Thursday 19 February 2015


मुस्लिम उलेमा बोले, भगवान शंकर हमारे पहले पैगंबर !!
जमीयत उलमा, बलरामपुर के सरपरस्त मुफ्ती मोहम्मद इलियास ने कहा
शंकर और पार्वती हमारे मां-बाप हैं। भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने का हम विरोध नहीं करते हैं। जैसे चाइनीज व जापानी हैं। वैसे ही हम हिंदुस्तानी हैं। हम भी सनातनधर्मीं हैं।’
जमीयत उलमा के मौलानाओं ने देश व समाज की बुराइयों व सामाजिक सौहार्द और एकता के लिए बलरामपुर में 27 फरवरी को आयोजित राष्ट्रीय कौमी एकता कॉन्फ्रेंस के लिए संतों को आमंत्रित किया।
क्या शिव-पार्वती हैं 'आदम और ईव'?
हमने यह तो ढूंढ लिया की नूह ही मनु है और ह. इब्राहिम अलै. ही अभिराम है, लेकिन प्राप्त शोध कहते हैं कि शिव ही 'आदम' है। क्यों और कैसे?
भगवान शिव को आदिदेव कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि सबसे पहले धरती पर शिव ही प्रकट हुए। शिव के दो पुत्र थे, गणेश और कार्तिकेय। जैसा कि कहा गया है कि आदम के दो पुत्र कैन और हाबिल थे। कैन बुरा और हाबिल अच्छा। कहीं हमने पढ़ा था आदमसेन और हव्यवती के बारे में। पार्वती ही क्या ईव है। भविष्य पुराण में इसका उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण में माता पार्वती को 'हव्यवती' भी कहा गया है।
कुछ विद्वानों का मानना है कि मनु और शतरूपा ही आदम और हव्वा थे, लेकिन कुछ विद्वान कहते हैं कि वे पहले नहीं दूसरे थे यानी जल-प्रलय के मनु (नूह) बच गए थे तो वे दूसरे थे। दूसरी बार मानव-जीवन रचना हुई।
कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि ईडन गार्डन श्रीलंका में था। श्रीलंका आज जैसा द्वीप नजर आता है यह पहले ऐसा नहीं था। यह इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा और भारत से जुड़ा हुआ था।
श्रीलंका में रहते थे बाबा आदम और उनकी पत्नी हव्वा। क्या यह सच है? हमने पढ़ा है कि शिव और पार्वती भी कैलाश पर्वत से श्रीलंका रहने चले गए थे जबकि कुबेर ने उन्हें सोने की लंका बनवाकर दी थी।
हजरत आदम जब आसमान की जन्नत (ईडन उद्यान) से निकाले गए तो सबसे पहले 'हिंदुस्तान की जमीं' पर ही उतारे गए, जहां उन्होंने सबसे पहले कदम रखे उसे आदम चोटी कहते हैं। ह.आदम अलै. का 'तनूर' हिंद में था।
क्या आपको पता है कि 'कश्मीर' ही उस दौर का स्वर्ग (जन्नत) था, जहां का राजा इंद्र था। वहां आज भी सेबफल की खेती होती है। एक दूसरा भी स्वर्ग था जिसका स्थान सप्तऋषि तारामंडल और ध्रुव तारे के बीच माना गया है।
शिव की कथा और आदम की कथा में बहुत समानता है।
अगले पन्ने पर 'आदम चोटी' जिसे रावण ने उठाने का साहस किया था लेकिन...
श्रीलंका में एक आदम चोटी है। इस चोटी पर भगवान शंकर के पांवों के निशान हैं। इसका प्राचीन नाम सारान्दीप पर्वत है जिसे 'एडम पीक' भी कहते हैं। यह श्रीलंका के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यह पर्वत 2,243 मीटर ऊंचा और रत्नपुरा से 18 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित है।
इस पर्वत का शंक्वाकार शिखर 22/7 मीटर आयताकार आधार में समाप्त होता है, जिस पर मानव पांव के निशान से मिलता-जुलता एक विशाल गड्ढा है।
प्राचीन हिंदू मान्यता अनुसार यह गड्ढा भगवान शिव का पदचिह्न है जबकि मुसलमान और ईसाई इसे आदम के पैर के निशान मानते हैं। दूसरी ओर बौद्ध इसे बुद्ध के पैर का निशान कहते हैं।
रामायण में एक प्रसंग आता है कि एक बार रावण जब अपने पुष्पक विमान से यात्रा कर रहा था तो रास्ते में एक वनक्षेत्र से गुजर रहा था। उस क्षेत्र के पहाड़ पर शिवजी ध्यानमग्न बैठे थे। शिव के गण नंदी ने रावण को रोकते हुए कहा कि इधर से गुजरना सभी के लिए निषिद्ध कर दिया गया है, क्योंकि भगवान तप में मगन हैं।
रावण को यह सुनकर क्रोध उत्पन्न हुआ। उसने अपना विमान नीचे उतारकर नंदी के समक्ष खड़े होकर नंदी का अपमान किया और फिर जिस पर्वत पर शिव विराजमान थे उसे उठाने लगा। यह देख शिव ने अपने अंगूठे से पर्वत को दबा दिया जिस कारण रावण का हाथ भी दब गया और फिर वह शिव से प्रार्थना करने लगा कि मुझे मुक्त कर दें। इस घटना के बाद वह शिव का भक्त बन गया।
क्या यह वही पहाड़ है और क्या शिव के पैरों के दबाव के कारण यह विशालकाय गड्ढा बन गया? हालांकि कुछ लोग इसे रावण के पैरों के निशान मानते हैं।
श्रीलंका में आदम पुल भी है। रामसेतु को भी एडम्स ब्रिज कहा जाता है। मान्यता है कि बाबा आदम इसी पुल से होकर भारत, ‍अफ्रीका और फिर अरब चले गए थे।
अनिल
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मोहम्मद इलयासी ने क्यों कहा शिव जी उनके पहले पैगम्बर हैं....?
 रामायण में सभी राक्षसों का वध हुआ था लेकिन सूर्पनखा का वध नहीं हुआ
था उसका नाक और कान काट कर छोड़ दिया गया था , वह कपडे से अपने चेहरे को छुपा 
कर रहती थी, रावन के मर जाने के बाद वह अपने पति के साथ शुक्राचार्य के पास गयी
और जंगल में उनके आश्रम में रहने लगी....
राक्षसों का वंस ख़त्म न हो इसलिए शुक्राचार्य ने शिव जी की आराधना की, शिव जी ने
अपना स्वरुप शुक्राचार्य को दे कर कहा की जिस दिन कोई वैष्णव इस पर गंगा जल
चढ़ा देगा उस दिन राक्षसों का नाश हो जायेगा....
उस आत्म लिंग को शुक्राचार्य ने वैष्णव मतलब हिन्दुओं से दूर रेगिस्तान में स्थापित
किया जो आज अरब में है, सूर्पनखा जो उस समय चेहरा ढक कर रहती थी वो परंपरा
को उसके बच्चो ने पूरा निभाया आज भी मुस्लिम औरतें चेहरा ढकी रहती हैं, सूर्पनखा
वंसज आज मुसलमान कहलाते हैं, क्योंकि शुक्राचार्य ने इनको जीवन दान दिया इस
लिए ये शुक्रवार को विशेष महत्त्व देते हैं...
पूरी जानकारी तथ्यों पर आधारित सच हैं आप जानते है मक्का मे शिव लिंग है...
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