अफगानिस्तान की पहचान इन दिनों आतंकवाद और तालिबान से होती है लेकिन एक वक्त था जब अफगानिस्तान की पहचान एक हिन्दू राष्ट्र के तौर पर होती थी। अफ़्गान शब्द, संस्कृत भाषा के अवगान से निकला हुआ माना जाता है। यह देश 7वीं सदी तक अखंड भारत का हिस्सा था। एक वक्त यहां बौद्ध धर्म फला फूला और अब इसकी पहचान एक इस्लामिक राष्ट्र के रूप में है। 17वीं सदी की शुरुआत तक तो अफगानिस्तान का नाम भी नहीं था। महाभारत काल में इसके उत्तरी इलाके में गांधार महाजनपद था जिसके कारण इसकी राजधानी कांधार कहलाई। इसके अतिरिक्त आर्याना, कम्बोज आदि इलाके इसमें सम्मिलित थे।
गांधारी और पाणिनी यहीं के रहने वाले थे। अभी भी अफगानिस्तान में बच्चों के नाम कनिष्क, आर्यन और वेद आदि रखे जाते हैं। यहां पहले आर्य रहा करते थे जो वैदिक धर्म को मानते थे। अफगानिस्तान, यूनानी और मौर्य साम्राज्य का भी हिस्सा रहा। बौद्ध धर्म जब यहां पहु्चा तो यह स्थान उनका गढ़ बन गया। आपको ध्यान होगा कि बमियान घाटी में 2001 में तालिबान ने बुद्ध की जो प्रतिमा तोड़ी थी वह दुनिया की सबसे बड़ी बुद्ध प्रतिमा थी। अभी भी वहां स्तूपों, मंदिरों और मूर्तियों के अवशेष मिल जाते हैं। महमूद गजनी ने अफगानिस्तान की सभ्यता को बर्बाद किया और तलवार के बल पर धर्म परिवर्तन कराया।
इन दिनों वहां रहने वाले सिख और हिन्दू बेहद परेशान हैं। रायटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1992 में यहां हिन्दुओं और सिखों के दो लाख 20 बजार परिवार थे, लेकिन इन दिनों यह संख्या 220 रह गई है। वहां हिन्दुओं को शव जलाने नहीं दिए जाते। वहां के स्थानीय हिन्दू और सिख अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
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