Monday, 21 September 2015


सरस लेखन के मौलिक अंग :
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आचार्य चिंतामणि ने लिखा है:- “जो सुन पडे सो शब्द है, समुझि परै सो अर्थ” अर्थात जो सुनाई पडे वह शब्द है तथा उसे सुनकर जो समझ में आवे वह उसका अर्थ है। 
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शब्द की तीन शक्तियाँ हैं---
1. अभिधा 2. लक्षणा 3. व्यंजना

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अभिधा:
सांकेतिक अर्थ को बतलाने वाली शब्द की प्रथम शक्ति को‘अभिधा’ कहते है।वह शब्द वाचक कहलाता है।“शब्द एवं अर्थ के परस्पर संबंध को अभिधा कहते है”। यानि कि जो भी बात सीधा सीधा कह दें और समझ में आ जाय वह ‘अभिधा शक्ति’ होता है।
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लक्षणा:
शब्द का अर्थ अभिधा मात्र में ही सीमित नही रहता है। “लाक्षणिक अर्थ को व्यक्त करने वाली शक्ति का नाम लक्षणा है”। आशय यह है कि मुख्य अर्थ के ज्ञान में बाधा होते पर, प्रसिद्धि या प्रयोजनवश अन्य अर्थ जिस शब्द शक्ति से विदित होता है,उसे ‘लक्षणा’ कहते हैं।
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उदाहरण : “
लहरै व्योम चूमती उठती, चपलाएँ असख्य नचती।
गरल जलद की खड़ी झड़ी में, बूँदें निज संसृति रचती”।।
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यहाँ व्योम चूमती शब्द में लक्षणा है, जो ‘प्रलय की भयंकरता बता रही हैं ! प्रलय के समय समुद्र की लहरें मानो आकाश को छू रही थीं।
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व्यंजना:
शब्द शक्तियों में तीसरी शब्द-शक्ति व्यंजना है। व्यंजना का अर्थ विशेष प्रकार का अंजना है। जैसे अंजन लगाने से नेत्रों की ज्योति बढ़ जाती है। इसी प्रकार काव्य में व्यंजना प्रयुक्त करने से उसकी शोभा बढ़ जाती है।
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व्यंजना शब्द शक्ति न तो अभिधा की तरह शब्द में सीमित है और न लक्षणा की तरह अर्थ में, अपितु यह शब्द और अर्थ दोनों में रहती है। अन्य महत्वपूर्ण तत्व यह भी है कि व्यंजना शब्द शक्ति के कारण ही काव्य अधिक सरस और ग्राह्य बन जाता है !

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