Friday, 25 September 2015

थोड़ी सी भी लापरवाही आगे चलकर दुःख देगी
एक शिष्य था। गुरुसेवा करता था लेकिन लापरवाह था। गुरु उसको समझाते थे किः "बेटा ! लापरवाही मत कर। थोड़ी सी भी लापरवाही आगे चलकर दुःख देगी।" शिष्य कहताः "इसमें क्या है? थोड़ा-सा दूध ढुल गया तो क्या हुआ? और सेर भर ले आता हूँ।"
यहाँ जरा से दूध की बात नहीं है, आदत बिगड़ती है। दूध का नुकसान ज्यादा नहीं है, जीवन में लापरवाही बड़ा नुकसान कर देगी। यह बात शिष्य के गले नहीं उतरती थी। गुरु ने सोचा कि इसको कोई सबक सिखाना पड़ेगा।
गुरुजी ने कहाः "चलो बेटा ! तीर्थयात्रा को जाएँगे।"
दोनों तीर्थयात्रा करने निकल पड़े। गंगा किनारे पहुँचे, शीतल नीर में गोता मारा। तन-मन शीतल और प्रसन्न हुए। सात्त्विक जल था, एकांत वातावरण था। गुरु ने कहाः
"गंगा बह रही है। शीतल जल में स्नान करने का कितना मजा आता है ! चलो, गहरे पानी में जाकर थोड़ा तैर लेते हैं। तू किराये पर मशक ले आ। मशक के सहारे दूर-दूर तैरेंगे।"
मशकवाले के पास दो ही मशक बची थी। एक अच्छी थी, दूसरी में छोटा-सा सुराख हो गया था। शिष्य ने सोचाः इससे क्या हुआ? चलेगा। छोटे-से सुराख से क्या बिगड़ने वाला है। अच्छी मशक गुरुजी को दी, सुराखवाली मशक खुद ली। दोनों तैरते-तैरते मझधार में गये। धीरे-धीरे सुराखवाली मशक से हवा निकल गई। शिष्य गोते खाने लगा। गुरुजी को पुकाराः
"गुरुजी ! मैं तो डूब रहा हूँ....।"
गुरुजी बोलेः "कोई बात नहीं। जरा-सा सुराख है इससे क्या हुआ?
"गुरुजी, यह जरा सा सुराख तो प्राण ले लेगा। अब बचाओ.... बचाओ.....!"
गुरुजी ने अपनी मशक दे दी और बोलेः "मैं तो तैरना जानता हूँ। तेरे को सबक सिखाने के लिए आया हूँ कि जीवन में थोड़ा-सा भी दोष होगा वह धीरे-धीरे बड़ा हो जायगा और जीवन नैया को डुबाने लगेगा। थोड़ी-सी गलती को पुष्टि मिलती रहेगी, थोड़ी सी लापरवाही को पोषण मिलता रहेगा तो समय पाकर बेड़ा गर्क होगा।"
"एक बीड़ी फूँक ली तो क्या हुआ?..... इतना जरा-सा देख लिया तो क्या हुआ? .... इतना थोड़ा सा खा लिया तो क्या हुआ?...."
अरे ! थोड़ा-थोड़ा करते-करते फिर ज्यादा हो जाता है, पता भी नहीं चलता। जब तक साक्षात्कार नहीं हुआ है तब तक मन धोखा देगा। साक्षात्कार हो गया तो तुम परमात्मा में टिकोगे। धोखे के बीच होते हुए भी भीतर से तुम सुरक्षित होगे।
-पूज्य बापूजी : आश्रम पुस्तक - ‘दैवी संपदा’

No comments:

Post a Comment