Tuesday, 9 June 2015

चेतक याद है परंतु शुभ्रक नहीं!
कुतुबुद्दीन ने राजपूताना में कहर बरपाया और राजकुंवर कर्णसिंह को बंदी बनाकर Lahore ले गया। उदयपुर के कुंवर का शुभ्रक नाम का घोड़ा स्वामिभक्त था, लेकिन कुतुबुद्दीन उसे भी साथ ले गया।
कैद से भागने के प्रयास में एक दिन राजकुंवर को सजा ऐ मौत देने के लिए मैदान में लाया गया। यह तय हुआ कि राजकुंवर का सिर काटकर उससे खेला जाएगा। मूल खेल तो पोलो खेलना था, लेकिन राजकुंवर के सिर से खेलना था। कुतुबुद्दीन शुभ्रक घोड़े पर सवार होकर अपनी खिलाड़ी टोली के साथ जन्नत बाग में आया। शुभ्रक ने जैसे ही कैदी अवस्था में राजकुंवर को देखा उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे और जब राजकुंवर का सिर कलम करने के लिए उसे जंजीरों से खोला गया तो शुभ्रक से रहा नहीं गया, उसे उछलकर कुतुबुद्दीन को घोड़े से गिरा दिया, उसकी छाती पर अपने पैरों के कई वार किए, जिससे उसके प्राण पखेरू वहीं उड गए और राजकुंवर के पास आकर सिपाहियों से जंग लड़ने लगा तो कुंवर शुभ्रक पर सवार हो गया और हवा की तरह उड़ने लगा। कई दिन और रात दौड़ता रहा और एक दिन बिना रुके उदयपुर के महल के सामने आ गया। राजकुंवर जैसे ही घोड़े से उतरे और अपने प्रिय अश्व को पुचकारने लगे तो देखा घोडा प्रतिमा जैसा बना खडा था, लेकिन उसमें प्राण नहीं थे। सिर पर हाथ रखते ही उसका निष्प्राण शरीर लुढक गया।
इतिहास में यह तथ्य कहीं नहीं पढ़ाया जाता, जबकि फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में कुतुबुद्दीन की मौत इसी तरह लिखी बताई गई है।
आदमी बिना रुके दौडते हैं, तो उसके नाम पर मैराथन दौड की परम्परा शुरू हो जाती है, लेकिन पशुओं के नाम भी याद नहीं रखे जाते, क्यों?
स्रोत: इतिहास की भूली बिसरी कहानियां

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