Monday, 8 September 2014

पश्चिम भारत के महत्वपूर्ण तीर्थस्थल और चार धामों में से एक द्वारकाधीश मंदिर पर सितंबर 1965 में ही पाकिस्तान की नेवी ने जमकर बम बरसाए थे। मंदिर पर 156 बम फेंके गए थे, लेकिन फिर भी ये बम मंदिर का बाल-बांका न कर सके।

मंदिर पर 156 बम फेंके जाने की बात खुद पाकिस्तान के रेडियो में प्रसारित की गई थी। रेडियो में पाक नेवी के सैनिकों ने हर्षोल्लास के साथ कहा था "मिशन द्वारिका कामयाब, हमने द्वारिका का नाश कर दिया। हमने कुछ ही मिनटों के अंदर मंदिर पर 156 बम फेंककर मंदिर को तबाह कर दिया"

हालांकि, यह पाक नेवी की गलतफहमी मात्र थी। दरअसल, जब नेवी ने सब-मरीन से मंदिर पर बम बरसाने शुरू किए, उस समय समुद्र किनारे विशाल पत्थरों की ओट थी। हमले के समय ओट और ऊंची हो चुकी थी, जिसके चलते कई बम मंदिर तक पहुंच ही नहीं सके और पानी में डिफ्यूज हो गए थे। मंदिर का कुछ हिस्सा जरूर खंडित हो गया था, जिसका बाद में पुनरुद्धार कर दिया गया।

बंटवारे के बाद सन् 1965 में भारत-पाक के बीच हुआ यह दूसरा युद्ध था। इस जंग में पाकिस्तान ने तीनों मोर्चों पर जंग लड़ी थी, जिसमें तीनों जगह उसे मुंह की खानी पड़ी थी। द्वारिका मंदिर पर हमला कमोडोर एस एम अनवर के नेतृत्व में पाकिस्तानी नेवी के एक बेड़े ने किया था। यह मामला संसद में भी गूंजा और इस वजह से रक्षा बजट 35 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 115 करोड़ कर दिया गया था।

इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने भारतीय एयरबेस पर घुसपैठ और इन्हें तबाह करने के लिए कई गोपनीय ऑपरेशन भी चलाए थे। सात सितंबर 1965 को स्पेशल सर्विसेज ग्रुप के कमांडो पैराशूट के जरिए भारतीय इलाकों में भी घुस आए थे।

पाकिस्तानी आर्मी के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल मुहम्मद मुसा के मुताबिक करीब 135 कमांडो भारत के तीन एयरबेस (हलवारा, पठानकोट और आदमपुर) पर उतारे गए।

हालांकि पाकिस्तानी सेना को इस दुस्साहस की भारी कीमत चुकानी पड़ी थी और उसके केवल 22 कमांडो ही अपने देश लौट सके थे। 93 पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बना लिया गया। इनमें एक ऑपरेशन के कमांडर मेजर खालिद बट्ट भी शामिल थे। पाकिस्तानी सेना की इस नाकामी की वजह तैयारियों में कमी को बताया जाता है।


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