Wednesday, 18 February 2015

भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अप्रतिम क्रान्तिकारी मदनलाल ढींगरा जी




भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अप्रतिम क्रान्तिकारी मदनलाल ढींगरा जी 
स्वतंत्रत भारत के निर्माण के लिए भारत-माता के कितने शूरवीरों ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था, उन्हीं महान शूरवीरों में ‘अमर शहीद मदन लाल ढींगरा’ का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य हैं।
तेजस्वी तथा लक्ष्यप्रेरित लोग किसी के जीवन को कैसे बदल सकते हैं, मदनलाल धींगड़ा इसका उदाहरण है। बी.ए. करने के बाद मदनलाल लन्दन आये | वहाँ उन्हें क्रान्तिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा स्थापित ‘इण्डिया हाउस’ में एक कमरा मिल गया।
उन दिनों विनायक दामोदर सावरकर भी वहीं थे। 10 मई, 1908 को इण्डिया हाउस में 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम की अर्द्धशताब्दी मनायी गयी। उसमें बलिदानी वीरों को श्रद्धाजलि दी गयी तथा सभी को स्वाधीनता के बैज भेंट दिये गये। सावरकर जी के भाषण ने मदनलाल के मन में हलचल मचा दी।
अगले दिन बैज लगाकर वह जब कॉलेज गए, तो अंग्रेज छात्र मारपीट करने लगे। धींगड़ा का मन बदले की आग में जल उठा। उसने वापस आकर सावरकर जी को सब बताया। उन्होंने पूछा, क्या तुम कुछ कष्ट उठा सकते हो ? मदनलाल ने अपना हाथ मेज पर रख दिया। सावरकर के हाथ में एक सूजा था। उन्होंने वह उसके हाथ पर दे मारा। सूजा एक क्षण में पार हो गया; पर मदनलाल ने उफ तक नहीं की। सावरकर ने उसे गले लगा लिया। फिर तो दोनों में ऐसा प्रेम हुआ कि राग-रंग में डूबे रहने वाले मदनलाल का जीवन बदल गया। इस दौरान सावरकर और ढींगरा के अतिरिक्त ब्रिटेन में पढ़ने वाले अन्य बहुत से भारतीय छात्र भारत में खुदीराम बोस, कनानी दत्त, सतिंदर पाल और कांशीराम जैसे देशभक्तों को फांसी दिए जाने की घटनाओं से तिलमिला उठे और उन्होंने बदला लेने की ठानी।
सावरकर जी की योजना से मदनलाल ‘इण्डिया हाउस’ छोड़कर एक अंग्रेज परिवार में रहने लगे। उन्होंने अंग्रेजों से मित्रता बढ़ायी; पर गुप्त रूप से वह शस्त्र संग्रह, उनका अभ्यास तथा शस्त्रों को भारत भेजने के काम में सावरकर जी के साथ लगे रहे। ब्रिटेन में भारत सचिव का सहायक कर्जन वायली था। वह विदेशों में चल रही भारतीय स्वतन्त्रता की गतिविधियों को कुचलने में स्वयं को गौरवान्वित समझता था। मदनलाल को उसे मारने का काम सौंपा गया।
मदनलाल ने एक कोल्ट रिवाल्वर तथा एक फ्रेंच पिस्तौल खरीद ली। वह अंग्रेज समर्थक संस्था ‘इण्डियन नेशनल एसोसिएशन’ का सदस्य बन गए। एक जुलाई, 1909 को इस संस्था के वार्षिकोत्सव में कर्जन वायली मुख्य अतिथि था। कार्यक्रम समाप्त होते ही मदनलाल जी ने मंच के पास जाकर कर्जन वायली के सीने और चेहरे पर गोलियाँ दाग दीं।

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