Tuesday, 23 September 2014

 "निकाह"शादी नहीं., ""महज एक सौदा"" होता है ...
निकाह तथा विवाह में आसमान-जमीन  का सा अंतर है.हिन्दुओं में विवाह को एक पवित्र बंधन मान कर उसे सात जन्मों तक निभाने की कसमें खायी जाती हैवहीँ, "निकाह" शादी नहीं बल्कि, ""महज एक सौदा"" होता है .
जब कोई मुस्लिम लड़का.... किसी लड़की से निकाह करता है, तो मौलवी लड़का और लड़की दोनों से पूछते है…
"क्या आपको इतनी ""मेहर"" में फलाने से निकाह मंजूर है"?"लड़का और लड़की... दोनों के द्वारा तीन बार "कबूल है" बोलने पर निकाह मंज़ूर हो जाता है....!
 इस्लाम में निकाह को समझने के लिए इस "मेहर नाम की बला" को समझना बेहद जरुरी हो जाता है..
दरअसल मेहर एक राशि या रकम होती है .जो, लड़का तलाक के बाद लड़की को चुकाता है या, देना तय करता है
दूसरे शब्दों में आप इसे लड़की की कीमत भी बोल सकते हो....!अगर लड़की अत्यधिक खूबसूरत हो या किसी बड़े घर से सम्बन्ध रखती हो तो उसके मेहर की राशि ( उसकी कीमत)  ज्यादा होगी वहीँ, सामान्य रूप-रंग एवं परिवार वाले लड़की के मेहर की राशि ..कमअर्थात, महज कुछ सौ रूपये से लेकर कुछेक हजार रुपये तक भी हो सकती है....!
कहने का मतलब कि तलाक के बाद एक बार मेहर की राशि चुका देने के बाद उस तलाकशुदा लड़की की तरफ से मुस्लिम लड़के की पूरी जिम्मेदारी ख़त्म मानी जाती है.और, उसके बाद वो तलाकशुदा लड़की अपने भूतपूर्व पति अथवा उसकी संपत्ति पर किसी तरह का कोई दावा करने की अधिकारिणी नहीं रह जाती है....!
इस तरह इस्लाम में "निकाह"".शादी के नाम पर खुलेआम "सौदेबाजी" है.और, सबसे मजे की बात यह है कि शरियत के हिसाब से"निकाह"" नामक ये सौदा रद्द करने की हर मुसलमान को खुली छुट है अर्थात उसके सिर्फ तीन बार तलाक-तलाक-तलाक बोलते ही सौदा खत्म |साथ ही किसी भी मौलवी और गवाहों के सामने तय मेहर की राशि का भुगतान किया. और, मामला हमेशा के लिए साफ...!

इस्लाम में.हिन्दू समाज की तरह तलाकशुदा लड़की गुजारे भत्ते की हकदार नही होती है क्योंकि, हमारे हिन्दू में ""मुस्लिम पर्सनल लॉ"" लागू है जिसके तहत निकाह के मामले में भारतीय कानून की जगह.मुस्लिमों का शरियत कानून ही मान्य होता है  और, शरीयत के हिसाब से .मुस्लिम महिला किसी भी तरह के गुजारे भत्ते की हकदार नही होती .बल्कि.वो सिर्फ सिर्फ पहले से तय मेहर  की ही हकदार होती है ( शाहबानो प्रकरण आप सब को याद ही होगा )

सिर्फ मजाक में भी कहे गए "तीन बार तलाक" . भी "निकाह खारिज" करने के लिए मान्य माने जाते है ( कई फतवों के अनुसार अब तो मोबाइल SMS भी मान्य हैं )इस तरह मुस्लिम कानून अथवा शरियत के अनुसार मुस्लिम लड़का .. जितनी चाहे निकाह कर सकता है .सिर्फ उसके पास मेहर की रकम चुकाने का पैसा मौजूद होना चाहिए.!
अर्थात मुस्लिम समाज में घर की स्थिति हरम जैसी होती है.... जहाँ मुस्लिम जितनी चाहे उतनी लड़कियां खरीदकर ला सकते हैऔर, उन्हें पत्नी बना कर घर में रख सकता है क्योकि, इस्लाम हर मुसलमान को कई पत्नियां रखने की अधिकार देता है तथा, अरब देशों में कई घरों में आज भी कई-कई औरतें मिल जायेगी..इसीलिए इन सबसे तंग आकर भारतीय अदालत भी ये मान चुकी है कि हिन्दुओ की शादी एक “संस्कार” है जबकि,मुसलमानों की “निकाह एक सौदा” है.

विवाह.. हिन्दुओं के भारतीय संस्कृति में हमारे "16 संस्कारों मे से एक संस्कार" है.......... और, हम हिन्दुओं के ये "संस्कार सात पीढ़ियों" तक निभाये जाते है.... इसीलिए , हमारे विवाह जन्म जन्मान्तर का रिश्ता होते है ..!
हम हिन्दुओं में तो..... विवाह को इतना अटूट बंधन माना जाता है कि...... भाषा के तौर पर ""हिंदी और संस्कृत"" के इतने समृद्ध होने के बावजूद भी..... "तलाक और डिवोर्स के लिए कोई हिंदी या संस्कृत शब्द मौजूद नहीं है""
यही कारण है कि....... हमारे हिन्दू सनातन धर्म में........ तथाकथित.... तलाक अथवा डिवोर्स के लिए..... कोई ""विधि या कर्मकांड तक भी निर्धारित नहीं"" किए गए हैं....!
यहाँ तक कि..... ""हिन्दू विवाह अधिनियम"" (सरकारी कानून )... के अंतर्गत भी..... कोई हिन्दू लड़का अपनी पत्नी को ..... बिना उसकी सहमति के "किसी भी हालत में नहीं" छोड़ सकता है..... और, दुर्लभतम रूप से शादी टूटने के बाद भी.... वो हिन्दू लड़की जीवनपर्यन्त ........ अपने पूर्व पति के आधे तनख्वाह .... एवं, आधी संपत्ति की अधिकारिणी होती है...!!
इसीलिए ... कोई भी कूल डूड एवं सब धर्म समभाव के कुत्सित मानसिकता से ग्रसित...... हिन्दू लडकियों को किसी मुस्लिम लड़के से......... प्यार की पींगे बढ़ाने.... अथवा, उसके साथ शादी करने के सपने संजोने से पहले..... हजार बार जरूर सोच लेना चाहिए .... क्योंकि....
ये कभी ना भूलें कि.....
""मुस्लिम पर्सनल लॉ"" लागू होने के कारण ....... भारतीय अदालत तक में .... मुस्लिमो के केस में ....... मुस्लिमो का "शरियत कानून" ही मान्य है।
जय महाकाल...!!!
नोट : "सामान आचार संहिता" में ... मुस्लिमों के इसी "पर्सनल लॉ" को ख़त्म कर .... मुस्लिम महिलाओं को भी इज्जत की जिंदगी देने के बात हो रही है.... परन्तु, आश्चर्यजनक तौर पर ... खुद मुस्लिम ही इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं...!
Reference : 1. केरल हाईकोर्ट ने कहा :मुसलमानों की “निकाह एक सौदा” है.....!http://timesofindia.indiatimes.com/india/Muslim-marriage-is-a-civil-contract-rules-high-court/articleshow/20500887.cms
2 . शाहबानो केस डिटेल के लिए देखें :
http://www.angelfire.com/folk/indianlaws/shahbanoo.html

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