जो इस कहानी से प्रभावित होगा, वही सेकेंड के हज़ारवें हिस्से की गणना करने का दम दिखाएगा...
ब्रुसली ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि सुबह नींद खुलते ही उसका मन सोचता था कि इस वक्त उसका प्रतिद्वंदी क्या कर रहा होगा। वो अपने मन में खुद ही सोचता कि उसका प्रतिद्वंदी इस वक्त मार्शल आर्ट का अभ्यास कर रहा होगा। ब्रुसली ऐसा सोचता और खुद लग जाता अभ्यास में। दोपहर में फिर वो सोचता कि उसका प्रतिद्वंदी इस वक्त क्या कर रहा होगा। वो फिर सोचता कि उसका प्रतिद्वंदी इस वक्त भी मार्शल आर्ट का अभ्यास कर रहा होगा। उसके मन में ये ख्याल आता और फिर वो खुद लग जाता प्रैक्टिस में।
शाम को भी वो अपने प्रतिद्वंदी के विषय में सोचता और यही सोचता कि उसका प्रतिद्वंदी इस वक्त भी अभ्यास कर रहा होगा। वो ऐसा सोचता और खुद अभ्यास में लग जाता। दिन में कई बार खेल का अभ्यास करने के बाद जब देर रात ब्रुसली बिस्तर पर सोने जाता तो आसमान में टिमटिमाते सितारों को देख कर उसके मन में फिर यही ख्याल आता कि उसका प्रतिद्वंदी इस वक्त क्या कर रहा होगा। वो लेटे हुए सोचता कि उसका प्रतिद्वंदी इतनी रात को सो गया होगा।
ब्रुसली जैसे ही सोचता कि उसका प्रतिद्वंदी अब सो गया होगा, वो उछल कर बिस्तर से उठता और खुद से कहता कि ब्रुसली, तुम्हारा प्रतिद्वंदी इस वक्त सो रहा है। यही वो समय है जब तुम्हारा किया अभ्यास फलीभूत होगा। और इस तरह ब्रुसली रोज देर रात में उठ कर और अभ्यास करता। बोल्ट ने ब्रुसली ये कहानी सुनी होगी। वो इस कहानी से प्रभावित रहा होगा
No comments:
Post a Comment