एग्जिट पोल के बाद: मास्को-इस्लामाबाद-मिश्र की राह पर दिल्ली
याद कीजिए, मास्को में पुतिन की, इस्लामाबाद में नवाज शरीफ की जीत और मिश्र में पहले होस्नी मुबारक और बाद में उन्हें सत्ता से बेदखल करने के बाद मोहम्मद मोरसी की जीत को यूरोप-अमेरिका पचा नहीं पाया था। इन तीनों की जीत को फर्जी जीत करार देकर उनके देश में आंदोलन खड़ा करवा दिया था। इस आंदोलन के कारण मिश्र में चुनी हुई मोहम्मद मोरसी की सरकार को 3 जुलाई 2013 को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था, पेशावर पर आतंकी हमला नहीं होता तो नवाज शरीफ को भी इमरान खान-कादरी सत्ता से बेदखल करने के करीब पहुंच गए थे और पुतिन इतने मजबूत हैं कि अमेरिका को औकात बताते रहते हैं, इसलिए उन्होंने अपने देश में पूरे आंदोलन को ही कुचल दिया। इसके बाद चेचन्या में आतंकवाद को बढ़ावा देने और उसे कुचलने वाली पुतिन सरकार को मानवता विरोधी बताकर रूस पर अमेरिका-यूरोप आर्थिक प्रतिबंध लगाने का खेल खेलने में जुटे हुए हैं। आंदोलनकारी केजरीवाल का अमेरिका-यूरोप से रिश्ता बार-बार साबित होता रहा है, इसलिए यहां इस पर लिखने की जरूरत नहीं है।
एक बात और जान लीजिए कि जिस तरह से भारत में गुणवत्ता प्रमाणित करने के लिए कोई एजेंसी या कंपनी आईएसआई मार्का हासिल करती है, उसी तरह सभी सर्वे एजेंसी को गुणवत्ता सर्टिफिकेट यूरोप से लेना पड़ता है, खुद को अंतरराष्ट्रीय सर्वे एजेंसी दर्शाने के लिए।
दिल्ली के चुनाव में चर्च का मामूली शीशा फूटने, चर्च में मोमबत्ती बुझाए जाने- जैसे मामूली बातों को जिस तरह से चर्च ने इसायत पर हमले के रूप में प्रचारित किया, जिस तरह से 200 ईसाईयों ने गृहमंत्री का घेराव किया और जिस तरह से केजरीवाल की पार्टी के पक्ष में मस्जिद-चर्च से फतवा जारी किया गया, वह दर्शाता है कि केजरीवाल के साथ ईसायत-इस्लाम की अंतरराष्ट्रीय ताकत काम कर रही है। संभव है यूरोपीय प्रमाण पत्र देने वाली एजेंसी ने भारतीय सर्वे एजेंसियों को मैन्युपुलेट किया हो ताकि जब 10 को भाजपा के पक्ष में परिणाम आए तो इसे फर्जी जीत बताकर दिल्ली को मास्को-इस्लामाबाद-मिश्र की तरह अस्थिर, अराजक और आंदोलन की राह पर ढकेल सके।
दिल्ली 2011 से ही एनजीओवादियों के आंदोलन का केंद्र बन चुकी है, इसलिए यहां से ही इस खेल को शुरू करने का जमीन तैयार दिखता है। और यहां की सफलता के बाद मोदी सरकार को पूरे देश में अस्थिर करने का खेल खेलना ज्यादा आसान हो जाएगा।
केजरीवाल के पक्ष में परिणाम आया तो ठीक, अन्यथा आप पाएंगे कि मीडिया-एनजीओ-क्रिश्चिन-इस्लाम बिरादरी भी दिल्ली में केजरीवाल एंड पार्टी को सड़क पर उतार कर 'तहरीर चौक' की घटना को दोहराने जा रही हैं....=================================
ओवासी ने अभी एक बड़ी सही बात कही थी => कि जब मुस्लिम वर्ग सरकार में बड़ी संख्या में नही है फिर गौ-वंश , कत्ले खाने के लिये ''विदेशी - मशीनो'' को आयात पर छूट क्यों दी गयी !
वर्तमान समय में विश्व की सारी लोकतांत्रिक सरकारो का रोल बस एक कठपुतली की तरह होता है ! किसी भी सरकार ने अगर मनमानी की या इनके प्लान में रुकावट डाली फिर ''फुकुशिमा न्यूक्लियर डिज़ास्टर'' / ''केदारनाथ'' / ''कासमीर'' जैसा नजारा ?
विश्व के जायदतर देशो ( भारत - रूस - ईरान - चीन- जापान - जर्मनी - कोरिया - पाकिस्तान) की जनता को इनसे लड़े बिना हल नही मिलेगा ! इनको ''छेड़ने'' का मतलब है कही जापान की "परमाणु दुर्घटना" कही ''केदारनाथ / कासमीर'' , कही"प्रथ्वी के अंदर भारी हलचल " , कही MH-370 , कही ISISI के नाम पर सामाजिक उपद्रव आदि आदि ?भारत की राजनीति भी यही से प्रभावित होती है इसलिये अब जानना बेहद जरूरी हो गया है !
''सेक्टर 51'' से लेकर 'डेनवर इंटरनैशनल एयर पोर्ट ' की जानकरी किसी भी सामान्य नागरिक को डरा देनी वाली है ! इस देश की जनता का दुर्भाग्य है की बहुत सारी गुप्त जानकरी अभी तक सभी को पता ही नही है ,क्योंकि हम लोग बस ''मीडिया'' की अर्थहीन खबरो पर भी बहस करते हैं जबकि यह भी इनके मास्टर प्लान का हिस्सा है !
'प्रॉजेक्ट ब्लू बीम'' इनकी सबसे प्रभावशाली योजना है जहा एक ''कल्पनिक डिजिटल दुनिया'' की तैयारी की जा रही है ! इनका काम विश्व की सारी लोकतांत्रिक सरकारो को अपने नियन्त्र्ण में रखना , विश्व की सारी जनता को ''एक ही धर्म'' , ''एक ही कानून'' को मानने की इज़ाज़त , जरुर्ट पड़ने पर विचित्र प्राक्रतिक कहर , खुश होने पर ईश्वर के ''साक्षात दर्शन'' !
New World Order के नाम पर युरोप के कुछ देश भ्रम-वश इसको ''आजादी'' ( REVOLUTION) समझ रहे हैं जबकि असली कहानी कुछ अलग है ! इल्लुमिनाती के ''पीछे'' भी कोई और बैठा हुआ है जिनकी लड़ाई मानव से नही ''रचियता'' से है !
''इल्लुमिनाती'' इनके लिये , कई चेहरो में से मात्र एक चेहरा है !
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