कुमार अवधेश सिंह
स्मार्ट (वैदिक) गाँव -------
आज देश के कई प्रांत गाँव विहीन हो गए हैं
गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा ऐसे
तमाम प्रान्तों से गाँव समाप्त हो रहे हैं इस
कारण इसलिए यहाँ उदारता समाप्त हो रही
है गाँव के रिश्ते समाप्त हो रहे हैं, हमारे पूर्वजों
ने जिस संस्कृति का निर्माण किया जिसमे
परिवार संस्था प्रमुख है जहाँ भाई, बहन,
चाचा, चाची, मामा- मामी, फुवा-फूफा,
मौसी-मौसा, ऐसे हमने गांव की सभी
लड़कियों को बहन माताओं को चाची हमने
जाती का विचार नहीं किया ये रिश्ते
हमारी जातियों से ऊपर थे कोई भी चाहे
जिस जाती का था वह उसके गांव की लड़की
जिस गांव में ब्याही है पानी नहीं पीता था
हमारा समाज इन अनुठों रिश्तों से बधा हुआ
था, क्या हम इन रिश्तों की कल्पना स्मार्ट
सिटी में कर सकते हैं
गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा ऐसे
तमाम प्रान्तों से गाँव समाप्त हो रहे हैं इस
कारण इसलिए यहाँ उदारता समाप्त हो रही
है गाँव के रिश्ते समाप्त हो रहे हैं, हमारे पूर्वजों
ने जिस संस्कृति का निर्माण किया जिसमे
परिवार संस्था प्रमुख है जहाँ भाई, बहन,
चाचा, चाची, मामा- मामी, फुवा-फूफा,
मौसी-मौसा, ऐसे हमने गांव की सभी
लड़कियों को बहन माताओं को चाची हमने
जाती का विचार नहीं किया ये रिश्ते
हमारी जातियों से ऊपर थे कोई भी चाहे
जिस जाती का था वह उसके गांव की लड़की
जिस गांव में ब्याही है पानी नहीं पीता था
हमारा समाज इन अनुठों रिश्तों से बधा हुआ
था, क्या हम इन रिश्तों की कल्पना स्मार्ट
सिटी में कर सकते हैं
हमें लगता है नहीं गांव से
शहर जातेजाते सरे रिश्ते तार-तार हो जाते हैं
क्या हम अपने समाज को जानवरों की भाति
बनाना चाहते हैं
शहर जातेजाते सरे रिश्ते तार-तार हो जाते हैं
क्या हम अपने समाज को जानवरों की भाति
बनाना चाहते हैं
भारत गावों का देश है यहाँ हमारे ऋषियों-
मुनियों ने बड़ी ही शोध करके गावों की
रचना की है हमारे देश में किसी ऐसे राजा का
नाम नहीं जिसने कुछ नहीं किया बल्कि संतों
और साधकों को याद करने वाला देश है भारत,
यहाँ राजा पृथु राजा जनक जैसे राजा हुए
जिन्होंने गाव नगरों की रचना की जिन्होंने
हमें कृषि करना सिखाया गाय हमारी माता
है यह जन-जन में आस्था ब्याप्त हो गयी।
हमारे महापुरुषों ने एक ऐसी संरचना खड़ी की
जहाँ प्रत्येक गांव स्वायत्तशासी और
स्वावलम्बी हुआ कहीं कुछ बाहर से मगाना
नहीं पड़ता था ऐसी ब्यवस्था बनायीं थी
इसी कारण भारत चक्रवर्तियों का देश
कहलाता था जिसे 'सोने की चिड़िया' कहा
जाता था, हमारे गांव में कोई बेरोजगार नहीं
था एक परिवार में जो खेती होती थी उसमे
सब्जी से लेकर अपने उपयोग का सभी सामान
अपने खेत में पैदा करता था बाहर पर केवल नमक
अथवा मिटटी का तेल की ही निर्भरता
रहती थी, कभी-कभी बिना मिटटी के तेल के
भी काम चलता था प्रत्येक गांव में गुरुकुल, गांव
को संगठित, संस्कारित रखने वाला पुरोहित,
नाई, धोबी, बढ़ई, कोहर और लोहार गांव का
खेती करने वाला किसान किसी भी वर्ण का
होता फसल होने पर वर्ष में दो बार अपने उपज
का एक हिस्सा इन्हे (परजा-पौनी) को देता
था यानी खेती के उपज का दशांश देना
होता था सभी रोजगार युक्त कोई बेरोजगार
नहीं इस प्रकार पूरा गांव संगठित होता था।
क्या हम राजा पृथु, राजा जनक अथवा भरत के
इन गाओं की संरचना को भुला देना चाहते हैं ?
जहाँ वेदों के गान गुरुकुलों में होते थी जिससे
भारत की आत्मा पहचानी जाती थी,
मुनियों ने बड़ी ही शोध करके गावों की
रचना की है हमारे देश में किसी ऐसे राजा का
नाम नहीं जिसने कुछ नहीं किया बल्कि संतों
और साधकों को याद करने वाला देश है भारत,
यहाँ राजा पृथु राजा जनक जैसे राजा हुए
जिन्होंने गाव नगरों की रचना की जिन्होंने
हमें कृषि करना सिखाया गाय हमारी माता
है यह जन-जन में आस्था ब्याप्त हो गयी।
हमारे महापुरुषों ने एक ऐसी संरचना खड़ी की
जहाँ प्रत्येक गांव स्वायत्तशासी और
स्वावलम्बी हुआ कहीं कुछ बाहर से मगाना
नहीं पड़ता था ऐसी ब्यवस्था बनायीं थी
इसी कारण भारत चक्रवर्तियों का देश
कहलाता था जिसे 'सोने की चिड़िया' कहा
जाता था, हमारे गांव में कोई बेरोजगार नहीं
था एक परिवार में जो खेती होती थी उसमे
सब्जी से लेकर अपने उपयोग का सभी सामान
अपने खेत में पैदा करता था बाहर पर केवल नमक
अथवा मिटटी का तेल की ही निर्भरता
रहती थी, कभी-कभी बिना मिटटी के तेल के
भी काम चलता था प्रत्येक गांव में गुरुकुल, गांव
को संगठित, संस्कारित रखने वाला पुरोहित,
नाई, धोबी, बढ़ई, कोहर और लोहार गांव का
खेती करने वाला किसान किसी भी वर्ण का
होता फसल होने पर वर्ष में दो बार अपने उपज
का एक हिस्सा इन्हे (परजा-पौनी) को देता
था यानी खेती के उपज का दशांश देना
होता था सभी रोजगार युक्त कोई बेरोजगार
नहीं इस प्रकार पूरा गांव संगठित होता था।
क्या हम राजा पृथु, राजा जनक अथवा भरत के
इन गाओं की संरचना को भुला देना चाहते हैं ?
जहाँ वेदों के गान गुरुकुलों में होते थी जिससे
भारत की आत्मा पहचानी जाती थी,
क्या हम देश की७५% जनसँख्या जो गांव में रहती है उसकी
उपेक्षा कर सकते हैं ? क्या हम गांवों को
समाप्त करना चाहते हैं अथवा हमारी संस्कृति
जिसे ऋषियों महर्षियों ने गांव आधारित
बनाया उसका शहरी करण कर समाप्त करना
चाहते हैं ? क्या हम भारत को अमेरिका
बनाना चाहते हैं ? यह कोरी कल्पना है हम
नहीं चाहते कि भारत से गांव समाप्त किये
जांय, आज आवस्यकता है कि गुरुकुलों को
आधुनिक बनाकर प्रत्येक गांव को सुबिधा
युक्त किया जाय जब अच्छी शिक्षा,
बिजली और पानी गांव में होगा कोई गांव
वाला शहर की तरफ मुख नहीं करेगा इसलिए
प्रत्येक गांव को सुबिधा युक्त बनाया जाय
प्रत्येक गांव में अत्याधुनिक गुरुकुल, मंदिर,
तालाब गौशाला, धर्मशाला, चारागाह,
स्वयं सहायता समूह द्वारा बैंकिंग और
चिकित्सालय युक्त कर स्मार्ट सिटी नहीं
तो उत्कृष्ट गांव बनाया जाय जिसमे कोई
बेरोजगार नहीं होगा।
उपेक्षा कर सकते हैं ? क्या हम गांवों को
समाप्त करना चाहते हैं अथवा हमारी संस्कृति
जिसे ऋषियों महर्षियों ने गांव आधारित
बनाया उसका शहरी करण कर समाप्त करना
चाहते हैं ? क्या हम भारत को अमेरिका
बनाना चाहते हैं ? यह कोरी कल्पना है हम
नहीं चाहते कि भारत से गांव समाप्त किये
जांय, आज आवस्यकता है कि गुरुकुलों को
आधुनिक बनाकर प्रत्येक गांव को सुबिधा
युक्त किया जाय जब अच्छी शिक्षा,
बिजली और पानी गांव में होगा कोई गांव
वाला शहर की तरफ मुख नहीं करेगा इसलिए
प्रत्येक गांव को सुबिधा युक्त बनाया जाय
प्रत्येक गांव में अत्याधुनिक गुरुकुल, मंदिर,
तालाब गौशाला, धर्मशाला, चारागाह,
स्वयं सहायता समूह द्वारा बैंकिंग और
चिकित्सालय युक्त कर स्मार्ट सिटी नहीं
तो उत्कृष्ट गांव बनाया जाय जिसमे कोई
बेरोजगार नहीं होगा।
थाती, वैभवशाली संस्कृति हमें दी है उसे हम
संजो-सम्हाल कर और उत्कृष्ट बनाएंगे जहाँ
रिश्ते होंगे मानवता होगी जिसमे केवल मनुष्य
ही नहीं जीव-जंतु, पशु-पक्षी और पर्यावरण
सभी की चिंता सब-कुछ अपने-आप समृद्ध
समाज का निर्माण होगा।
संजो-सम्हाल कर और उत्कृष्ट बनाएंगे जहाँ
रिश्ते होंगे मानवता होगी जिसमे केवल मनुष्य
ही नहीं जीव-जंतु, पशु-पक्षी और पर्यावरण
सभी की चिंता सब-कुछ अपने-आप समृद्ध
समाज का निर्माण होगा।
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