प्रधानमंत्री जन सुरक्षा बीमा योजना के तहत सालाना 12 रुपये प्रीमियम जमा कर 2 लाख का दुर्घटना बीमा और सालाना 330 रुपये देकर 2 लाख रुपये का जीवन बीमा प्रदान किया जा रहा है.इसके साथ ही महीने के 210 रुपये भरने पर 60 साल के बाद 5 हज़ार रुपये मासिक पेंशन और मृत्यु के बाद वही पेंशन पत्नी को मिलने के अलावा दोनों के मृत्यु के बाद परिवार को 8.5 लाख रुपये प्रदान करने वाली अटल पेंशन योजना के रूप में गरीबों को एक जबरदस्त सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जा रही है.
साथ ही कहना चाहूँगा कि विरोधी मित्र मोदी सरकार का विरोध करें कोई दिक्कत नही।खूब गरजे और बरसे भी।राजनीति है अपना वजूद बनाये रखने यह जरुरी भी है।पर मेरे दोस्तों जनहित के मुद्दों पर तो राजनीति न करें? कृपया जनता को सहयोग प्रदान करें।अच्छी योजनाओं का लाभ आम जनता को दिलाकर आप ही श्रेय ले
(देवेन्द्र गुप्ता)
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एक बार संत कबीर से किसी ने पूछा, 'आप दिन भर कपड़ा बुनते रहते हैं तो भगवान का स्मरण कब करते हैं ?' कबीर उस व्यक्ति को लेकर अपनी झोपड़ी से बाहर आ गए। बोले, 'यहां खड़े रहो। तुम्हारे सवाल का जवाब सीधे न देकर, मैं उसेदिखा सकता हूं।' कबीर ने दिखाया कि एक औरत पानी की गागर सिर पर रखकर लौट रही थी।उसके चेहरे पर प्रसन्नता और चाल में रफ्तार थी।उमंग से भरी हुई वह नाचती हुई-सी चली जा रही थी।गागर को उसने पकड़ नहीं रखा था, फिर भी वह पूरी तरह संभली हुई थी।
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कबीर ने कहा, 'उस औरत को देखो। वह जरूर कोई गीत गुनगुना रही है। शायद कोई प्रियजन घर आया होगा।वह प्यासा होगा, उसके लिए वह पानी लेकर जा रही है। मैं तुमसे जानना चाहता हूं कि उसे गागर की याद होगी या नहीं।' कबीर की बात सुनकर उस व्यक्ति ने जवाब दिया,'उसे गागर की याद नहीं होती तो अब तक तो गागर नीचे ही गिर चुकी होती।'
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कबीर बोले, 'यह साधारण सी औरत सिर पर गागर रखकर रास्ता पार करती है। मजे से गीत गाती है, फिर भी गागर का ख्याल उसके मन में बराबर बना हुआ है। और तुम मुझे इससे भी गया गुजरा समझते हो कि मैं कपड़ा बुनता हूं और परमात्मा का स्मरण करने के लिए मुझे अलग से वक्त की जरूरत है। मेरी आत्मा हमेशा उसी में लगी रहती है। कपड़ा बुनने के काम में शरीर लगा रहता है और आत्मा प्रभु के चरणों में लीन रहती है। आत्मा हर समय प्रभु के चिंतन में डूबी रहती है। इसलिए ये हाथ भी आनंदमय होकर कपड़ा बुनते रहते हैं।
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साथ ही कहना चाहूँगा कि विरोधी मित्र मोदी सरकार का विरोध करें कोई दिक्कत नही।खूब गरजे और बरसे भी।राजनीति है अपना वजूद बनाये रखने यह जरुरी भी है।पर मेरे दोस्तों जनहित के मुद्दों पर तो राजनीति न करें? कृपया जनता को सहयोग प्रदान करें।अच्छी योजनाओं का लाभ आम जनता को दिलाकर आप ही श्रेय ले
(देवेन्द्र गुप्ता)
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एक बार संत कबीर से किसी ने पूछा, 'आप दिन भर कपड़ा बुनते रहते हैं तो भगवान का स्मरण कब करते हैं ?' कबीर उस व्यक्ति को लेकर अपनी झोपड़ी से बाहर आ गए। बोले, 'यहां खड़े रहो। तुम्हारे सवाल का जवाब सीधे न देकर, मैं उसेदिखा सकता हूं।' कबीर ने दिखाया कि एक औरत पानी की गागर सिर पर रखकर लौट रही थी।उसके चेहरे पर प्रसन्नता और चाल में रफ्तार थी।उमंग से भरी हुई वह नाचती हुई-सी चली जा रही थी।गागर को उसने पकड़ नहीं रखा था, फिर भी वह पूरी तरह संभली हुई थी।
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कबीर ने कहा, 'उस औरत को देखो। वह जरूर कोई गीत गुनगुना रही है। शायद कोई प्रियजन घर आया होगा।वह प्यासा होगा, उसके लिए वह पानी लेकर जा रही है। मैं तुमसे जानना चाहता हूं कि उसे गागर की याद होगी या नहीं।' कबीर की बात सुनकर उस व्यक्ति ने जवाब दिया,'उसे गागर की याद नहीं होती तो अब तक तो गागर नीचे ही गिर चुकी होती।'
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कबीर बोले, 'यह साधारण सी औरत सिर पर गागर रखकर रास्ता पार करती है। मजे से गीत गाती है, फिर भी गागर का ख्याल उसके मन में बराबर बना हुआ है। और तुम मुझे इससे भी गया गुजरा समझते हो कि मैं कपड़ा बुनता हूं और परमात्मा का स्मरण करने के लिए मुझे अलग से वक्त की जरूरत है। मेरी आत्मा हमेशा उसी में लगी रहती है। कपड़ा बुनने के काम में शरीर लगा रहता है और आत्मा प्रभु के चरणों में लीन रहती है। आत्मा हर समय प्रभु के चिंतन में डूबी रहती है। इसलिए ये हाथ भी आनंदमय होकर कपड़ा बुनते रहते हैं।
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कुछ दिन पहले खबर पढी थी कि....बच्चे को जन्म देते समय मां की मौत हो गयी लेकिन जब उसके जीवित बच्चे को उसके पास सुलाया गया तो मां की धडकन चलने लगी ...वो मां जीवित हो उठी....
और कल ये खबर पडी.....
हम कितने भी आधुनिक, मार्डन, और ज्ञानी हो जाये ....भले ही ये दुनिया ज्ञान, विज्ञान, और तकनीक में बहुत एडवांस हो जाये....लेकिन मां की ममता के चमत्कार को समझना..... हमारी क्या !!!!....भगवान के भी वश की बात नहीं .....
|| मां ||
और कल ये खबर पडी.....
हम कितने भी आधुनिक, मार्डन, और ज्ञानी हो जाये ....भले ही ये दुनिया ज्ञान, विज्ञान, और तकनीक में बहुत एडवांस हो जाये....लेकिन मां की ममता के चमत्कार को समझना..... हमारी क्या !!!!....भगवान के भी वश की बात नहीं .....
|| मां ||
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