Tuesday, 30 June 2015

" अंतरराष्ट्रीय नार्थ-साउथ कॉरिडोर"

अभी तक चाहते हुए भी भारत से रूस को निर्यात नही हो पाता है क्योकि वर्तमान में मुम्बई से रूस के बंदरगाह सेंट पीटरस बर्ग की दुरी 8673 नॉटिकल माईल( 11500 किलोमीटर) है जो भारत के बंदरगाह Mumbai से 2. Arabian Sea,3. Gulf Of Aden,4. Red Sea,5. Gulf Of Suez, 6. Suez Canal River,7. Suez Canal,8. Ismailiya Canal River,9. Nile River,10. Damietta Branch River,11. Mediterranean Sea,12. Alboran Sea,13. Strait Of Gibraltar,14. North Atlantic Ocean,15. Bay Of Biscay,16. English Channel,17. North Sea,18. Ijsselmeer Lagoon19. Skagerrak Fjord,20. Kattegat Sea,21. Baltic Sea,22. Gulf Of Finland और तब रूस का Port of St. Petersburg बन्दरगाह तक 36.5 दिन की समुद्री यात्रा के बाद पूरी होती है।
रूस के साथ मित्रता को और मजबूत करने तथा रूस को कृषि और अन्य औद्योगिक उत्पादों का.निर्यात बढ़ाने के लिए प्रधानमन्त्री मोदी इस दुरी और समय को 70 % तक घटा कर करने के लिए मुम्बई से ईरान के बन्दर अब्बास बंदरगाह, फिर सड़क मार्ग से ईरान के कैस्पियन सागर स्थित अस्त्रा और अंजाली बन्दरगाह तक फिर इरान के इन बन्दरगाहों से केस्पियन सागर में अजरबैजान के बाकू बन्दरगाह होते हुए रूस के कैस्पियन सागर स्थित बन्दरगाह अस्तरखान तक का मार्ग " अंतरराष्ट्रीय नार्थ-साउथ कॉरिडोर" बनवाने के लिए ईरान, मश्या एशिया के देश ,अजरबैजान और रूस के साथ एक 10 देशो का सम्मिलित समझौता करवा रहे है जिसके फलस्वरूप समय तो बचेगा ही प्रति 15 तन के कंटेनर पर $2500 डॉलर की बचत होगी ...
हालॉकि अमेरिका इस समझौते के पक्ष में नही है लेकिन मोदी जी अमेरिका के सुझाव की अंनदेखी करते हुए समझौते पर आगे बढ़ रहे है और जुलाई में रूस तथा 5 मध्य एशियाई देशो की यात्रा के समय इसे पूरा कर लेगे ..
यह एक प्रकार से चीन की "ONE BELT- ONE ROAD" का भी जबाब और काट है ...=
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मैगी के बाद अब चावल में मिलावट की खबरें आ रही हैं। जानकारी के मुताबिक बाजार में बिकने वाला यह मिलावटी चावल एक कटोरा पॉलीथीन बैग खाने के बराबर है।
खबर पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन हाल ही में लीक फैक्ट्री के एक वीडियो में यह घटना सामने आई है। भारत में इलेक्ट्रॉनिक सामानों के अलावा खाद्य पदार्थ भी चीन से आयात किया जाता है। ऐसे में वहां से आयात किया जाने वाला मिलावटी चावल दरअसल प्लास्टिक से बना है।
जानकारी के मुताबिक चीन में बने इस चावल का निर्यात भारत के अलावा सिंगापुर,इंडोनेशिया और अन्य देशों में भी किया जा रहा है। प्लास्टिक से बने इस चावल को सामान्य चावल के साथ मिलाकर विक्रेता इसे ग्राहकों को धड़ल्ले से बेच रहे हैं। सामान्य चावल में मिलाने के बाद इसे खरीदारों के लिए पहचान पाना नामुमकिन हो जाता है।
प्लास्टिक से बना यह चावल भी सामानय चावल की तरह पकाने पर आसानी से गल जाता है। लेकिन खाने के बाद यह चावल शरीर को किस कदर हानि पहुंचाएगा, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
source : Jansatta




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