडे हो जाने और सिमट जाने की पहिले से ही भविष्यवाणी कर दी थी .यह बात सभी प्रमाणिक हदीसों में मौजूद है .

यदि कोई इन हदीसों को झूठ कहता है ,तो उसे मुहम्मद को झूठ साबित करना पड़ेगा .क्योंकि यह इस्लाम के भविष्य के बारे में है .सभी जानते हैं कि किसी आदर्श ,या नैतिकता के आधार पर नहीं बल्कि तलवार के जोर पर और आतंक से फैला है .इस्लाम कि बुनियाद खून से भरी है .और कमजोर है .मुहम्मद यह जानता था .कुरान में साफ लिखा है आमतौर पर लोग मुसलमानों के दो ही फिरकों शिया और सुन्नी के बारे में ही सुनते रहते है ,लेकिन इनमे भी कई फिरके है .इसके आलावा कुछ ऐसे भी फिरके है ,जो इन दौनों से अलग है .इन सभी के विचारों और मान्यताओं में इतना विरोध है की यह एक दूसरे को काफ़िर तक कह देते हैं .और इनकी मस्जिदें जला देते है .और लोगों को क़त्ल कर देते है .शिया लोग तो मुहर्रम के समय सुन्नियों के खलीफाओं ,सहबियों ,और मुहम्मद की पत्नियों आयशा और हफ्शा को खुले आम गलियां देते है .इसे तबर्रा कहा जाता है .इसके बारे में अलग से बताया जायेगा .

सुन्नियों के फिरके -हनफी ,शाफई,मलिकी ,हम्बली ,सूफी ,वहाबी ,देवबंदी ,बरेलवी ,सलफी,अहले हदीस .आदि -

शियाओं के फिरके -इशना अशरी ,जाफरी ,जैदी ,इस्माइली ,बोहरा ,दाऊदी ,खोजा ,द्रुज आदि

अन्य फिरके -अहमदिया ,कादियानी ,खारजी ,कुर्द ,और बहाई अदि

इनमे से अहमदिया ,कादियानी ,खारजी ,कुर्द ,और बहाई को तो मुस्लमान ही नहीं माना जाता है खास कर अहमदिया यो सबसे ज्यदा है पाकिस्तान , भारत में सुन्नी के बाद ... अहमदिया के नाम पर तो फतबे भी है की ये मुस्लमान नहीं है क्युकी ये सब को मानते है राम ,कृष्ण, ईसा सभी को ........

इन सब में इतना अंतर है की ,यह एक दुसरे की मस्जिदों में नमाज नहीं पढ़ते .और एक दुसरे की हदीसों को मानते है .सबके नमाज पढ़ने का तरीका ,अजान ,सब अलग है .इनमे एकता असंभव है .संख्या कम होने के से यह शांत रहते हैं ,लेकिन इन्हें जब भी मौका मिलाता है यह उत्पात जरुर करते हैं मानव एक है पर वो अपने विचार से ही मानव या शैतान बनता है लेकिन कुरान ही उसे शैतान बना देती है यदि ये किताब और मुहम्मद का नाम ना रहे और ना ही अरब की संस्कृति रहे .. तो मुस्लमान फिर से हिंदू जीवन जीने लगे .. बस इस तीन शैतानी चीजों से दूर रहे .. कुरान , मुहम्मद , अरब की संस्क्रति ...

बाबा साहब के अनुसार

''जाति प्रथा को लीजिए। इस्लाम भ्रातृ-भाव की बात कहता है। हर व्यक्ति यही अनुमान लगाता है कि इस्लाम दास प्रथा और जाति प्रथा से मुक्त होगा। गुलामी के बारे में तो कहने की आवश्यकता ही नहीं। अब कानून यह समाप्त हो चुकी है। परन्तु जब यह विद्यमान थी, तो ज्यादातर समर्थन इसे इस्लाम और इस्लामी देशों से ही मिलता था। कुरान में पैंगबर ने गुलामों के साथ उचित इस्लाम में ऐसा कुछ भी नहीं है जो इस अभिषाप के उन्मूलन के समर्थन में हो। जैसाकि सर डब्ल्यू. म्यूर ने स्पष्ट कहा है-

''....गुलाम या दासप्रथा समाप्त हो जाने में मुसलमानों का कोई हाथ नहीं है, क्योंकि जब इस प्रथा के बंधन ढीले करने का अवसर था, तब मुसलमानों ने उसको मजबूती से पकड़ लिया..... किसी मुसलमान पर यह दायित्व नहीं है कि वह अपने गुलामों को मुक्त कर दें.....''

''परन्तु गुलामी भले विदा हो गईहो, जाति तो मुसलमानों में क़ायम है। उदाहरण के लिए बंगाल के मुसलमानों की स्थिति को लिया जा सकता है। १९०१ के लिए बंगाल प्रांत के जनगणना अधीक्षक ने बंगाल के मुसलमानों के बारे में यह रोचक तथ्य दर्ज किए हैं :

''मुसलमानों का चार वर्गों-शेख, सैयद, मुग़ल और पठान-में परम्परागत विभाजन इस पांत (बंगाल) में प्रायः लागू नहीं है। मुसलमान दो मुखय सामाजिक विभाग मानते हैं-१. अशरफ अथवा शरु और २. अज़लफ। अशरफ से तात्पर्य है 'कुलीन', और इसमें विदेशियों के वंशज तथा ऊँची जाति के अधर्मांतरित हिन्दू शामिल हैं। शेष अन्य मुसलमान जिनमें व्यावसायिक वर्ग और निचली जातियों के धर्मांतरित शामिल हैं, उन्हें अज़लफ अर्थात् नीचा अथवा निकृष्ट व्यक्ति माना जाता है। उन्हें कमीना अथवा इतर कमीन या रासिल, जो रिजाल का भ्रष्ट रूप है, 'बेकार' कहा जाता है। कुछ स्थानों पर एक तीसरा वर्ग 'अरज़ल' भी है, जिसमें आने वाले व्यक्ति सबसे नीच समझे जाते हैं। उनके साथ कोई भी अन्य मुसलमान मिलेगा-जुलेगा नहीं और न उन्हें मस्जिद और सार्वजनिक कब्रिस्तानों में प्रवेश करने दिया जाता है।

इन वर्गों में भी हिन्दुओं में प्रचलित जैसी सामाजिक वरीयताऔर जातियां हैं।

१. 'अशरफ' अथवा उच्च वर्ग के मुसलमान (प) सैयद, (पप) शेख, (पपप) पठान, (पअ) मुगल, (अ) मलिक और (अप) मिर्ज़ा।

२. 'अज़लफ' अथवा निम्न वर्ग के मुसलमान

(i) खेती करने वाले शेख और अन्य वे लोग जो मूलतः हिन्दू थे, किन्तु किसी बुद्धिजीवी वर्ग से सम्बन्धित नहीं हैं और जिन्हें अशरफ समुदाय, अर्थात् पिराली और ठकराई आदि में प्रवेश नहीं मिला है।

( ii) दर्जी, जुलाहा, फकीर और रंगरेज।

(iii) बाढ़ी, भटियारा, चिक, चूड़ीहार, दाई, धावा, धुनिया, गड्डी, कलाल, कसाई, कुला, कुंजरा, लहेरी, माहीफरोश, मल्लाह, नालिया, निकारी।

(iv) अब्दाल, बाको, बेडिया, भाट, चंबा, डफाली, धोबी, हज्जाम, मुचो, नगारची, नट, पनवाड़िया, मदारिया, तुन्तिया।

३. 'अरजल' अथवा निकृष्ट वर्ग

भानार, हलालखोदर, हिजड़ा, कसंबी, लालबेगी, मोगता, मेहतर।

जनगणना अधीक्षक ने मुस्लिम सामाजिक व्यवस्था के एक और पक्ष का भी उल्लेख किया है। वह है 'पंचायत प्रणाली' का प्रचलन। वह बताते हैं :

''पंचायत का प्राधिकार सामाजिक तथा व्यापार सम्बन्धी मामलों तक व्याप्त है और........अन्य समुदायों के लोगों से विवाह एक ऐसा अपराध है, जिस पर शासी निकायकार्यवाही करता है। परिणामत: ये वर्ग भी हिन्दू जातियों के समान ही प्रायः कठोर संगोती हैं, अंतर-विवाह पर रोक ऊंची जातियों से लेकर नीची जातियों तक लागू है। उदाहरणतः कोई घूमा अपनी ही जाति अर्थात् घूमा में ही विवाह कर सकता है। यदि इस नियम की अवहेलना की जाती है तो ऐसा करने वाले को तत्काल पंचायत के समक्ष पेश किया जाता है। एक जाति का कोई भी व्यक्ति आसानी से किसी दूसरी जाति में प्रवेश नहीं ले पाता और उसे अपनी उसी जाति का नाम कायम रखना पड़ता है, जिसमें उसने जन्म लिया है। यदि वह अपना लेता है, तब भी उसे उसी समुदाय का माना जाता है, जिसमें कि उसने जन्म लिया था..... हजारों जुलाहे कसाई का धंधा अपना चुके हैं, किन्तु वे अब भी जुलाहे ही कहे जाते हैं।''

इसी तरह के तथ्य अन्य भारतीय प्रान्तों के बारे में भी वहाँ की जनगणना रिपोर्टों से वे लोग एकत्रित कर सकते हैं, जो उनका उल्लेख करना चाहते हों। परन्तु बंगाल के तयि ही यह दर्शाने के लिए पर्याप्त हैं कि मुसलमानों में जाति प्राणी ही नहीं, छुआछूत भी प्रचलित है।'' (पृ. २२१-२२३)(साहेब डॉ. अम्बेडकर सम्पूर्ण वाड्मय, खंड १५-'पाकिस्तान और भारत के विभाजन)

http://answeringyou.blogspot.in/2012/02/blog-

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अच्छा तो अब पता चला...पाकिस्तान के प्लेयर वास्तव में पार्ट टाइम क्रिकेटर और फुल टाइम जेहादी हैं.

.धर्म तो धारण करने या जीवन में अपनाने के लिए होता है, फैलाने के लिए नहीं.
 ईसाई धर्म के पैदा होने से पहले धर्म का प्रचार या प्रसार नहीं होता था. न प्रेम से न तलवार से. किसी भी प्रकार के धर्म-परिवर्तन का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. लेकिन ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म में धर्म के प्रचार-प्रसार पर बहुत ज़ोर दिया गया है. इस्लाम में तो इस्लाम को न मानने वालों को क़ाफ़िर कहा गया और काफिरों को मुस्लिम बनाने पर विशेष बल दिया गया. इस प्रकार ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म के पैदा होने के बाद से धर्म के नाम पर अनेकों प्रकार के अत्याचार शुरू हो गए जो कि निरंतर बढ़ते ही जा रहे हैं. 
 आज विश्व में 55 से अधिक मुस्लिम राष्ट्र हैं और बीसियों ईसाई राष्ट्र हैं जबकि एक भी हिन्दू राष्ट्र नहीं है. हिंदुयों में आस्तिक भी हैं और नास्तिक भी, भगवान को साकार मानने वाले भी हैं और निराकार मानने वाले भी. इतनी स्वतंत्रता दुनिया के किसी भी अन्य धर्म में नहीं है. 
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