Saturday 23 January 2016

रोजाना 400 बच्चे और महिलाएं लापता
भारत में रोजाना औसतन चार सौ महिलाएं और बच्चे लापता हो जाते हैं और इनमें से कइयों का कभी पता नहीं चलता. फिलहाल देश भर में दो लाख ऐसे लोग लापता हैं.
सितंबर 2015 तक भारत में 73,242 महिलाएं और बच्चे गायब हुए. उनमें से महज 33,825 का ही पता चल सका है. ये आंकड़े केंद्रीय गृह मंत्रालय के हैं. इन आंकड़ों को ध्यान में रखें तो रोजाना औसतन 270 महिलाएं गायब हो जाती हैं. बीते साल से अब तक घरों से गायब होने वाली 1.35 लाख महिलाओं का अब तक कोई सुराग नहीं मिल सका है. घर से गायब होने वाले बच्चों के मामले में भी तस्वीर बेहतर नहीं है. इस साल सितंबर तक देश के विभिन्न राज्यों से बच्चों के गायब होने के 35,618 मामले दर्ज हुए हैं यानि रोजाना औसतन 130 मामले. ये आंकड़े पुलिस में दर्ज होने वाले मामलों पर आधारित हैं. लेकिन हजारों मामले ऐसे भी हैं जो पुलिस तक नहीं पहुंच पाते.
बच्चों और औरतों की तस्करी
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक, बीते एक दशक के दौरान देश में मानव तस्करी के कुल मामलों में 76 फीसदी हिस्सा नाबालिग लड़कियों व महिलाओं की तस्करी का है. वर्ष 2010 में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय ने एशिया फाउंडेशन के लिए इस मुद्दे पर एक रिपोर्ट तैयार की थी. उसमें कहा गया था कि भारत में 90 फीसदी मानव तस्करी घरेलू और अंतरराज्यीय है यानि यहां महिलाओं व बच्चों को घरेलू कामकाज के लिए तस्करी से राज्य के दूसरे हिस्सों या दूसरे राज्यों में भेज दिया जाता है. उस रिपोर्ट में बढ़ती मानव तस्करी के लिए गरीबी, पलायन, सामाजिक कल्याण व सुरक्षा के किसी आधारभूत ढांचे के अभाव और मजबूत कानूनी ढांचे को जिम्मेदार ठहराया गया था. इसके अलावा देह व्यापार के क्षेत्र में बढ़ती मांग भी इसकी एक प्रमुख वजह थी.
रिपोर्ट में कहा गया था कि तस्करी के जरिए दूसरी जगहों पर भेजे जाने वाले बच्चों और महिलाओं को मुख्य रूप से देह व्यापार, बंधुआ मजदूरी, औद्योगिक व कृषि क्षेत्र, घरेलू कामकाज, मनोरंजन उद्योग मसलन सर्कस और ऊंट की सवारी, भीख मांगने और आतंकी गतिविधियों में खपाया जाता है.
परेशान करने वाले आंकड़े
महिलाओं के गायब होने के मामलों में महाराष्ट्र का नाम सूची में सबसे ऊपर है. यह विडंबना ही है कि ऐसे मामलों में जो पांच राज्य शीर्ष पर हैं उनमें से चार में देश के चार बड़े महानगर मुंबई, कोलकाता, दिल्ली और बंगलूरु स्थित हैं. बीते चार साल के आंकड़ों को ध्यान में रखें तो हर साल गायब होने वाले महिलाओं व बच्चों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. वर्ष 2012 में गायब होने वाले कुल बच्चों में से लगभग 20 हजार का कोई सुराग नहीं मिला था. लेकिन उसके बाद यह तादाद तेजी से बढ़ी.
वर्ष 2013 में यह तादाद 35 हजार थी जबकि अगले साल यह 50 हजार हो गई. इस साल सितंबर तक ही यह तादाद 65 हजार के आसपास पहुंच गई. महिलाओं के मामले में भी यही हो रहा है. वर्ष 2012 में जहां ऐसी महिलाओं की तादाद 34 हजार थी, वहीं 2015 में यह तादाद चार गुना से भी ज्यादा बढ़ कर 1.35 लाख तक पहुंच गई है. 2014 के आंकड़ों के मुताबिक, सबसे ज्यादा 21,899 महिलाएं महाराष्ट्र से गायब हुई थीं. 16,266 के साथ पश्चिम बंगाल दूसरे नंबर पर था जबकि 15 हजार के साथ मध्य प्रदेश तीसरे पर. देश की राजधानी दिल्ली में भी इस दौरान साढ़े सात हजार महिलाएं गायब हुईं. इस सूची में कर्नाटक (7,119) पांचवे नंबर पर रहा.
चिंताजनक स्थिति
महिलाओं और बच्चों के हित में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस स्थिति पर गहरी चिंता जताई है. एक सामाजिक कार्यकर्ता सुजाता सेनगुप्ता कहती हैं, "अगर इनके साथ पुलिस के पास तक नहीं पहुंचने वाले मामलों को भी जोड़ लें तो तस्वीर का रूप भयावह नजर आता है. बावजूद इसके सरकार ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है. यह बेहद खतरनाक स्थिति है." एक गैर-सरकारी संगठन के प्रमुख सुरजीत गुहा कहते हैं, "मौजूदा परिस्थिति पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ मिल कर एक ठोस रणनीति बनानी चाहिए. ऐसा नहीं हुआ तो देश का सामाजिक ताना-बाना ही चरमरा जाएगा."

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