कहते है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है लेकिन वही दर्पण में देखने पर कुछ इस तरह की तस्वीर दिखे तो साहित्य को शर्मसार होना ही पड़ता है। साहित्यकार का तमगा ही माँ सरस्वती का साक्षात् वरदान है फिर किस सम्मान की प्राप्ति की अभिलाषा में एक साहित्यकार के द्वारा साहित्य को राजनीति के कदमों में झुकने को मजबूर किया।
बस थोड़ी सी कसर रह गई, अगर अखिलेशवा आशीर्वाद और दे देता तो पूरा समाजवाद आ जाता😂😂😂
बस थोड़ी सी कसर रह गई, अगर अखिलेशवा आशीर्वाद और दे देता तो पूरा समाजवाद आ जाता😂😂😂
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