Saturday, 17 December 2016

इन्हें पता ही नहीं है कि इनके साथ क्या प्रॉब्लम है

"पूरी दुनिया में मुसलमानों की आबादी डेढ़ अरब से ज़ियादा है। तादाद में ईसाईयों के बाद दूसरे नंबर पर हैं चालीस से ज़ियादा देशों में इस्लाम है। किसी में भी प्रजातंत्र नहीं है। हर जगह हिंसा, आगज़नी हो रही है और उस पर भी बरतरी { श्रेष्ठता } के अहसास से भरे हुए हैं। इन्हें पता ही नहीं है कि इनके साथ क्या प्रॉब्लम है।"
ना ना ना ना ये मेरे वाक्य नहीं हैं। ये पाकिस्तान के सीनियर पत्रकार हसन निसार साहब के वाक्य हैं। कम ही मुसलमान ऐसे होंगे जो ऐसी बातें कह पायें।
     कारण यह नहीं है कि ये सच नहीं है। सच तो है ही आख़िर सारी दुनिया देख ही रही है। संसार तृतीय विश्वयुद्ध के कगार पर आ कर खड़ा हो गया है। मिस्र, लीबिया, मोरक़्क़ो, ईरान, ईराक़, यमन, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंग्लादेश, सीरिया .... आप किसी भी इस्लामी देश को देखें हर जगह हाहाकार दिखाई दे रहा है। जो देश मुस्लिम नहीं हैं वहां भी मुस्लिम समाज शांतिप्रिय नहीं है और अब उन देशों में इस्लाम के ख़िलाफ़ स्वर उठ रहे हैं।
     एक ऐसी विचारधारा जो अपने अनुसार, संसार को शांति देने आई थी, 
     संसार को बरबादी की तरफ़ कैसे ले आई ?
 आइये कुछ देशों के आंकड़े देखे जाएँ।
नाइजीरिया अफ्रीका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इस देश में बोको हराम नाम का अतिवादी इस्लामी संगठन सक्रिय है। इसका घोषित लक्ष्य शरिया का राज्य स्थापित करना है। ये संगठन अल-क़ायदा से प्रेरणा प्राप्त करता है। इसके लोग 2001 से 2013 तक 10,000 लोगों की हत्यायें कर चुके हैं। ये संगठन 10-12 साल के बच्चों तक को अपने सैनिक बनाने के लिए कुख्यात है। स्कूलों, चर्चों, पुलिस स्टेशनों, राज्य की व्यवस्था के केन्द्रों पर हमला करता है, युवा महिलाओं और युवतियों का अपहरण कर उन्हें इस्लाम कबूल करने पर मजबूर करता है। कुछ युवतियों से बोको हराम के लड़ाके शादी कर लेते हैं और कई महिलाओं को यौन बंधक बनाकर रखते हैं। सेना ने हज़ारों महिलाओं को भी बोको हराम की क़ैद से मुक्त कराया। जिन महिलाओं को रिहा कराया गया, उनमें से सैकड़ों गर्भवती हैं।
 संयुक्त राष्ट्र पॉपुलेशन फंड (यूएनएफपीए) नाइजीरिया के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर बाबाटुंडे ओशोटिमेहिन ने बताया है कि, "इनमें से ज्यादातर की मेडिकल जांच की जा रही है ताकि एचआईवी और एड्स समेत दूसरी बीमारियों का पता लग सके''। 29 मई 2015 से राष्ट्रपति बने सख़्त प्रशासक मुहम्मदू बुहारी नाइजीरिया की सेना के प्रमुख रह चुके हैं। मुहम्मदू बुहारी के आने के बाद से बोको हराम की हार होनी शुरू हो गयी है।
 विशेषज्ञों के मुताबिक बुहारी से पहले गु़डलक जोनाथन के कार्यकाल में मुसलमानों का एक तबक़ा बोको हराम से हमदर्दी रखता था, लेकिन बुहारी के राजनैतिक उदय के बाद से यह संबंध कमज़ोर पड़ा है। मार्च 2015 में हुए चुनावों के नतीजे आने के बाद ही बुहारी ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा था, "बोको हराम को जल्द ही नाइजीरिया के लोगों की सामूहिक शक्ति का अंदाज़ा हो जाएगा। यह ताक़त आतंकवाद का खात्मा करेगी और शांति को वापस लाएगी। " नाइजीरिया की सेना ने बोको हराम के खिलाफ कार्रवाई और तेज़ कर दी है। रिहा हुई महिलाओं के मुताबिक़ बोको हराम अब कमज़ोर पड़ने लगा है। हथियार और ईंधन की कमी आड़े आ रही है। युवा लड़ाकों और बोको हराम के नेतृत्व के बीच झगड़े भी होने लगे हैं।
अफ़्रीक़ी देश अंगोला में इस्लाम पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। 
अंगोला की आबादी दो करोड़ के लगभग है जिसमें एक लाख मुसलमान हैं। देश के इस्लामी संगठन इस्लामिक कम्यूनिटी ऑफ़ अंगोला के अनुसार देश में सरकार ने केवल दो मस्जिदों को छोड़ कर शेष 78 मस्जिदें बंद कर दी हैं। नमाज़ पढ़ने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। मुसलमानों को चुन-चुन कर गिरफ़्तार किया जा रहा है। अंगोला के राष्ट्रपति एडुआर्डो डॉस सैंटोस ने कहा है कि इस्लाम देश की संस्कृति को ख़त्म कर रहा है और मुसलमानों में तेज़ी से जिहादी मनोवृत्ति पनपा रहा है। इस कारण इस्लाम पर प्रतिबन्ध लगाना अनिवार्य है। बुरक़ाधारी महिलाओं को पुलिस परेशान करती है। मस्जिदें गिरा दी गयी हैं। प्रशासन मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में घोषणा कर रहा है कि आप मस्जिदें स्वयं गिरा दें वरना सरकार गिरा देगी और निवासियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्यवाही करेगी।
उज़्बेक़िस्तान में प्रशासन ने 18 वर्ष से काम आयु के किशोरों के नमाज़ पढ़ने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। इस वर्ष उन्हें ईद के अवसर पर भी नमाज़ पढ़ने की अनुमति नहीं दी गयी। गृहमंत्रालय ने पुलिस को आदेश दिया है कि कोई 18 वर्ष से कम का बच्चा मस्जिद में मिले तो उसे गिरफ़्तार कर लिया जाये। ऐसे पकडे गये बच्चों पर 750 डॉलर का जुरमाना लगाया जाता है, जो उज़्बेक़िस्तानके एक श्रमिक के तीन साल के वेतन से अधिक है। इस वर्ष सरकार ने ईद की छुट्टी भी निरस्त कर दी ताकि मुसलमान ईद न मना सकें। उस दिन सारे कार्यालय, शिक्षण संस्थान अनिवार्य रूप से खोले गए और उनमें शत प्रतिशत उपस्थिति सुनिश्चित की गयी जिससे लोग ईद की नमाज़ न पढ़ सकें। यहाँ ये जानना उपयुक्त होगा कि उज़्बेक़िस्तान मुस्लिम बहुल देश है और देश में जनसंख्या का 98% मुस्लिम आबादी है।
 पहले सोवियत रूस का हिस्सा रहे उज़्बेक़िस्तान में नमाज़ पढ़ने पर प्रतिबन्ध था। मस्जिदें बंद कर दी गयी थीं। सोवियत रूस के विघटन के बाद स्वतंत्र हुए उज़्बेक़िस्तान की सरकार ने ये प्रतिबन्ध ढीले किये थे मगर अब उन्हें वापस कस दिया गया है।
रूस की राजधानी में मुसलमानों की संख्या 20 लाख से कुछ कम है मगर वहां केवल 6 मस्जिदें हैं। इस्लामियों के बार-बार कोशिश करने, सिर पटकने के बावजूद नई मस्जिदें बनाने की अनुमति नहीं मिलती है। सरकार मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाएँ भी देने को तैयार नहीं है। उन्हें फ़्लैट, भूखंड नहीं दिए जाते हैं। रूस सरकार ने अपने दूतावासों को निर्देश दिये हैं कि मुसलमानों को वीज़ा देने में उदारता न दिखाई जाये।
ऑस्ट्रेलिया में इस्लामी समूह बहुत समय से उत्पात करते रहे हैं। स्वयं इस्लामी नेता स्वीकारते हैं कि स्थानीय निवासी मुसलमानों से तंग आ चुके हैं। ऑस्ट्रेलिया के राजनैतिक नेतृत्व ने शरिया, हलाल मांस, इस्लामी जीवन शैली मांगने वाले मुसलमानों से देश छोड़ कर जाने के लिये स्पष्ट रूप से कहा है।
ईरान की सरकार लगातार कहती है कि इज़राइल को दुनिया के नक़्शे से मिटा देना चाहिये। अयातुल्लाह ख़ुमैनी के समय से ही ईरान विश्व के सभ्य देशों के लिए समस्या बना हुआ है। उसके ऐटमी कार्यक्रम के कारण उस पर प्रतिबन्ध लगे रहे हैं। ईरान समर्थित आतंकी संगठन हिजबुल्लाह मध्य एशिया में लगातार आतंकी कार्यवाहियां करता रहता है।
अल्जीरिया में 1999 में बना सलफ़ी इस्लामी संगठन देश भर में कुख्यात है। इसने देश में सैकड़ों हिंसक वारदातें की हैं। उसने स्पष्ट घोषणा की है कि दुनिया में केवल दो वर्ग हैं। पहला मुसलमान और दूसरे काफ़िर। काफ़िरों की नियति या तो मुसलमान होना है या मुसलमानों के हाथों क़त्ल होना। हम काफ़िरों के खुले दुश्मन हैं।
अमरीका में 9-11 की घटना के बाद मुसलमानों के प्रति असहिष्णुता बढ़ी है। इसके बाद पचासों छुटपुट आतंकी घटनाएँ हुई हैं। कई बार इसका शिकार केश और पगड़ी की भिन्नता न पहचान पाने के कारण केशधारी सिखों को भी होना पड़ा है। आगामी चुनाव के प्रमुख प्रत्याशियों में से एक ने तो स्पष्ट घोषणा की है कि इस्लाम को अमरीका में प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए। ये अमरीकी जीवन मूल्यों के ख़िलाफ़ है। ज़ाहिर है अमरीकी समाज में बेचैनी बढ़ती जा रही है।
फ़्रांस में 75 लाख से अधिक मुस्लिम हैं। फ़्रांस योरोप का वह देश है जो बहु-संस्कृति के नाम पर मुस्लिम समुदाय की हर बात को आदर देता रहा है, फिर भी 2005 में मुसलमान युवाओं ने कई शहरों में भयानक आगज़नी की। दस दिन तक पुलिस, प्रशासन को स्तब्ध कर दिया। उसके बाद से देश में इस्लामी उपद्रव होते ही रहे हैं। शर्ली अब्दो के कार्यालय पर हमला, पेरिस पर अनेकों स्थानों पर हमले के बाद फ़्रांस के लोग अपने यहाँ रहने वाले मुस्लिम नागरिकों के प्रति शंकालु हो गए हैं। देश से मुस्लिम आप्रवासियों को निष्काषित किया जा रहा हैं। सोशल मीडिया की साइटें इस्लाम के विरोध से भरी पड़ी हैं। लोग इस्लाम के बारे में आक्रामक स्वर में बात कर रहे हैं। सैकड़ों अवैध मस्जिदें बंद कर दी गयी हैं, ढायी जा रही हैं। हिजाब, बुरक़ा प्रतिबंधित कर दिया गया है।
जर्मनी में 2000 में 5 अफ़ग़ान स्ट्रान्सबर्ग पर आतंकी हमला करने की योजना बनाते हुए पकड़ा गया। उसके बाद रूरकोलोन, द्यूसबर्ग, बर्लिन आदि अनेक शहरों से इस्लामी आतंकियों के स्लीपर सैल पकडे गये हैं। वहां हज़ारों आप्रवासियों पर चौबीसों घंटे नज़र रखी जा रही है। जर्मन पुलिस देश पर कभी भी हो सकने वाले आतंकी आक्रमण की अग्रिम रोकथाम में जुटी है।
डेनमार्क में एक इस्लामी संगठन ने यहूदियों की हत्या करने के लिये इनाम घोषित किया है। 55-60 लाख की आबादी के इस छोटे से देश में 2 लाख मुस्लिम आप्रवासी हैं। इस देश में सामाजिक सुविधाएँ उन्नत हैं जिनका भरपूर उपयोग मुस्लिम आप्रवासी करते हैं किन्तु स्थानीय निवासियों के साथ समरस नहीं होते। लूटपाट, बलात्कार जैसे अपराधों में मुस्लिम आप्रवासियों का वर्चस्व है। स्थानीय लोग अब चौकन्ने होने लगे हैं।
ब्रिटेन ने अभिव्यक्ति पर कभी पाबन्दी नहीं लगायी। वहां कुख्यात मौलाना अबू हमज़ा, अब्दुल्ला अल फ़ैज़ल हज़ारों लोगों की सार्वजानिक सभाओं में ज़हर उगलते रहे हैं। जलते हुए ट्विन टावर की फ़ोटो के साथ उसे तबाह करने वाले आतंकियों के पोस्टर वहां की मुस्लिम आबादी के क्षेत्रों में सामान्य लगते हैं। 9-11 की आतंकी घटना की वहां वर्षगांठ मनाई जाती है। योरोप के देशों के लोग लन्दन को लंदनिस्तान कहने लगे हैं। आई एस आई एस को योरोप के देशों में से सबसे अधिक हत्यारे ब्रिटेन से ही मिले हैं। ब्रिटेन में भी इस्लाम के ख़िलाफ़ स्वर मुखर होने लगे हैं।
 श्रीलंका में बौद्ध भिक्षुओं ने मुख्यत: मुसलमानों के ख़िलाफ़ ‘बोडु बाला सेना’ नाम का संगठन बना लिया है। ‘बोडु बाला सेना’ का मुख्यालय कोलंबो के बुद्धिस्ट कल्चरल सेंटर में है। इसका उद्घाटन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे किया था। इस संगठन के भी लाखों समर्थक हैं। ये मानते हैं कि श्रीलंका को मुसलमानों से ख़तरा है। हज़ारों लोग उनकी रैलियों में शामिल होते हैं। सोशल मीडिया पर भी उनकी अच्छी-ख़ासी पहुँच है। वे अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक विश्वासों, पूजा-पाठ के तरीक़ों और विशेषकर मस्जिदों को निशाना बना रहे हैं।
म्यामांर में अभी नवंबर माह में हुए चुनावों में मुसलमानों के भाग लेने पर पाबन्दी लगा दी गयी थी। इन चुनावों में भाग लेने के लिये सौ से अधिक मुसलमानों ने नामांकन पत्र भरे थे, जिन्हें रद कर दिया गया। यद्यपि इन में से 88 उम्मीदवारों ने पिछले चुनावों में भाग लिया था और इसमें प्रमुख मुस्लिम नेता यू स्वाय मोंग सहित 5 सांसद भी रहे थे। नोबल पुरुस्कार प्राप्त आंग सांग सूकी के विपक्षी दल ने भी किसी मुसलमान को उम्मीदवार न बनाने की घोषणा की थी। प्रसिद्द बौद्ध नेता यू वीर अथो, बौद्ध भिक्षु अशीन विराथु लगातार जनता को समझा रहे हैं कि यदि अब भी वो नहीं जागे तो उनका अस्तित्व ही मिट जाएगा। लाखों लोग इनके भक्त, समर्थक, प्रशंसक हैं। जनता का धैर्य टूट चुका है और लोग इस हद तक भड़क उठे हैं कि दुनिया में सबसे शान्तिप्रिय माने जाने वाले बौद्ध भिक्षुओं ने भी हथियार उठा लिये हैं।
बंगलादेश में 2000 के बाद से बमविस्फोटों, लोगों की हत्याओं की सूचनाएं मिल रही हैं। इस देश के इस्लामियों ने 1947 में देश में रहने वाले हिन्दुओं को बुरी तरह समाप्त कर दिया है। प्रसिद्द ब्लॉगर अविजित राय, उनकी किताबें छापने वाले प्रकाशक दीपन की हत्या कर दी गयी। प्रख्यात लेखिका तस्लीमा नसरीन को बांग्ला देश छोड़ना पड़ा। प्रतिबंधित संगठन अंसार उल इस्लाम ने इसकी ज़िम्मेदारी ली है। शिया मस्जिदों पर हमले हो रहे हैं। अभी 24 अक्टूबर को ढाका में शिया मुसलमानों के समूह पर देसी बम फेंके गए। वहां की पुलिस के अनुसार आतंकी संगठन जागृत मुस्लिम जनता बंगलादेश, जमातुल-मुजाहिदीन बंगलादेश ने अपनी सदस्य संख्या 25 हज़ार से अधिक कर ली है और ये लोग बंगलादेश में इस्लामी क्रांति की तयारी कर रहे हैं। इसके साथ ही बँगलादेश के जिहादी संगठन भी बौद्धों को निशाना बनाने में रोहिंग्या गुटों की मदद कर रहे हैं और ये आज भी जारी है।
पाकिस्तान का नाम 2000 के बाद से विश्व भर में कहीं भी होने वाली आतंकी कार्यवाही में आता रहा है। हर देश के आतंकियों के तार किसी न किसी प्रकार से पाकिस्तान से जुड़े पाये जाते हैं। वहां के प्रशासन, सेना ,राजनेताओं, न्याय व्यवस्था के लोगों में आतंकियों के लिये खुला समर्थन है। बिन लादेन वहीँ से पकड़ा गया था। पाकिस्तान घोषित रूप से विश्व के सबसे कुख्यात आतंकियों के शरण लेने की जगह है। ये देश जिहाद फ़ैक्ट्री ही बन चुका है। स्थानीय हिन्दुओं, ईसाइयों, शिया मुसलमानों, अहमदियों के लिये भयानक रूप से क्रूर है। इन समुदायों की हत्याएं वहां सामान्य बात हैं।
 चीन के मुस्लिम बहुल प्रांत शिनजियांग के मुसलमान देश के इस क्षेत्र को इस्लामी राष्ट्र बनाने के लिए वर्षों से जेहाद कर रहे हैं। ये लोग चीन में केवल एक बच्चा पैदा करने के क़ानून का भी हिंसक विरोध करते रहे हैं। यहाँ तुर्क मूल के उईंगर मुसलमान पाकिस्तान के क़बायली इलाकों में आतंक की ट्रेनिंग लेकर चीनी नागरिकों का खून बहाने की साज़िश रचते हैं। चीन में आतंकवादी गतिविधियां एवं जेहादी भावना लगातार बढ़ती जा रही हैं जिसके कारण यहाँ भी बौद्धों और मुसलमानों में घमासान मचा हुआ है। अतः चीन ने भी इस्लामी उद्दंडों पर चाबुक़ फटकारना शुरू कर दिया है। यहाँ मुसलमानों को दाढ़ी रखने, बुर्क़ा पहनने यहाँ तक कि रोज़ा रखने पर भी पाबंदी लगा दी गयी है। चीन में उइगर दुकानदारों को शराब बेचने के लिए बाध्य कर दिया गया है। हलाल मांस की दुकान नहीं खोली जा सकती। 25 वर्ष से कम उम्र के लड़के रोज़ा नहीं रख सकते हैं, मस्जिदों में नहीं जा सकते। चीन सरकार ने मुस्लिम नामों की सूची जारी की है, भविष्य में जिनका उपयोग चीन के मुसलमान अपने बच्चों के नामों में नहीं कर सकेंगे। एक मुस्लिम महिला जिसकी बेटी का नाम मुस्लिमा है, को स्कूल में प्रवेश नहीं दिया गया और उसे कहा गया कि तुरंत अपनी बेटी का नाम बदले।
ऐसा ही हाल हर उस देश का है जहाँ मुसलमान किसी भी संख्या में हैं 
 हर देश में होटलों, स्कूलों, मॉलों, सिनेमाघरों, क्लबों, पर्यटन स्थलों, बाज़ारों में बमविस्फोट-हमले हो रहे हैं। संसार भयानक मोड़ बल्कि तृतीय विश्वयुद्ध के कगार पर आ कर खड़ा हो गया है। ऐसा सामान्यतः देखा गया है कि विचारधारा के संघर्ष में किसी हिंसक विचारधारा के ख़िलाफ़ उठाने वाली आवाज़ें बहुत देर सुने जाने की प्रतीक्षा नहीं करतीं और सुने जाने की अनंतकाल तक प्रतीक्षा करने अथवा उत्तर न मिलने पर उग्र होने लगती हैं। आइये अब शुरू के प्रश्न पर लौटते हैं। एक ऐसी विचारधारा जो अपने अनुसार संसार को शांति देने आई थी, सभ्य संसार को बरबादी की तरफ़ कैसे ले आई ? ये बड़ा गंभीर प्रश्न न केवल मुसलमानों के लिये है अपितु सभ्य संसार के लिये भी है।
 इस विचारधारा में ऐसा क्या है जो शांति का नाम धारण करने वाले मज़हब के लोग हिंसक, युद्धप्रिय, हत्यारे बन रहे हैं ? क्या ये समय नहीं आ गया कि विश्व भर का नेतृत्व इस भयानक समस्या को समझे ? इसके कारणों की छानफटक करे ? इसके निवारण की सामूहिक योजना बनाये ? इसके लिये जितना विलम्ब हो रहा है रोग उतना ही बढ़ता जा रहा है।
~तुफ़ैल चतुर्वेदी

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