जहाँ आसक्ति वहाँ जन्म
एक ब्राह्मण रोज भगवान से प्रार्थना करता था। एक दिन जब वह प्रार्थना कर रहा था, उसे देखकर उसकी पत्नी जोर-से हँस पड़ी। ब्राह्मण समझ गया कि यह मेरा मजाक उड़ा रही है। उसने पूछाः "तू हँसी क्यों?"
"आप रोज पूजा-पाठ करते हो फिर माँगते हो कि यह दे दो, वह दे दो। मिलने के बाद भी आप तो वहीं के वहीं रह जाते हो।"
"कैसे?"
"वह मैं नहीं बता सकती पनघट से पानी भरकर एक स्त्री आ रही है, उससे जाकर पूछो।"
ब्राह्मण उस स्त्री से पूछने गया। उसने ब्राह्मण को देखते ही कहाः "आपकी पत्नी क्यों हँसी यह पूछने आये हो न? अभी मुझे प्रसूति की पीड़ा हो रही है। अब मैं घर जाऊँगी और बच्चे को जन्म देते-देते मर जाऊँगी। फिर पास के जंगल में हिरनी बनूँगी। मेरे गले में एक स्तन होगा, यह मेरी पहचान होगी। तीन साल तक मैं हिरनी के शरीर में रहूँगी। फिर इसी गाँव में फलाने ब्राह्मण के यहाँ मैं कन्या के रूप में जन्म लूँगी। तब आप मेरे पास आओगे तो यह रहस्य प्रकट हो जायेगा। आप यह रहस्य अभी नहीं समझ सकते। अच्छा, मुझे प्रसूति होने वाली है। मैं जाती हूँ।
जाँच करने पर ब्राह्मण को पता चला कि बेटे को जन्म देकर वह स्त्री मर गयी। उसको उस स्त्री की बात सच्ची लगी। कुछ समय बाद उसने पास के जंगल में ढूँढा तो उसे गले स्तनवाली हिरनी भी मिली। फिर उसने राह देखी। तीन साल के बाद उसी ब्राह्मण के यहाँ एक कन्या ने जन्म लिया, जिस ब्राह्मण का नाम उस स्त्री ने बताया था। जब कन्या बोलने लगी तो पहले वाले ब्राह्मण ने जाकर उससे पूछाः "पहचानती हो?"
कन्याः "अच्छे से पहचानती हूँ। किंतु आप उचित समय का इंतजार करें।"
समय बीतता गया। कन्या 14-15 साल की हो गयी। उसकी शादी हुई। दूसरे दिन ब्राह्मण उसकी ससुराल में पहुँचा और उपाय ढूँढने लगा कि 'बहू से कैसे मिलें?' आखिर उसने सोचा कि 'वह पनघट पर तो आयेगी ही।' 15-20 दिन तक राह देखी। एक दिन मौका देखकर उसने बहू से पूछाः "पहचानती हो?"
उसने कहाः "हाँ, आप वही ब्राह्मण हैं जो पूजा करते समय भगवान से माँगते थे कि 'मुझे धंधे में बरकत मिले, मेरे दुश्मन की बुद्धि का नाश हो, पत्नी ठीक चले, पुत्र मेरे पास हो...' आप ये सब नश्वर चीजें माँगते थे, इसीलिए आपकी पत्नी हँस पड़ी थी और उसने कहा थी कि 'हँसी का कारण पनिहारी बताएगी।' पनिहारी ने बच्चे को जन्म दिया और वह मर गयी। फिर वह हिरनी हुई। फिर वह ब्राह्मण-कन्या हुई और अब दुल्हन होकर जीवन-यापन कर रही है। आप पहचनाते हो उसको?"
"हाँ, वह तुम्ही हो।"
"अब जाँच करो कि जिसके साथ मेरे शादी हुई है वह ब्राह्मण कौन है?"
"अरे, पिछले से पिछले जन्म में तुम्हारे गर्भ से जन्मा बालक ही अभी तुम्हारे पति के रूप में है !"
"ठीक जान गये ब्राह्मण देवता ! ऐसे ही किसी जन्म में आप मेरे भाई थे और किसी जन्म में आपकी पत्नी मेरी बहन थी। जीव की जहाँ-जहाँ आसक्ति होती है, ममता होती है मरने के बाद वह उसी के अनुरूप शरीर धारण करके कर्म का बोझ वहन करता रहता है। इसलिए जाइये, किसी सदगुरु को खोजिये और उनकी सीख मानकर कर्म के बंधन से छूटने का यत्न कीजिए। कर्मों की गति बड़ी गहन है- गहनो कर्मणा गतिः।"
एक ब्राह्मण रोज भगवान से प्रार्थना करता था। एक दिन जब वह प्रार्थना कर रहा था, उसे देखकर उसकी पत्नी जोर-से हँस पड़ी। ब्राह्मण समझ गया कि यह मेरा मजाक उड़ा रही है। उसने पूछाः "तू हँसी क्यों?"
"आप रोज पूजा-पाठ करते हो फिर माँगते हो कि यह दे दो, वह दे दो। मिलने के बाद भी आप तो वहीं के वहीं रह जाते हो।"
"कैसे?"
"वह मैं नहीं बता सकती पनघट से पानी भरकर एक स्त्री आ रही है, उससे जाकर पूछो।"
ब्राह्मण उस स्त्री से पूछने गया। उसने ब्राह्मण को देखते ही कहाः "आपकी पत्नी क्यों हँसी यह पूछने आये हो न? अभी मुझे प्रसूति की पीड़ा हो रही है। अब मैं घर जाऊँगी और बच्चे को जन्म देते-देते मर जाऊँगी। फिर पास के जंगल में हिरनी बनूँगी। मेरे गले में एक स्तन होगा, यह मेरी पहचान होगी। तीन साल तक मैं हिरनी के शरीर में रहूँगी। फिर इसी गाँव में फलाने ब्राह्मण के यहाँ मैं कन्या के रूप में जन्म लूँगी। तब आप मेरे पास आओगे तो यह रहस्य प्रकट हो जायेगा। आप यह रहस्य अभी नहीं समझ सकते। अच्छा, मुझे प्रसूति होने वाली है। मैं जाती हूँ।
जाँच करने पर ब्राह्मण को पता चला कि बेटे को जन्म देकर वह स्त्री मर गयी। उसको उस स्त्री की बात सच्ची लगी। कुछ समय बाद उसने पास के जंगल में ढूँढा तो उसे गले स्तनवाली हिरनी भी मिली। फिर उसने राह देखी। तीन साल के बाद उसी ब्राह्मण के यहाँ एक कन्या ने जन्म लिया, जिस ब्राह्मण का नाम उस स्त्री ने बताया था। जब कन्या बोलने लगी तो पहले वाले ब्राह्मण ने जाकर उससे पूछाः "पहचानती हो?"
कन्याः "अच्छे से पहचानती हूँ। किंतु आप उचित समय का इंतजार करें।"
समय बीतता गया। कन्या 14-15 साल की हो गयी। उसकी शादी हुई। दूसरे दिन ब्राह्मण उसकी ससुराल में पहुँचा और उपाय ढूँढने लगा कि 'बहू से कैसे मिलें?' आखिर उसने सोचा कि 'वह पनघट पर तो आयेगी ही।' 15-20 दिन तक राह देखी। एक दिन मौका देखकर उसने बहू से पूछाः "पहचानती हो?"
उसने कहाः "हाँ, आप वही ब्राह्मण हैं जो पूजा करते समय भगवान से माँगते थे कि 'मुझे धंधे में बरकत मिले, मेरे दुश्मन की बुद्धि का नाश हो, पत्नी ठीक चले, पुत्र मेरे पास हो...' आप ये सब नश्वर चीजें माँगते थे, इसीलिए आपकी पत्नी हँस पड़ी थी और उसने कहा थी कि 'हँसी का कारण पनिहारी बताएगी।' पनिहारी ने बच्चे को जन्म दिया और वह मर गयी। फिर वह हिरनी हुई। फिर वह ब्राह्मण-कन्या हुई और अब दुल्हन होकर जीवन-यापन कर रही है। आप पहचनाते हो उसको?"
"हाँ, वह तुम्ही हो।"
"अब जाँच करो कि जिसके साथ मेरे शादी हुई है वह ब्राह्मण कौन है?"
"अरे, पिछले से पिछले जन्म में तुम्हारे गर्भ से जन्मा बालक ही अभी तुम्हारे पति के रूप में है !"
"ठीक जान गये ब्राह्मण देवता ! ऐसे ही किसी जन्म में आप मेरे भाई थे और किसी जन्म में आपकी पत्नी मेरी बहन थी। जीव की जहाँ-जहाँ आसक्ति होती है, ममता होती है मरने के बाद वह उसी के अनुरूप शरीर धारण करके कर्म का बोझ वहन करता रहता है। इसलिए जाइये, किसी सदगुरु को खोजिये और उनकी सीख मानकर कर्म के बंधन से छूटने का यत्न कीजिए। कर्मों की गति बड़ी गहन है- गहनो कर्मणा गतिः।"
No comments:
Post a Comment