Thursday, 17 September 2015


कहते है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है लेकिन वही दर्पण में देखने पर कुछ इस तरह की तस्वीर दिखे तो साहित्य को शर्मसार होना ही पड़ता है। साहित्यकार का तमगा ही माँ सरस्वती का साक्षात् वरदान है फिर किस सम्मान की प्राप्ति की अभिलाषा में एक साहित्यकार के द्वारा साहित्य को राजनीति के कदमों में झुकने को मजबूर किया।
बस थोड़ी सी कसर रह गई, अगर अखिलेशवा आशीर्वाद और दे देता तो पूरा समाजवाद आ जाता😂😂😂

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