Tuesday, 23 September 2014

क़ुरआन का अध्ययन करते समय कुछ आयते ध्यान में आयी । स्रोत सन्दर्भ : कुर्आन मजीद, प्रकाशक : महमूद एण्ड कम्पनी, मरोल पाइप लाइन, मुम्बई ५९ । तर्जुमा : फ़तेह मुहम्मद खां साहब जालन्धरी । किताब प्राप्तिस्थान : आसिफ़ बुक डिपो गड़हय्या स्ट्रीट , जामा मस्जिद देहली ११०००६।
कोई मुझे समझाएगा कि निम्नलिखित आयतों में इस्लाम का "अमन का सन्देश" कहाँ और कैसे है ?
१०-९-५ जब इज़्ज़त के महिने गुज़र जायें, तो मुश्रिकों को जहाँ पाओ, क़त्ल कर दो और पकड़ लो और घेर लो और हर घात की जगह पर उनकी ताक में बैठे रहो, फिर अगर वे तौबा कर लें और नमाज़ पढ़ने और ज़कात देने लगे, तो उन की राह छोड़ दो। बेशक खुदा बख़्शने वाला मेहरबान है ।
१०-९-२८ मोमिनो ! मुश्रिक तो पलीद हैं (नापाक) -------
५-४-१०१ ------- बेशक, काफ़िर तुम्हारे खुले दुश्मन है ।
११-९-१२३ ऐ ईमानवालों ! अपने नज़दीक के (रहनेवाले) काफ़िरों से जंग करो और चाहिए कि वह तुम में सख़्ती (यानी मेहनत और लड़ाई की ताक़त) मालूम करें और जान रखो कि खुदा परहेजगारों के साथ है ।
५-४-५६ जिन लोगों ने हमारी आयतों से कुफ़्र किया, उन को हम जल्द आग में दाख़िल करेंगे, जब उनकी खालें गल (और जल) जाएँगी, तो हम और खालें बदल देंगे, ताकि (हमेशा) अजाब का (मज़ा ) चखते रहें । बेशक, खुदा ग़ालिब हिक्मत वाला है।
५-४-८९ वे तो यही चाहते हैं कि जिस तरह वे काफ़िर हैं, (उसी तरह) तुम भी काफ़िर हो कर (सब) बराबर हो जाओ, तो जब तक वे खुदा की राह में वतन न छोड़ जायें, उनमें से किसी को दोस्त न बनाना । अगर क़ुबूल न करें तो उन को पकड़ लो और जहाँ पाओ क़त्ल कर दो और उनमें से किसी को अपना साथी और मददगार न बनाओ ।।
ऐसी हिंसा का और नफ़रत का सन्देश देनेवाली आयतें और भी बहुत सारी है । आज इतनी काफ़ी हैं, कुछ और बाद में लिखूँगा ।
अब मैं चाहता हूँ कि "अमन का सन्देश" देनेवाली, गैरमुस्लिमों के साथ शान्ति के साथ रहने का उपदेश देनेवाली, कुछ आयतें भी पढ़ूँ । कोई ऐसी आयतें यहाँ पोस्ट करेगा तो मेहरबानी होगी । आयत क्र ज़रूर लिखना ।
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मजहब के नाम पर मानवता का अहित जितना इस्लाम ने किया है उतना किसी ने नहीं किया है--- स्वामी विवेकानंद
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