Saturday, 26 September 2015

पुराने समय की बात है। एक राजा थे, नाम था-शिवि। वे
प्रजा-पालक, दीन वत्सल, न्यायप्रिय होने के साथ-
साथ जीव-दया के लिए प्रसिद्ध थे। वे कभी
भूलकर भी किसी जीव को
कष्ट नहीं होने देते थे। राजा शिवि ने जीव
हत्या तथा मांसाहार की सख्त मनाही कर
रखी थी। राजा शिवि की इस
ख्याति को सुन देवताओं के राजा इन्द्र ने सोचा, यदि सच
ही पृथ्वी पर ऐसा कोई राजा है तो
उसकी परीक्षा लेनी चाहिए।
तब इन्द्र ने अग्निदेव को बुलाकर कहा, "चलो, आज हम दोनों
मृत्युलोक चलें, वहां राजा शिवि की परीक्षा
लेनी है। तुम्हें कबूतर का रूप रखना होगा और मैं
स्वयं बाज पक्षी बनकर तुम्हारा पीछा
करूंगा। तुम उड़ते-उड़ते राजा शिवि की गोद में जा गिरना।'
अग्निदेव ने तुरंत कबूतर का रूप बनाया और इन्द्रदेव ने बाज
पक्षी का। फिर वे राजा शिवि के राज्य में जा पहुंचे। राजा
शिवि अपने राज सिंहासन पर विराजमान थे-दरबार में प्रजा व
मंत्रीगण भी थे। उसी समय
वहां भयभीत कबूतर बाज से बचने के लिए राजा शिवि
की गोद में जा गिरा और कहा, "राजन! मुझे इस बाज से
बचाइये।' इस पर बाज भी बोल उठा, "राजन! आप तो
न्यायी हैं, कबूतर छोड़ दें-मैं बहुत भूखा हूं-इसे
खाकर भूख मिटाऊंगा।' राजा ने कहा, "नहीं, तू कबूतर
मत खा, इसके बदले जो भी तू मांगेगा-हम देंगे।' तो बाज
ने कहा, "ठीक है, आप इस कबूतर के वजन के बराबर
अपनी देह का मांस तोलकर दे दें, मैं कबूतर को
नहीं खाऊंगा।' दरबार में एक विशाल और ऊंचा तराजू लाया
गया। राजा ने उस कबूतर को तराजू के एक पलड़े पर बिठाया और फिर
दूसरे पलड़े पर अपने देह का कुछ मांस काटकर रखा। राजा
काफी देर तक अपनी देह के मांस के बड़े-
बड़े टुकड़े रखता गया पर कबूतर वाला पलड़ा उठा ही
रहा, नीचे नहीं आया। पता
नहीं कबूतर का वजन इतना कैसे हो गया?
दरबारी और प्रजाजन यह देखकर परेशान थे। अंतत:
राजा स्वयं दूसरे वाले पलड़े पर जा बैठे। तभी कबूतर और
बाज गायब हो गए और उनके स्थान पर इन्द्रदेव और अग्निदेव
प्रकट हो गए। इन्द्र ने कहा, "शिवि, तुम्हारी
जीव-दया की भावना
जीती। तुम धन्य हो! हम तो केवल
परीक्षा ले रहे थे। युगों-युगों तक तुम्हारा यह आदर्श
लोगों को जीव मात्र के प्रति दया की प्रेरणा
देता रहेगा।' उसी समय राजा शिवि की देह
के सब घाव स्वयं भर गए ..

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