झरिया में कोयला खदानों में लगी १०० साल पुरानी आग बुझाई जाएगी ...
ये है अच्छे दिन का आगाज़ :---
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने झारखंड के झरिया कोलफील्ड (कोयला निकाले जाने वाली जगह) के पास रह रहे एक लाख से ज्यादा लोगों को वहां से हटाकर नए घरों में विस्थापित करने का लक्ष्य रखा है। इन लोगों को विस्थापित करने करने की वजह करीब सौ सालों से धधक रही झरियां की कोयला खानों की आग को बुझाना है, जिससे इस बेशकीमती कोयले के भंडार को बचाया जा सके।
पीएम मोदी के पहले साल की एक उपलब्धि देश के कोल सेक्टर से फिर से आउटपुट निकालना भी है। उन्हें उम्मीद है कि वह हर घर को पूरी बिजली उपलब्ध करा सकेंगे और कोयले के सालाना निर्यात को 15 अरब डॉलर तक पहुंचा देंगे।
झरिया की खदानों में जल रहा कोयला बहुत ही कीमती है। स्टील के निर्माण में प्रयोग होने वाले उच्च स्तर के कोयले का देश में यही इकलौता स्रोत है। इस गुणवत्ता वाले कोयले को विदेश से मंगाने में भारत 4 बिलियन डॉलर खर्च करता है। फरवरी में झारखंड के दौरे पर पीएम मोदी ने वहां के सीएम रघुबर दास से आग बुझाने और लोगों के पुनर्वास के कार्य में तेजी लाने के लिए कहा था।
नई दिल्ली में कोल सेक्रटरी अनिल स्वरूप बताते हैं, 'प्रधानमंत्री खुद इस मामले में रुचि ले रहे हैं। इससे पता चलता है कि सरकार इसे लेकर कितना गंभीर है। यह बहुत ही जटिल कार्य है, लेकिन अच्छी बात है कि हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।' जलती हुई कोयले की खदान के नजदीक रह रहे हजारों लोगों को अच्छी जिंदगी देने के लिए इस काम को जल्द खत्म करना पड़ेगा।
क्या है जनता का हाल: शकीली देवी (60) तो यह भी भूल चुकी हैं कि पिछले कुछ सालों में उन्होंने रहने के लिए कितनी नई झोपड़ियां बनाईं। गर्मी और धंसती हुई जमीन की वजह से एक जगह रहना नामुमकिन है। उनकी झोपड़ी के बगल में ही जमीन में एक दरार है, जिससे गर्म गैस निकलती है। शकीली देवी बताती हैं, 'हम डरे हुए हैं, लेकिन कुछ नहीं कर सकते। हम सिर्फ इंतजार कर सकते हैं, जब तक सरकार हमारे लिए नया घर नहीं खोज लेती।'
जब तक सरकार अपना लक्ष्य नहीं पा लेती, शकीली देवी और उनके जैसे कई और इसी तरह फंसे रहेंगे। कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जो ठेकेदारों द्वारा दिए गए काम पर निर्भर हैं। ये परिवार वहां मुफ्त पानी के लालच में रहने को मजबूर हैं।
आग लगने और इसके 100 सालों से जलने का कारण: जलते कोयले और निकलते धुंए का क्रम लगभग 1916 से जारी है। यह वही समय था जब प्राइवेट फर्म्स ने खदानों की खुदाई शुरू की थी। भारत ने अधिकांश कोल संपत्तियों का राष्ट्रीयकरण 70 के दशक में किया था।
विशेषज्ञों के मुताबिक, उन खदानों की खुदाई के बाद उन्हें भरा नहीं गया। उन्हें खुला छोड़ दिया गया। इनमें अपने-आप आग लग गई और बढ़ती चली गई। वीरान खदानों के पास शराब की तस्करी करने वाले लोग हालात और भी बुरे बना देते हैं। आग जलाने के बाद उसे बुझाना तस्कर जरूरी नहीं समझते।
झरिया क्षेत्र को नियंत्रित करने वाली कोल इंडिया की यूनिट 'भारत कोकिंग कोल लिमिटेड' (बीसीसीएल) के अनुमान के मुताबिक, आग से अब तक 37 मिलियन टन कोयला खत्म हो चुका है। साथ ही, 2 बिलियन टन कोयले के उपयोग की संभावना भी खत्म हो गई है। इससे कुल 220 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है।
कोल इंडिया द्वारा उत्पादित कुल कोयले का सात फीसदी उत्पादन बीसीसीएल ही करता है। एक दस्तावेज के मुताबिक अगले पांच सालों के लिए बीसीसीएल की प्रोजेक्टेड ग्रोथ में 54 फीसदी की बढ़ोतरी करते हुए उसका लक्ष्य 53 मिलियन टन कोयले के उत्पादन का रखा गया है। बीसीसीएल की सफलता कोल इंडिया को सफल होने में मदद करेगी। कोल इंडिया ने 2019-20 तक एक बिलियन टन कोयले के उत्पादन का लक्ष्य रखा है।
आग बुझाने के हुए खूब प्रयास: पिछली बार गैसों पर पंपिंग करके और सतह को बंद करके आग को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया था। इस प्रयास में कंपनी को सीमित सफलता मिली, लेकिन बीसीसीएल दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गई थी।
2008 के बाद कंपनी ने गहरी और चौड़ी खुदाई करने के बजाय जलते हुए कोयले को हटाने का प्रयास किया था। यह प्रयास अधिक प्रभावी था, लेकिन जमीन की सतह को क्षतिग्रस्त करने की वजह से इस तरीके की खूब आलोचना हुई।
इसके बाद 800 डिग्री सेल्सियस तक गर्म कोयले को ठंडा करने के लिए जमीन के ऊपर पानी डालने और खदानों के आसपास पत्थर लगाने का तरीका अपनाया गया। यह तरीका सफल होने में लगभग दो साल से अधिक समय लेगा। हालांकि, 2014 में अपनाए गए तरीके से सबसे ज्यादा सफलता मिली। 6 साल पहले जलने वाली कुल जगह 9 स्क्वायर किमी थी, जिसे 2014 में 2.2 स्क्वेयर किमी तक कम किया गया।
कहां है घर: पार्ट टाइम ट्यूटर अर्जुन राम के पिता बीसीसीएल से रिटायर हो चुके हैं। वह तेज गर्मी वाली जगह से कुछ दूरी पर रहते हैं। तीन साल पहले जेआरडीए ने अर्जुन राम जैसे 50 हजार लोगों को चिह्नित किया था, जिन्हें इस जगह से दूर ले जाना था। इन्हें अभी तक घर नहीं दिए जा सके हैं। जेआरडीए मैनेजमेंट के मुताबिक ऐसा 2013 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम से पैदा हुई गलतफहमी की वजह से हुआ।
पिछले कुछ महीनों में लगभग 1000 परिवार खदान से दूर दो बेडरूम वाले फ्लैट्स में शिफ्ट हो चुके हैं और हजारों एकड़ जमीन मकानों के निर्माण के लिए खरीदी जा चुकी है। हालांकि, लोगों को अब भी सफलता पर भरोसा नहीं है। अर्जुन राम कहता है, 'अगर मेरे भाग्य में लिखा होगा तो मैं यहीं मर जाऊंगा।'
ये है अच्छे दिन का आगाज़ :---
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने झारखंड के झरिया कोलफील्ड (कोयला निकाले जाने वाली जगह) के पास रह रहे एक लाख से ज्यादा लोगों को वहां से हटाकर नए घरों में विस्थापित करने का लक्ष्य रखा है। इन लोगों को विस्थापित करने करने की वजह करीब सौ सालों से धधक रही झरियां की कोयला खानों की आग को बुझाना है, जिससे इस बेशकीमती कोयले के भंडार को बचाया जा सके।
पीएम मोदी के पहले साल की एक उपलब्धि देश के कोल सेक्टर से फिर से आउटपुट निकालना भी है। उन्हें उम्मीद है कि वह हर घर को पूरी बिजली उपलब्ध करा सकेंगे और कोयले के सालाना निर्यात को 15 अरब डॉलर तक पहुंचा देंगे।
झरिया की खदानों में जल रहा कोयला बहुत ही कीमती है। स्टील के निर्माण में प्रयोग होने वाले उच्च स्तर के कोयले का देश में यही इकलौता स्रोत है। इस गुणवत्ता वाले कोयले को विदेश से मंगाने में भारत 4 बिलियन डॉलर खर्च करता है। फरवरी में झारखंड के दौरे पर पीएम मोदी ने वहां के सीएम रघुबर दास से आग बुझाने और लोगों के पुनर्वास के कार्य में तेजी लाने के लिए कहा था।
नई दिल्ली में कोल सेक्रटरी अनिल स्वरूप बताते हैं, 'प्रधानमंत्री खुद इस मामले में रुचि ले रहे हैं। इससे पता चलता है कि सरकार इसे लेकर कितना गंभीर है। यह बहुत ही जटिल कार्य है, लेकिन अच्छी बात है कि हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।' जलती हुई कोयले की खदान के नजदीक रह रहे हजारों लोगों को अच्छी जिंदगी देने के लिए इस काम को जल्द खत्म करना पड़ेगा।
क्या है जनता का हाल: शकीली देवी (60) तो यह भी भूल चुकी हैं कि पिछले कुछ सालों में उन्होंने रहने के लिए कितनी नई झोपड़ियां बनाईं। गर्मी और धंसती हुई जमीन की वजह से एक जगह रहना नामुमकिन है। उनकी झोपड़ी के बगल में ही जमीन में एक दरार है, जिससे गर्म गैस निकलती है। शकीली देवी बताती हैं, 'हम डरे हुए हैं, लेकिन कुछ नहीं कर सकते। हम सिर्फ इंतजार कर सकते हैं, जब तक सरकार हमारे लिए नया घर नहीं खोज लेती।'
जब तक सरकार अपना लक्ष्य नहीं पा लेती, शकीली देवी और उनके जैसे कई और इसी तरह फंसे रहेंगे। कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जो ठेकेदारों द्वारा दिए गए काम पर निर्भर हैं। ये परिवार वहां मुफ्त पानी के लालच में रहने को मजबूर हैं।
आग लगने और इसके 100 सालों से जलने का कारण: जलते कोयले और निकलते धुंए का क्रम लगभग 1916 से जारी है। यह वही समय था जब प्राइवेट फर्म्स ने खदानों की खुदाई शुरू की थी। भारत ने अधिकांश कोल संपत्तियों का राष्ट्रीयकरण 70 के दशक में किया था।
विशेषज्ञों के मुताबिक, उन खदानों की खुदाई के बाद उन्हें भरा नहीं गया। उन्हें खुला छोड़ दिया गया। इनमें अपने-आप आग लग गई और बढ़ती चली गई। वीरान खदानों के पास शराब की तस्करी करने वाले लोग हालात और भी बुरे बना देते हैं। आग जलाने के बाद उसे बुझाना तस्कर जरूरी नहीं समझते।
झरिया क्षेत्र को नियंत्रित करने वाली कोल इंडिया की यूनिट 'भारत कोकिंग कोल लिमिटेड' (बीसीसीएल) के अनुमान के मुताबिक, आग से अब तक 37 मिलियन टन कोयला खत्म हो चुका है। साथ ही, 2 बिलियन टन कोयले के उपयोग की संभावना भी खत्म हो गई है। इससे कुल 220 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है।
कोल इंडिया द्वारा उत्पादित कुल कोयले का सात फीसदी उत्पादन बीसीसीएल ही करता है। एक दस्तावेज के मुताबिक अगले पांच सालों के लिए बीसीसीएल की प्रोजेक्टेड ग्रोथ में 54 फीसदी की बढ़ोतरी करते हुए उसका लक्ष्य 53 मिलियन टन कोयले के उत्पादन का रखा गया है। बीसीसीएल की सफलता कोल इंडिया को सफल होने में मदद करेगी। कोल इंडिया ने 2019-20 तक एक बिलियन टन कोयले के उत्पादन का लक्ष्य रखा है।
आग बुझाने के हुए खूब प्रयास: पिछली बार गैसों पर पंपिंग करके और सतह को बंद करके आग को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया था। इस प्रयास में कंपनी को सीमित सफलता मिली, लेकिन बीसीसीएल दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गई थी।
2008 के बाद कंपनी ने गहरी और चौड़ी खुदाई करने के बजाय जलते हुए कोयले को हटाने का प्रयास किया था। यह प्रयास अधिक प्रभावी था, लेकिन जमीन की सतह को क्षतिग्रस्त करने की वजह से इस तरीके की खूब आलोचना हुई।
इसके बाद 800 डिग्री सेल्सियस तक गर्म कोयले को ठंडा करने के लिए जमीन के ऊपर पानी डालने और खदानों के आसपास पत्थर लगाने का तरीका अपनाया गया। यह तरीका सफल होने में लगभग दो साल से अधिक समय लेगा। हालांकि, 2014 में अपनाए गए तरीके से सबसे ज्यादा सफलता मिली। 6 साल पहले जलने वाली कुल जगह 9 स्क्वायर किमी थी, जिसे 2014 में 2.2 स्क्वेयर किमी तक कम किया गया।
कहां है घर: पार्ट टाइम ट्यूटर अर्जुन राम के पिता बीसीसीएल से रिटायर हो चुके हैं। वह तेज गर्मी वाली जगह से कुछ दूरी पर रहते हैं। तीन साल पहले जेआरडीए ने अर्जुन राम जैसे 50 हजार लोगों को चिह्नित किया था, जिन्हें इस जगह से दूर ले जाना था। इन्हें अभी तक घर नहीं दिए जा सके हैं। जेआरडीए मैनेजमेंट के मुताबिक ऐसा 2013 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम से पैदा हुई गलतफहमी की वजह से हुआ।
पिछले कुछ महीनों में लगभग 1000 परिवार खदान से दूर दो बेडरूम वाले फ्लैट्स में शिफ्ट हो चुके हैं और हजारों एकड़ जमीन मकानों के निर्माण के लिए खरीदी जा चुकी है। हालांकि, लोगों को अब भी सफलता पर भरोसा नहीं है। अर्जुन राम कहता है, 'अगर मेरे भाग्य में लिखा होगा तो मैं यहीं मर जाऊंगा।'
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