संस्कृत वाक्य अभ्यासः
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संस्कृत वाक्य अभ्यासः
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अहम् = मैं
अहं छात्रः / छात्रा अस्मि
= मैं विद्यार्थी / विद्यार्थिनी हूँ ।
= मैं विद्यार्थी / विद्यार्थिनी हूँ ।
अहं विद्यालयं गच्छामि
= मैं विद्यालय जाता / हूँ ।
= मैं विद्यालय जाता / हूँ ।
अहं संस्कृतं पठामि
= मैं संस्कृत पढ़ता / पढ़ती हूँ ।
= मैं संस्कृत पढ़ता / पढ़ती हूँ ।
माम् = मुझको ; मुझे
माम् शिक्षकः पाठयति
= मुझे शिक्षक पढ़ाता है ।
= मुझे शिक्षक पढ़ाता है ।
शिक्षकः माम् चित्रं दर्शयति
= शिक्षक मुझे चित्र दिखाता है ।
= शिक्षक मुझे चित्र दिखाता है ।
मया = मुझसे / मेरे द्वारा
मया पुस्तकं पठ्यते
= मेरे द्वारा पुस्तक पढ़ी जा रही है ।
( मैं पुस्तक पढ़ता हूँ ।)
= मेरे द्वारा पुस्तक पढ़ी जा रही है ।
( मैं पुस्तक पढ़ता हूँ ।)
मया विद्यालयः गम्यते
= मेरे द्वारा स्कूल जाया जाता है
( मैं स्कूल जाता हूँ । )
= मेरे द्वारा स्कूल जाया जाता है
( मैं स्कूल जाता हूँ । )
मह्यम् = मुझे / मेरे लिए
सः मह्यं पुस्तकं ददाति ।
= वह मुझे पुस्तक देता है ।
= वह मुझे पुस्तक देता है ।
छात्रः मह्यं निवेदयति
= छात्र मुझे निवेदन कर रहा है ।
= छात्र मुझे निवेदन कर रहा है ।
मत् = मुझ से
सः मत् (मत् तः ) ज्ञानं प्राप्नोति
= वह मुझसे ज्ञान पाता है ।
= वह मुझसे ज्ञान पाता है ।
मत् सः बिभेति
= वह मुझसे डरता है ।
= वह मुझसे डरता है ।
मम = मेरा / मेरी / मेरे
एषः मम विद्यालयः अस्ति
= यह मेरा विद्यालय है ।
= यह मेरा विद्यालय है ।
एषा मम शिक्षिका अस्ति
= यह मेरी शिक्षिका है ।
= यह मेरी शिक्षिका है ।
एतानि मम मित्राणि सन्ति
= ये मेरे मित्र हैं ।
= ये मेरे मित्र हैं ।
मयि = मुझमें , मुझ पर
शिक्षकः मयि स्निह्यति
= शिक्षक मुझे प्यार करता है ।
= शिक्षक मुझे प्यार करता है ।
शिक्षिका मयि विश्वसिति
= शिक्षिका को मुझ पर विश्वास है ।
= शिक्षिका को मुझ पर विश्वास है ।
( केवलम् एकवचनस्य अभ्यासः अस्ति )
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अद्य सोमवासरः अस्ति
= आज सोमवार है ।
= आज सोमवार है ।
संदीपः प्रतिसोमवासरे धौतवस्त्रं धारयति
= संदीप हर सोमवार को धोती पहनता है ।
= संदीप हर सोमवार को धोती पहनता है ।
संदीपस्य पिता प्रतिदिनं धौतवस्त्रं धारयति
= संदीप के पिता प्रतिदिन धोती पहनते हैं ।
= संदीप के पिता प्रतिदिन धोती पहनते हैं ।
संदीपः प्रतिसोमवासरे गृहे यज्ञम् करोति
= संदीप हर सोमवार को घर में यज्ञ करता है ।
= संदीप हर सोमवार को घर में यज्ञ करता है ।
संदीपस्य पिता प्रतिदिनं यज्ञम् करोति
= संदीप के पिता प्रतिदिन यज्ञ करते हैं
= संदीप के पिता प्रतिदिन यज्ञ करते हैं
संदीपः धौतवस्त्रं धारयित्वा प्रसन्नः भवति
= संदीप धोती पहनकर खुश होता है
= संदीप धोती पहनकर खुश होता है
संदीपः कटिवस्त्रं अपि धारयति
= संदीप लंगोट भी पहनता है ।
= संदीप लंगोट भी पहनता है ।
संदीपः वदति यत्
= संदीप कहता है कि
= संदीप कहता है कि
"सोमवासरः तु धौतवासरः अस्ति "
= सोमवार तो धोती का वार है ।
= सोमवार तो धोती का वार है ।
सर्वे जनाः धौतवस्त्रं धारयन्तु
= सभी लोग धोती पहनें ।
= सभी लोग धोती पहनें ।
युतकम् उरुकं त्यजन्तु
= शर्ट पैंट छोड़ दीजिये ।
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प्राचीनकाल में ऋषि-मुनियों ने ऐसे पेड़-पौधों को लगाने की सलाह दी थी, जिनसे वास्तुदोष का निवारण हो साथ ही पर्यावरण संतुलन भी बना रहे।
तुलसी- तुलसी को जीवनदायिनी और लक्ष्मी स्वरूपा बताया गया है। इसे घर में लगाने से और इसकी पूजा अर्चना करने से महिलाओं के सारे दु:ख दूर होते हैं, साथ ही घर में सुख शांति बनी रहती है। इसे घर के अंदर लगाने से किसी भी प्रकार की अशुभ ऊर्जा नष्ट हो जाती है।
अश्वगंधा- इसके बारे में कहा गया है कि यह वास्तु दोष समाप्त करने की क्षमता रखता है और शुभता को बढ़ाकर जीवन को अधिक सक्रिय बनाता है।
आंवला- आंवले का वृक्ष घर की चहारदीवारी में पूर्व व उत्तर में लगाया जाना चाहिए, जिससे यह शुभ रहता है। साथ ही इसकी नित्य पूजा-अर्चना करने से भी सभी तरह के पापों का शमन होता है।
केला- घर की चहारदीवारी में केले का वृक्ष लगाना शुभ होता है। इसे भवन के ईशान कोण में लगाना चाहिए, क्योंकि यह बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधि वृक्ष है। केले के समीप यदि तुलसी का पेड़ भी लगा लें तो अधिक शुभकारी रहेगा।
शतावर- शतावर को एक बेल बताया गया है। इसे घर में लगाना शुभ फलदायी होता है। बशर्ते इसे घर में कुछ इस तरह लगाएं कि यह ऊपर की ओर चढ़े।
अनार- इससे वंश वृद्धि होती है। आग्नेय में अनार का पेड़ अति शुभ परिणाम देने वाला होता है।
बेल- भगवान शिव को बेल का वृक्ष अत्यंत प्रिय है, इसको लगाने से धन संपदा की देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
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नारियल की ये प्राचीन बातें जानेंगे तो आप भी मानेंगे ये है चमत्कारी
हम सभी जानते हैं पूजन कर्म में नारियल का महत्वपूर्ण स्थान है। किसी भी देवी-देवता की पूजा नारियल के बिना अधूरी ही मानी जाती है। क्या आप जानते हैं नारियल खाने से शारीरिक दुर्बलता एवं भगवान को नारियल चढ़ाने से धन संबंधी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
स्त्रियां नहीं फोड़तीं नारियल
यह भी एक तथ्य है कि महिलाएं नारियल नहीं फोड़तीं। नारियल बीज रूप है, इसलिए इसे उत्पादन (प्रजनन) क्षमता से जोड़ा गया है। स्त्रियों बीज रूप से ही शिशु को जन्म देती है और इसलिए नारी के लिए बीज रूपी नारियल को फोड़ना अशुभ माना गया है। देवी-देवताओं को श्रीफल चढ़ाने के बाद पुरुष ही इसे फोड़ते हैं। नारियल से निकले जल से भगवान की प्रतिमाओं का अभिषेक भी किया जाता है।
सौभाग्य का प्रतीक है नारियल
नारियल को श्रीफल भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है, जब भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर अवतार लिया तो वे अपने साथ तीन चीजें- लक्ष्मी, नारियल का वृक्ष तथा कामधेनु लाए। इसलिए नारियल के वृक्ष को कल्पवृक्ष भी कहते है। नारियल में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही देवताओं का वास माना गया है। श्रीफल भगवान शिव का परम प्रिय फल है। नारियल में बनी तीन आंखों को त्रिनेत्र के रूप में देखा जाता है।
कैलोरी से भरपूर है नारियल
- नारियल की तासीर ठंडी होती है।
- ताजा नारियल कैलोरी से भरपूर होता है। इसमें अनेक पोषक तत्व होते हैं।
- नारियल के कोमल तनों से जो रस निकलता है उसे माड़ी (नीरा) कहते हैं उसे लज्जतदार पेय माना जाता है।
- सोते समय नारियल पानी पीने से नाड़ी संस्थान को बल मिलता है तथा नींद अच्छी आती है।
- जिन शिशुओं को दूध नहीं पचता उन्हें दूध के साथ नारियल पानी मिलाकर पिलाना चाहिए।
- शिशु को डि-हाइड्रेशन होने पर नारियल पानी में नीबू का रस मिलाकर पिलाएं। नरियल का पानी हैजे में रामबाण औषधि है।
- नारियल की गिरी (खोपरा) खाने से कामशक्ति बढ़ती है।
- मिश्री के साथ खाने से गर्भवती स्त्री की शारीरिक दुर्बलता दूर होती है तथा बच्चा सुंदर होता है।
- सूखी गिरी खाने से आंख की रोशनी तथा गुर्दों के शक्ति मिलती है।
- पौष, माघ और फाल्गुन माह में नियमित सुबह गिरी के साथ गुड़ खाने से वक्षस्थल में वृद्धि होती है, शारीरिक दुर्बलता दूर होती है।
- इसके पानी में पोटेशियम और क्लोरीन होता है जो मां के दूध के समान होता है।
- नारियल कठिनता से पचने वाला, वातशोधक, विष्टïम्भी, पुष्टिïकारक, बलवर्धक और वात-पित्त व रक्तविकार नाशक होता है।
सम्मान का सूचक है नारियल
श्रीफल शुभ, समृद्धि, सम्मान, उन्नति और सौभाग्य का सूचक है। सम्मान करने के लिए शॉल के साथ श्रीफल भी दिया जाता है। सामाजिक रीति-रिवाजों में भी नारियल भेंट करने की परंपरा है। जैसे बिदाई के समय तिलक कर नारियल और धनराशि भेंट की जाती है। रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों को राखी बांध कर नारियल भेंट करती हैं और रक्षा का वचन लेती हैं।
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= शर्ट पैंट छोड़ दीजिये ।
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प्राचीनकाल में ऋषि-मुनियों ने ऐसे पेड़-पौधों को लगाने की सलाह दी थी, जिनसे वास्तुदोष का निवारण हो साथ ही पर्यावरण संतुलन भी बना रहे।
तुलसी- तुलसी को जीवनदायिनी और लक्ष्मी स्वरूपा बताया गया है। इसे घर में लगाने से और इसकी पूजा अर्चना करने से महिलाओं के सारे दु:ख दूर होते हैं, साथ ही घर में सुख शांति बनी रहती है। इसे घर के अंदर लगाने से किसी भी प्रकार की अशुभ ऊर्जा नष्ट हो जाती है।
अश्वगंधा- इसके बारे में कहा गया है कि यह वास्तु दोष समाप्त करने की क्षमता रखता है और शुभता को बढ़ाकर जीवन को अधिक सक्रिय बनाता है।
आंवला- आंवले का वृक्ष घर की चहारदीवारी में पूर्व व उत्तर में लगाया जाना चाहिए, जिससे यह शुभ रहता है। साथ ही इसकी नित्य पूजा-अर्चना करने से भी सभी तरह के पापों का शमन होता है।
केला- घर की चहारदीवारी में केले का वृक्ष लगाना शुभ होता है। इसे भवन के ईशान कोण में लगाना चाहिए, क्योंकि यह बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधि वृक्ष है। केले के समीप यदि तुलसी का पेड़ भी लगा लें तो अधिक शुभकारी रहेगा।
शतावर- शतावर को एक बेल बताया गया है। इसे घर में लगाना शुभ फलदायी होता है। बशर्ते इसे घर में कुछ इस तरह लगाएं कि यह ऊपर की ओर चढ़े।
अनार- इससे वंश वृद्धि होती है। आग्नेय में अनार का पेड़ अति शुभ परिणाम देने वाला होता है।
बेल- भगवान शिव को बेल का वृक्ष अत्यंत प्रिय है, इसको लगाने से धन संपदा की देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
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नारियल की ये प्राचीन बातें जानेंगे तो आप भी मानेंगे ये है चमत्कारी
हम सभी जानते हैं पूजन कर्म में नारियल का महत्वपूर्ण स्थान है। किसी भी देवी-देवता की पूजा नारियल के बिना अधूरी ही मानी जाती है। क्या आप जानते हैं नारियल खाने से शारीरिक दुर्बलता एवं भगवान को नारियल चढ़ाने से धन संबंधी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
स्त्रियां नहीं फोड़तीं नारियल
यह भी एक तथ्य है कि महिलाएं नारियल नहीं फोड़तीं। नारियल बीज रूप है, इसलिए इसे उत्पादन (प्रजनन) क्षमता से जोड़ा गया है। स्त्रियों बीज रूप से ही शिशु को जन्म देती है और इसलिए नारी के लिए बीज रूपी नारियल को फोड़ना अशुभ माना गया है। देवी-देवताओं को श्रीफल चढ़ाने के बाद पुरुष ही इसे फोड़ते हैं। नारियल से निकले जल से भगवान की प्रतिमाओं का अभिषेक भी किया जाता है।
सौभाग्य का प्रतीक है नारियल
नारियल को श्रीफल भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है, जब भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर अवतार लिया तो वे अपने साथ तीन चीजें- लक्ष्मी, नारियल का वृक्ष तथा कामधेनु लाए। इसलिए नारियल के वृक्ष को कल्पवृक्ष भी कहते है। नारियल में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही देवताओं का वास माना गया है। श्रीफल भगवान शिव का परम प्रिय फल है। नारियल में बनी तीन आंखों को त्रिनेत्र के रूप में देखा जाता है।
कैलोरी से भरपूर है नारियल
- नारियल की तासीर ठंडी होती है।
- ताजा नारियल कैलोरी से भरपूर होता है। इसमें अनेक पोषक तत्व होते हैं।
- नारियल के कोमल तनों से जो रस निकलता है उसे माड़ी (नीरा) कहते हैं उसे लज्जतदार पेय माना जाता है।
- सोते समय नारियल पानी पीने से नाड़ी संस्थान को बल मिलता है तथा नींद अच्छी आती है।
- जिन शिशुओं को दूध नहीं पचता उन्हें दूध के साथ नारियल पानी मिलाकर पिलाना चाहिए।
- शिशु को डि-हाइड्रेशन होने पर नारियल पानी में नीबू का रस मिलाकर पिलाएं। नरियल का पानी हैजे में रामबाण औषधि है।
- नारियल की गिरी (खोपरा) खाने से कामशक्ति बढ़ती है।
- मिश्री के साथ खाने से गर्भवती स्त्री की शारीरिक दुर्बलता दूर होती है तथा बच्चा सुंदर होता है।
- सूखी गिरी खाने से आंख की रोशनी तथा गुर्दों के शक्ति मिलती है।
- पौष, माघ और फाल्गुन माह में नियमित सुबह गिरी के साथ गुड़ खाने से वक्षस्थल में वृद्धि होती है, शारीरिक दुर्बलता दूर होती है।
- इसके पानी में पोटेशियम और क्लोरीन होता है जो मां के दूध के समान होता है।
- नारियल कठिनता से पचने वाला, वातशोधक, विष्टïम्भी, पुष्टिïकारक, बलवर्धक और वात-पित्त व रक्तविकार नाशक होता है।
सम्मान का सूचक है नारियल
श्रीफल शुभ, समृद्धि, सम्मान, उन्नति और सौभाग्य का सूचक है। सम्मान करने के लिए शॉल के साथ श्रीफल भी दिया जाता है। सामाजिक रीति-रिवाजों में भी नारियल भेंट करने की परंपरा है। जैसे बिदाई के समय तिलक कर नारियल और धनराशि भेंट की जाती है। रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों को राखी बांध कर नारियल भेंट करती हैं और रक्षा का वचन लेती हैं।
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