हिंदुत्व जबरन धर्मपरिवर्तन
की इजाजत नहीं देता...
सरसंघचालक
‘‘हिंदू एक संस्कृति है, ना कि धर्म। ‘‘हिंदू एक परंपरा है’’ जो ‘‘सभी अन्य पहचानाों को स्वीकार करने, उनका सम्मान करने और उनकी सराहना करने में यकीन रखता है।
हिंदू परंपरा ऐसे धर्मपरिवर्तन की इजाजत नहीं देता, जिसमें किसी व्यक्ति के मानवाधिकार का उल्लंघन होता हो। हिंदुत्व कोई धर्म नहीं है, बल्कि एक परंपरा है जो सभी तरह की पहचान को स्वीकार करने और सम्मान करने की बात करता है। ‘‘किसी दर्शन या धर्म पर विचार करने के बाद यदि किसी की खुद की इच्छा या आकांक्षा उसे बदलने की हो…तो हमारी परंपरा कहती है कि प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र रूप से फैसला कर सकता है कि उसकी आस्था क्या होनी चाहिए। लेकिन लोगों को प्रलोभन देना या कुछ अन्य तरीके का सहारा लेना व्यक्ति के अधिकारों में हस्तक्षेप होगा और उसकी इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।
’’ सरसंघचालक ने ब्रिटेन आधारित धर्मार्थ संस्था हिंदू स्वयंसेवक संघ (एचएसएस) की 50 वीं वर्षगांठ के मौके पर ‘पहचान एवं एकीकरण’ विषय पर एक सेमिनार को संबोधित करते हुए यह कहा।
‘‘हिंदू एक संस्कृति है, ना कि धर्म। ’’ उन्होंने कहा, ‘‘हिंदू एक परंपरा है’’ जो ‘‘सभी अन्य पहचानाों को स्वीकार करने, उनका सम्मान करने और उनकी सराहना करने में यकीन रखता है।’’ ‘‘हमें पहचानों में कोई समस्या नहीं है, हम एक एकीकृत समाज की तरह तथा मानवीय एवं सार्र्वभौम रूप से रह सकते हैं। इसे हासिल किया गया है और आम आदमी ने इसे जिया है तथा इसे कहीं भी पाया जा सकता है जहां हिंदू रहते हैं। हिंदू धर्म कहता है कि विविधता को सराहा जाना होगा।’’
भागवत ने प्राचीन काल में भी विविधता मौजूद होने और ‘विविधता में एकता’ हिंदुत्व का केंद्रीय मंत्र होने के पक्ष में अथर्वेवद की सूक्तियों का हवाला दिया। उन्होंने कहा, ‘‘अपने इतिहास के बावजूद, हमने किसी के साथ विदेशी जैसा बर्ताव नहीं करते…कभी कभी सिर्फ राजनीति इन सभी में व्यवधान डालती है। लेकिन ये पानी के बुलबुले की तरह रहे हैं और फिर हम सामान्य स्थिति की ओर लौट जाते हैं क्योंकि यह हमारे खून में है।’’
भागवत ने प्राचीन काल में भी विविधता मौजूद होने और ‘विविधता में एकता’ हिंदुत्व का केंद्रीय मंत्र होने के पक्ष में अथर्वेवद की सूक्तियों का हवाला दिया। उन्होंने कहा, ‘‘अपने इतिहास के बावजूद, हमने किसी के साथ विदेशी जैसा बर्ताव नहीं करते…कभी कभी सिर्फ राजनीति इन सभी में व्यवधान डालती है। लेकिन ये पानी के बुलबुले की तरह रहे हैं और फिर हम सामान्य स्थिति की ओर लौट जाते हैं क्योंकि यह हमारे खून में है।’’
‘‘आखिरकार हम सभी मानव हैं , सभी आत्मा हैं । हमें सभी की पहचान का सम्मान करना चाहिए और स्वीकार करना चाहिए लेकिन एकता पर नजरें टिकाए रखनी चाहिए। यह उदाहरण हिंदू समाज ने दुनिया में कहीं भी दिया है और यह सभी संघर्ष का हल कर सकता है।’’
महाशिविर 2016 में भारी सुरक्षा बल की मौजूदगी के बीच 65 वर्षीय आरएसएस नेता प्रमुख अतिथि थे। भागवत ने ब्रिटेन में प्रवासी भारतीयों को अपने संदेश में कहा, ‘‘हिंदू आपको हिंदू कहने के लिए जोर नहीं देते हैं। लेकिन मूल्य समान हैं…हम सभी अस्तित्व की एकता और सेवा करने, एक दूसरे से नहीं लड़ने, एकजुट रहने और संसार की भलाई का काम करने में यकीन करते हैं।’’
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