भारत में 7 लाख 32 हज़ार गुरुकुल एवं विज्ञान की 20 से
अधिक शाखाएं थीं
“गुरुकुल” के बारे में बहुत से लोगों को यह भ्रम है की वहाँ
केवल संस्कृत की शिक्षा दी जाती थी जो की गलत है।
भारत में विज्ञान की 20 से अधिक शाखाएं रही है जो
की बहुत पुष्पित पल्लवित रही है जिसमें प्रमुख
1. खगोल शास्त्र
2. नक्षत्र शास्त्र
3. बर्फ़ बनाने का विज्ञान
4. धातु शास्त्र
5. रसायन शास्त्र
6. स्थापत्य शास्त्र
7. वनस्पति विज्ञान
8. नौका शास्त्र
9. यंत्र विज्ञान आदि इसके अतिरिक्त शौर्य (युद्ध)
शिक्षा आदि कलाएँ भी प्रचुरता में रही है।
संस्कृत भाषा मुख्यतः माध्यम के रूप में, उपनिषद एवं वेद
छात्रों में उच्चचरित्र एवं संस्कार निर्माण हेतु पढ़ाए जाते
थे।
18 शताब्दी में भारत की जनसंख्या लगभग 20 करोड़ थी,
300 व्यक्तियों पर न्यूनतम एक गुरुकुल के अनुसार भारत में 7
लाख 32 सहस्त्र गुरुकुल होने चाहिए।
अब रोचक बात यह भी है की अंग्रेज प्रत्येक दस वर्ष में भारत
में भारत का सर्वेक्षण करवाते थे उसी के अनुसार 1822 में
लगभग भारत में कुल गांवों की संख्या भी लगभग 7 लाख 32
सहस्त्र थी,
अर्थात प्रत्येक गाँव में एक गुरुकुल। 16 से 17 वर्ष भारत में
प्रवास करने वाले शिक्षाशास्त्री लुडलो ने भी 18 वी
शताब्दी में यहीं लिखा की “भारत में एक भी गाँव ऐसा
नहीं जिसमें गुरुकुल नहीं एवं एक भी बालक ऐसा नहीं जो
गुरुकुल जाता नहीं”।
राजा की सहायता के अपितु, समाज से पोषित इन्ही
गुरुकुलों के कारण 18 शताब्दी तक भारत में साक्षरता 97%
थी,
बालक के 5 वर्ष, 5 माह, 5 दिवस के होते ही उसका गुरुकुल में
प्रवेश हो जाता था।
प्रतिदिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक विध्यार्जन का क्रम 14
वर्ष तक चलता था। जब बालक सभी वर्गों के बालको के
साथ निशुल्कः 20 से अधिक विषयों का अध्यन कर गुरुकुल
से निकलता था।
तब आत्मनिर्भर, देश एवं समाज सेवा हेतु सक्षम हो जाता
था
थोमस बेबिगटन मैकोले (टी.बी.मैकोले)
जब भारत आया तो कई वर्षों भारत में यात्राएँ एवं सर्वेक्षण
करने के उपरांत समझ गया की अंग्रेजो, यवनों, मुगलों के
द्वारा सम्पूर्ण भारत पर शासन करना क्यों सम्भव न हो
सका
क्योकि इसकी जड इनकी संस्कृति,सभ्यता और शिक्षा
व्यवस्था है यही से शूरवीर योधाओ और क्रांतिकारि बनते
है
यदि हम इनकी संस्कृति, शिक्षा एवं सभ्यता का नाश करे
तो इन्हें पराधीन किया जा सकता है
इसी कारण “Indian (British) Education Act” बना कर
समस्त गुरुकुल बंद करवाए गए। जो आज भी चल रहा है
आज के राजनेताओ में वो साहस ही नहीं है जो भारत को
उसके पूर्व शिखर पर बिठा सके
आप सोच रहे होंगे उस समय अमेरिका यूरोप की क्या
स्थिति थी,
तो सामान्य बच्चों के लिए सार्वजानिक विद्यालयों की
शुरुआत सबसे पहले इंग्लैण्ड में सन 1868 में हुई थी,
उसके बाद बाकी यूरोप अमेरिका में अर्थात जब भारत में
प्रत्येक गाँव में एक गुरुकुल था, 97% साक्षरता थी तब इंग्लैंड
के बच्चों को पढ़ने का अवसर मिला। तो क्या पहले वहाँ
विद्यालय नहीं होते थे?
होते थे परंतु महलों के भीतर, वहाँ ऐसी मान्यता थी की
शिक्षा केवल राजकीय व्यक्तियों को ही देनी चाहिए
बाकी सब को तो सेवा करनी है।
“दुर्भाग्य है की भारत में हम अपने श्रेष्ठतम सृजनात्मक पुरुषों
को भूल चुके है। इसका कारण विदेशियत का प्रभाव और
अपने बारे में हीनता बोध की मानसिकता से देश के
बुद्धिमान लोग ग्रस्त है”
अधिक शाखाएं थीं
“गुरुकुल” के बारे में बहुत से लोगों को यह भ्रम है की वहाँ
केवल संस्कृत की शिक्षा दी जाती थी जो की गलत है।
भारत में विज्ञान की 20 से अधिक शाखाएं रही है जो
की बहुत पुष्पित पल्लवित रही है जिसमें प्रमुख
1. खगोल शास्त्र
2. नक्षत्र शास्त्र
3. बर्फ़ बनाने का विज्ञान
4. धातु शास्त्र
5. रसायन शास्त्र
6. स्थापत्य शास्त्र
7. वनस्पति विज्ञान
8. नौका शास्त्र
9. यंत्र विज्ञान आदि इसके अतिरिक्त शौर्य (युद्ध)
शिक्षा आदि कलाएँ भी प्रचुरता में रही है।
संस्कृत भाषा मुख्यतः माध्यम के रूप में, उपनिषद एवं वेद
छात्रों में उच्चचरित्र एवं संस्कार निर्माण हेतु पढ़ाए जाते
थे।
18 शताब्दी में भारत की जनसंख्या लगभग 20 करोड़ थी,
300 व्यक्तियों पर न्यूनतम एक गुरुकुल के अनुसार भारत में 7
लाख 32 सहस्त्र गुरुकुल होने चाहिए।
अब रोचक बात यह भी है की अंग्रेज प्रत्येक दस वर्ष में भारत
में भारत का सर्वेक्षण करवाते थे उसी के अनुसार 1822 में
लगभग भारत में कुल गांवों की संख्या भी लगभग 7 लाख 32
सहस्त्र थी,
अर्थात प्रत्येक गाँव में एक गुरुकुल। 16 से 17 वर्ष भारत में
प्रवास करने वाले शिक्षाशास्त्री लुडलो ने भी 18 वी
शताब्दी में यहीं लिखा की “भारत में एक भी गाँव ऐसा
नहीं जिसमें गुरुकुल नहीं एवं एक भी बालक ऐसा नहीं जो
गुरुकुल जाता नहीं”।
राजा की सहायता के अपितु, समाज से पोषित इन्ही
गुरुकुलों के कारण 18 शताब्दी तक भारत में साक्षरता 97%
थी,
बालक के 5 वर्ष, 5 माह, 5 दिवस के होते ही उसका गुरुकुल में
प्रवेश हो जाता था।
प्रतिदिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक विध्यार्जन का क्रम 14
वर्ष तक चलता था। जब बालक सभी वर्गों के बालको के
साथ निशुल्कः 20 से अधिक विषयों का अध्यन कर गुरुकुल
से निकलता था।
तब आत्मनिर्भर, देश एवं समाज सेवा हेतु सक्षम हो जाता
था
थोमस बेबिगटन मैकोले (टी.बी.मैकोले)
जब भारत आया तो कई वर्षों भारत में यात्राएँ एवं सर्वेक्षण
करने के उपरांत समझ गया की अंग्रेजो, यवनों, मुगलों के
द्वारा सम्पूर्ण भारत पर शासन करना क्यों सम्भव न हो
सका
क्योकि इसकी जड इनकी संस्कृति,सभ्यता और शिक्षा
व्यवस्था है यही से शूरवीर योधाओ और क्रांतिकारि बनते
है
यदि हम इनकी संस्कृति, शिक्षा एवं सभ्यता का नाश करे
तो इन्हें पराधीन किया जा सकता है
इसी कारण “Indian (British) Education Act” बना कर
समस्त गुरुकुल बंद करवाए गए। जो आज भी चल रहा है
आज के राजनेताओ में वो साहस ही नहीं है जो भारत को
उसके पूर्व शिखर पर बिठा सके
आप सोच रहे होंगे उस समय अमेरिका यूरोप की क्या
स्थिति थी,
तो सामान्य बच्चों के लिए सार्वजानिक विद्यालयों की
शुरुआत सबसे पहले इंग्लैण्ड में सन 1868 में हुई थी,
उसके बाद बाकी यूरोप अमेरिका में अर्थात जब भारत में
प्रत्येक गाँव में एक गुरुकुल था, 97% साक्षरता थी तब इंग्लैंड
के बच्चों को पढ़ने का अवसर मिला। तो क्या पहले वहाँ
विद्यालय नहीं होते थे?
होते थे परंतु महलों के भीतर, वहाँ ऐसी मान्यता थी की
शिक्षा केवल राजकीय व्यक्तियों को ही देनी चाहिए
बाकी सब को तो सेवा करनी है।
“दुर्भाग्य है की भारत में हम अपने श्रेष्ठतम सृजनात्मक पुरुषों
को भूल चुके है। इसका कारण विदेशियत का प्रभाव और
अपने बारे में हीनता बोध की मानसिकता से देश के
बुद्धिमान लोग ग्रस्त है”
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