भारतीय सेना : सिख रेजिमेंट :
रिटायर्ड मेजर जनरल मुकीश खान ने अपनी पुस्तक ‘Crisis of Leadership’ में लिखा है कि, भारतीय सेना का एक अभिन्न अंग होते हुए भी, भारतीय सेना सिखों के शौर्य से अंजान ही रही क्योंकि…..’घर की मुर्गी दाल बराबर !’
भारतीय सेना को सिखों की वीरता से कभी सीधा वास्ता नही पड़ा था। दुश्मनों को पड़ा था और उन्होंने इनकी शौर्य गाथाएं भी लिखी। स्वयं पाकिस्तानी सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल मुकीश खान ने अपनी पुस्तक‘ Crisis of Leadership’ के प्रष्ट २५० पर, सिखों के साथ हुई अपनी १९७१ की मुठभेड़ पर लिखते हैं कि, “हमारी हार का मुख्य कारण था, हमारा सिखों से आमने सामने युद्ध करना। हम उनके आगे कुछ भी करने में असमर्थ थे। सिख बहुत बहादुर हैं और उनमें शहीद होने का एक विशेष जज्बा—एक महत्वाकांक्षा है। वे अत्यंत बहादुरी से लड़ते हैं और उनमें सामर्थ्य है कि अपने से कई गुना संख्या में अधिक सेना को भी वे परास्त कर सकते हैं!”
वे आगे लिखते हैं कि……..
‘३ दिसंबर १९७१ को हमने अपनी पूर्ण क्षमता और दिलेरी के साथ अपने इन्फैंट्री ब्रिगेड के साथ भारतीय सेना पर हुसैनीवाला के समीप आक्रमण किया। हमारी इस ब्रिगेड में पाकिस्तान की लड़ाकू बलूच रेजिमेंट और पंजाब रेजिमेंट भी थीं और कुछ ही क्षणों में हमने भारतीय सेना के पाँव उखाड़ दिए और उन्हें काफी पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। उनकी महत्वपूर्ण सुरक्षा चौकियां अब हमारे कब्ज़े में थीं। भारतीय सेना बड़ी तेजी से पीछे हट रही थीं और पाकिस्तानी सेना अत्यंत उत्साह के साथ बड़ी तेजी से आगे बढ रही थी। हमारी सेना अब कौसरे - हिंद पोस्ट के समीप पहुँच चुकी थी। भारतीय सेना की एक छोटी टुकड़ी वहां उस पोस्ट की सुरक्षा के लिए तैनात थी और इस टुकड़ी के सैनिक सिख रेजिमेंट से संबंधित थे! एक छोटी सी गिनती वाली सिख रेजिमेंट ने लोहे की दीवार बन कर हमारा रास्ता अवरुद्ध कर दिया। वे पूरी शक्ति से सिख जयकारा —'जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल' के नारों से आकाश गुंजा रहे थे। उनहोंने हम पर भूखे शेरों की तरह और बाज़ की तेजी से आक्रमण किया। यहाँ एक आमने-सामने की, आर-पार की, सैनिक से सैनिक की लड़ाई हुई! आकाश ‘या अली’ और 'जो बोले सो निहाल’ के गगनभेदी नारों से गुंजायमान हो उठा! इस आर-पार की लड़ाई में भी सिख सैनिक इतनी बेमिसाल बहादुरी से लड़े कि हमारी सारी महत्वाकांक्षाएं, हमारी सभी आशाएं धूमिल हो उठीं, हमारी उम्मीदों पर पानी फिर गया ! हमारे सभी सपने चकना चूर हो गये!’
‘३ दिसंबर १९७१ को हमने अपनी पूर्ण क्षमता और दिलेरी के साथ अपने इन्फैंट्री ब्रिगेड के साथ भारतीय सेना पर हुसैनीवाला के समीप आक्रमण किया। हमारी इस ब्रिगेड में पाकिस्तान की लड़ाकू बलूच रेजिमेंट और पंजाब रेजिमेंट भी थीं और कुछ ही क्षणों में हमने भारतीय सेना के पाँव उखाड़ दिए और उन्हें काफी पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। उनकी महत्वपूर्ण सुरक्षा चौकियां अब हमारे कब्ज़े में थीं। भारतीय सेना बड़ी तेजी से पीछे हट रही थीं और पाकिस्तानी सेना अत्यंत उत्साह के साथ बड़ी तेजी से आगे बढ रही थी। हमारी सेना अब कौसरे - हिंद पोस्ट के समीप पहुँच चुकी थी। भारतीय सेना की एक छोटी टुकड़ी वहां उस पोस्ट की सुरक्षा के लिए तैनात थी और इस टुकड़ी के सैनिक सिख रेजिमेंट से संबंधित थे! एक छोटी सी गिनती वाली सिख रेजिमेंट ने लोहे की दीवार बन कर हमारा रास्ता अवरुद्ध कर दिया। वे पूरी शक्ति से सिख जयकारा —'जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल' के नारों से आकाश गुंजा रहे थे। उनहोंने हम पर भूखे शेरों की तरह और बाज़ की तेजी से आक्रमण किया। यहाँ एक आमने-सामने की, आर-पार की, सैनिक से सैनिक की लड़ाई हुई! आकाश ‘या अली’ और 'जो बोले सो निहाल’ के गगनभेदी नारों से गुंजायमान हो उठा! इस आर-पार की लड़ाई में भी सिख सैनिक इतनी बेमिसाल बहादुरी से लड़े कि हमारी सारी महत्वाकांक्षाएं, हमारी सभी आशाएं धूमिल हो उठीं, हमारी उम्मीदों पर पानी फिर गया ! हमारे सभी सपने चकना चूर हो गये!’
इस जंग में बलूच रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल गुलाब हुसैन शहादत को प्राप्त हुए थे। उनके साथ ही मेजर मोहम्मद जईफ और कप्तान आरिफ अलीम भी अल्लाह को प्यारे हुए थे। उन अन्य पाकिस्तानी सैनिकों की गिनती कर पाना मुश्किल था जो इस जंग में शहीद हुए। हम आश्चर्यचकित थे मुट्ठीभर सिखों के साहस और उनकी इस बेमिसाल बहादुरी पर। जब हमने इस तीन मंजिला कंक्रीट की बनी पोस्ट पर कब्जा किया, तो सिख इस की छत पर चले गये, जम कर हमारा विरोध करते रहे — हम से लोहा लेते रहे। सारी रात वे हम पर फायरिंग करते रहे और सारी रात वे अपने उदघोष, अपने जयकारे ….'जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल' से आकाश गुंजायमान करते रहे। इन सिख सैनिकों ने अपना प्रतिरोध अगले दिन तक जारी रखा, जब तक कि पाकिस्तानी सेना के टैंकों ने इसे चारों और से नहीं घेर लिया और इस सुरक्षा पोस्ट को गोलों से न उड़ा डाला। वे सभी मुट्ठी भर सिख सैनिक इस जंग में हमारा मुकाबला करते हुए शहीद हो गये, परन्तु तभी अन्य सिख सैनिकों ने तोपखाने की मदद से हमारे टैंकों को नष्ट कर दिया। बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए, इन सिख सैनिकों ने मोर्चे में अपनी बढ़त कायम रखी और इस तरह हमारी सेना को हार का मुंह देखना पड़ा!
‘…..अफ़सोस ! इन मुट्ठी भर सिख सैनिकों ने हमारे इस महान विजय अभियान को हार में बदल डाला, हमारे विश्वास और हौंसले को चकनाचूर करके रख डाला! ऐसा ही हमारे साथ ढाका (बंगला-देश) में भी हुआ था! जस्सूर की लड़ाई में सिखों ने पाकिस्तानी सेना से इतनी बहादुरी से प्रतिरोध किया कि हमारी रीढ़ तोड़ कर रख दी, हमारे पैर उखाड़ दिए ! यह हमारी हार का सबसे मुख्य और महत्वपूर्ण कारण था ! सिखों का शहीदी के प्रति प्यार, और सुरक्षा के लिए मौत का उपहास तथा देश के लिए सम्मान, उनकी विजय का एकमात्र कारण बने।
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