Thursday, 5 February 2015

कश्मीरी पंडितों की बात सुन कर गुरु तेग़ बहादुर चिंतित हो गये

25 मई सन् 1675 ई० की बात है।
पंडित कृपा राम हज़ारों कश्मीरी पंडितों के साथ नवम् गुरु तेग़ बहादुर के साथ उपस्थित हुए, और अपनी व्यथा सुना कर रक्षा की गुहार लगाई। औरंगज़ेब ने कश्मीरी पंडितों के समक्ष, इस्लाम क़ुबूल करने, अथवा दर्दनाक मौत के लिये तैयार रहने के यह दो विकल्प रखे थे।
कश्मीरी पंडितों की बात सुन कर गुरु तेग़ बहादुर चिंतित हो गये। तभी बाल गोबिंद राय उपस्थित हुए और गुरु की चिंता का कारण पूछा। गुरु ने कहा, "बेटा, यह संगत कश्मीर से है और यह लोग हिंदू हैं जो गुरु नानक देव जी के समय से ही हमारे साथ भाइयों की तरह संबंध बनाये हुए हैं। 
 औरंगज़ेब ने इन पर बहुत ज़ुल्म किये हैं, और हिदायत दी है कि अगर इन्होंने इस्लाम क़ुबूल न किया तो उन सब को दर्दनाक मौत मिलेगी"।
बाल गोबिंद राय ने कहा, "पिताजी आप गुरु हैं और ऐसी कोई भी समस्या नहीं हो सकती, जिसका आपके पास समाधान न हो।
गुरु महाराज बोले, " किसी विख्यात महापुरुष को अपनी शहीदी देनी होगी, तभी यह दरिंदगी खत्म हो सकती है।
बाल गोबिंद ने कहा, " इस समय आपसे अधिक विख्यात महापुरुष भला दूसरा कौन हो सकता है? आपको ही शहीदी देनी होगी"।
अपने पुत्र की बात सुन गुरु तेग़ बहादुर अति प्रसन्न हुए कि उनके पुत्र अब गुरु पदवी का उत्तराधिकारी बनने योग्य हो चुके हैं और गुरु तेग़ बहादुर का कार्य अब समाप्त होने को है।
गुरु तेग़ बहादुर ने कश्मीरी पंडितों से कहा, " जाइये और कह दीजिये उस औरंगज़ेब से कि अगर उसमें हिम्मत है तो मुझे इस्लाम क़ुबूल करवा के दिखाये। अगर मैंने इस्लाम क़ुबूल कर लिया तो सिर्फ कश्मीरी पंडित ही नहीं, बल्कि सभी हिंदू इस्लाम क़ुबूल कर लेंगे, वरना उसे यह दरिंदगी बंद करनी होगी"। गुरु की बुलंद सिंह गर्जना सुन कश्मीरी पंडित अति प्रसन्न हुए। उधर औरंगज़ेब भी खुश था कि इक इंसान को मुसलमान बना देने से वह पूरे हिंदुस्तान को दार-उल-इस्लाम बना देगा। उसने गुरु तेग़ बहादुर को फ़ौरन गिरफ्तार करने का हुक़्म दिया।
गुरु जी को दिल्ली लाया गया। साथ में गुरु के कुछ चुनिंदे भरोसेमंद शिष्य भी थे। औरंगज़ेब ने गुरु से कहा कि या तो इस्लाम क़ुबूल करें, या कोई चमत्कार दिखायें या फिर मरने को तैयार रहें। गुरु जी ने साफ़ कहा, " औरंगज़ेब! तू मेरा मालिक नहीं जो मैं तेरा हुक़्म मानूं। मालिक सिर्फ ईश्वर है और उससे ऊपर कोई नहीं।
बौखलाये औरंगज़ेब ने गुरु के हाथ-पैरों में बेड़ियां लगवा कर पिंजड़े में बंद कर दिया और 5 दिनों तक कई अमानवीय यातनायें दी गयीं। उनके हिंदू शिष्य भाई मति दास को गुरु जी की आँखों के सामने आरी से चीर दिया गया। भाई दयाल दास को देग में पानी के साथ ज़िंदा उबाल दिया गया। भाई सती दास को तवे पर ज़िंदा ही भून दिया गया। कुछ बाल शिष्यों को जिंदा ही उनके छाती से कलेजी निकाल कर गुरु जी के मुंह में ज़बरदस्ती ठूंसा गया। फिर गुरु को गर्म तवे पर बिठा कर, चिमटे से उनके शरीर का माँस उधेड़ा गया। इतनी यातनाओं के बाद भी गुरु ने इस्लाम नहीं किया। हार कर अंततः औरंगज़ेब ने हिंदुस्तान में इस्लाम फैलाने से रोकने के इलज़ाम में चाँदनी चौक में, गुरु तेग़ बहादुर का सर क़लम करवा दिया। जिस जगह गुरु तेग़ बहादुर का सर क़लम किया गया वहाँ आज गुरुद्वारा सीसगंज साहिब है।
गुरु तेग़ बहादुर की इस अमर बलिदान के कारण उन्हें •चादर-ए-हिंद• की उपाधि दी गयी।
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श्रीमती ऐनी बेसेंट
मुसलमानो के दिल में ग़ैर मुसलमानो के बिरुध नंगी और बेशर्मी की हद तक नफरत है हमने मुसलमान नेताओ को यह कहते हुये सुना है की यदी अफगान भारत पर हमला करता है तो वे मुसलमानो की रक्षा और हिन्दुओ की हत्या करेंगे, मुसलमानो की पहली वफादारी मुस्लिम देश के प्रति है हमारी मातृभूमि भारत के प्रति नहीं, हमें यह भी ज्ञात हुआ है की उनकी इच्छा अंग्रेजो के पश्चात यहाँ अल्लाह का राज्य स्थापित करना है न की सारे संसार के स्वामी प्रेमी परमात्मा का, स्वाधीन भारत के बारे में सोचते समय हमें मुस्लिम शासन के आतंक के बारे में वीचार करना होगा.
से लिया गया :- कलकत्ता सेशन १९१७ डॉ. बी एस ए सम्पूर्ण बाद्मय खंड १५, पृष्ठ २७२-२७५
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अब मै देखता हूँ की उन्ही युक्तियों को यहाँ फिर अपनाया जा रहा है जिसके कारण देश का बिभाजन हुआ था, मुसलमानो की अलग बस्तिया बसाई जा रही हैं मुस्लिम लीग के बक्ताओं के वाणी में विष की भरपूर मात्रा है मुसलमानो को अपनी प्रविर्ती में परिवर्तन करना चाहिए मुसलमानो को अपनी मनचाही वस्तु पकिस्तान उन्हें मिल गयी है वे ही पकिस्तान के लिए उत्तरदायी हैं क्योकि मुसलमान ही देश के बिभाजन के अगुआ थे न की हिंदुस्तान के वासी, जिन लोगों को मजहब के नाम पर विशेष सुबिधा चाहिए वे पकिस्तान चले जाएँ इसलिये उसका निर्माण हुआ है, वे मुसलमान लोग पुनः फूट के बीज बोना चाहते हैं, हम नहीं चाहते की देश का फिर से बिभाजन हो.
से लिया गया :- २८/८/१९४७ को सम्बिधान सभा में दिए भाषण का सार
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