Tuesday 28 April 2015

मंदिरों से मदद क्यों नहीं जाती 
जबकि चर्च मदद करता है |
मंदिर के पैसे किसके कब्ज़े में हैं ये जानना हर हिन्दू के लिए जरुरी है | तथाकथित “सेकुलरों” को
जवाब देने के लिए
 गुरूद्वारे से चंदा आ जाता है, चर्च फ़ौरन धर्म
परिवर्तन के लिए दौड़ पड़ते हैं आपदा ग्रस्त इलाकों में |
ऐसे में मंदिर और मठ क्यों पीछे रह जाते हैं ?
 दरअसल इसके पीछे 1757 में बंगाल को जीतने वाले रोबर्ट
क्लाइव का कारनामा है | लगभग इसी समय में उसने
मैसूर पर भी कब्ज़ा जमा लिया था | सेर्फोजी
द्वित्तीय के ज़माने में 1798 में जब थंजावुर को ईस्ट
इंडिया ने अपने कब्जे में लिया तब से मंदिरों को भी
ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने कब्जे में लेना शुरू कर दिया
था |
जब भारतीय रियासतों को अंग्रेजों ने अपने कब्ज़े में
लेना शुरू किया तो अचानक उनका ध्यान गया की
शिक्षा और संस्कृति के गढ़ तो ये मंदिर हैं | मंदिरों और
मठों के पास ज़मीन भी काफी थी | देश पे कब्ज़ा
ज़माने के साथ साथ आर्थिक फ़ायदे का ऐसा श्रोत
वो कैसे जाने देते ? फ़ौरन ईस्ट इंडिया कंपनी के इसाई
मिशनरियों ने इस मुद्दे पर ध्यान दिलाया | नतीज़न
इसपर फौरन दो कानून बने | दक्षिण भारत और उत्तर
भारत के लिए ये थोड़े से अलग थे |
1. Regulation XIX of Bengal Code, 1810
2. Regulation VII of Madras Code, 1817
"For the appropriation of the rents and produce of
lands granted for the support of .... Hindu temples
and colleges, and other purposes, for the
maintenance and repair of bridges, sarais, kattras,
and other public buildings; and for the custody and
disposal of nazul property or escheats, in the
Presidency of Fort Williams in Bengal and the
Presidency of Fort Saint George, some duties were
imposed on the Boards of Revenue…."
ऐसा जिस कनून में लिखा था जाहिर है वो ये समझ
कर लिखा गया था जिस से हिन्दुओं की धार्मिक
भावनाएं ज्यादा ना आहत हो जाएँ | धार्मिक
भावनाओं को भड़काने का नतीजा अच्छा नहीं
होगा उन्हें ये भी पता था, पूरे भारतीय समाज को ये
एक हो जाने का मौका देने जैसा होता | इसके
अलावा मिशनरियों का तरीका भी धीमा जहर देने
का होता है |
• ईस्ट इंडिया कंपनी को पता था की मंदिरों के पास
कितनी संपत्ति है | उन्हें बचाना क्यों जरुरी है इसका
भी उन्हें अंदाजा था |
• इन निर्देशों / कानूनों में कहीं भी चर्चों का कोई
जिक्र नहीं है | उनकी संपत्ति को छुआ तक नहीं गया है
|
1857 के विद्रोह को कुचलने के बाद जब पूरे भारत पर
विदेशियों का कब्ज़ा हो गया तब उन्होंने अपनी
असली रंगत दिखानी शुरू की | 1863 में ब्रिटिश
सरकार अलग अलग मंदिरों के लिए अलग अलग ट्रस्टी
बनाने की प्रक्रिया शुरू करवा दी | भारतीय तब
विरोध करने लायक स्थिति में नहीं थे |
The Religious Endowments Act, 1863
• ट्रस्टी, मैनेजर और superitendent नियुक्त करने का
अधिकार
• संपत्ति revenue board के अधीन होगी, जो ट्रस्टी
चलाएंगे
• जिन मामलों में मंदिर या मठ की संपत्ति का
सेक्युलर उदेश्यों के लिए इस्तेमाल करना हो
Beginning of the Loot, 1927
सरकार को नजर आया की मठों और मंदिरों की
संपत्ति को आसानी से अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल
किया जा सकता है | 1863 के बाद के सालों में वो
भली भांति मंदिरों की संपत्ति पर अपने “सेक्युलर”
अधिकारी बिठा चुके थे ऐसे में वो जो चाहे वो कर
सकते थे | सही मौका देखकर Madras Hindu Religious
Endowments Act, 1926(Act II of 1927) का निम्न
किया गया | इस एक्ट के तहत सरकार सिर्फ एक
Notification देकर मंदिर और उसकी संपत्ति का
अधिग्रहण कर सकती थी | इस एक्ट की एक और ख़ास
बात ये है की पिछली बार जहाँ मस्जिद भी थोड़े बहुत
सरकारी नियंत्रण में थे अब वो एक इसाई सरकार के
नियंत्रण से बाहर थे |
ये कानून सिर्फ हिन्दू धार्मिक संस्थानों के लिए है |
इसाई और मुस्लिम संस्थान इस से सर्वथा मुक्त हैं |
सिर्फ एक notification पूरे मंदिर की सारी चल अचल
संपत्ति को ईसाईयों के कब्ज़े में डाल देता है |
“सेक्युलर” भारतीय सरकारों के कारनामे
हिन्दू धार्मिक संस्थानों पर पूरा कब्ज़ा, 1951
Consolidating the control over Hindu religious
properties. 1951
सन 1951 में मद्रास सरकार ने THE MADRAS HINDU
RELIGIOUS AND CHARITABLE ENDOWMENTS ACT,
1951 बनाया | ये कानून बाकि सभी पिछले कानूनों के
ऊपर था और हिन्दू मंदिरों पर सरकारी “सेक्युलर”
नियंत्रण को पुख्ता करता था | कमिश्नर और उनके
अधीन कर्मचारी कभी भी मंदिर पर पूरा कब्ज़ा जमा
सकते थे | इस अनाचार का पुख्ता विरोध हुआ | 1954 में
सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के कई हिस्सों को
असंविधानिक करार दिया | यहाँ तक की सुप्रीम
कोर्ट ने एक हिस्से के बारे में कहा की वो 'beyond the
competence of Madras legislature' है |
1956 में दक्षिण भारतीय राज्यों के पुनः निर्धारण के
बाद हर राज्य ने मंदिरों पर नियंत्रण के अपने अलग अलग
कानून बनाये |
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