Thursday 30 April 2015

भारत के रेल मंत्री और बाद में बित्त मंत्री रहे जॉन मथाई की पुस्तक प्रिमिनेंसेस ऑफ़ नेहरू एज पर से प्रतिबन्ध हटाया जाना चाहिए |

आज गूगल सर्च में कुछ ऐसा मिला, जिससे दिमाग की चूलें हिल गईं 16 दिसंबर 2011 कोhttp://saralnigam.blogspot.in/2011/12/blog-post_16.html पर खानदानी लुटेरे शीर्षक से एक पोस्ट डाली गई, जिसमें भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्व. जवाहर लाल नेहरु के व्यक्तिगत सचिव रहे जॉन मथाई की आत्मकथा को उद्दृत करते हुए नेहरू परिवार की वन्शाबली दी गई उनके शब्दों को यथावत लिखने में तो मुझे थोड़ी हिचक है, फिर भी कुछ शब्द परिवर्तन कर लिखती हूँ मकान न. 77, मीरगंज इलाहावाद में रहने वाली जद्दन बाई का सारा खर्चा स्व. मोतीलाल नेहरू उठाते थे लेख के अनुसार जद्दन बाई की माँ दलीपा बाई से मोतीलाल जी के सम्बन्ध थे जद्दन बाई दुनिया की पहली महिला संगीतकार व गायिका थीं, जिन्होंने फिल्मों में संगीत दिया जद्दन बाई के तीन विवाह हुए पहला निकाह नरोत्तमदास खत्री से हुआ, जिन्होंने विवाह के बाद मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया, उन्हें लोग बच्ची बाबू कह कर बुलाते थे दूसरा निकाह उस्ताद मीर खान से हुआ जिनसे फिल्म अभिनेता अनवर हुसैन पैदा हुए तीसरा निकाह डॉ. उत्तमचंद मोहनचंद से हुआ, जो मुस्लिम बनने के बाद अब्दुल रशीद हो गया और बाद में आर्यसमाज के स्वामी श्रद्धानंद जी की ह्त्या का गुनहगार बना इस शादी से तीन बच्चे हुए सबसे बड़ी बेटी का नाम फातिमा रखा गया जो बाद में फिल्म अभिनेत्री नर्गिस बनी और उनका विवाह फिल्म अभिनेता सुनील दत्त से हुआ
स्व. मोतीलाल नेहरू की बैध पत्नी श्रीमती स्वरुप कुमारी बख्शी से दो संतानें थीं पहली श्रीमती कृष्णा w/o जयसुखलाल हाथी (पूर्व राज्यपाल) दूसरी श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित w/o श्री आर एस पंडित (पूर्व राजदूत रूस) मोतीलाल नेहरू का दूसरा विवाह कश्मीरी महिला रहमान बाई उर्फ़ थुस्सू से हुआ, जिनसे जवाहरलाल पैदा हुए
लेख की अन्य बातों का मैं उल्लेख नहीं करती जिनमें मोतीलाल जी की रंगीनियत झलकती है किन्तु लेख में स्व. इंदिरा गांधी को लेकर कहा गया है कि उनके मुहम्मद यूनुस से सम्बन्ध थे
मुहम्मद यूनुस के उल्लेख से मुझे याद आया कि ये वही हैं जिनके बेटे आदिल शहरयार को अमरीकी जेल से छुड़वाने के बदले कथित रूप से स्व.राजीव गांधी ने भोपाल गैस काण्ड के मुख्य अभियुक्त वारेन एंडरसन को भारत से जाने दिया इतना ही नहीं तो आज के ही नया इंडिया समाचार पत्र के अनुसार तो भारत सरकार ने इस भीषण काण्ड के बाद अमरीकी अदालत में युनियन कार्बाईड के खिलाफ 33 बिलियन डॉलर का मुक़दमा ठोका था किन्तु अमरीका में मुआवजे संबंधी कड़े कानूनों को देखते हुए वह मुक़दमा बाद में भारत में चला, जिसकी लीपा पोती आज तक चल रही है
आखिर एक परिवार के राजतंत्र का कितना खामियाजा यह देश भोगता ? शायद इसीलिए सत्ता परिवर्तन हुआ किन्तु अटल जी की सदस्य्ता का जो लाभ इंदिरा जी ने उठाया, बैसा ही इतिहास दुबारा न दोहराया जाए तो अच्छा होगा वारेन एंडरसन मुद्दे पर श्वेत पत्र आना चाहिए वह देश के बाहर कैसे गया ? मुक़दमा अमरीका की अदालत में क्यों नहीं चला ? भारत के रेल मंत्री और बाद में बित्त मंत्री रहे जॉन मथाई की पुस्तक प्रिमिनेंसेस ऑफ़ नेहरू एज पर से प्रतिबन्ध हटाया जाना चाहिए |
एक दूसरी लिंक भी आज के शोध में मिली http://tocnewsindia.blogspot.in/2011/11/blog-post_1841.html | जिसमें इंदिरा जी के विवाह की दास्तान थी -
आनन्द भवन का असली नाम था इशरत मंजिल और उसके मालिक थे मुबारक अली मोतीलाल नेहरू पहले इन्हीं मुबारक अली के यहाँ काम करते थे। सभी जानते हैं की राजीव गाँधी के नाना का नाम था जवाहरलाल नेहरू लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के नाना के साथ ही दादा भी तो होते हैं। फिर राजीव गाँधी के दादाजी का नाम क्या था? किसी को मालूम नहीं, क्योंकि राजीव गाँधी के दादा थे नवाब खान। एक मुस्लिम व्यापारी जो आनन्द भवन में सामान सप्लाई करता था और जिसका मूल निवास था जूनागढ गुजरात में। नवाब खान ने एक पारसी महिला से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया। फिरोज इसी महिला की सन्तान थे और उनकी माँ का उपनाम था घांदी (गाँधी नहीं) घांदी नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था। विवाह से पहले फिरोज गाँधी ना होकर फिरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण भी यही था।
हमें बताया जाता है कि फिरोज गाँधी पहले पारसी थे यह मात्र एक भ्रम पैदा किया गया है। इन्दिरा गाँधी अकेलेपन और अवसाद का शिकार थीं। शांति निकेतन में पढ़ते वक्त ही रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें अनुचित व्यवहार के लिये निकाल बाहर किया था। अब आप खुद ही सोचिये एक तन्हा जवान लडक़ी जिसके पिता राजनीति में पूरी तरह से व्यस्त और माँ लगभग मृत्यु शैया पर पड़ी हुई हों थोड़ी सी सहानुभूति मात्र से क्यों ना पिघलेगी?
इंदिरा गांधी या मैमूना बेगम: इसी बात का फायदा फिरोज खान ने उठाया और इन्दिरा को बहला-फुसलाकर उसका धर्म परिवर्तन करवाकर लन्दन की एक मस्जिद में उससे शादी रचा ली। नाम रखा मैमूना बेगम। नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए लेकिन अब क्या किया जा सकता था। जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिली तो उन्होंने नेहरू को बुलाकर समझाया। राजनैतिक छवि की खातिर फिरोज को मनाया कि वह अपना नाम गाँधी रख ले, यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये बजाय धर्म बदलने के सिर्फ नाम बदला जाये तो फिरोज खान घांदी बन गये फिरोज गाँधी। विडम्बना यह है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और सत्य के साथ मेरे प्रयोग नामक आत्मकथा लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक नहीं नहीं किया।
खैर, उन दोनों फिरोज और इन्दिरा को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक बार पुन: वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया ताकि उनके खानदान की ऊँची नाक का भ्रम बना रहे। इस बारे में नेहरू के सेकेरेटरी एम.ओ. मथाई अपनी पुस्तक प्रेमेनिसेन्सेस ऑफ नेहरू एज (पृष्ठ 94 पैरा 2 (अब भारत में प्रतिबंधित है किताब) में लिखते हैं कि पता नहीं क्यों नेहरू ने सन 1942 में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीतिरिवाजों से किये जाने को अनुमति दी जबकि उस समय यह अवैधानिक था का कानूनी रूप से उसे सिविल मैरिज होना चाहिये था । यह तो एक स्थापित तथ्य है कि राजीव गाँधी के जन्म के कुछ समय बाद इन्दिरा और फि रोज अलग हो गये थे हालाँकि तलाक नहीं हुआ था। फिरोज गाँधी अक्सर नेहरू परिवार को पैसे माँगते हुए परेशान किया करते थे और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे। तंग आकर नेहरू ने फिरोज के तीन मूर्ति भवन मे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। मथाई लिखते हैं फिरोज की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बड़ी राहत मिली थी। 1960 में फिरोज गाँधी की मृत्यु भी रहस्यमय हालात में हुई थी जबकी वह दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे। बुरे कामो पर इन्दिरा ने हमेशा परदा डाला और उसे अपनी मनमानी करने कि छूट दी।

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