Saturday, 31 December 2016

"जिस सामाजिक व्यवस्था में कर्त्तव्य परिस्थितियों से विवश हो जाए, वहां स्वतः ही पुर्सार्थ के आभाव में धर्म का नाश हो जाता है, और तब, उस समाज के लिए व्यवस्था परिवर्तन अपरिहार्य होता है।
परिवर्तन की प्रक्रिया और गति इस बात पर निर्भर करेगी की समाज की संवेदनाएं और सोच का स्तर क्या है; संवेदनाएं परिवर्तन की आवश्यकता महसूस कर प्रयास को उत्प्रेरित करने के लिए और सोच उस प्रयास को सरल, दृढ़ और फलोत्पदक बनाने के लिए।
परिवर्तन के लिए केवल प्रयास पर्याप्त नहीं, बल्कि, परिणाम की सफलता सुनिश्चित करने के लिए प्रयास की दिशा भी उतनी ही महत्वपूर्ण होगी जितना की प्रयास की सार्थकता के सन्दर्भ में उद्देश्य के प्रति प्रयास की निष्ठा का होगा।
एक राष्ट्र के रूप में अपने लिए एक सुव्यवस्थित समाज की परिकल्पना को यथार्थ में जीने के प्रयास को ऐसे तो हम कई दशकों से जी रहे हैं, क्यों न अब अपने प्रयास द्वारा परिणाम की सफलता को सुनिश्चित किया जाए; यही समय की आवश्यकता भी है।
आज व्यवस्था भ्रष्ट है क्योंकि व्यक्ति स्वार्थ से शाषित और राजनीति से विवश है, फिर कार्य क्षेत्र चाहे जो हो; अवसर की उपयोगिता सिद्ध करने के लिए हमें प्रयास की प्राथमिकताओं में सुधार कर उसे एक लक्ष्य पर केंद्रित करना होगा। भ्रस्टाचार के उन्मूलन से भ्रस्टाचारी भी समाप्त हो जाएंगे पर जब तक हम अपने प्रयास को भ्रस्टाचारियों पर केंद्रित करते रहेंगे, भ्रस्टाचार जैसे विकार भी अपना प्रारूप बदलते रहेंगे ; हमें अपराध के उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित करना होगा, अन्यथा, अपराधियों की ही संख्या में बढ़ोतरी होगी;
धर्म द्वारा शाषित एक आदर्श समाज जहाँ जीवन यापन के मूल्य से अधिक नैतिक मूल्यों का महत्व हो, जो सत्य के प्रति समर्पित और न्याय के पक्ष में सदैव तत्पर हो, हो सकता है कइयों को अतिशयोक्ति लगे पर इतिहास साक्षी है की भारत भूमि ने अपने अतीत में कई बार ऐसी सुन्दर कल्पना को यथार्थ में जिया है, ऐसे में, अगर आज हमारे पुर्सार्थ में इतना आत्मबल और आत्म विश्वास न रहा की अपने प्रयास से परिकल्पना के सौन्दर्य को यथार्थ में रूपांतरित कर सकें तो इसका अर्थ यह नहीं की भारत के गौरवमयी अतीत के स्वर्णिम अध्यायों को आज हम भी अतिशयोक्ति मान लें ; इस देश के अतीत की वास्तविकता इस वर्त्तमान को ऐसा अधिकार नहीं देती।
जब जनतंत्र में राजनीति द्वारा प्रायोजित परिस्थितियों के प्रभाव में व्यक्ति की निष्ठां अपने कर्त्तव्य के निर्वहन से अधिक अपने स्वार्थ के प्रति हो, तो व्यक्ति की यही विवशता सामाजिक जीवन में नैतिक पतन का कारन बनती है, और तब, जनतांत्रिक प्रक्रिया की सबसे बड़ी सम्भावना ही उसकी सबसे बड़ी समस्या बन जाती है । हमें समस्या के निवारण के लिए इसके प्रभावों से विचलित न होते हुए इसके मूल कारन पर ध्यान को केंद्रित करना होगा;
जिस शाशन तंत्र के शक्ति के प्रभाव से राजनीति का समाज पर नियंत्रण है, उसके मानसिकता, सोच और समझ को बदलना पड़ेगा; चूँकि व्यवस्था भी व्यक्ति द्वारा संचालित होती है, ऐसे में, स्वीकृत व् स्थापित सामाजिक व्यवस्था को बदलने से बेहतर क्या व्यक्ति को बदलना सही नहीं होगा;
सूत्रधार होने के नाते व्यवस्था के स्तर का श्रेय अथवा दोष भी तो व्यक्ति का ही होता है , ऐसे में, व्यस्था परिवर्तन के किसी भी सार्थक प्रयास की सफलता तभी संभव है जब शुरुआत व्यस्था के स्त्रोत से हो, क्या आपको ऐसा नहीं लगता ?"

Thursday, 29 December 2016

महाबली जोगराज गुर्जर जिसने तैमूर की आधी सेना काट दी ! पढ़े भयंकर युद्ध की कहानी !


भारतीय इतिहास वैसे तो साक्षी रहा है एक से भयंकर एक युद्ध का , लेकिन कुछ युद्ध ऐसे भी हुए है जिसमे  भारतीय योद्धाओ ने अभूतपूर्ण वीरता का परिचय दिया और ये जानते हुए भी कि दुश्मन की सेना हमारी सेना से कई गुना अधिक है , प्राणों की बाजी लगते हुए मात्रभूमि की रक्षा करना अपना धर्म समझा ! महाबली जोगराज सिंह गुर्जर की कहानी भी अपने आप में एक इतिहास समेटे हुए है |
ये कहानी है महाबली जोगराज गुर्जर और उन हजारो योद्धाओ की जिन्होंने उस निर्दयी और अत्याचारी विदेशी हमलावर तैमूर को हरिद्वार  में न घुसने देने की कसम खायी | और जिसके लिए हजारो योध्धाओ के साथ साथ बहादूर महिलाओं ने भी युद्ध की बागडौर हाथ में संभालकर तैमूर का मुकाबला किया |
1398 में जब तैमूर लंग ने भारत पर आक्रमण किया तो उसके साथ करीब ढाई लाख  घुड़सवारो की सेना थी जिसके बल पर वो क्रूर हत्यारा निर्दोष लोगो का खून बहाते हुए तेजी से आगे बढ़ रहा था | पंजाब की धरती को लहुलुहान करने के बाद तैमुर ने दिल्ली का रूख किया और दिल्ली के शासक तुगलक को हराया | दिल्ली में लाखो निर्दोषो को मौत के घाट उतारकर उसने एक लाख लोगो को बंदी बनाया और उनका कत्लेआम किया | दिल्ली के पास ही स्थित लोनी उसका अगला निशाना थी | लोनी और उसके आस पास का क्षेत्र गुर्जर बहुल क्षेत्र था यहाँ गुर्जर राज कर रहे थे और विदेशी आक्रान्ताओं को चोट पहुचाने में सबसे ज्यादा जाने जाते थे  इसलिए तैमुर ने अगला निशाना लोनी क्षेत्र को बनाया , बहादुर गुर्जरों ने मुकाबला किया लेकिन हजारो वीरो को वीरगति का सामना करना पड़ा और तैमूर ने बंदी बनाकर वहां के एक लाख लोगो को मौत के घात उतार दिया |
उसके बाद वो हत्यारा तैमूर लंग बागपत ,मेरठ और सहारनपुर को लूटते हुए धार्मिक नगरी माने जाने वाली हरिद्वार को लूट कर और कत्लेआम आम कर वहां के मंदिरों और संपत्ति को नष्ट करने के इरादे से आगे बढ़ना चाहता था !देश और धर्म  पर आंच आते देख क्षेत्र की सर्वखाप पंचायत के मुखिया पंचायत का आयोजन करते है !   राजा जगदेव परमार के वंशज व परमार खाप के मुखिया दादा मानसिहँ परमार के वीर पुत्र महाबली जोगराज सिहँ गुर्जर को सर्वसहमति से इस पंचायती सेना की कमान सौंपी जाती है। पंचायत ने  निर्णय लिया कि अंतिम सांस तक इस आतातायी से मुकाबला किया जाएगा और इसे किसी भी हाल में रोकना होगा ! पंचायत के निर्णय को सर्वोपरि मानते हुए सभी बिरादरियो ने मिलकर महाबली को सेनापति घोषित कर दिया !
महाबली जोगराज गुर्जर जिनका जन्म सहारनपुर लान्ढोरा के पास पथरी नामक गाँव में हुआ था और महाबली उत्तर भारत के भीम कहलाये जाते थे और उनका कद 7 फीट 9 इंच था और वजन लगभग 300 किलो था !  महाबली के बारे में ये जानकारी आज भी खाप पंचायत के सदियों पुराने रिकॉर्ड में उपलब्ध है | महाबली को सर्वसम्मति से सेना प्रमुख घोषित करके युद्ध की घोषणा कर दी गयी और क्षेत्र की सभी ३६ बिरादरियो के योध्धाओ ने युद्ध में लड़ने का निर्णय लिया | हरिद्वार में होने वाली सर्वखाप की पंचायत में महाबली जोगराज गुर्जर को सेनापति बनाकर युद्ध की कमान दे दी गयी | महिला सेना ने भी इस युद्ध में भाग लेने का निर्णय लिया और महिला सेना की कमान नवयुवती रामप्यारी गुर्जरी को दे दी गयी ! दो योध्धाओ दादावीर हरवीर सिंह गुलिया जाट और दादावीर धूला सिंह बाल्मीकि जी  को उपसेनापति बनाया गया ! मामचंद गुर्जर भी सेना की एक मजबूत कड़ी थे !महिला विंग की 1 सेनापति व 4 उपसेनापति बनायीं गयी थी जिनमे वीरांगना  (1)रामप्यारी गुर्जरी सेनापति  , (2)हरदेई जाट उपसेनापति  , (3) देवीकौर उपसेनापति  , (4)चन्द्रो ब्राह्मण उपसेनापति  (5)रामदेई त्यागी उपसेनापति थी !
40 हजार ग्रामीण महिलाओं की सेना को युद्ध के लिए ट्रेनिंग देने का कार्य महिला सेनापति रामप्यारी गुर्जरी और उनकी 4 सेनापतियो ने बखूबी निभाया ! इन 40 हजार महिला योध्दाओ में सभी जातियों जैसे गुर्जर , जाट , अहीर , राजपूत , हरिजन , बाल्मीकि , त्यागी तथा अन्य जातियों की वीरांगना थी !
महाबली जोगराज सिंह गुर्जर ने अपनी सेना में जोश भरने के लिए उन्हें संबोधित किया-
 हे वीरो ! ऋषि मुनि जिस स्थान पर जिन्दगी भर की तपस्या के बाद पहुच पाते है और उन्हें जो स्थान प्राप्त होता है वीर योध्दा उसे अपनी मात्रभूमि कि रक्षा करते हुए जान देने पर प्राप्त कर लेता है ! देश को बचाओ और इसके लिए अगर बलिदान होना पड़े तो हो जाओ ! राष्ट्र तुम्हे याद रखेगा !! भगवान कृष्ण के गीता ज्ञान को याद करो और दुश्मन के विनाश के लिए आगे आओ “
इसके बाद महाबली जोगराज गुर्जर की सेना ने प्राण लिया कि चाहे हम जिन्दा रहे न रहे लेकिन इस अत्याचारी को यहाँ से भागकर छोड़ेंगे !!
सबसे पहला युद्ध मेरठ में हुआ जहाँ वीरो ने तेमूर की सेना को सांस नहीं लेने दिया , महिला सेनिको ने रामप्यारी गुर्जरी के नेतृत्व में उनके ठिकानों पर गुरिल्ला युद्ध के माध्यम से रात को हमले बोले और उनके खाने की रसद और हथियारों को नष्ट करना शुरू कर दिया ! जिससे घबराकर तैमुर अपनी ढाई लाख की सेना के साथ हरिद्वार की तरफ बढ़ा |
हरिद्वार में तैमुर ने भयंकर तरीके से हमला किया जहाँ जोगराज गुर्जर की पंचायती सेना ने मुहतोड़ जवाब दिया ! महाबली जोगराज शेर की तरह तैमुर की सेना पर टूट पड़े और काटना शुरु कर दिया ! महाबली जोगराज गुर्जर जिस तरफ जाते लाशो का ढेर लगा देते ! महिला सेना की कमान रामप्यारी गुर्जरी ने संभाली हुई थी ! तैमुर ये देखकर हैरान था कि 20-२२ साल की इतनी सुंदर युवती युद्ध के मैदान में जब उतरती है तो साक्षात् रणचंडी सी दिखाई देती है ! कई दिनों तक भयंकर युद्ध चला जिसमे एक तरफ आततायी राक्षस रूप में देश की अस्मिता और पवित्रता पर हमला करके उसे खंड खंड करना चाहते थे और दूसरी तरफ देश के वीर मतवालों और नवयुवतियो की सेना थी जो हर हाल में अपनी जान देकर भी मात्रभूमि की रक्षा करना चाहती थी !
युद्ध में तैमुर की ढाई लाख की सेना में से एक लाख साठ हजार को महाबली जोगराज गुर्जर की सेना ने काट डाला ! युद्ध में जोगराज गुर्जर के उपसेनापति हरवीर सिंह गुलिया गंभीर रूप से घायल हो गये उनको निकालने के लिए महाबली जोगराज गुर्जर ने २२ हजार मल्ल योध्धाओ के साथ मिलकर तैमुर के 5000 घुड़सवारो को काट डाला और योध्दा को अपने घोड़े पर निकाल लाये , लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका और हरवीर सिंह वीरगति को प्राप्त हो गये ! महाबली जोगराज गुर्जर के कई सेनापति इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए !
अपनी सेना को इतनी भारी मात्रा में मारे जाते देख तैमूर को युद्ध छोड़कर भागना पड़ा और पहाड़ी क्षेत्र से अम्बाला की तरफ सेना भाग गयी ! वीरो ने अपनी जान देकर भी अपनी पवित्र भूमि को दुश्मनों से सुरक्षित कर लिया ! इस भीषण युद्ध में महाबली के लगभग 40 हजार योद्धा शहीद हुए ! इसी भीषण युद्ध में तैमुर भी भाले के वार से घायल हो गया था बताया जाता है कि इसी घाव की वजह से तैमुर की मौत उसके देश में हुई थी !  महाबली जोगराज गंभीर रूप से घायल हुए और हरिद्वार के जंगलो में चले गये ! उनकी म्रत्यु के बारे में किसी को ठीक से जानकारी नहीं है लेकिन बताया जाता है कि हरिद्वार के जंगलो में ही इस योध्दा ने प्राण त्यागे ! आगे चलकर इन्ही जोगराज गुर्जर के वंसजो की रियासत को गुर्जर रियासत कहा जाता था !
प्रख्यात कवि चंद्रभटट ने इस युद्ध का अपनी आँखों से देखा इतिहास लिखा था और इस बारे में हरियाणा के प्रसिद्ध इतिहासकार स्वामी ओमानंद जी ने भी महाबली जोगराज गुर्जर और रामप्यारी गुर्जरी  के बारे में काफी विस्तार से लिखा है ! खाप पंचायत के इतिहास के सदियों पुराने ऐतिहासिक रिकार्ड् में ये सब दर्ज है !

जानें सांप के केंचुली उतारने से जुड़े

 10 अद्भुत रोचक तथ्य  ...

सांपो का जिक्र सामने आते ही हमें उनके बारे में जानने की एक ज्ञिज्ञासा बढ़ने लगती है। यह सच है कि आज भी सांप बहुत रहस्यमयी प्राणी हैं। विज्ञान और धर्म दोनो ही सांपो को अलग तरीके से मानकर चलते हैं। हिंदू धर्म में सांप को एक दैवीय प्राणी माना गया है, यही कारण है कि सांपों के कई प्राचीन मंदिर हमारे देश में मौजूद हैं।
सदियों से सांप कई कारणों से मनुष्यों के आकर्षण का क्रेंद बना हुआ है। सांप का केंचुली उतारना भी इन कारणों में से एक है। आज हम आपको बता रहे हैं सांप द्वारा केंचुली उतारने से जुड़ी रोचक और अनसुनी बातें।
1- प्रत्येक रीढ़धारी प्राणियों में त्वचा की ऊपरी परत समय-समय पर मृत हो जाती है तथा इनकी वृद्धि व विकास के साथ-साथ इस मृत त्वचा का स्थान नई त्वचा ले लेती है। इसी प्रकार एक निश्चित समय अंतराल के बाद सांप भी अपनी बाह्य त्वचा की पूरी परत उतार देता है। इसे ही केंचुली उतारना कहते हैं।
2- धार्मिक कथाओं के अनुसार सांप का केंचुली उतारना दैवीय स्वरूप का सूचक होकर उसके रूप परिवर्तन कर लेने संबंधी क्रिया के एक आवश्यक अंग है। माना जाता है कि केंचुली उतारकर सांप की उम्र बढ़ जाती है और अमरता प्राप्त कर जन्म-मरण के चक्र से छुट जाते हैं।
3- सांप की त्वचा स्वाभाविक रूप से सूखी और खुष्क होकर जलरोधी आवरण (वाटरप्रुफ कोट) वाली होती है और उसकी प्रजाति के अनुसार चिकनी या खुरदुरी हो सकती है।
4- अपनी त्वचा में किसी प्रकार की खराबी या नुकसान एक सांप को जल्दी केंचुली उतारने के लिए बाध्य करता है। केंचुली उतारने से एक तो सांप के शरीर की सफाई हो जाती है, दूसरी ओर त्वचा में फैल रहे संक्रमण से भी उसे मुक्ति मिल जाती है।
5- केंचुली उतारने से करीब एक सप्ताह पहले से सांप सुस्त हो जाता है और किसी एकांत स्थान पर चला जाता है। इस समय लिम्फेटिक नामक द्रव्य के कारण सांप की आंखें दूधिया सफेद होकर अपारदर्शक हो जाती है। इस अवस्था में ये भोजन भी नहीं करते।6- केंचुली उतारने से 24 घंटे पहले सांप की आंखों पर जमा लिम्फेटिक द्रव्य अवशोषित हो जाता है और आंखें साफ होने से वह ठीक से देख पाता है। केंचुली उतारने के बाद प्राप्त नई त्वचा चिकनी और चमकदार होती है। इसलिए इस समय सांप बहुत ही चुस्त और आकर्षक दिखाई देता है।
7- सांप का केंचुली उतारने का तरीका बहुत कष्टदाई होता है। सबसे पहले सांप अपने जबड़ों पर से केंचुली उतारते हैं क्योंकि यहां केंचुली सबसे अधिक ढीली होती है। शुरुआत में सांप अपने जबड़ों को किसी खुरदुरी सतह पर रगड़ता है ताकि इसमें चीरा आ जाए। अलग हुए भाग को सांप पेड़ के ठूंठ, कांटों, पत्थरों के बीच की खाली जगह में फंसाता है और अपने बदन को सिकोड़कर धीरे-धीरे खसकता है। अपनी पुरानी त्वचा को बदलते समय सांप बहुत ही बैचेन और परेशानी का अनुभव करता है।
8- सांप द्वारा छोड़ी गई केंचुली की सहायता से संबंधित सांप की पहचान की जा सकती है। यह सांप की हूबहू प्रति तो नहीं होती लेकिन सांप की त्वचा पर पड़े शल्कों की आकृति इनसे शत-प्रतिशत मिलती है।
9- कोई सांप अपने जीवनकाल में कितनी बार केंचुली उतारेगा, इस सवाल का कई बातों पर निर्भर करता है जैसे- सांप की उम्र, सेहत, प्राकृतिक आवास, तापमान और आद्रता आदि। सामान्यत: धामन सांप एक साल में 3-4 बार केंचुली उतारता है वहीं अजगर और माटी का सांप साल में एक ही बार केंचुली उतारते हैं।
10- केंचुली पर सांप का रंग नहीं आ पाता क्योंकि रंगों का निर्माण करने वाली पिगमेंट कोशिका सांप के साथ ही चली जाती है।

छत्रपति शिवाजी महाराज 

नौसेना (Navy) के जनक थे ...


छत्रपति संभाजी महाराज ने शस्त्र युक्त नौ जहाज का निर्माण किया यह कहना गलत नही होगा संभाजी महाराज नौ वैज्ञानिक तो थे ही साथ में शस्त्र विशेषज्ञ भी थे उन्हें ज्ञात था कौनसा नौके में कितने वजन का तोप ले जा सकता हैं ।
छत्रपति शिवाजी महाराज नौसेना के जनक थे केवल भारत ही नही अपितु पुरे विश्व को नौ सेना बनाने का विचार सूत्र दिया नौका को केवल वाहन रूप में इस्तेमाल किया जाता था शिवाजी महाराज प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने साधारण नौका को समंदर का रक्षक का रूप दे दिया शस्त्रयुक्त लड़ाकू जहाज बनाकर । शिवपुत्र संभाजी महाराज समंदर के अपराजय योद्धा थे समंदर की रास्ता उन्हें अपनी हथेलियों की लकीर जैसी मालूम थी , इसलिए पुर्तगालियों के पसीने छूटते थे संभाजी महाराज के नाम से केवल।
पुर्तगाली साथ युद्ध-:
‘छत्रपति संभाजी महाराजने गोवामें पुर्तगालियों से किया युद्ध राजनीतिक के साथ ही धार्मिक भी था । हिंदुओं का धर्मांतरण करना तथा धर्मांतरित न होनेवालों को जीवित जलाने की शृंखला चलानेवाले पुर्तगाली पादरियों के ऊपरी वस्त्र उतार कर तथा दोनों हाथ पीछे बांधकर संभाजी महाराज ने गांव में उनका जुलूस निकाला ।’ – प्रा. श.श्री. पुराणिक (ग्रंथ : ‘मराठ्यांचे स्वातंत्र्यसमर (अर्थात् मराठोंका स्वतंत्रतासंग्राम’ डपूर्वार्ध़) छत्रपति संभाजी महाराज अत्यंत क्रोधित हुए क्योंकि गोवा में पुर्तगाली हिन्दुओं के धर्म परिवर्तन के साथ साथ मंदिरों को ध्वंश भी कर रहे थे। छत्रपति संभाजी महाराज द्वारा किये जा रहे हमले से अत्यंत भयभीत होगे थे जो पोर्तुगाली के लिखे चिट्ठी में दर्शाता हैं : “ संभाजी आजके सबसे पराक्रमी व्यक्ति हैं और हमें इस बात का अनुभव हैं” ।
यह रहा पोर्तुगाली इसाई कसाइयों द्वारा लिखा हुआ शब्द-: (The Portuguese were very frightened of being assaulted by Sambhaji Maharaj, and this reflects in their letter to the British in which they wrote, ‘Now-a-days Sambhaji is the most powerful person and we have experienced it’. )
संभाजी महाराज गोवा की आज़ादी एवं हिन्दुओ के उप्पर हो रहे अत्याचारों का बदला लेने के लिए 7000 मावले इक्कट्ठा किया और पुर्तगालीयों पर आक्रमण कर दिया पुर्तगाली सेना जनरल अल्बर्टो फ्रांसिस के पैरो की ज़मीन खिसक गई महाराज संभाजी ने 50,000 पुर्तगालीयों सेना को मौत के घाट उतार दिया बचे हुए पुर्तगाली अपने सामान उठाकर चर्च में जाकर प्रार्थना करने लगे और कोई चमत्कार होने का इंतेज़ार कर रहे थे संभाजी महाराज के डर से समस्त पुर्तगाली लूटेरे पंजिम बंदरगाह से 500 जहाजों पर संभाजी महाराज के तलवारों से बच कर कायर 25000 से अधिक पुर्तगाली लूटेरे वापस पुर्तगाल भागे ।
संभाजी महाराज ने पुरे गोवा का शुद्धिकरण करवाया एवं ईसाइयत धर्म में परिवर्तित हुए हिंदुओं को हिंदू धर्म में पुनः परिवर्तित किया ।पुर्तगाली सेना के एक सैनिक मोंटिरो अफोंसो वापस पुर्तगाल जाकर किताब लिखा (Drogas da India) लिखता हैं संभाजी महाराज को हराना किसी पहाड़ को तोड़ने से ज्यादा मुश्किल था महाराज संभाजी के आक्रमण करने की पद्धति के बारे में से ब्रिटिश साम्राज्य तक भयभीत होगया गया था अंग्रेजो और हम (पुर्तगाल) समझ गए थे भारत को गुलाम बनाने का सपना अधुरा रह जायेगा।
संभाजी महाराज की युद्धनिति थी अगर दुश्मनों की संख्या ज्यादा हो या उनके घर में घुसकर युद्ध करना हो तो घात लगा कर वार करना चाहिए जिसे आज भी विश्व के हर सेना इस्तेमाल करती हैं जिसे कहते हैं Ambush War Technic। पुर्तगाल के सैनिक कप्तान अफोंसो कहता हैं संभाजी महाराज के इस युद्ध निति की कहर पुर्तगाल तक फैल गई थी संभाजी महाराज की आक्रमण करने का वक़्त होता था रात के ८ से ९ बजे के बीच और जब यह जान बचाकर पुर्तगाल भागे तब वहा भी कोई भी पुर्तगाली लूटेरा इस ८ से ९ बजे के बीच घर से नहीं निकलता था in लूटेरो को महाराज संभाजी ने तलवार की वह स्वाद चखाई थी जिससे यह अपने देश में भी डर से बहार नहीं निकलते थे घर के ।हिंदू धर्म में पुनः परिवर्तित किया गया :
हम सभी जानते हैं छत्रपति शिवाजी महाराज के निकट साथी, सेनापति नेताजी पालकर जब औरंगजेब के हाथ लगे और उसने उनका जबरन धर्म परिवर्तन कर उसका नाम मोहम्मद कुलि खान रख दिया । शिवाजी महाराज ने मुसलमान बने नेताजी पालकर को ब्राम्हणों की सहायता से पुनः हिन्दू बनाया और उनको हिन्दू धर्म में शामिल कर उनको प्रतिष्ठित किया।
हालांकि, यह ध्यान देने की बात हैं संभाजी महाराज ने हिंदुओं के लिए अपने प्रांत में एक अलग विभाग स्थापित किया था जिसका नाम रखा गया ‘पुनः परिवर्तन समारोह’ दुसरे धर्म में परिवर्तित होगये हिन्दुओ के लिए इस समारोह का आयोजन किया गया था ।
हर्षुल नामक गाँव में कुलकर्णी ब्राह्मण रहता था संभाजी महाराज पर लिखे इतिहास में इस वाकया का उल्लेख हैं कुलकर्णी नामक ब्राह्मण को ज़बरन इस्लाम में परिवर्तित किया था मुगल सरदारों ने कुलकर्णी मुगल सरदारों की कैद से रिहा होते ही संभाजी महाराज के पास आकर उन्होंने अपनी पुन: हिन्दू धर्म अपनाने की इच्छा जताई संभाजी महाराज ने तुरंत ‘पुनः धर्म परिवर्तन समारोह का योजन करवाया और हिन्दू धर्म पुनःपरिवर्तित किया ।
सम्मोहन से पूर्वजन्म का सफर
पूर्वजन्म की घटनाओं का साक्षात्कार करने के लिए सम्मोहन का भी प्रयोग किया जाता है। भारतीय ऋषियों ने सम्मोहन को योगनिद्रा कहा है। सम्मोहन की प्रकिया आप खुद भी कर सकते हैं इसे स्वसम्मोहन कहा जाता है।
दूसरों के द्वारा भी आप सम्मोहन की स्थिति में पहुंच सकते हैं इसे परसम्मोहन कहा जाता है और तीसरा तरीका है योग है जिसमें त्राटक द्वारा व्यक्ति सम्मोहन की स्थिति में पहुंच जाता है।
सम्मोहन के द्वारा आप गहरी निद्रा में पहुंच जाते हैं और अपने पूर्वजन्म की स्मृतियों को टटोल सकते हैं।
इसके लिए आपको किसी शांत कमरे में पलथी मारक बैठना चाहिए इसके बाद अपना ध्यान दोनों भौहों के मध्य में केन्द्रित करें। आपको चारों ओर अंधेरा दिखेगा और एक गुदगुदी सी महसूस होगी। लेकिन अपना ध्यान केन्द्रित रखें।
नियमित अभ्यास से अंधेरा छंटने लगेगा और उजला बढ़ने लगेगा और आप इस शरीर की सीमाओं से पार निकलकर पूर्वजन्म की घटनाओं में झांकने लगेंगे।
कायोत्सर्ग द्वारा प्रवेश करें पूर्वजन्म में
पूर्वजन्म की यादों में प्रवेश करने का एक साधन कायोत्सर्ग है। अपने नाम के अनुसार इस प्रक्रिया में व्यक्ति को अपनी काया यानी शरीर की चेतना से मुक्त होना पड़ता है। कायोत्सर्ग शरीर को स्थिर, शिथिल और तनाव मुक्त करने की प्रक्रिया है।
इसमें शरीर की चंचलता दूर होकर शरीर स्थिर होने लगता है। शरीर का मोह और सांसारिक बंधन ढीला पड़ने लगता है और शरीर एवं आत्मा के अलग होने का एहसास होता है। इसके बाद व्यक्ति पूर्वजन्म की घटनाओं के बीच पहुंच जाता है।
अनुप्रेक्षा से पूर्वजन्म का ज्ञान
पूर्वजन्म की स्मृतियों में प्रवेश करने का एक तरीका अनुप्रेक्षा है। जैन परंपरा में बताया गया है कि अनुप्रेक्षा ऐसी प्रक्रिया है जिसके प्रयोग से व्यक्ति स्वतः सुझाव और बार-बार भावना से पूर्वजन्म की स्मृति में प्रवेश कर जाता है। अनुप्रेक्षा से भावधारा निर्मल बनती है। पवित्र चित्त का निर्माण होता है।
साधन ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है कि उसे ज्ञात भी नहीं रहता कि वह कहां है। अतीत की घटनाओं का अनुचिंतन करते-करते वे स्मृति पटल पर अंकित होने लगती है और साधक उनका साक्षात्कार करता है।

Wednesday, 28 December 2016

अखंड भारत जम्बूद्विप...अनकहा सच...

मंगोलिया था हिन्दू राष्ट्र…!

जम्बू द्वीप में 9 देश है:- इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भारत, हरि, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय। पुराणों में जंबूद्वीप के 6 पर्वत बताए गए हैं- हिमवान, हेमकूट, निषध, नील, श्वेत और श्रृंगवान। इलावृत जम्बू द्वीप के बीचोबीच स्‍थित है।

इस इलावृत के मध्य में स्थित है सुमेरू पर्वत। इलावृत के दक्षिण में कैलाश पर्वत के पास भारतवर्ष, पश्चिम में केतुमाल (ईरान के तेहरान से रूस के मॉस्को तक), पूर्व में हरिवर्ष (जावा से चीन तक का क्षेत्र) और भद्राश्चवर्ष (रूस के कुछ क्षेत्र), उत्तर में रम्यक वर्ष (रूस के कुछ क्षेत्र), हिरण्यमय वर्ष (रूस के कुछ क्षेत्र) और उत्तर कुरुवर्ष (रूस के कुछ क्षेत्र) नामक देश हैं।

पुराणों के अनुसार इलावृत चतुरस्र है...
 वर्तमान भूगोल के अनुसार पामीर प्रदेश का मान 150X150 मील है अतः चतुरस्र होने के कारण यह ‘पामीर’ ही इलावृत है। इलावृत से ही ऐरल सागर, ईरान आदि क्षेत्र प्रभावित हैं।
आज के किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान, मंगोलिया, तिब्बत, रशिया और चीन के कुछ हिस्से को मिलाकर इलावृत बनता है। मूलत: यह प्राचीन मंगोलिया और तिब्बत का क्षेत्र है।
 एक समय किर्गिस्तान और तजाकिस्तान रशिया के ही क्षेत्र हुआ करते थे। सोवियत संघ के विघटन के बाद ये क्षेत्र स्वतंत्र देश बन गए।
आज यह देश मंगोलिया में ‘अतलाई’ नाम से जाना जाता है। ‘अतलाई’ शब्द इलावृत का ही अपभ्रंश है। सम्राट ययाति के वंशज क्षत्रियों का संघ भारतवर्ष से जाकर उस इलावृत देश में बस गया था। उस इलावृत देश में बसने के कारण क्षत्रिय ऐलावत (अहलावत) कहलाने लगे।
इस देश का नाम महाभारतकाल में ‘इलावृत’ ही था। जैसा कि महाभारत में लिखा है कि श्रीकृष्णजी उत्तर की ओर कई देशों पर विजय प्राप्त करके ‘इलावृत’ देश में पहुंचे। इस स्थान को देवताओं का निवास-स्थान माना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने देवताओं से ‘इलावृत’ को जीतकर वहां से भेंट ग्रहण की।
इलावृत देश के मध्य में स्थित सुमेरू पर्वत के पूर्व में भद्राश्ववर्ष है और पश्चिम में केतुमालवर्ष है। इन दोनों के बीच में इलावृतवर्ष है। इस प्रकार उसके पूर्व की ओर चैत्ररथ, दक्षिण की ओर गंधमादन, पश्चिम की ओर वैभ्राज और उत्तर की ओर नंदन कानन नामक वन हैं, जहां अरुणोद, महाभद्र, असितोद और मानस (मानसरोवर)- ये चार सरोवर हैं। माना जाता है कि नंदन कानन का क्षेत्र ही इंद्र का लोक था जिसे देवलोक भी कहा जाता है। महाभारत में इंद्र के नंदन कानन में रहने का उल्लेख मिलता है।
सुमेरू के दक्षिण में हिमवान, हेमकूट तथा निषध नामक पर्वत हैं, जो अलग-अलग देश की भूमि का प्रतिनिधित्व करते हैं। सुमेरू के उत्तर में नील, श्वेत और श्रृंगी पर्वत हैं, वे भी भिन्न-भिन्न देशों में स्थित हैं।
( इस पेज पर सभी पोस्ट में तर्कहीन अलौकिक बातों को छोडकर ऐतिहासिक तथ्य ही पकडें ।)

पहले इल :
 ब्रह्मा के पुत्र अत्रि से चंद्रमा का जन्म हुआ। चंद्रमा से बुध का जन्म हुआ। बुध का विवाह स्वायंभुव मनु की पुत्री इल से हुआ। इल-बुध सहवास से पुरुरवा हुए। पुरुरवा के कुल में ही भरत और कुरु हुए। कुरु से कुरुवंश चला। भारत के समस्त चन्द्रवंशी क्षत्रिय पुरुरवा की ही संतति माने जाते हैं।
ऐल लोगों के साथ उत्तर कुरु लोगों का भी एक बड़ा भाग था। ऐल ही कुरु देश (पेशावर के आसपास का इलाका) में बसने के कारण कुरु कहलाते थे। इतिहासकारों के अनुसार ये ऐल ही पुरुरवा (पुरु) था। यूनान और यहूदियों के पुराने ग्रंथों में ऐल के पुत्रों का जिक्र मिलता है। इस ऐल के नाम पर ही इलावृत देश रखा गया।
दूसरे इल :
 इस देश (इलावृत) का नाम दक्ष प्रजापति की पुत्री इला के क्षत्रिय पुत्रों से आवृत होने के कारण इलावृत रखा गया। आज यह देश मंगोलिया में ‘अतलाई’ नाम से जाना जाता है। ‘अतलाई’ शब्द ‘इलावृत’ का ही अपभ्रंश है। सम्राट ययाति के वंशज क्षत्रियों का संघ भारतवर्ष से जाकर उस इलावृत देश में आबाद हो गया। उस इलावृत देश में बसने के कारण क्षत्रिय ऐलावत (अहलावत) कहलाने लगे।
तीसरे इल :
 वायु पुराण के अनुसार त्रेतायुग के प्रारंभ में ब्रह्मा के पुत्र स्वायंभुव मनु के दूसरे पुत्र प्रियवृत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था। प्रियवृत के पुत्र जम्बू द्वीप के राजा अग्नीन्ध्र के 9 पुत्र हुए- नाभि, किम्पुरुष, हरिवर्ष, इलावृत, रम्य, हिरण्यमय, कुरु, भद्राश्व और केतुमाल। राजा आग्नीध ने उन सब पुत्रों को उनके नाम से प्रसिद्ध भूखंड दिया। इलावृत को मिला हिमालय के उत्तर का भाग। नाभि को मिला दक्षिण का भाग।
चौथे इल :
 वैवस्वत मनु के 10 पुत्र थे- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यंत, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध। पुराणों में वैवस्वत मनु का भी स्थान सुमेर पर्वत बताया जाता है, जो कि इलावृत के मध्य में कहा गया है। पहले पुत्र इल के नाम पर ही इलावृत रखा गया।
यूराल-पर्वत से ’यूराल’ नाम की एक नदी भी निकलती है। ‘इरा’ का अर्थ जल होने से इरालय का अर्थ नदी हो जाता है। आर्यों की योरपीय शाखा सम्भवतः यूराल-पर्वत-श्रेणी के आसपास के प्रदेशों से ही अलग हुई और उनमें से एक ने इलावर्त की स्थापना की।
इसके अनन्तर वायुपुराण में हिरण्मयवर्ष का होना बतलाया गया है। हिरण्मय के बाद श्वेत-पर्वत और उसके बाद रम्यक-वर्ष है। रम्यकवर्ष के बाद नीलपर्वत और तत्पश्चात् इलावृत है। हम एशिया के मानचित्र में इन पाञ्च स्थानों का क्रमिक निर्देश करते हुए इलावृत का निर्देश Elburz (एलबर्ज़)-पर्वत से कर सकते हैं। यह एलबर्ज़ कास्पियन-सागर के उत्तर पश्चिम तक फैला हुआ है। इन पहाड़ी प्रदेशों के उत्तर काकेसस पर्वत है। काकेसस पर्वत के निकटवर्ती प्रदेश की भूमि । यदि एलबर्ज़ के आसपास (कास्पियन-सागर के पश्चिमी किनारे से लेकर दक्षिण-पूर्व तक) हिन्दुओं के इलावृत-देश को मान लें तो काकेसस, जो नील-सागर के उत्तर-पूर्व है, नील-पर्वत का स्थान ग्रहण कर सकता है।
अखंड भारत जम्बूद्विप
📢 रतन टाटा ने एक स्कूल में भाषण के दौरान 10 बातें बताई 🍁
जो विद्यार्थियों को नहीं सिखाई जाती🔛
💱 १ जीवन उतार-चढ़ाव से भरा है इसकी आदत बना लो.
💱 २ लोग तुम्हारे स्वाभिमान की परवाह नहीं करते इसलिए पहले खुद को साबित करके दिखाओ.
💱 ३ कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद 5 आंकड़े वाली पगार की मत सोचो, एक रात में कोई वाइस प्रेसिडेंट नहीं बनता. इसके लिए अपार मेहनत पड़ती है.
💱 ४ अभी आपको अपने शिक्षक सख्त और डरावने लगते होंगे क्योंकि अभी तक आपके जीवन में बॉस नामक प्राणी से पाला नहीं पड़ा.
💱 ५ तुम्हारी गलती सिर्फ तुम्हारी है तुम्हारी पराजय सिर्फ तुम्हारी है किसी को दोष मत दो इस गलती से सीखो और आगे बढ़ो.
💱 ६ तुम्हारे माता पिता तुम्हारे जन्म से पहले इतने निरस और ऊबाऊ नही थे जितना तुम्हें अभी लग रहा है तुम्हारे पालन पोषण करने में उन्होंने इतना कष्ट उठाया कि उनका स्वभाव बदल गया.
💱 ७ सांत्वना पुरस्कार सिर्फ स्कूल में देखने मिलता है. कुछ स्कूलों में तो पास होने तक परीक्षा दी जा सकती है लेकिन बाहर की दुनिया के नियम अलग हैं वहां हारने वाले को मौका नहीं मिलता.
💱 ८ – जीवन के स्कूल में कक्षाएं और वर्ग नहीं होते और वहां महीने भर की छुट्टी नहीं मिलती. आपको सिखाने के लिए कोई समय नहीं देता. यह सब आपको खुद करना होता है.
💱 ९ – tv का जीवन सही नहीं होता और जीवन tv के सीरियल नहीं होते. सही जीवन में आराम नहीं होता सिर्फ काम और सिर्फ काम होता है .
💱 १०– लगातार पढ़ाई करने वाले और कड़ी मेहनत करने वाले अपने मित्रों को कभी मत चिढ़ाओ. एक समय ऐसा आएगा कि तुम्हें उसके नीचे काम करना पड़ेगा.

क्या आपने कभी ये विचार किया कि..🔜
लग्जरी क्लास कार का किसी TV चैनल पर कभी कोई विज्ञापन क्यों नही दिखाया जाता ??
.कारण यह कि उन कार कंपनी वालों को ये पता है कि...ऐसी कार लेने वाले व्यक्ति के पास TV के सामने बैठने का फालतू समय नहीं होता..
"जीवन में हम कितना कमाते हैं, या फिर, क्या कमाने में हम अपना जीवन बीताते हैं इन दोनों में अधिक महत्वपूर्ण क्या होना चाहिए, आप ही बताएं ?
जब तक जीवन को क्या कमाना चाहिए इसी का बोध न हो तो जीवन अपने प्रयास से चाहे जितना भी कमा ले क्या फर्क पड़ता है।
सुखद जीवन सफलता का पर्याय भले हो सकता है पर आवश्यक नहीं की हर सफल जीवन सार्थक भी हो; अपने प्रयास से समय द्वारा परिस्थितियों के सन्दर्भ में अपनी उपयोगिता सिद्ध कर ही न केवल जीवन अपने लिए महत्व अर्जित कर सकता है बल्कि यही सही अर्थों में जीवन रूपी अवसर की उपलब्धि भी होगी।
परिस्थितियों के सन्दर्भ में किसी भी पात्र की भूमिका ही उसे महत्वपूर्ण बनाती है, ऐसे में, वर्त्तमान के राष्ट्रीय सन्दर्भ में एक सभ्य और शिक्षित समाज के रूप में हमारी क्या भूमिका होनी चाहिए, आप ही बताएं !
अगर हम सभ्य और शिक्षित न रहे हों तो अलग बात है, फिर, व्यक्तिगत प्राथमिकताओं का महत्व हमारे सामाजिक दायित्व और राष्ट्रीय कर्तव्यों से अधिक हो सकता है ; समझ की सीमित परिधि के प्रभाव में जब समाज के लोगों के लिए उनका स्वार्थ ही समस्या बन जाए तो समाज में कुव्यवस्था और राष्ट्र के भविष्य के सन्दर्भ में अनिश्चितता स्वाभाविक है।
ऐसे में, हमें यह नहीं भूलना चाहिए की आज वो सभी कारन जो हमारी प्राथमिकताओं की सूचि में समाज के प्रति हमारे नैतिक कर्तव्यों और राष्ट्र के प्रति हमारे दायित्व से अधिक महत्वपूर्ण है, उनका अस्तित्व भी हमारे राष्ट्र के अस्तित्व पर ही निर्भर करता है। इसलिए अगर हम एक अच्छे नागरिक न बन सके तो हमारी व्यक्तिगत सफलता भी निरर्थक सिद्ध होगी; विश्व में आज ऐसे कई उदाहरण हैं जो राष्ट्र के रूप में उपर्युक्त तथ्य को सत्यापित करते हैं।
जनतंत्र में सामाजिक व्यवस्था चुनने का अधिकार जनता का होता है और अगर हम एक राष्ट्र के रूप में अपने लिए एक योग्य नेता का चयन भी न कर सकें तो राष्ट्र के लिए भला और क्या कर सकेंगे; केवल अपने पैसों के लिए कतार में खड़े होकर हो सकता है आज राष्ट्रभक्ति प्रदर्शित की जा सकती है पर यह निश्चित रूप से पर्याप्त नहीं होगा; हमें अपने राष्ट्र के विषय में सोचना पड़ेगा।
किसी भी निष्कर्ष के सही होने के लिए परिस्थितियों द्वारा उत्पन्न तथ्यों का अध्यन निर्णायक होगा, केवल प्रचारित जानकारियों पर आधारित निष्कर्ष सही नहीं होगा। हमें अपने ध्यान को समस्याओं के प्रभाव तक सीमित न रखकर उसके मूल कारन के विषय में सोचना पड़ेगा, तभी, परिस्थितियों में परिवर्तन और व्यवस्था में सुधार संभव है।
सामाजिक समस्याओं से निवृत होने के नाम पर जब तक शाशन तंत्र अपनी शक्तियों का प्रयोग राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए करती रहेगी, समाज का भला हो ही नहीं सकता, ऐसा इसलिए क्योंकि राजनीतिक विरोधी हों या पक्षधर, आखिर हैं तो उसी समाज का अंग जिसे व्यवस्था प्रदान करने के लिए जनता ने सरकार चुनी है, ऐसे में, शाशन तंत्र के लिए राजनीति और राजनीतिक विरोधियों का महत्व अगर सामाजिक आवश्यकताओं से अधिक होगा, तो स्वाभाविकतः उसके प्राथमिकताओं की यह त्रुटि उसके प्रयास के परिणाम में भी प्रतिबिंबित होगी;
राजनीति का गिरता स्तर या सरकार की भ्रमित प्राथमिकताएं और प्रयास की गलत दिशा...यह सब आखिरकार नेतृत्व की त्रुटियों को ही सिद्ध करता उदाहरण है जिसे न तो विकास की सही समझ है और न ही सामाजिक समस्याओं का वास्तविक बोध, ऐसे में, प्रयास के नाम पर देश में कोई भी राजनीतिक प्रयोग करने से बेहतर क्या यह नहीं होगा की विचारधारा का व्यावहारिक प्रयोग किया जाए।
आज कारन भी है और आवश्यकता भी, ऐसे में, क्यों नहीं नेतृत्व परिवर्तन कर राजनीती द्वारा समाज में प्रचारित व् पोषित मिथ्या आकांक्षाओं को नगण्य और संभावनाओं को असीम बनाने का प्रयास किया जाए;
जनतंत्र समाज के लिए है.. समाज जनतंत्र के लिए नहीं, ऐसे में, अगर समाज का बहुमत अपना वैचारिक स्तर खो दे तो क्या उनके निर्णय की गलती देश को भुगतने देना चाहिए, कारन कई हैं और पर्याप्त भी, ऐसे में, क्या समाज के संगठित शक्ति का ऐसी परिस्थिति में कोई नैतिक कर्त्तव्य नहीं बनता? नेतृत्व की त्रुटियों के दोष से समाज की संगठित शक्ति भी बच नहीं सकती .. वो भी तब... जब सत्ताधारी राजनीतिक दल को उसी ने अपने गर्भ से जन्म दिया हो, तो क्यों न अपने दायित्व को स्वीकार करते हुए वो किया जाए जिसकी आवश्यकता है।
नेतृत्व परिवर्तन ही समय की आवश्यकता है पर जब तक हम विकल्पों के आधार पर नेतृत्व का निर्णय करने का प्रयास करेंगे, परिवर्तन ही समस्या बन जायेगी; क्यों न समय की आवश्यकता के आधार पर नेतृत्व का निर्धारण करें ; निर्णय का अधिकार चाहे जिसका हो।
अवसर को व्यर्थ करने से क्या लाभ, क्यों न उसकी उपयोगिता सिद्ध की जाए; इस विषय में आप क्या कहते हैं?"
1...
https://www.youtube.com/watch?v=pcZKbjpzDkQ

2...

https://www.youtube.com/watch?v=5lRqPBhjNJY&t=104s...

3...
https://www.youtube.com/watch?v=hv3rAVuBU1s

What Ancient Hindus Knew about Dinosaurs 800 years before Modern Science will Shock you

Sometime ago, this Stegosaurus Dinaosour carving was noticed on the walls of Ang kor wat Temple, which is a crazy sight because according to the modern science, the Dino sours fossils were discovered in early 19th century but this Ancient Hindu Temple has been around since 11th century.
Angkor Wat Temple in Cambodia, was Built around A.D 1140 by Khmer dynasty King Suryavarman II as a Hindu Temple dedicated to Lord Vishnu. it is is the largest surviving religious monument ever constructed in the History of Mankind.
Angkor Wat Temple, (More than the size of 400 football fields put together) located in Cambodia, is full of ancient marvelous mystical miracles. Just like the Pyramids of Egypt, Ang kor wat also has thousands of stone carvings, wall carvings and such elements which are full of mysteries to the modern world.
Recently, Scientists across the world hace confirmed to this Great Discovery made by Ancient Hindus about Dinosours has just come to light.




कश्मीर के बाद अब बंगाल का नंबर है।
ये दावा है जानी-मानी *अमेरिकी पत्रकार जेनेट लेवी का।* उन्होंने अपने ताजा लेख में इस दावे के पक्ष में कई तथ्य पेश किए हैं।
जेनेट लेवी ने लिखा है- “बंटवारे के वक्त भारत के हिस्से वाले पश्चिमी बंगाल में *मुसलमानों की आबादी 12 फीसदी* से कुछ ज्यादा थी, जबकि पाकिस्तान के हिस्से में गए पूर्वी बंगाल में *हिंदुओं की आबादी 30 फीसदी थी।* आज पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की जनसंख्या बढ़कर *27 फीसदी हो चुकी है।* कुछ जिलों में तो ये 63 फीसदी तक हो गई है।
दूसरी तरफ बांग्लादेश में *हिंदू 30 फीसदी से घटकर 8 फीसदी बाकी बचे हैं।”* जेनेट ने यह लेख उन पश्चिमी देशों के लिए खतरे की चेतावनी के तौर पर लिखा है, जो अपने दरवाजे शरणार्थी के तौर पर आ रहे मुसलमानों के लिए खोल रहे हैं। जेनेट लेवी का यह लेख *‘अमेरिकन थिंकर’* मैगजीन में पब्लिश हुआ है।
*इस्लामी देश बनने की राह पर बंगाल!*
जेनेट लेवी ने लिखा है कि किसी भी समाज में मुसलमानों की 27 फीसदी आबादी काफी है कि वो उस जगह को अलग इस्लामी देश बनाने की मांग शुरू कर दें। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पिछले चुनाव में लगभग पूरी मुस्लिम आबादी ने वोट दिए। *जाहिर है ममता बनर्जी पर भी दबाव है कि वो मुसलमानों को खुश करने वाली नीतियां बनाएं।* इसी के तहत उन्होंने सऊदी अरब से फंड पाने वाले *10 हजार से ज्यादा मदरसों को मान्यता देकर वहां की डिग्री को सरकारी नौकरी के काबिल बना दिया।* इसके अलावा *मस्जिदों के इमामों के लिए तरह-तरह के वजीफे* घोषित किए हैं।
*ममता ने एक इस्लामिक शहर बसाने का प्रोजेक्ट भी शुरू किया है।* पूरे बंगाल में मुस्लिम मेडिकल, टेक्निकल और नर्सिंग स्कूल खोले जा रहे हैं, जिनमें मुस्लिम छात्रों को सस्ती शिक्षा मिलेगी। इसके अलावा कई ऐसे अस्पताल बन रहे हैं, जिनमें सिर्फ मुसलमानों का इलाज होगा। मुसलमान नौजवानों को *मुफ्त साइकिल से लेकर लैपटॉप तक बांटने की स्कीमें चल रही हैं।* इसमें भी पूरा ध्यान रखा जाता है कि लैपटॉप मुस्लिम लड़कों को ही मिले, लड़कियों को नहीं। बंगाल *में बेहद गरीबी में जी रहे लाखों हिंदू परिवारों को ऐसी किसी स्कीम का फायदा नहीं मिलता।*
*जल्द शुरू होगी शरीयतकानून की मांग*
जेनेट लेवी ने दुनिया भर की ऐसी कई मिसालें दी हैं, जहां मुस्लिम आबादी बढ़ने के साथ ही *आतंक, कठमुल्लापन और अपराध के मामले बढ़ने लगे।* इन सभी जगहों पर धीरे-धीरे शरीयत कानून की मांग शुरू हो जाती है, जो आखिर में अलग देश की मांग तक पहुंच जाती है। जेनेट इस समस्या की जड़ में 1400 साल पुराने इस्लाम के अंदर छिपी बुराइयों को जिम्मेदार मानती हैं। कुरान में यह संदेश खुलकर दिया गया है कि दुनिया भर में इस्लामी राज्य स्थापित हो। हर जगह इस्लाम जबरन धर्म परिवर्तन या गैर-मुसलमानों की हत्याएं करवाकर फैला है।
*पढ़ें:* शरणार्थी बनकर आए थे, अब शरिया कानून चाहते हैं!
http://www.newsloose.com/…/germany-muslims-asylum-seekers-…/
*दंगों के जरिए डराने की कोशिश जारी*
जेनेट लेवी ने अपने लेख में बंगाल में हुए दंगों का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है- 2007 में कोलकाता में बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन के खिलाफ दंगे भड़क उठे थे। यह पहली स्पष्ट कोशिश थी जब बंगाल में मुस्लिम संगठनों ने इस्लामी ईशनिंदा (ब्लासफैमी) कानून की मांग शुरू कर दी थी। *1993 में तस्लीमा नसरीन ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों और उनको जबरन मुसलमान बनाने के मुद्दे पर. किताब ‘लज्जा’ लिखी थी।*
इस किताब के बाद उन्हें कट्टरपंथियों के डर से बांग्लादेश छोड़ना पड़ा था। इसके बाद वो कोलकाता में बस गईं। यह हैरत की बात है कि हिंदुओं पर अत्याचार की कहानी लिखने वाली तस्लीमा नसरीन को बांग्लादेश ही नहीं, बल्कि भारत के मुसलमानों ने भी नफरत की नजर से देखा। भारत में उनका गला काटने तक के फतवे जारी किए गए। देश के अलग-अलग शहरों में कई बार उन पर हमले भी हुए। इस सबके दौरान बंगाल की वामपंथी या तृणमूल की सरकारों ने कभी उनका साथ नहीं दिया। क्योंकि ऐसा करने पर मुसलमानों के नाराज होने का डर था। *2013 में पहली बार बंगाल के कुछ कट्टरपंथी मौलानाओं ने अलग ‘मुगलिस्तान’ की मांग शुरू कर दी।* इसी साल बंगाल में हुए दंगों में सैकड़ों हिंदुओं के घर और दुकानें लूटे गए। साथ ही कई मंदिरों को तोड़ दिया गया। *इन दंगों में पुलिस ने लोगों को बचाने की कोई कोशिश नहीं की।* आरोप है कि ममता बनर्जी सरकार की तरफ से ऑर्डर था कि दंगाई मुसलमानों पर कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। ममता को डर था कि मुसलमानों को रोका गया तो वो नाराज हो जाएंगे और वोट नहीं देंगे।
*पढ़ें:* ‘बंगालिस्तान’ के कालीग्राम की वो काली रात!
http://www.newsloose.com/…/full-story-for-jihadi-violence-…/
*हिंदुओं का बायकॉट करते हैं मुसलमान*
लेख में बताया गया है कि जिन जिलों में मुसलमानों की संख्या ज्यादा है वहां पर वो हिंदू कारोबारियों का बायकॉट करते हैं। मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तरी दिनाजपुर जिलों में मुसलमान हिंदुओं की दुकानों से सामान तक नहीं खरीदते। इसी कारण बड़ी संख्या में हिंदुओं को घर और कारोबार छोड़कर दूसरी जगहों पर जाना पड़ा। *ये वो जिले हैं जहां हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं।*
*जिहादी को राज्यसभा*
*सांसद बनवाया*
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जेनेट लेवी ने इस लेख में बताया है कि कैसे संदिग्ध आतंकवाद समर्थकों को ममता बनर्जी संसद में भिजवा रही हैं। जून 2014 में *ममता बनर्जी ने अहमद हसन इमरान नाम के एक कुख्यात जिहादी को अपनी पार्टी के टिकट पर राज्यसभा सांसद बनाकर भेजा ।* हसन इमरान प्रतिबंधित आतंकी संगठन *सिमी का सह-संस्थापक रहा है।* आरोप है कि उसने शारदा चिटफंड घोटाले का पैसा बांग्लादेश के जिहादी संगठन जमात-ए-इस्लामी तक पहुंचाया, ताकि वो बांग्लादेश में दंगे भड़का सके। *हसन इमरान के खिलाफ अभी एनआईए और सीबीआई की जांच चल रही है।* लोकल इंटेलिजेंस यूनिट (एलआईयू) की रिपोर्ट के मुताबिक कई दंगों और आतंकवादियों को शरण देने में हसन का हाथ रहा है। उसके पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से रिश्ते होने के आरोप लगते रहे हैं।
कुमार अवधेश सिंह

feb--srijan

फ्रांस मे शांतिप्रिय कौम की आबादी करीब 50 लाख है, जो की कुल आबादी की 7.5 % है । लगभग 1 दशक पहले तक इस देश मे सब कुछ सामान्य था, शांतिप्रिय कौम एक अनुशासित जीवन जी रही थी । जैसा कि दुनिया जानती है, शांतिप्रिय कौम की फितरत आबादी बढ़ने के साथ-साथ बदलती रहती है । कुछ यही फ्रांस मे हुआ ।
उदाहरण के तौर पर...
 फ्रांस के उत्तरी शहर Reims को ही लीजिये, 20 साल पहले जहां इस शहर मे शांतिप्रिय कौम की आबादी करीब 20% हुआ करती थी, वही अब 2016 में बढ़कर 50% से ज्यादा हो चुकी है । आबादी मे इस ताबड़तोड़ बढ़ोत्तरी का एक बड़ा कारण वही "मृत बच्चा" Alan Kurdi है, जिसने Trojan Horse की तरह हजारों सीरियन शांतिप्रिय कौम (शरणार्थी ?) के सफल घुसपैठ को अंजाम दिया । हजारों सीरियन शांतिप्रिय लोगों ने इसी शहर को अपना ठिकाना बनाया ।
हमेशा की तरह शांतिप्रिय कौम की आबादी ज्यों ज्यों बढ़ती गयी, शांतिप्रिय कौम की डिमांड भी बढ़ती गयी । जो हिजाब-नकाब और "हलाल माँस", से होते हुए "अलग शरीयत कानून" तक पहुँच गयी । 2013 आते आते "चर्च के घंटे" की आवाज और "पोर्क खाते आम शहरी" को देख कर भी "शांतिप्रिय मजहब" खतरे मे आने लगा ! सहिष्णुता का परिचय देते हुए शहर के सभ्य-सज्जन आम शहरी इसे बर्दाश्त करते रहे, चुप रहे ।
घटना 2013 की है
 इसी शहर Reims मे एक ईसाई लड़के पर चाकू-छुरे से सिर्फ इसलिए हमला कर दिया गया क्योंकि वह "शांतिप्रिय" के सामने Pork हेमसेंडविच खाने की गुस्ताखी कर बैठा था । हिंदुस्तानी Presstitute मीडिया की तरह वहाँ भी इस खबर को दबा गया । आम शहरियों ने अपनी आदत मे बदलाव करते हुए रेस्टोरेन्ट-होटल मे किसी "शांतिप्रिय" के सामने PORK खाना बंद कर दिया । शहर के कई कंपनियों के HR Managers नोटिफिकेशन जारी कर अपने Employees से Company Premises मे PORK से बनी चीजें खाने से रोक दिया ।
इस वाकये के बाद "शांतिप्रिय कौम" का हौसला और बढ़ गया । 2014 मे एक शांतिप्रिय लड़के को जब ट्रैफिक नियम तोड़ने की बजह से पुलिस ने गिरफ्तार किया तो शहर के ओबैसि टाइप एक नेता ने सिर्फ 2 मिनट मे "दंगा" कर शहर को कब्रिस्तान मे बदल देने की चेतावनी जारी कर दिया । बुद्धिजीवियों की सलाह पर लड़के को आजाद कर शहर को आने वाली खतरे से बचाया गया ।
कुल मिलाकर आप यह कह सकते हैं की ख़बरंडी Media, कु-बुद्धिजीवी और सेक्युलर तबका वही खेल रहा था जो यहाँ हिंदुस्तान मे बरसों से खेला जा रहा है और आम भारतीयों की भांति वहाँ का आम शहरी भी "शुतुरमुर्ग की तरह बालू मे सर घुसाये" बैठा था ।

हर चीज की एक सीमा होती है -- सहिष्णुता की भी...
 अचानक Reims के आम शहरियों ने इन "बद्दू कबीला मजहब" के सामने घुटना टेकने से इन्कार कर दिया । पूरा शहर एक दिन मे जाग गया --- इस चिंगारी की बजह बनी एक घटना .....
Reims शहर के पार्क मे कुछ महिलाएँ धूप सेक रही थी, इनमे से एक लड़की ने बिकनी पहना हुआ था। तभी शांतिप्रिय कौम की 4-5 महिलाओं का गैंग पार्क मे आती है, और बिकनी पहनी महिला के साथ मारपीट करना शुरू कर देती है । अगले दिन अखबार मे खबर छपते ही इस छोटे से शहर मे बिरोध-प्रदर्शन शुरू हो जाता है । बिरोध स्वरूप सैकड़ों महिलाएं बिकनी और स्विमसूट मे उस पार्क मे जुट गईं, ट्विटर-फेसबुक पर भी फ्रांसीसी महिलाओं ने 'बिकनी सेल्फी' पोस्ट कर इस बिरोध परदर्शन को अपना समर्थन दिया । ईसाइयों की एकता ने "शांतिप्रिय कौम" को झुकने पर मजबूर कर दिया ।
इस साल हुए Nice truck attack और अन्य आतंकवादी घटनाओं ने इस चिंगारी को हवा दिया ...
 आम जनमानस इन "शांतिप्रिय कौम" की फितरत को पहचान उठ खड़ी हुई । जनमानस की सोच मे इस बदलाव को "वोट का बिजनेस" करने वाले नेताओं का भी साथ मिला । धड़ाधड़ मस्जिदों-मदरसों मे छापे हुए --- हथियारों का जखीरा बरामद हुआ --- सैकड़ों जिहादी मुल्ला गिरफ्तार किए गए -- मस्जिदों को मिलने वाली अरबी पेट्रोडॉलर मदद पर पूरी तरह रोक लगा दिया गया -- 100 से अधिक मस्जिद बंद कर दिये गए ।
आज हिंदुस्तान को भी इसी एक चिंगारी की तलाश है
 #DrAlam से साभार

Tuesday, 27 December 2016

hame aise vyakti ki sahayata karani chahiye ...

*मोदी जी ने भारत जैसे देश को महान बनाने की चुनौती स्वीकार की है 
एक ऐसा देश को जो स्वघोषित रूप से महान है...जिस देश में सुविधा को अधिकार समझ लिया जाता हो...
जिस देश में गन्ने से लदे खड़े ट्रक तक को कुछ ही देर में खाली कर दिया जाता हो...ऑयल टैंक पलट जाने पर ड्राइवर की जान बचाने के बजाये लोग पेट्रोल लूटना ज्यादा पसंद करते हों... एक बोतल दारु के लिए लोग अपना वोट बेच देते हों,
जिस देश में इमानदारों को मूर्ख घोषित कर दिया जाता हो… ये भी समझाना पड़े की हगने के लिए पैखाने जाना चाहिए और हगने के उपरांत हाथ साबुन से धोना चाहिए...
उस देश को महान बनाने का संकल्प लेने वाला इंसान भी अपने आप में महान है...
दुनिया का सबसे आसान काम है दूसरों में दोष निकलना...
आप मोदी में भी दोष निकाल सकते हैं...
बिलकुल निकालिए ...मोदीजी भगवान नहीं हैं... उनसे भी गलती हो सकती है...
आप कुछ भी कह सकते हैं मोदी को...
एक और प्रधानमंत्री ही तो हैं 5 साल के लिए...
JNU वाले मोदी को "भड़वा" भी कह देते हैं...
केजरीवाल तो चोर कहता है मोदी को...
"राजमाता" मौत का सौदागर कहती है...
एक मंदबुद्धि "युवराज" फेकू कहता है...
ममता तानाशाह कहती है...
लालू ने मोदी को नौटंकीबाज कहा है...
स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र लोकतंत्र में आप भारत के प्रधानमंत्री पद पर बैठे हुवे व्यक्ति को माँ बहन की गाली भी दे सकते हैं...
आप मोदी से उनकी कुर्सी छीन सकते हैं.... लेकिन एक चीज़ है जो आप मोदी से छीन नहीं सकते....क्योंकि ये चीज़ छीनी नहीं जा सकती...ये पैदा करनी पड़ती है...और ये चीज़ है अपनी धरती माता के प्रति मोदी का अथाह और निश्छल प्रेम...
आप मोदी से वो संकल्प नहीं छीन सकते जो उन्होंने भारत को महान बनाने के लिए लिया हुवा है...आप मोदी से वो साहस नहीं छीन सकते जो उन्हें प्रधानमंत्री होते हुवे भी ये बोलने के लिए प्रेरित करता है कि
आप मोदी से नहीं छीन सकते हैं उनकी बेबाकी... लगातार 18 घण्टे काम के प्रति उनका उत्साह... उनके कड़े और महान निर्णय लेने की क्षमता...
आप नहीं छीन सकते हैं वो धैर्य जो 10 घंटे सीबीआई की जांच और गहन पूछताछ के दौरान भी नहीं टूटा...
और अंत में आप नहीं छीन सकते है वो 56 इंच का सीना जो उन्हें यानी मोदी को मोदी बनाता है.....
ऐसा देश जहाँ हर इंसान जन्म से भ्रष्टाचार और चोरी के गुण लेकर पैदा होता है...जहाँ ट्रेन, बस दुर्घटना के बाद लाशों से गहने तक उतार लिये जाते हैं...ऐसे देश को महान बनाने का संकल्प लेने वाला कोई साधारण व्यक्तित्व का इंसान नहीं हो सकता...
मोदी को दिन रात कोसने गरियाने वालों... मोदी से लड़ना है तो पहले मोदी बनो...

Monday, 26 December 2016

25 साल बाद फिर से कश्मीर में स्थापित कराई मां दुर्गा की दुर्लभ प्रतिमा, कांग्रेस के वक़्त चोरी हुई थी ...

 90 के दशक में दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा जिले से महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा की मूर्ति चोरी होकर जर्मनी पहुच गयी थी, मगर पीएम मोदी के कारण वो मूर्ति अब वापस अपने स्थान कश्मीर पहुंच गई है। ये मूर्ति 8वीं सदी की है और जर्मन चांसलर एंजेला मरकेल ने इसे अक्टूबर महीने में पीएम मोदी को दिल्ली में सौंप दिया था।

8वीं सदी की है मां दुर्गा की मूर्ति

पीएम मोदी के प्रयासों से वापस आयी इस प्राचीन विशिष्ट मूर्ति को वापस कश्मीर ले आया गया है और इसे श्रीनगर के प्रताप सिंह म्यूजियम में रखा गया है। प्रताप सिंह म्यूजियम के क्यूरेटर मोहम्मद इकबाल के मुताबिक़ 8वीं सदी में कश्मीर में महाराजा ललितादित्य का राज था और उसी काल में कश्मीर में सूर्य मंदिर व् कई अन्य महत्वपूर्ण स्मारक बनाये गए जिन्हें देखने के लिए आज भी हज़ारों पर्यटक घाटी में आते हैं। ये मूर्ति भी उसी काल की है।
उनके मुताबिक़ महाराजा ललितादित्य के काल में कश्मीर में मूर्तिकला का जबरदस्त विकास हुआ। उन्होंने बताय कि कश्मीर में पहले बौद्ध और हिंदू धर्म के लोग ही रहते थे और प्रार्थना के लिए उन्हें जो भी मूर्ति चाहिए होती थी उसे यहीं तराशा जाता था।

बेहद दुर्लभ है प्रतिमा का शिल्प

मां दुर्गा की इस विशिष्ट मूर्ति का शिल्प इतना दुर्लभ है कि अब इसके मेल की मूर्ति ढूंढे से भी नहीं मिलती। कश्मीर में हिंदू महादेव और नारायण की आराधना करते थे जबकि बौद्ध लोग बुद्ध को पूजते थे। प्राचीन वैष्णोदेवी माता का मंदिर भी वहीँ है।
अब आपकी बारी
जो काम पिछले 60 वर्षों में ना हो सका वो पीएम मोदी ने मात्र 2.5 वर्षों में कर दिखाया। क्या आपको लगता है कि पीएम मोदी आजाद भारत के सबसे महान प्रधानमंत्री हैं?

Sunday, 25 December 2016

शर्म आती है मुझे ऐसे लोगो पर जो अपना त्यौहार मना नही सकते कभी मंदिर नही जा सकते कुत्तो कि तरह मुह मारते फिरते है दरगाह,मजार,मस्जिद और चर्चो में इन लोगो कि मति मारी गयी है,विवेक हीन हो चुके है जो जीसस खुद शूली पर टांग दिया गया हो और जो उस समय कुछ न कर सका हो, वो किसी का भला क्या करेगा,पुरे देश में मुर्खता का वातावरण तैयार किया जा रहा है,लेकिन द विन्ची कोड जैसी फिल्मो की और सोये हुए हिन्दू समाज का ध्यान गया ही नहीं,जिसने साबित कर दिया था की मैरी तो कुंवारी थी ही नहीं, फ्रांस से बैथल्हम जाते हुए यहूदी सैनिक के द्वारा बलात्कार के बाद जन्मा था ये जीसस,आज पुरे यूरोप से ईसाईयत के पांव उखड रहे है और वहां के लोग हिन्दू बन रहे है और हम मुर्ख हिन्दू ईसाईयत के पीछे भाग रहे है,मुर्खता की परिकाष्ठा,
क्या आप जानते हैं कि हाथी जैसे विशाल जीव को एक पतली सी रस्सी से बांध कर गुलाम कैसे बनाया जाता है...??????
दरअसल उसके लिए हाथी को बचपन में ही पकड़ा जाता है और उसे रस्सी से बांध दिया जाता है ,प्रारम्भ में हाथी का वो बच्चा आजाद होने के लिए बहुत छटपटाता है और उस रस्सी को तोड़ने का भरपूर प्रयास करता है परन्तु अपेक्षाकृत कम शक्तिशाली होने की वजह से वो हाथी का बच्चा उस रस्सी को तोड़ नहीं पाता है फिर कालांतर में धीरे-धीरे हाथी के बच्चे के मन में यह बात बैठ जाती है कि वो अब इस रस्सी को कभी नहीं तोड़ पाएगा इसीलिए,बड़े होने के बाद भी वो उस रस्सी को तोड़ने का प्रयास ही छोड़ देता है और,आजीवन
गुलाम ही रह जाता है..आज कमोबेश हिंदुओं की भी यही स्थिति है .....
मैंने कभी किसी ईसाई को मंदिर या मस्जिद में जाते नहीं देखा कभी किसी मुसलमान को मंदिर या गिरिजाघर में जाते नहीं देखा कभी भी किसी को सर पर तिलक या जय श्री राम कहते नहीं सुना,किसी ईसाई या मुस्लिम के घर पर दिवाली के दीपक जलते नहीं देखे अगर सर्व धर्म समभाव है
तो क्या सिर्फ हिन्दुओ के लिए ही सर्व धर्म समभाव है? क्यूँ हम लोग हैप्पी क्रिसमस और ईद मुबारक कहते है ....?
सेक्युलर नहीं सनातनी हिन्दू बनो ...सुधर जाओ हिन्दुओ अभी भी वक्त है हजारों सालों के मुस्लिमों और अंग्रेजों की गुलामी ने शायद हिंदुओं के मानसिक रूप से भी गुलाम बना दिया है,यही कारण है कि आज कई हिन्दू आपस में ही एक-दूसरे को ""हैप्पी क्रिसमस "" बोल रहे हैं,बिना यह जाने-समझे कि ये क्रिसमस क्या है और ये क्यों मनाया जाता है...???????
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वैसे मूर्ख और सामाजिक कलंक कूल डूडस को मैं बता दूँ कि आज के ही दिन ईसाईयों के धर्म गुरु ""ईसा मसीह"" का जन्म हुआ था इसीलिए वे इसे बहुत महत्वपूर्ण यानि बड़ा दिन मानते हैं और, दारु पी उसी की ख़ुशी मनाते हैं...!
अब कोई कूल डूडस या सेकुलर मुझे ये समझा
सकता है कि.... अगर आज के दिन ""ईसा मसीह""का जन्म हुआ था तो आज का दिन हम हिंदुओं के लिए कैसे महत्वपूर्ण है...?????
अब कुछ लोग बेहूदगी भरा ये तर्क देंगे कि मानवता के नाते हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए तो भाई सम्मान करो ना सम्मान करने से किसने मना किया है??????
लेकिन पडोसी को सम्मान देने का यह मतलब तो नहीं है कि उसे चाचा,मामा,काकू कहने की जगह उसे पिताजी ही बुलाना शुरू कर दो?
खैर मैं अपने बारे में समझा दूँ कि मैं एक हिन्दू हूँ और,मेरे पिताजी,उनके पिताजी और उनके भी पिताजी एक हिन्दू थे और,मेरी रगों में एक हिन्दू खून दौड़ रहा है इसीलिए मैं कोई क्रिसमस-व्रिसमस नहीं मनाता क्योंकि,एक हिन्दू होने के नाते मेरे लिए जन्माष्टमी,शिवरात्रि,दुर्गापूजा ,गणेशचतुर्थी इत्यादि महत्वपूर्ण हैं ना कि ईसाई मसीह का जन्म दिवस...!
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क्या आपमें क्रिसमस मानाने की भावना हिलोरें मारती है और,क्या आप""क्रिसमस"" मानाने में ख़ुशी महसूस करते हैं....????
अगर ऐसा है तो मुझे उनसे बेहद हमदर्दी है और,उन्हें एक सच्ची सलाह है कि जल्द से जल्द कृपया आप अपने खून या डीएनए की जांच करवा
लें ताकि,सम्भावित गड़बड़ी का पता लगाया जा सके....!

भारतीय छात्र का कमाल, बनाया रात में भी बिजली पैदा करने वाला सोलर सिस्टम

 प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग, कार्बन उत्सर्जन जैसी कई पर्यावरण संबंधी समस्याओं से जंग में दुनियाभर में क्लीन एनर्जी के इस्तेमाल को प्रमुखता दी जा रही है। इसके चलते लगातार एक से बढ़कर एक इनोवेशन सामने आ रहे हैं। इसी कड़ी में कोलकाता के एक इंजीनियरिंग स्टूडेंट ने ऐसा सोलर पावर सिस्टम तैयार किया है जो रात में भी पावर प्रोड्यूस कर सकेगा। यह प्रोजेक्ट खासतौर पर पहाड़ी इलाकों और मल्टीस्टोरी बिल्डिंग्स में सोलर एनर्जी के लिए बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। 
ऐसे बनी है डिवाइस
यह डिवाइस सोलर बेस्ड पावर जनरेशन और स्टोरेज सिस्टम का एक कॉम्बो है। इसे ऐसी किसी भी जगह पर लगाया जा सकता है जहां दिनभर में 100 वाट पावर प्रोड्यूस की जा सके। डिवाइस में सोलर एक सोलर पंप मॉड्यूल और दो वाटर टैंक लगे हैं। खास बात यह है कि इसकी कीमत सामान्य बैटरी के लगभग बराबर ही है। कोलकाता स्थित रिन्यूएबल एनर्जी कॉलेज के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट की फंडिंग के लिए सरकार से बातचीत की जा रही है।
ऐसे काम करता पूरा प्रोजेक्ट
दिन के समय नीचे वाले टैंक से पानी ऊपर वाले टैंक में जाता है, इसमें सोलर एनर्जी से चलने वाला पंप मदद करता है। ऊपर लगा टैंक जिस स्पीड से पानी ग्रहण करता है, उसकी आधी स्पीड से यह पानी रिलीज करता है। यह रिलीज हुआ पानी एक घूमती हुई टर्बाइन पर गिरता है, जो पावर जनरेट करती है, यह पावर स्टोरेज डिवाइस में जाती है। पानी का कुछ हिस्सा साथ-साथ नीचे वाले टैंक में भी बहता है, यह भी पावर प्रोड्यूस करता है। ऊपर वाले टैंक से रात के समय भी पानी नीचे गिरता रहता है, जिससे रात में भी पावर प्रोड्यूस होती रहती है।
प्रोजेक्ट का स्ट्रक्चर
कॉलेज के चेयरमैन के मुताबिक, 200x600 मीटर के दो टैंक अलग-अलग ऊंचाई पर लगे होते हैं। दोनों के बीच करीब 50 मीटर की दूरी होती है। इस तरह के स्ट्रक्चर के साथ लगातार 1 मेगावाट पावर प्रोड्यूस की जा सकती है। इसकी कीमत करीब 9 करोड़ रुपए के आसपास होती है। 1 मेगावाट पावर दिनभर प्रोड्यूस करने के लिए करीब 2 मेगावाट सोलर पावर की जरूरत पड़ेगी। पहाड़ी इलाकों पर रेनवाटर हार्वेस्टिंग के जरिये पानी टैंकों में भरा जा सकता है। एक बार भरने के बाद पानी की जरूरत नहीं पड़ती।