कारगिल से पाकिस्तानी सेना को खदेड़ने में भी थी मोदी की गुप्त भूमिका
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा में अब सिर्फ एक हफ्ते का समय रह गया है। इसी बीच अमेरिका की सुरक्षा एजेंसियों के हाथ मोदी के बारे में कुछ सनसनीखेज दस्तावेज लगे हैं। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इंडो-यूएसए समिट की तैयारियों में लगी विविध एजेंसियों के पास ये दस्तावेज है, जिससे पता चलता है कि 1999 के भारत-पाक कारगिल युद्ध में मोदी की भी गुप्त भूमिका थी।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा में अब सिर्फ एक हफ्ते का समय रह गया है। इसी बीच अमेरिका की सुरक्षा एजेंसियों के हाथ मोदी के बारे में कुछ सनसनीखेज दस्तावेज लगे हैं। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इंडो-यूएसए समिट की तैयारियों में लगी विविध एजेंसियों के पास ये दस्तावेज है, जिससे पता चलता है कि 1999 के भारत-पाक कारगिल युद्ध में मोदी की भी गुप्त भूमिका थी।
दस्तावेजों के अनुसार मोदी 1 जुलाई 1999 को आरएसएस प्रचारक के रूप में न्यूजर्सी पहुंचे थे। इसमें भी खास बात यह है कि मोदी के इस दौरे के पांच दिन बाद ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी वाशिंगटन पहुंचे थे।
मोदी की अहम भूमिका:
आरएएस प्रचारक के रूप में मोदी को अमेरिकन सरकार पर दबाव डालने हेतु माहौल बनाने के लिए वाशिंगटन भेजा गया था। दरअसल कारगिल युद्ध के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन थे और क्लिंटन सरकार का अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान को समर्थन था। वहीं, भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चाहते थे कि अमेरिका, पाकिस्तान पर युद्ध खत्म करने के लिए दबाव बनाए। इसीलिए भारत द्वारा अमेरिका के कांग्रेसी सांसदों पर दबाव बनाने का प्रयास किया गया। यहां भी आरएसएस ने ही अहम भूमिका निभाई और इस काम के लिए नरेंद्र मोदी को अमेरिका भेजा गया। वहां उन्होंने ‘ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ द बीजेपी’ के सहयोग से कई अमेरिकन सांसदों के साथ मीटिंग की। इसी के बाद कई सांसदों ने क्लिंटन सरकार पर दबाव बनाया कि पाकिस्तान को कारगिल से पीछे हटने के आदेश दिए जाएं।
नरेंद्र मोदी वाशिंगटन पहुंचने से पहले न्यूजर्सी में दो दिन रुके थे। यहां उन्होंने भारतीय समुदाय के लोगों के साथ भी चर्चा की थी। इतना ही नहीं, न्यूजर्सी के कैपिटल हॉल में मोदी ने एक जनसभा को भी संबोधित किया था। मोदी की दलील थी कि पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष मुशर्रफ के खतरनाक इरादों को सिर्फ बातों या युद्ध से ही रोका नहीं जा सकता। इसके लिए पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाना भी बहुत जरूरी है। पाकिस्तान को सिर्फ एक ही चीज रोक सकती है और वह है, वर्ल्ड बैंक से उसे मिलने वाली आर्थिक मदद का बंद हो जाना।
आरएएस प्रचारक के रूप में मोदी को अमेरिकन सरकार पर दबाव डालने हेतु माहौल बनाने के लिए वाशिंगटन भेजा गया था। दरअसल कारगिल युद्ध के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन थे और क्लिंटन सरकार का अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान को समर्थन था। वहीं, भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चाहते थे कि अमेरिका, पाकिस्तान पर युद्ध खत्म करने के लिए दबाव बनाए। इसीलिए भारत द्वारा अमेरिका के कांग्रेसी सांसदों पर दबाव बनाने का प्रयास किया गया। यहां भी आरएसएस ने ही अहम भूमिका निभाई और इस काम के लिए नरेंद्र मोदी को अमेरिका भेजा गया। वहां उन्होंने ‘ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ द बीजेपी’ के सहयोग से कई अमेरिकन सांसदों के साथ मीटिंग की। इसी के बाद कई सांसदों ने क्लिंटन सरकार पर दबाव बनाया कि पाकिस्तान को कारगिल से पीछे हटने के आदेश दिए जाएं।
नरेंद्र मोदी वाशिंगटन पहुंचने से पहले न्यूजर्सी में दो दिन रुके थे। यहां उन्होंने भारतीय समुदाय के लोगों के साथ भी चर्चा की थी। इतना ही नहीं, न्यूजर्सी के कैपिटल हॉल में मोदी ने एक जनसभा को भी संबोधित किया था। मोदी की दलील थी कि पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष मुशर्रफ के खतरनाक इरादों को सिर्फ बातों या युद्ध से ही रोका नहीं जा सकता। इसके लिए पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाना भी बहुत जरूरी है। पाकिस्तान को सिर्फ एक ही चीज रोक सकती है और वह है, वर्ल्ड बैंक से उसे मिलने वाली आर्थिक मदद का बंद हो जाना।
इस घटना के कुछ सालों बाद ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ द बीजेपी के सदस्य शेखर तिवारी ने एक अंग्रेजी अखबार को बताया था कि हाउस कमिटी के चेयरमैन बेंजामिन गिलमैन मोदी की इस बात से सहमत भी थे।
मोदी ने अमेरिका में प्रभावशाली भारतीयों की मदद से बनाया था दबाव:
मोदी ने वाशिंगटन पहुंचने से पहले न्यूजर्सी में ही माहौल बना लिया था। उन्होंने न्यूजर्सी के कई प्रभावशाली भारतीयों की मदद से दर्जनों अमेरिकी सांसदों से फोन व फैक्स द्वारा बात की और क्लिंटन सरकार पर दबाव डालने का आग्रह किया। न्यूजर्सी से वाशिंगटन तक भारतीय एकजुट होने लगे और उन्होंने अमेरिकन सरकार से मांग की, कि पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक मदद बंद की जाए।
मोदी ने वाशिंगटन पहुंचने से पहले न्यूजर्सी में ही माहौल बना लिया था। उन्होंने न्यूजर्सी के कई प्रभावशाली भारतीयों की मदद से दर्जनों अमेरिकी सांसदों से फोन व फैक्स द्वारा बात की और क्लिंटन सरकार पर दबाव डालने का आग्रह किया। न्यूजर्सी से वाशिंगटन तक भारतीय एकजुट होने लगे और उन्होंने अमेरिकन सरकार से मांग की, कि पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक मदद बंद की जाए।
आखिरकार मोदी की मेहनत और भारतीयों की एकजुटता रंग लाई और इसी दौरान अमेरिकन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने नवाज शरीफ सरकार पर दबाव बनाया कि वे तुरंत कारगिल से अपनी सेना को वापस आने के आदेश दें।
ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ द बीजेपी के सदस्य शेखर तिवारी के बताए अनुसार इसके बाद मोदी अमेरिका से युरोप के लिए रवाना हो गए थे। हालांकि, मोदी के यूरोप दौरे के बारे में कोई नहीं जानता।
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