Tuesday, 9 June 2015

शिमला का "द कैसल" होटल ..

साल 1922, स्थान शिमला का "द कैसल" होटल .. दिल्ली की भीषण गर्मी से त्रस्त होकर हर साल की तरह इस साल भी एक जानेमाने बैरिस्टर साहब ने चार सुइट बुक करवा लिया था .. बैरिस्टर साहब ने बिलिंग क्लर्क से पूछा की मुझे कई डाक्यूमेंट टाइप करवाने है क्या आप किसी टाइपिस्ट का अरेंज कर देंगे ? बिलिंग क्लर्क मोहन बोला सर मै खुद टाइपिंग जानता हूँ पार्ट टाइम में मै आपके सारे डाक्यूमेंट टाइप कर दूंगा .. जो पैसा आप दुसरे को देंगे वो मुझे दे दीजियेगा
दिन भर युवा बिलिंग क्लर्क होटल में काम करता फिर रात को घर जाते समय बैरिस्टर साहब के दस्तावेज़ लेकर जाता और अगली सुबह उन्हें टाइप करके दे देता .. कोई गलती नही होती थी ..
बैरिस्टर साहब एक महीने के बाद जब जाने लगे तो मोहन के काम से खुश होकर उसे तीन सौ रूपये के साथ चार हजार रूपये बतौर बख्शीश दिए ... उस जमाने में चार हजार रूपये आज के करोड़ो रूपये के बराबर थी ...
वो बैरिस्टर साहब मोतीलाल नेहरु थे .. मोतीलाल नेहरु ने जाते समय मोहन सिंह से पूछा तुम्हारा पूरा नाम क्या है ? उसने बोला "मोहन सिंह ओबराय" | बैरिस्टर साहब ने पूछा तुम पढ़े लिखे लगते हो .. मोहन सिंह ओबराय ने बोला सर लाहौर युनिवर्सिटी से ग्रेजुएट हूँ लेकिन पिताजी का अवसान हो गया तो पुरे घर की जिम्मेदारी मेरे पर ही आ गयी ..उपर से मेरी भी शादी हो चुकी है और दो बच्चे भी है ... इसलिए छोटी मोटी नौकरी कर रहा हूँ ..
तभी कमरे में मोतीलाल के मित्र अर्नेस्ट क्लार्क आये ... और बोले यार मै अपना शिमला वाला होटल लीज पर देकर लंडन जाना चाहता हूँ .. कोई लेने वाला हो तो बोलना ..
मोहनसिंह ओबराय तुरंत बोला .. सर मुझे लीज पर दे दीजिये .. अर्नेस्ट क्लार्क चौक गये की एक होटल का बिलिंग क्लर्क आखिर इतने पैसे कहाँ से लायेगा .. मोहन सिंह घर गये .. पत्नी के सारे गहने बेचे .. और कुल बीस हजार रूपये लेकर शर्माते हुए अर्नेस्ट क्लार्क के बंगले पर गये और बोले सर माफ़ कीजियेगा सिर्फ बीस हजार ही जुटा सका .. क्या आप मुझ पर यकीन करेंगे मै बाकि का पूरा रकम लंडन भेजवा दूंगा .. अर्नेस्ट क्लार्क एक पल सोचा .. और बोला ठीक है ..आज से क्लार्क शिमला तुम्हारा हुआ ..
बाद में वही मोहन सिंह ओबराय विश्व के सबसे बड़े होटेलियर बने और ओबेराय ग्रुप ऑफ़ होटल्स के मालिक बने और पूरी दुनिया में होटलों की लाइन लगा दी

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