Thursday, 11 June 2015

खुद चिपक जाती है यहाँ रेल पटरियां, 
वैज्ञानिकों के लिए आज भी है यह अनसुलझी पहेली
झारखंड के हजारीबाग से बरकाकाना रेल रूट के पास बसा
एक गांव है लोहरियाटांड. यहाँ से गुजरने वाली रेल लाइन
पर एक प्राकृतिक चमत्कार होता है. इस गांव में रेल पटरियों
की विचित्र गतिविधियों ने गाँव के लोगों के साथ रेल अधिकारियों
और विज्ञान के लोगों को भी हैरत में डाल दिया है. यहाँ
रोज सुबह 8 बजे से रेल पटरियां अपने आप मुड़ती हुई
आपस में मिलने लगती हैं. दोपहर के मध्य तक यह
पटरियां चिपक जाती हैं. स्वत: दोपहर 3 बजे बाद यह
पटरियां अलग होने लगती हैं. वैज्ञानिक इस
अजीबोगरीब घटना के रहस्य से पर्दा
हटाने में लगे हैं और दूसरी ओर ग्रामीण
इसे ईश्वर शक्ति मान रहे हैं और पूज-पाठ कर रहे हैं.
:
 ऐसे लटककर चलती है इस शहर में ट्रेन

रेल कर्मचारियों के साथ-साथ गांव के लोगों का कहना है कि इन रेल
पटरियों के आपस में चिपकने या एक-दूसरे की ओर
खिंचने की प्रक्रिया को रोकने के लिए कई प्रयास किए
गए, परन्तु सभी कोशिश नाकाम हुए. इन पटरियों को
आपस में चिपकने से रोकने के लिए मोटी-
मोटी लकड़ी का सहारा लिया गया, इतना
ही नहीं सामान्य से अधिक लोहे
की क्लिप भी पटरियों को चिपकने से
नहीं रोक सकी. ऐसा 15-20
फीट की लंबाई में ही हो रहा
है.
हजारीबाग से बरकाकाना रेल रूट का उदघाटन तो हो चुका
है परन्तु इस विचित्र व्यवधान के कारण इस रूट पर ट्रेनों
की आवाजाही बंद कर दी गई
है. ग्रामीणों और रेल पटरियों की देखरेख
करने वाले इंजीनियरिंग विभाग के कर्मचारियों ने बताया कि
उन्होंने यहां रेल पटरियों की यह स्वचालित प्राकृतिक
गतिविधि कई बार होते देखी है. उन्होंने इस बारे में बहुत
छानबीन करने की कोशिश की
है, लेकिन अब तक इसका कोई उचित कारण अथवा औचित्य
नहीं निकल पाया है.
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इस बारे में वैज्ञानिक डॉ. बी. के. मिश्रा का कहना है
कि- ये मैग्नेटिक फील्ड इफेक्ट भी हो
सकता है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा
कि भूगर्भ में ड्रिलिंग से ही पता चल पाएगा कि
जमीन के अंदर क्या हो रहा है?
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बात प्राचीन महाभारत काल की है। महाभारत के युद्ध में जो कुरुक्षेत्र के मैंदान में हुआ, जिसमें अठारह अक्षौहणी सेना मारी गई, इस युद्ध के समापन और सभी मृतकों को तिलांज्जलि देने के बाद पांडवों सहित श्री कृष्ण पितामह भीष्म से आशीर्वाद लेकर हस्तिनापुर को वापिस हुए।
तब श्रीकृष्ण को रोक कर पितामाह ने श्रीकृष्ण से पूछ ही लिया, "मधुसूदन, मेरे कौन से कर्म का फल है जो मैं सरसैया पर पड़ा हुआ हूँ?''
यह बात सुनकर मधुसूदन मुस्कराये और पितामह भीष्म से पूछा, 'पितामह आपको कुछ पूर्व जन्मों का ज्ञान है?''
इस पर पितामह ने कहा, 'हाँ''। श्रीकृष्ण!! मुझे अपने ‘सौ’ पूर्व जन्मों का ज्ञान है कि मैंने किसी व्यक्ति का कभी अहित नहीं किया?”
इस पर श्रीकृष्ण मुस्कराये और बोले- “पितामह!! आपने ठीक कहा कि आपने कभी किसी को कष्ट नहीं दिया, लेकिन एक सौ एक वें पूर्वजन्म में आज की तरह आपने तब भी राजवंश में जन्म लिया था और अपने पुण्य कर्मों से बार-बार राजवंश में जन्म लेते रहे, लेकिन उस जन्म में जब आप युवराज थे, तब एक बार आप शिकार खेलकर जंगल से निकल रहे थे, तभी आपके घोड़े के अग्रभाग पर एक करकैंटा(साँप) एक वृक्ष से नीचे गिरा। आपने अपने बाण से उठाकर उसे पीठ के पीछे फेंक दिया, उस समय वह बेरिया के पेड़ पर जा कर गिरा और बेरिया के कांटे उसकी पीठ में धंस गये, क्योंकि; वह पीठ के बल ही जाकर गिरा था। करकेंटा जितना निकलने की कोशिश करता उतना ही कांटे उसकी पीठ में चुभ जाते और इस प्रकार करकेंटा अठारह दिन जीवित रहा और यही ईश्वर से प्रार्थना करता रहा, 'हे युवराज! जिस तरह से मैं तड़प-तड़प कर मृत्यु को प्राप्त हो रहा हूँ, ठीक इसी प्रकार तुम भी होना।'' तो, हे पितामह भीष्म! आपके पुण्य कर्मों की वजह से आज तक आप पर करकेंटा का श्राप लागू नहीं हो पाया। लेकिन हस्तिनापुर की राज सभा में द्रोपदी का चीर-हरण होता रहा और आप मूक दर्शक बनकर देखते रहे। जबकि आप सक्षम थे उस अबला पर अत्याचार रोकने में, लेकिन आपने दुर्योधन और दुःशासन को नहीं रोका। इसी कारण पितामह आपके सारे पुण्यकर्म क्षीण हो गये और करकेंटा का 'श्राप' आप पर लागू हो गया। अतः पितामह प्रत्येक मनुष्य को अपने कर्मों का फल कभी न कभी तो भोगना ही पड़ेगा। प्रकृति सर्वोपरि है, इसका न्याय सर्वोपरि और प्रिय है। इसलिए पृथ्वी पर निवास करने वाले प्रत्येक प्राणी व जीव जन्तु को भी भोगना पड़ता है और कर्मों के ही अनुसार ही जन्म होता है।“
श्रीकृष्ण की बात से भीष्म लज्जित और संतुष्ट हुवे। और श्रीकृष्ण की वंद्ना करने लगे।


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