25 मई सन् 1675 ई० की बात है।
पंडित कृपा राम हज़ारों कश्मीरी पंडितों के साथ नवम् गुरु तेग़ बहादुर के साथ उपस्थित हुए, और अपनी व्यथा सुना कर रक्षा की गुहार लगाई। औरंगज़ेब ने कश्मीरी पंडितों के समक्ष, इस्लाम क़ुबूल करने, अथवा दर्दनाक मौत के लिये तैयार रहने के यह दो विकल्प रखे थे।
कश्मीरी पंडितों की बात सुन कर गुरु तेग़ बहादुर चिंतित हो गये। तभी बाल गोबिंद राय उपस्थित हुए और गुरु की चिंता का कारण पूछा। गुरु ने कहा, "बेटा, यह संगत कश्मीर से है और यह लोग हिंदू हैं जो गुरु नानक देव जी के समय से ही हमारे साथ भाइयों की तरह संबंध बनाये हुए हैं।
पंडित कृपा राम हज़ारों कश्मीरी पंडितों के साथ नवम् गुरु तेग़ बहादुर के साथ उपस्थित हुए, और अपनी व्यथा सुना कर रक्षा की गुहार लगाई। औरंगज़ेब ने कश्मीरी पंडितों के समक्ष, इस्लाम क़ुबूल करने, अथवा दर्दनाक मौत के लिये तैयार रहने के यह दो विकल्प रखे थे।
कश्मीरी पंडितों की बात सुन कर गुरु तेग़ बहादुर चिंतित हो गये। तभी बाल गोबिंद राय उपस्थित हुए और गुरु की चिंता का कारण पूछा। गुरु ने कहा, "बेटा, यह संगत कश्मीर से है और यह लोग हिंदू हैं जो गुरु नानक देव जी के समय से ही हमारे साथ भाइयों की तरह संबंध बनाये हुए हैं।
बाल गोबिंद राय ने कहा, "पिताजी आप गुरु हैं और ऐसी कोई भी समस्या नहीं हो सकती, जिसका आपके पास समाधान न हो।
गुरु महाराज बोले, " किसी विख्यात महापुरुष को अपनी शहीदी देनी होगी, तभी यह दरिंदगी खत्म हो सकती है।
बाल गोबिंद ने कहा, " इस समय आपसे अधिक विख्यात महापुरुष भला दूसरा कौन हो सकता है? आपको ही शहीदी देनी होगी"।
अपने पुत्र की बात सुन गुरु तेग़ बहादुर अति प्रसन्न हुए कि उनके पुत्र अब गुरु पदवी का उत्तराधिकारी बनने योग्य हो चुके हैं और गुरु तेग़ बहादुर का कार्य अब समाप्त होने को है।
गुरु तेग़ बहादुर ने कश्मीरी पंडितों से कहा, " जाइये और कह दीजिये उस औरंगज़ेब से कि अगर उसमें हिम्मत है तो मुझे इस्लाम क़ुबूल करवा के दिखाये। अगर मैंने इस्लाम क़ुबूल कर लिया तो सिर्फ कश्मीरी पंडित ही नहीं, बल्कि सभी हिंदू इस्लाम क़ुबूल कर लेंगे, वरना उसे यह दरिंदगी बंद करनी होगी"। गुरु की बुलंद सिंह गर्जना सुन कश्मीरी पंडित अति प्रसन्न हुए। उधर औरंगज़ेब भी खुश था कि इक इंसान को मुसलमान बना देने से वह पूरे हिंदुस्तान को दार-उल-इस्लाम बना देगा। उसने गुरु तेग़ बहादुर को फ़ौरन गिरफ्तार करने का हुक़्म दिया।
गुरु जी को दिल्ली लाया गया। साथ में गुरु के कुछ चुनिंदे भरोसेमंद शिष्य भी थे। औरंगज़ेब ने गुरु से कहा कि या तो इस्लाम क़ुबूल करें, या कोई चमत्कार दिखायें या फिर मरने को तैयार रहें। गुरु जी ने साफ़ कहा, " औरंगज़ेब! तू मेरा मालिक नहीं जो मैं तेरा हुक़्म मानूं। मालिक सिर्फ ईश्वर है और उससे ऊपर कोई नहीं।
बौखलाये औरंगज़ेब ने गुरु के हाथ-पैरों में बेड़ियां लगवा कर पिंजड़े में बंद कर दिया और 5 दिनों तक कई अमानवीय यातनायें दी गयीं। उनके हिंदू शिष्य भाई मति दास को गुरु जी की आँखों के सामने आरी से चीर दिया गया। भाई दयाल दास को देग में पानी के साथ ज़िंदा उबाल दिया गया। भाई सती दास को तवे पर ज़िंदा ही भून दिया गया। कुछ बाल शिष्यों को जिंदा ही उनके छाती से कलेजी निकाल कर गुरु जी के मुंह में ज़बरदस्ती ठूंसा गया। फिर गुरु को गर्म तवे पर बिठा कर, चिमटे से उनके शरीर का माँस उधेड़ा गया। इतनी यातनाओं के बाद भी गुरु ने इस्लाम नहीं किया। हार कर अंततः औरंगज़ेब ने हिंदुस्तान में इस्लाम फैलाने से रोकने के इलज़ाम में चाँदनी चौक में, गुरु तेग़ बहादुर का सर क़लम करवा दिया। जिस जगह गुरु तेग़ बहादुर का सर क़लम किया गया वहाँ आज गुरुद्वारा सीसगंज साहिब है।
गुरु तेग़ बहादुर की इस अमर बलिदान के कारण उन्हें •चादर-ए-हिंद• की उपाधि दी गयी।
गुरु महाराज बोले, " किसी विख्यात महापुरुष को अपनी शहीदी देनी होगी, तभी यह दरिंदगी खत्म हो सकती है।
बाल गोबिंद ने कहा, " इस समय आपसे अधिक विख्यात महापुरुष भला दूसरा कौन हो सकता है? आपको ही शहीदी देनी होगी"।
अपने पुत्र की बात सुन गुरु तेग़ बहादुर अति प्रसन्न हुए कि उनके पुत्र अब गुरु पदवी का उत्तराधिकारी बनने योग्य हो चुके हैं और गुरु तेग़ बहादुर का कार्य अब समाप्त होने को है।
गुरु तेग़ बहादुर ने कश्मीरी पंडितों से कहा, " जाइये और कह दीजिये उस औरंगज़ेब से कि अगर उसमें हिम्मत है तो मुझे इस्लाम क़ुबूल करवा के दिखाये। अगर मैंने इस्लाम क़ुबूल कर लिया तो सिर्फ कश्मीरी पंडित ही नहीं, बल्कि सभी हिंदू इस्लाम क़ुबूल कर लेंगे, वरना उसे यह दरिंदगी बंद करनी होगी"। गुरु की बुलंद सिंह गर्जना सुन कश्मीरी पंडित अति प्रसन्न हुए। उधर औरंगज़ेब भी खुश था कि इक इंसान को मुसलमान बना देने से वह पूरे हिंदुस्तान को दार-उल-इस्लाम बना देगा। उसने गुरु तेग़ बहादुर को फ़ौरन गिरफ्तार करने का हुक़्म दिया।
गुरु जी को दिल्ली लाया गया। साथ में गुरु के कुछ चुनिंदे भरोसेमंद शिष्य भी थे। औरंगज़ेब ने गुरु से कहा कि या तो इस्लाम क़ुबूल करें, या कोई चमत्कार दिखायें या फिर मरने को तैयार रहें। गुरु जी ने साफ़ कहा, " औरंगज़ेब! तू मेरा मालिक नहीं जो मैं तेरा हुक़्म मानूं। मालिक सिर्फ ईश्वर है और उससे ऊपर कोई नहीं।
बौखलाये औरंगज़ेब ने गुरु के हाथ-पैरों में बेड़ियां लगवा कर पिंजड़े में बंद कर दिया और 5 दिनों तक कई अमानवीय यातनायें दी गयीं। उनके हिंदू शिष्य भाई मति दास को गुरु जी की आँखों के सामने आरी से चीर दिया गया। भाई दयाल दास को देग में पानी के साथ ज़िंदा उबाल दिया गया। भाई सती दास को तवे पर ज़िंदा ही भून दिया गया। कुछ बाल शिष्यों को जिंदा ही उनके छाती से कलेजी निकाल कर गुरु जी के मुंह में ज़बरदस्ती ठूंसा गया। फिर गुरु को गर्म तवे पर बिठा कर, चिमटे से उनके शरीर का माँस उधेड़ा गया। इतनी यातनाओं के बाद भी गुरु ने इस्लाम नहीं किया। हार कर अंततः औरंगज़ेब ने हिंदुस्तान में इस्लाम फैलाने से रोकने के इलज़ाम में चाँदनी चौक में, गुरु तेग़ बहादुर का सर क़लम करवा दिया। जिस जगह गुरु तेग़ बहादुर का सर क़लम किया गया वहाँ आज गुरुद्वारा सीसगंज साहिब है।
गुरु तेग़ बहादुर की इस अमर बलिदान के कारण उन्हें •चादर-ए-हिंद• की उपाधि दी गयी।
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