IRNSS-1D सैटलाइट लॉन्च होगा, देश में बनेंगे 15 ग्राउंड स्टेशन
इंडिया को जल्द अपना जीपीएस मिलने जा रहा है। अभी वह इसके लिए अमेरिका और रूस पर निर्भर है। इंडिया को यह कामयाबी रीजनल नेविगेशन सिस्टम से जुड़ा चौथा सैटलाइट आईआरएनएसएस-1डी छोड़ने पर मिल जाएगी। इसरो इसे इस साल मार्च के दूसरे पखवाड़े में छोड़ने जा रहा है। इस कड़ी में वह अभी तक तीन सैटलाइट लॉन्च कर चुका है और ये सभी अच्छी तरह से काम कर रहे हैं। इस सीरीज में कुल सात सैटलाइट छोड़े जाने हैं, मगर आईआरएनएसएस-1डी को छोड़ने के साथ ही भारत अपना जीपीएस सिस्टम बनाने में कामयाब हो जाएगा। बाकी तीन सैटलाइट इस सिस्टम को आने वाले दिनों में और मजबूत बनाएंगे। ये सैटलाइट्स भारत की सीमा से 1500 किलोमीटर दूर तक नजर रख सकेंगे। इससे किसी भी वस्तु या गतिविधि पर करीब से नजर रखने में मदद मिल सकेगी। इस पूरे मिशन पर करीब 1,420 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
भारत एक अरसे से महसूस कर रहा था कि उसका अपना एक जीपीएस सिस्टम होना चाहिए। उसको आशंका रहती थी कि जिन देशों के सिस्टम से वह अभी काम चला रहा है, अगर उन्होंने हाथ खींच लिए तो खासी दिक्कतें खड़ी हो जाएंगी। इसी कारण वह पिछले कई साल से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था। पिछले साल तक इस मकसद को हासिल करने के लिए तीन सैटलाइट छोड़े जा चुके थे। अब चौथे की बारी है। इसे इसरो के श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल की मदद से छोड़ा जाएगा। बाकी तीन सैटलाइट्स को 2016 के अंत तक छोड़ दिए जाने की योजना है।
इंडिया को जल्द अपना जीपीएस मिलने जा रहा है। अभी वह इसके लिए अमेरिका और रूस पर निर्भर है। इंडिया को यह कामयाबी रीजनल नेविगेशन सिस्टम से जुड़ा चौथा सैटलाइट आईआरएनएसएस-1डी छोड़ने पर मिल जाएगी। इसरो इसे इस साल मार्च के दूसरे पखवाड़े में छोड़ने जा रहा है। इस कड़ी में वह अभी तक तीन सैटलाइट लॉन्च कर चुका है और ये सभी अच्छी तरह से काम कर रहे हैं। इस सीरीज में कुल सात सैटलाइट छोड़े जाने हैं, मगर आईआरएनएसएस-1डी को छोड़ने के साथ ही भारत अपना जीपीएस सिस्टम बनाने में कामयाब हो जाएगा। बाकी तीन सैटलाइट इस सिस्टम को आने वाले दिनों में और मजबूत बनाएंगे। ये सैटलाइट्स भारत की सीमा से 1500 किलोमीटर दूर तक नजर रख सकेंगे। इससे किसी भी वस्तु या गतिविधि पर करीब से नजर रखने में मदद मिल सकेगी। इस पूरे मिशन पर करीब 1,420 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
भारत एक अरसे से महसूस कर रहा था कि उसका अपना एक जीपीएस सिस्टम होना चाहिए। उसको आशंका रहती थी कि जिन देशों के सिस्टम से वह अभी काम चला रहा है, अगर उन्होंने हाथ खींच लिए तो खासी दिक्कतें खड़ी हो जाएंगी। इसी कारण वह पिछले कई साल से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था। पिछले साल तक इस मकसद को हासिल करने के लिए तीन सैटलाइट छोड़े जा चुके थे। अब चौथे की बारी है। इसे इसरो के श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल की मदद से छोड़ा जाएगा। बाकी तीन सैटलाइट्स को 2016 के अंत तक छोड़ दिए जाने की योजना है।
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